Sangat Ep.37 | Katyayani on Poetry, Marx, Hindi Sphere Politics, Feminism & Criticism | Anjum Sharma

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  • เผยแพร่เมื่อ 7 ก.ย. 2023
  • हिंदी साहित्य-संस्कृति-संसार के व्यक्तित्वों के वीडियो साक्षात्कार से जुड़ी सीरीज़ ‘संगत’ के 37वें एपिसोड में मिलिए सुपरिचित कवयित्री कात्यायनी से। कात्यायनी का जन्म 7 मई 1959 को गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। हिंदी साहित्य में उच्च शिक्षा के बाद वह विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से संबंद्ध रहीं और वामपंथी सामाजिक-सांस्कृतिक मंचों से संलग्नता के साथ स्त्री-श्रमिक-वंचित से जुड़े प्रश्नों पर सक्रिय रही हैं। बकौल विष्णु खरे ‘समाज उनके सामने ईमान और कविता कुफ़्र है, लेकिन दोनों से कोई निजात नहीं है-बल्कि हिंदी कविता के ‘रेआलपोलिटीक’ से वह एक लगातार बहस चलाए रहती हैं।’ कात्यायनी की प्रतिबद्धता और प्रतिपक्ष उनके जीवन और उनकी कविताओं में अभिव्यक्त होता है। उनका स्वर प्रतिरोध का स्वर है। स्वयं उनके शब्दों में-‘‘...कवि को कभी-कभी लड़ना भी होता है, बंदूक़ भी उठानी पड़ती है और फ़ौरी तौर पर कविता के ख़िलाफ़ लगने वाले कुछ फ़ैसले भी लेने पड़ते हैं। ऐसे दौर आते रहे हैं और आगे भी आएँगे।’’ उनकी कविताओं का स्त्री-विमर्श जितना निजी है उतना ही सामूहिक। उनका विमर्श हिंदी के लिए मार्क्स और सिमोन के बीच का एक पुल लिए आता है, जिस पुल से उनका वर्ग-चेतस फिर पूरी पीड़ित आबादी को आवाज़ लगाता है। भाषा के स्तर पर उन्होंने कविता में संभ्रांत और अभिजात्य के दबदबे को चुनौती दे उसे लोकतांत्रिक बनाया है। ‘चेहरों पर आँच’, ‘सात भाइयों के बीच चंपा’, ‘इस पौरुषपूर्ण समय में’, ‘जादू नहीं कविता’, ‘राख अँधेरे की बारिश में’, ‘फ़ुटपाथ पर कुर्सी’ और ‘एक कुहरा पारभाषी’ उनके काव्य-संग्रह हैं। उनके निबंधों का संकलन ‘दुर्ग-द्वार पर दस्तक’, ‘कुछ जीवंत कुछ ज्वलंत’ और ‘षड्यंत्ररत मृतात्माओं के बीच’ पुस्तकों के रूप में प्रकाशित है। उनकी कविताओं के अनुवाद अँग्रेज़ी, रूसी और प्रमुख भारतीय भाषाओं में हुए हैं। कवयित्री, लेखक, एक्टिविस्ट और प्रकाशक के तौर पर काम करते हुए कात्यायनी ने कुछ समय के लिए 'नवभारत टाइम्स' और 'स्वतंत्र भारत' से जुड़कर पत्रकारिता भी की।
    कभी प्रेम कविताएँ लिखने वाली कात्यायनी अब प्रेम कविताओं को क्यों ज़रूरी नहीं मानती? अपने पिता से उनकी क्या नाराज़गी रही? साहित्य से उनका लगाव कब शुरू हुआ? मार्क्सवाद की तरफ़ उनका रुझान कैसे हुआ? क्यों उन्हें अपने परिवार से बगावत करनी पड़ी? वह ख़ुद फेमिनिस्ट के बजाय कम्युनिस्ट कहलाना क्यों पसंद करती हैं? ऐसे तमाम सवालों के जवाब और कात्यायनी के निजी जीवन से लेकर उनके रचना-संसार को जानने-समझने के लिए देखिए संगत का यह एपिसोड।
    संगत के अन्य एपिसोड्स देखने के लिए दिए गये लिंक पर जाएँ : • संगत
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ความคิดเห็น • 57

  • @anulatarajwriter
    @anulatarajwriter 2 หลายเดือนก่อน +1

    बड़ा प्यार आया कात्यायिनी जी पर। उनका aggression फिर उनका भावुक होकर कविता पढ़ना।

