Sangat Ep.22 | Ajay Navaria on Dalit Literature, Ambedkar, Caste & Hans Patrika | Anjum Sharma

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  • เผยแพร่เมื่อ 11 ม.ค. 2025

ความคิดเห็น • 40

  • @Hindwi
    @Hindwi  ปีที่แล้ว +6

    'संगत' का यह एपिसोड आपको कैसा लगा?

    • @SkSk-xx8nz
      @SkSk-xx8nz ปีที่แล้ว

      P jb lklklmq wW

    • @the_sakku
      @the_sakku ปีที่แล้ว +1

      हमारे प्रिय अजय सर जामिया से❤

  • @MukeshKumar-up9mu
    @MukeshKumar-up9mu ปีที่แล้ว +3

    अंजुम जी और अजय जी का बहुत-बहुत धन्यवाद। अंजुम जी आपका प्रयास बहुत ही सराहनीय संगत के माध्यम से सर्जनशील व्यक्तित्व से हमें रूबरू करवा रहे हो। 🌹🙏🌹

  • @drushakumari
    @drushakumari ปีที่แล้ว +1

    यह संगत बहुत विचारपूर्ण और सार्थक रही। धन्यवाद!

  • @natakwala24
    @natakwala24 ปีที่แล้ว +1

    इंटरव्यू आधे वक्त के बाद से रोचक रही। अजय सर की धैर्यता अच्छी लगी। कुछ बिंदु ऐसी रहीं जो बिल्कुल ही प्रभावी रहे, मगर कुछ पर अंजुम सर के किए गए सवालों के बाद भी सवाल के जोरदार घेरे में लिए जा सकते हैं। अजय सर कई बार अंजुम सर के सवालों से खुद की बचाव किए हैं, अच्छी बात है, पर अपनी बचाव के उलट प्रेमचंद पर आरोप लगाना कि उस पंक्ति के न होने से भी कहानी पूरी हो सकती थी, फिर अपने कहानी के ही बारे में कहते हैं कि ये डिटेलिंग ज़रूरी है, तो प्रेमचंद जी भी कह सकते कि मेरे इन पक्तियों पर ही पूरी कहानी टिकी है या इसी पंक्ति से पूरी कहानी के भाव को समझने में मदद मिल सकती है या मैं कहूं कि प्रेमचंद तो डिटेलिंग के मास्टर रचयिता थे। उनकी कोई भी कहानी या उपन्यास हो, पत्रों को इस तरह चित्रित करते हैं की उसकी पूरी खानदान के सोच को भी जान लेंगे, उसके चित्रित हाव भाव से कहानी में वो आगे क्या करने वाला है, पता हो जाता है और ये प्रेमचंद की खूबी है और शिल्प दृष्टि से नई शिल्प है। आप कह रहे हैं उस उसकी जाति वाले कल को सवाल खड़ा करें तो? तो आप भी जानते है जिसके बारे जो बतानी हो तो अगर वही नहीं बताएं, तो फिर कैसे मालूम चलेगा कि उसके बारे में क्या बता रहे हैं। सुनने या पढ़ने वाला सब बुद्धिजीवी ही तो नहीं, पीएचडी धारक तो नहीं, आलोचक तो नहीं कि आप एक कहें और वो दस समझे...आप जब मान रहे हैं प्रेमचंद दलितों, पीड़ितों, शोषितों, स्त्रियों, ग्रामीणों के लेखक हैं, तो ये माननी चाहिए की उनकी भाषा भी उन्ही के परिवेश की तरह हो, शब्द उन्ही के बीच का चूना गया हो, बाते भी ऐसे ही कही लिखी गई हो जैसा कि ग्रामीण, झोपड़पट्टी के बोलते समझते हों और प्रेमचंद ऐसा ही किए भी हैं फिर आपका अनवर सवाल करना कि उनकी कहानी इस पंक्ति के बिना भी पूरी हो सकती थी? जो मुझे तंग कर दिया। बाकी आपके बारे में आज इस इंटरव्यू में ही पहली दफा सुना और जाना। अच्छा लगा।
    वैसे इसपर भी विचार हो की दलित खुद दलित की अवधारणा को तोड़ना चाहता है और खुद इसके लाभ के लिए दलित होना भी बताता है।
    आप आरक्षण की बात करते हैं तो आपको मालूम होना चाहिए, स्वर्ण में ऐसे ऐसे घर हैं जो खाने को तरसते हैं। मैं खुले तौर पर इस पक्ष में हूं कि की आरक्षण किसी जाति के आधार पर नहीं बल्कि हर जाति के उस व्यक्ति के आर्थिक अयोग्य, गरीबी के आधार दिया जाए।
    वैसे बार बार दलित कहना, या स्वर्ण कहना, बताना भी तो जाति, वर्ग का बढ़ावा है।
    असल में सरकार की हर योजना, कार्यप्रणाली का आधार जाति, वर्ग विशेष को ध्यान में रखकर ही तय की जाती है। और जाती, वर्ग भेद बना रहे इसकी की भी दबाव खुद सरकार के द्वारा ही रखी जाती है, अगर ध्यान से देखेंगे तो।
    खैर सारी बातें यहां कही नहीं जा सकती।
    संगत की ये प्रस्तुतियां नए पढ़कों के लिए भूमि तैयार कर रही हैं जिसके साहित्य रूप खेत में क्या क्या खेती हुई है और क्या क्या होने की संभावना है, जानकारी मिलती रहेगी।
    पूरी टीम को धन्यवाद। वैसे अंजुम सर के सवाल करने का तरीका सही है। हा थोड़ा और तीक्ष्ण हो जाए जिससे सामने वाले पर भारी पड़े या उसे असहज कर दे या उसके उसके ओढ़े आवरण को उघार कर रखे दे, तो मजा आ जाए। हालांकि ये वक्त के साथ हो जायेगा, बस ये ध्यान रहे कि सवाल सामने वाले के पक्ष देने की पक्ष में ना हो।
    ❤ धन्यवाद

