संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 191 से 195, shriramcharitmanas।पं. राहुल पाण्डेय

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  • เผยแพร่เมื่อ 28 มิ.ย. 2024
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    जय श्री राम 🙏
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    संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 191 से 195, shriramcharitmanas।पं. राहुल पाण्डेय
    नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥
    मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥
    सीतल मंद सुरभि बह बाऊ। हरषित सुर संतन मन चाऊ॥
    बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा। स्त्रवहिं सकल सरिताऽमृतधारा॥
    सो अवसर बिरंचि जब जाना। चले सकल सुर साजि बिमाना॥
    गगन बिमल सकुल सुर जूथा। गावहिं गुन गंधर्ब बरूथा॥
    बरषहिं सुमन सुअंजलि साजी। गहगहि गगन दुंदुभी बाजी॥
    अस्तुति करहिं नाग मुनि देवा। बहुबिधि लावहिं निज निज सेवा॥
    दोहा- सुर समूह बिनती करि पहुँचे निज निज धाम।
    जगनिवास प्रभु प्रगटे अखिल लोक बिश्राम॥१९१॥
    छंद- भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
    हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥
    लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।
    भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी॥
    कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता।
    माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता॥
    करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।
    सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता॥
    ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै।
    मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर पति थिर न रहै॥
    उपजा जब ग्याना प्रभु मुसकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
    कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥
    माता पुनि बोली सो मति डौली तजहु तात यह रूपा।
    कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा॥
    सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा।
    यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा॥
    दोहा- बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
    निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार॥१९२॥
    सुनि सिसु रुदन परम प्रिय बानी। संभ्रम चलि आई सब रानी॥
    हरषित जहँ तहँ धाईं दासी। आनँद मगन सकल पुरबासी॥
    दसरथ पुत्रजन्म सुनि काना। मानहुँ ब्रह्मानंद समाना॥
    परम प्रेम मन पुलक सरीरा। चाहत उठत करत मति धीरा॥
    जाकर नाम सुनत सुभ होई। मोरें गृह आवा प्रभु सोई॥
    परमानंद पूरि मन राजा। कहा बोलाइ बजावहु बाजा॥
    गुर बसिष्ठ कहँ गयउ हँकारा। आए द्विजन सहित नृपद्वारा॥
    अनुपम बालक देखेन्हि जाई। रूप रासि गुन कहि न सिराई॥
    दोहा- नंदीमुख सराध करि जातकरम सब कीन्ह।
    हाटक धेनु बसन मनि नृप बिप्रन्ह कहँ दीन्ह॥१९३॥
    ध्वज पताक तोरन पुर छावा। कहि न जाइ जेहि भाँति बनावा॥
    सुमनबृष्टि अकास तें होई। ब्रह्मानंद मगन सब लोई॥
    बृंद बृंद मिलि चलीं लोगाई। सहज संगार किएँ उठि धाई॥
    कनक कलस मंगल धरि थारा। गावत पैठहिं भूप दुआरा॥
    करि आरति नेवछावरि करहीं। बार बार सिसु चरनन्हि परहीं॥
    मागध सूत बंदिगन गायक। पावन गुन गावहिं रघुनायक॥
    सर्बस दान दीन्ह सब काहू। जेहिं पावा राखा नहिं ताहू॥
    मृगमद चंदन कुंकुम कीचा। मची सकल बीथिन्ह बिच बीचा॥
    दोहा- गृह गृह बाज बधाव सुभ प्रगटे सुषमा कंद।
    हरषवंत सब जहँ तहँ नगर नारि नर बृंद॥१९४॥
    कैकयसुता सुमित्रा दोऊ। सुंदर सुत जनमत भैं ओऊ॥
    वह सुख संपति समय समाजा। कहि न सकइ सारद अहिराजा॥
    अवधपुरी सोहइ एहि भाँती। प्रभुहि मिलन आई जनु राती॥
    देखि भानू जनु मन सकुचानी। तदपि बनी संध्या अनुमानी॥
    अगर धूप बहु जनु अँधिआरी। उड़इ अभीर मनहुँ अरुनारी॥
    मंदिर मनि समूह जनु तारा। नृप गृह कलस सो इंदु उदारा॥
    भवन बेदधुनि अति मृदु बानी। जनु खग मूखर समयँ जनु सानी॥
    कौतुक देखि पतंग भुलाना। एक मास तेइँ जात न जाना॥
    दोहा- मास दिवस कर दिवस भा मरम न जानइ कोइ।
    रथ समेत रबि थाकेउ निसा कवन बिधि होइ॥१९५॥
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