  • @kailashbanwasi1945
    @kailashbanwasi1945 4 หลายเดือนก่อน +1

    कात्यायनी जी को सुनना पढ़ना जीवन,कला और वाम संघर्षों के अंतरसंघर्षो से गुजरना है,जो समय की चुनौतियों से जूझते हुए एक बेहतर जीवन और जीवन दृष्टि की ओर ले जाती है।

  • @user-rs6gs3kh8c
    @user-rs6gs3kh8c 8 หลายเดือนก่อน +15

    साक्षात्कार में एक गंभीर तथ्यात्मक ग़लती मुझसे हुई है। इलाहाबाद के पत्रकार मित्र गोपाल रंजन का नाम मैंने त्रुटिवश गोपाल प्रधान बोल दिया है। श्रोता मित्र इस गंभीर भूल को सुनते समय ठीक कर लें।

  • @arashbinduvlog2424
    @arashbinduvlog2424 8 หลายเดือนก่อน +1

    अंजुम शर्मा ने बहुत खूबसूरत सवाल उठाए है।
    .........................................................
    आज सुबह "संगत में कात्यानी जी को दोबारा सुना कात्यानी प्रेम कविताओं के बारे में जो लिखती और बोलते हैं उन बातों से पूरी तरह सहमत होना मुश्किल है। हा उनकी राजनीतिक, क्रांतिकारी विचारों से भरी कविता और बात दिल दिमाग पर गहरा असर डालती है ।
    मेरे विचार है के जब आम लोग ऐसे दौर में जी रहे हो जिसे पूरी तरह से संक्रांति का दौर भी ना कहा जा सकता हो ,जागीरदारी और पूंजीवाद के बीचों बीच समाज " त्र्शिंकू की तरह लटक रहा है, मेरा सवाल तो यह भी है के ऐसे समय में प्रेम कविताएं भी कैसे लिखी जा सकती हैं??? जो औरतें अपनी मर्जी से प्रेम करती हैं अपनी मर्जी से प्रेम पर कविताएं लिखती हैं जो प्रेम में आंखे मूंद संभोग की समाधी में लीन है, जिनके रोजी रोटी और घर के मसल्यात कब के हल हो चुके है और बुजवा खान पान और आराम से अपनी जिंदगी बसर कर पा रही है उनके पास भी आखिर में सिवा उदासी और अलगाव के कुश नही बचता।
    प्रेम एक संकल्प है। हर वर्ग में ताकत और सता का अपना एक अलग से "सिगासन बना है मान लो एक मजदूर जोड़ा है उनमें भी एक के हाथ सत्ता है और दूसरी धिर कमजोर है । प्रेम बराबरी के बिना हो ही नही सकता अगर हो रहा है तो वो प्रेम नही ,
    आज का प्रेम पॉलिटिक्स हैं।
    प्रेम करना भी क्रांति के बिना संभव नहीं, जिन औरतों को बात कात्यानी करती है ,दरअसल वह औरतें प्रेम नहीं करती प्रेम करने की कोशिश कर रही है। वे प्रेम पर कविता लिखने की भी कोशिश कर रही है और वो भी ऐसे समय में जब "प्रेम करना ही "असंभव है क्यों के एक धिर के हाथ सत्ता है और दूसरी धिर कमजोर है।
    औरत मर्द दोनों में (दोनो में से कोई )एक की "गुलामी, कमजोरी और दूसरे की ताकत और सत्ता" पर टिका "प्रेम" प्रेम है ही नहीं , कपट हैं।
    प्रेम करना मानवी सभताओ का "कल्चरल ग्रोथ" का सब्जेक्ट है । जैसे कोई सदियों के बाद जानवर से इंसान बनता है और सदियों के बाद मानवी गुणों को अपनी जिंदगी में सीचता सीखता, सिखाता हैं। निरोल शरीरक श्रम जा मानसिक श्रम नही
    लेकिन प्रेम में क्रान्ति होती है, और क्रांति में भी प्रेम होता है दोनो के परवाह एक है। दोनो के सोमे (source) एक है। दोनों टकरा विरोध और अंतर विरोध की स्थितियों से गुजरते है।
    क्रांति का रास्ता कोई पतली गली का रास्ता नही है जहा से प्रेम कीए बिना बच बचा के गुजरा जा सके, प्रेम ही हमे सीने में गोली खाने के लिए, सता से टकरा जाने के लिए और पुलिस की मार खाने के लिए तयार करता है (यह मेरा निजी विचार है आप सहमत हो न हो (
    मुझे लगता है हमारी फीमेल पोएट्स को दिल खोल कर प्रेम करना चाहिए और प्रेम पर दिल खोल कर कविता लिखते लिखते क्रांति की बात करनी चाहिए।
    लेकिन यह जबरदस्ती करने से नही हो सकता
    इस गहरी रात को परभात धीरे धीरे होगी।
    प्रेम के संकल्प को जीवत रख पाना क्रांति के संकल्प को जीवत रख पाना है, क्रांति को प्रेम से अलग किया ही नहीं जा सकता।
    कात्यानी जी की कविता विदा सुनकर में "रो पड़ी हु लेकिन आंसू मेरी आखों से बाहर नही आए।
    इसमें कोई शक नही के कात्यानी अपनी परपक विचारधारा पर तनी हुई प्रतिभा शाली कवि है, और उनकी बातो में तर्क है। उनके जीवन संघर्ष, पार्टी के लिए काम काज के दौरान साथी से दूरी वो दुख और दर्द ।
    प्यार को नए विशाल अर्थ में देखना।
    ऐसा आदर्श रिश्ता सभी के हिस्से में नही आता। हम ऐसे रिश्तों के लिए तरसते है जिनमे प्यार के साथ एक दूसरे को समझने का विशाल कैनवस हो, आज़ादी और प्यार एक साथ बिना झूठ धोखे बेवफाई के। और किसी बड़े मकसद के लिए दोनों काम कर रहे हो। यह विचार महान है ऐसा रिश्ता भी।
    कात्यानी आपको सलाम......
    Arash Bindu