  • @jayanthamanori5539
    @jayanthamanori5539 ปีที่แล้ว

    अजय sir ने मनुष्य जीवन और आवरण वाली बातें कही हैं, बिलकुल सही है । सफल संवाद।

  • @minakshigautam4203
    @minakshigautam4203 ปีที่แล้ว +1

    Many many thanks to Sangat, got a chance to hear Sir after a long time.

  • @shreyamishra6541
    @shreyamishra6541 ปีที่แล้ว

    कितनी ज़रूरी बातचीत है। बहुत उम्दा।

  • @govindsen2693
    @govindsen2693 ปีที่แล้ว +1

    तानाशाही का भाव किसी भी समुदाय में हो सकता है. साहित्य पराजित के पक्ष में खड़ा होता है. विचारोत्तेजक संगत. जवाब बहुत संतुलित रहे. बहुत सार्थक बातचीत रही.

  • @archanalaark1413
    @archanalaark1413 ปีที่แล้ว +2

    सार्थक और गहरी बातचीत के लिए अजय नावरिया जी और अंजुम जी को बधाई।

  • @maheshpunetha5522
    @maheshpunetha5522 ปีที่แล้ว +4

    हरीश चंद्र पांडेय जी से भी कभी बातचीत कीजिएगा।

  • @ajeyklg
    @ajeyklg ปีที่แล้ว

    अजय नावरिया सायास, सोद्देश्य सुचिंतित तरीके से लिखने वाले एक समर्थ लेखक हैं उन उन के जो अंत में जो कामना कर रहे हो अंजुम , पसंद नहीं आया। मने कुछ सतही सा प्रतीत हुआ। उन का टारगेट ग्रुप साफ स्पष्ट है। मैं बजाय यह कामना करने के दलितों, पिछड़ों और निरीहों के लिए कामना करूँगा कि उन्हें जो चाहिए वो मिले। थोड़ी डिगनिटी, थोड़ी पहचान, थोड़ी एकसेप्टेंस और इस सब के लिए निस्सन्देह थोड़ी सी सत्ता भी।
    ❤🙏

  • @rupindersoz3781
    @rupindersoz3781 ปีที่แล้ว

    बहुत अच्छी लगी मुलाक़ात - सवाल और जवाब काफ़ी जानकारी बता गए ।
    एक सवाल मेरा भी है कि क्या ये बात साहित्यकारों की जान में है कि कहीं दलित किसी ग़रीब मिडिल या ऊँची जाति वाले को दलित के ऐक्ट के माध्यम से तंग कर रहा हो ।

  • @Subham_kumarr
    @Subham_kumarr ปีที่แล้ว +1

    अगर हो सके तो अगले कुछ एपिसोड मैं नए लेखकों को बुलाए। जैसे की निलोत्पल मृणाल, दिव्य प्रकाश दुबे, राहगीर,और अविनाश मिश्र आदि।

  • @radheshyamsharma2026
    @radheshyamsharma2026 ปีที่แล้ว

    बहुत सुंदर।

  • @harishsamyak2413
    @harishsamyak2413 ปีที่แล้ว

    और राजेंद्र जी तो दलित नहीं थे...41:50 समय पर जो सवाल अंजुम जी ने पूछा ,नावरिया भाई एकदम चिंतनीय हो गए । खैर नावरिया जी और अंजुम जी दोनों ने अच्छा समय बांधा । नावरिया जी कभी हंस कार्यालय और राजेन्द जी से जुड़े संस्मरण लिखें तो अच्छी किताब बन सकती है ।