  • @manjusingh9446
    @manjusingh9446 5 หลายเดือนก่อน

    चर्चा होनी चाहिए, विचारों में मंथन होना चाहिए और उसका मक्खन रूपी परिणाम भी निकलता ही है। बहुत अच्छा प्रयास अंजुम जी।हर काल संक्रमण काल होता है बेहतर होने की दिशा में। कार्य जारी रहे‌। बहुत बहुत धन्यवाद।🙏

  • @kamleshchourasia5566
    @kamleshchourasia5566 6 วันที่ผ่านมา

    बहुत सुंदर साक्षात्कार

  • @deekshatyagi4927
    @deekshatyagi4927 8 หลายเดือนก่อน +3

    जीवन के संघर्षों और द्वंद्वों को घोल कर अगर उचित अनुपात में सद्बुद्धि और चेतना का चूर्ण मिलाकर औषधि बनाई जाएगी तब उसे पीकर निकलने वाला कात्यायनी जी जैसा व्यक्तित्व हमारे सामने होगा। बहुत बहुत आभार प्रिय हिंदवी ❤

  • @ad0906013
    @ad0906013 8 หลายเดือนก่อน +1

    अंजुमजी से दरख्वास्त है कि कुछेक सवाल हर वार्तालाप में जीवनोपार्जन और धनोपार्जन पर भी पूछें। किस चीज की नौकरी से उनका घर चलता है, उनका चूल्हा जलता है । कविता अपने आप में बढ़िया कथानक है लेकिन निन्यानबे प्रतिशत कवियों का निश्चय ही अन्य श्रोत होता है किताबों से मिलने वाली नगन्य रॉयल्टी के बजाय। कल्पनाशीलता के वातायन के परेय थोड़ा केंद्र दैनिक जीवन पर भी होना चाहिए। और यह भी पूछें कि उनकी संततियाँ उनके लिखने की धरोहर को आगे बढ़ायेंगी या नहीं। क्या उनके ऊपर किसी तरह का दबाव है ? यह देखना मज़ेदार होगा कि फल वृक्ष से कितनी दूर गिरता है।
    बाँकी हर कड़ी कुछ मनोरम किस्सा बयाँ करती है। देखना दिलचस्प होगा कि ये सिलसिला कब तक बदस्तूर जारी रहता है।

  • @bhagyashree8719
    @bhagyashree8719 8 หลายเดือนก่อน +4

    अनायास ही ये इंटरव्यू सुनते हुए ख्याल आया कि Integrated Child Development Scheme महिलाओं के लिहाज से एक वाकई उत्कृष्ट समाजवादी मॉडल है बस प्रभावी इंप्लीमेंटेशन न होता। क्योंकि अभी भी India के पास पॉलिसी पैरालीसिस का कोई टीका नहीं है।

  • @abhavishwakarma2117
    @abhavishwakarma2117 8 หลายเดือนก่อน +2

    बहुत बढ़िया इंटरव्यू। अंजुमजी और कत्यायनी जी को धन्यवाद।

    • @Hindwi
      @Hindwi  8 หลายเดือนก่อน

      धन्यवाद।

  • @manojghildiyal6854
    @manojghildiyal6854 3 หลายเดือนก่อน

    बातचीत अच्छी लगी।

  • @ranjeetsingh3975
    @ranjeetsingh3975 5 หลายเดือนก่อน

    Wah kya baat hai

  • @ajeyklg
    @ajeyklg 8 หลายเดือนก่อน +1

    बहुत कुछ सीखने को मिला। पहले भी सीखता ही रहा हूँ इन की कविताओं से। यह साक्षात्कार फिर से सुनूँगा। हिंदी कविता में मेरे इमिडिएट सीनियर्स में से एक महत्वपूर्ण नाम हैं। एक सवाल के जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ कि, कहाँ चली गई तमाम कविताएँ? आगे कभी सुनने की उम्मीद में

  • @abhinavbharat9932
    @abhinavbharat9932 8 หลายเดือนก่อน +1

    Kya khoob. Tanuj ke madhyam se yahan aya. Shandaar.

  • @rahuldevbly
    @rahuldevbly 8 หลายเดือนก่อน +1

    अब तक का सबसे अच्छा और महत्वपूर्ण इंटरव्यू।

  • @ankitachauhanyt
    @ankitachauhanyt 5 หลายเดือนก่อน

    Such clarity in thoughts. One of the best. Thank you Hindiwi ♥️

  • @AshishShrivastava-hg1hp
    @AshishShrivastava-hg1hp 8 หลายเดือนก่อน

    शुक्रिया हिंदवी कितने दिन बाद आसू आए 1.29.

  • @kritikaww
    @kritikaww 8 หลายเดือนก่อน

    Worth the time and wait ❤️

  • @V.K919
    @V.K919 8 หลายเดือนก่อน

    Excellent interview

  • @rameshkumar06
    @rameshkumar06 8 หลายเดือนก่อน

    शानदार इंटरव्यू

  • @deekshatyagi4927
    @deekshatyagi4927 8 หลายเดือนก่อน +1

    विचारधारा तो व्यक्तित्व का विकास का आउटपुट हैं। हर कोई अपनी चेतना से किसी विचारधारा का होने वाला स्वीकार करता हैं। और अगर वह समाज को तरजीह देता या देती हैं, इसके कल्याण को ही अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार रहता हैं तब विचारधारा नही उसकी नीयत महत्त्वपूर्ण हो जाती, उसके सारे कार्य जिस नीयत के तहत होते वो महत्वपूर्ण हो जाता। विचारधारा यदि सत्ता को भोगने, शक्ति वर्चस्व को बनाए रखने, दूसरो को गुलाम बनाकर उन पर राज करने की मंशा से काम करने लगे तो वो बहिष्कार योग्य ही होनी चाहिए फिर चाहे वो ईश्वर का हवाला दे। ये उसका बड़बोलापन ही है , हकीकत नहीं। कात्यायनी जी सच्ची मार्क्सिस्ट हैं, सच्चा होना स्वयं में सम्मान योग्य है।

    • @azadhind75
      @azadhind75 8 หลายเดือนก่อน

      शाकाहारी कम्युनिस्ट

  • @dudhalkalpana6875
    @dudhalkalpana6875 8 หลายเดือนก่อน +1

    अंजूमजी, कवयित्री के जगह कवी कहे तो अच्छा लगेगा.

  • @mohankumardeheria1332
    @mohankumardeheria1332 8 หลายเดือนก่อน +1

    कात्यायनीजी को सुनना जीवन को बहुत गहराई से समझना है।

  • @shreesandeepji
    @shreesandeepji 8 หลายเดือนก่อน +1

    एक शानदार साक्षात्कार का जानदार अंत, अनेकों धन्यवाद 🙏🙏

  • @jawedjahadpoetry1267
    @jawedjahadpoetry1267 8 หลายเดือนก่อน

    बहुत शानदार 💐

  • @AngrejSingh-dz9ff
    @AngrejSingh-dz9ff 8 หลายเดือนก่อน

    ❤❤ bahut hi shandar charcha ❤❤

  • @radheshyamsharma2026
    @radheshyamsharma2026 8 หลายเดือนก่อน

    Great.