    • @akb7787
      @akb7787 ปีที่แล้ว

      राजेंद्र जी तो स्त्री भी नहीं थे ।

  • @anikethiwarale6272
    @anikethiwarale6272 ปีที่แล้ว

    अंजुम जी आशा करता हु चित्रा मुद्गल, बाबुशा कोहली और रश्मी भारद्वाज जल्द हि संगत मे नजर आयेंगी।

  • @shiwamkumarjha606
    @shiwamkumarjha606 ปีที่แล้ว +2

    हो सके तो विकास दिव्य कीर्ति जी का एक बार संगत हो जाय....🙏

    • @ashishawasthi9363
      @ashishawasthi9363 ปีที่แล้ว

      भाई साहब ये साहित्यकारों की संगत है। विकास सर के इंटरव्यू कई अन्य जगह हैं आप देख लीजिए।

  • @gazal1803
    @gazal1803 ปีที่แล้ว

    Navarai ji 🙏🙏🙏

  • @shubhramtanwar3043
    @shubhramtanwar3043 ปีที่แล้ว

    ❤सार्थक संगत 🙏🙏🌹🌹

  • @rahulpandey7796
    @rahulpandey7796 ปีที่แล้ว +1

    डॉ अम्बेडकर 10 साल तक आरक्षण देने का समर्थक थे।अतःअम्बेडकर जी दलित साहित्य में प्रवेश नहीं पा सकते।क्योंकि वे आगे आरक्षण के समर्थक नहीं थे।

    • @shivamitblogs2946
      @shivamitblogs2946 ปีที่แล้ว

      लेकिन उन्होंने ये भी कहा था, कि दलितों की स्थिति अगर दयनीय रही तो आरक्षण पुनः बढ़ाया जाएगा।

  • @jawedjahadpoetry1267
    @jawedjahadpoetry1267 ปีที่แล้ว

    Very good 💐

  • @GurdeepSingh-mg4cg
    @GurdeepSingh-mg4cg ปีที่แล้ว

    👏🏻

  • @sureshmisal455
    @sureshmisal455 ปีที่แล้ว

    Please iamintrested thing about

  • @ravishanker9672
    @ravishanker9672 หลายเดือนก่อน

    मौलिक अधिकार नहीं गुंडई की भाषा बोल रहे ये/खुद स्टीरियोटाइप

  • @amrujha
    @amrujha ปีที่แล้ว

    सार्थक संगत

  • @ankitm7030
    @ankitm7030 ปีที่แล้ว

    Kisi dalit ko ek baar reservation milbe ke baad wo samarth ho jata hai,ab agar uske baad ki saari peedhiyon ko reservation milta rhega to sirf ek pariwar hi reservarion ka fayda uthata rhega aur baaki ke dalit sadaiv pichhde hi reh jayenge.Is tarah to reservation ka auchitya hi sandehaspad ho jata hai.

  • @vidusbaton
    @vidusbaton ปีที่แล้ว

    बातचीत ने कई आयाम कवर किए। व्यापक और गहरी बातचीत।
    मध्य वर्ग में आत्मसाक्षात्कार की प्रवृत्ति कम होती जा रही है। उस दृष्टि से भी थोड़े असहज करने वाले, अपने भीतर उतरने का मौका देने वाले, चुनौती पेश करते सवाल हम एक दूसरे से पूछते रहें तो अच्छा ही है।।
    मगर स्वर्ण पुरुष विद्वानों से भी इन आयामों पर पूछताछ होनी चाहिए कि उन्हें क्या- क्या प्रिवलेज ब्राह्मण और पुरुष होने की मिलती रही। सामाजिक प्रतिष्ठा, पद, पुरस्कार, मौके आदि पाने में।
    कब उन्हें पहली बार एहसास हुआ अपनी प्रिवलेज का? बोध होने के बाद अपने अंदर क्या बदलाव वे लाए। जाति या जेंडर के आधार पर भेदभाव करने में उनकी क्या सहभागिता रही।।या जब उन्हें साफ पता होता है कि कोई पद या पुरस्कार उन्हें अपनी जाति के कारण मिल रहा है। तो वे क्या करते हैं? ....... इत्यादि सवालों से उनको भी अपने अंदर ( और बाहर भी) झांकने का मौका मिले। उम्मीद है उन्हें इस अवसर से कतई वंचित नहीं करेंगे आप।

  • @prakashchandra69
    @prakashchandra69 ปีที่แล้ว +1

    शर्मा जी, रामचंद्र शुक्ल ने जातक और आगम को इतिहास में स्थान नहीं दिया?आजीवक,
    श्रमण, सिद्ध धाराओं पर सनातन मौन रखा।

  • @maheshpunetha5522
    @maheshpunetha5522 ปีที่แล้ว

    नवीन जोशी का उपन्यास टिकटशुदा रुक्का जरूर पढ़ा जाना चाहिए

  • @UmeshShrma-of6wi
    @UmeshShrma-of6wi หลายเดือนก่อน

    Ye sab datamr hai