  • @bhawanajha6923
    @bhawanajha6923 8 หลายเดือนก่อน

    बहुत अच्छा लगा

  • @SandeepKumar-uq4np
    @SandeepKumar-uq4np 8 หลายเดือนก่อน +3

    1:29:00 not just words but pure emotions ❤❤

  • @arunnaithani5299
    @arunnaithani5299 7 หลายเดือนก่อน

    संपूर्णता का साक्षात्कार।

  • @rajvaibhavtripathi84
    @rajvaibhavtripathi84 8 หลายเดือนก่อน +3

    कात्यायनी जी की किताब 'प्रेम, परंपरा और विद्रोह' आज के समय में पढ़ी जाने की एक अहम किताब है।
    ज़रूर पढ़ें
    Highly recommended

  • @sujitdahal1916
    @sujitdahal1916 หลายเดือนก่อน

    ❤❤

  • @reshmapanwar4840
    @reshmapanwar4840 5 หลายเดือนก่อน

    बहुत शानदार ❤

  • @rameshjoshi8034
    @rameshjoshi8034 5 วันที่ผ่านมา

    bahut zaroorii aur eemandaar baatchit ,bahut seekhane sikhaane wala sakshaatkaar. tum donon ko !asheesh.ise auron ke Sath share kartaa hoon.sachchaa communist hee sachchaa insan ho sakataa hai.

  • @reshmapanwar4840
    @reshmapanwar4840 5 หลายเดือนก่อน

    👍👍

  • @ai.ai.captain
    @ai.ai.captain 8 หลายเดือนก่อน

    ❤👌

  • @Shivay.2.0
    @Shivay.2.0 8 หลายเดือนก่อน

    🙏🙏🙏🙏❤❤❤

  • @gauravbhushan3032
    @gauravbhushan3032 8 หลายเดือนก่อน +2

    उम्र दराज मुसाफिर की चंद हिदायते, जो आखिर मे पढ़ी गयी कविता है, उसे अलग कर के shorts मे डाल दे, धन्यवाद

  • @avagallery6599
    @avagallery6599 8 หลายเดือนก่อน +1

    बिंदास अंदाज 👌👌

  • @user-qt6li3jr4s
    @user-qt6li3jr4s 8 หลายเดือนก่อน

    आजमगढ़ मे कहाँ से हैं आप अंजुम??

  • @Shivay.2.0
    @Shivay.2.0 8 หลายเดือนก่อน

    काश हम भी आप से मिल पाते।

  • @ravishanker9672
    @ravishanker9672 8 หลายเดือนก่อน

    Lioness Witness Eyewitness

  • @rpsingh7697
    @rpsingh7697 8 หลายเดือนก่อน

    Sahee kaha Katyayni aapne
    " to teach the poetry to kill the poetry "
    Ye kahavat bdee steek baithta hai.

  • @prakashchandra69
    @prakashchandra69 8 หลายเดือนก่อน

    स्तालिन ने उत्पीड़ित जातियों, भाषिक अस्मिताओं को आत्मनिर्णय के अधिकार
    का समर्थन ही नहीं, क्रियान्वयन की पहल की थी।

    • @rajeevsri423
      @rajeevsri423 8 หลายเดือนก่อน

      अंध भक्त मोदी के ही नहीं कम्युनिस्टों के भी होते हैं !

  • @dingdong2605
    @dingdong2605 8 หลายเดือนก่อน

    Namasakr. Bahas joddar ka raha

  • @vjaindatiaful
    @vjaindatiaful 8 หลายเดือนก่อน

    बहुत बिखरे बिखरे विचार, जिनको उचित शब्द दे सकने की असमर्थता, कुछ है जो कहा नहीं जा सका। आपने भी उस साहस को नहीं दुहराया जो दूसरों के साथ देखा गया है।

  • @anoopchoudhary9601
    @anoopchoudhary9601 8 หลายเดือนก่อน

    और हम सनातनी हैं😅

  • @rajeevsri423
    @rajeevsri423 8 หลายเดือนก่อน +1

    साम्यवादी तानाशाही के सारे दमन चक्र देख लेने के बाद भी हमारे कम्युनिस्ट रचनाकार उसके अंधे मोह में फंसे हैं यह देखकर बहुत आश्चर्य होता है !

    • @arvindarya9465
      @arvindarya9465 8 หลายเดือนก่อน

      Idiot culture ke aaadmi chup

    • @sujannallapaneni7517
      @sujannallapaneni7517 8 หลายเดือนก่อน +5

      మన జీవిత కాలంలోనే పెట్టుబడిదారీ నియంతృత్వాన్ని రోజూ చూస్తూ కూడా మీరు ఈ మాట అనడం ఆశ్చర్యంగా ఉంది!

    • @rajeevsri423
      @rajeevsri423 8 หลายเดือนก่อน

      पूंजी वादी तानाशाही का हल साम्यवादी तानाशाही नहीं निकला फिर भी उसकी बैसाखियों पर खड़े होने की कोशिश हास्यास्पद है !

  • @azadhind75
    @azadhind75 8 หลายเดือนก่อน

    शाकाहारी कम्युनिस्ट