संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 176 से 180, shriramcharitmanas।पं. राहुल पाण्डेय

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  • เผยแพร่เมื่อ 30 ก.ย. 2024
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    जय श्री राम 🙏
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    संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 176 से 180, shriramcharitmanas।पं. राहुल पाण्डेय
    काल पाइ मुनि सुनु सोइ राजा। भयउ निसाचर सहित समाजा॥
    दस सिर ताहि बीस भुजदंडा। रावन नाम बीर बरिबंडा॥
    भूप अनुज अरिमर्दन नामा। भयउ सो कुंभकरन बलधामा॥
    सचिव जो रहा धरमरुचि जासू। भयउ बिमात्र बंधु लघु तासू॥
    नाम बिभीषन जेहि जग जाना। बिष्नुभगत बिग्यान निधाना॥
    रहे जे सुत सेवक नृप केरे। भए निसाचर घोर घनेरे॥
    कामरूप खल जिनस अनेका। कुटिल भयंकर बिगत बिबेका॥
    कृपा रहित हिंसक सब पापी। बरनि न जाहिं बिस्व परितापी॥
    दोहा- उपजे जदपि पुलस्त्यकुल पावन अमल अनूप।
    तदपि महीसुर श्राप बस भए सकल अघरूप॥१७६॥
    कीन्ह बिबिध तप तीनिहुँ भाई। परम उग्र नहिं बरनि सो जाई॥
    गयउ निकट तप देखि बिधाता। मागहु बर प्रसन्न मैं ताता॥
    करि बिनती पद गहि दससीसा। बोलेउ बचन सुनहु जगदीसा॥
    हम काहू के मरहिं न मारें। बानर मनुज जाति दुइ बारें॥
    एवमस्तु तुम्ह बड़ तप कीन्हा। मैं ब्रह्माँ मिलि तेहि बर दीन्हा॥
    पुनि प्रभु कुंभकरन पहिं गयऊ। तेहि बिलोकि मन बिसमय भयऊ॥
    जौं एहिं खल नित करब अहारू। होइहि सब उजारि संसारू॥
    सारद प्रेरि तासु मति फेरी। मागेसि नीद मास षट केरी॥
    दोहा- गए बिभीषन पास पुनि कहेउ पुत्र बर मागु।
    तेहिं मागेउ भगवंत पद कमल अमल अनुरागु॥१७७॥
    तिन्हि देइ बर ब्रह्म सिधाए। हरषित ते अपने गृह आए॥
    मय तनुजा मंदोदरि नामा। परम सुंदरी नारि ललामा॥
    सोइ मयँ दीन्हि रावनहि आनी। होइहि जातुधानपति जानी॥
    हरषित भयउ नारि भलि पाई। पुनि दोउ बंधु बिआहेसि जाई॥
    गिरि त्रिकूट एक सिंधु मझारी। बिधि निर्मित दुर्गम अति भारी॥
    सोइ मय दानवँ बहुरि सँवारा। कनक रचित मनिभवन अपारा॥
    भोगावति जसि अहिकुल बासा। अमरावति जसि सक्रनिवासा॥
    तिन्ह तें अधिक रम्य अति बंका। जग बिख्यात नाम तेहि लंका॥
    दोहा- खाईं सिंधु गभीर अति चारिहुँ दिसि फिरि आव।
    कनक कोट मनि खचित दृढ़ बरनि न जाइ बनाव॥१७८(क)॥
    हरिप्रेरित जेहिं कलप जोइ जातुधानपति होइ।
    सूर प्रतापी अतुलबल दल समेत बस सोइ॥१७८(ख)॥
    रहे तहाँ निसिचर भट भारे। ते सब सुरन्ह समर संघारे॥
    अब तहँ रहहिं सक्र के प्रेरे। रच्छक कोटि जच्छपति केरे॥
    दसमुख कतहुँ खबरि असि पाई। सेन साजि गढ़ घेरेसि जाई॥
    देखि बिकट भट बड़ि कटकाई। जच्छ जीव लै गए पराई॥
    फिरि सब नगर दसानन देखा। गयउ सोच सुख भयउ बिसेषा॥
    सुंदर सहज अगम अनुमानी। कीन्हि तहाँ रावन रजधानी॥
    जेहि जस जोग बाँटि गृह दीन्हे। सुखी सकल रजनीचर कीन्हे॥
    एक बार कुबेर पर धावा। पुष्पक जान जीति लै आवा॥
    दोहा- कौतुकहीं कैलास पुनि लीन्हेसि जाइ उठाइ।
    मनहुँ तौलि निज बाहुबल चला बहुत सुख पाइ॥१७९॥
    सुख संपति सुत सेन सहाई। जय प्रताप बल बुद्धि बड़ाई॥
    नित नूतन सब बाढ़त जाई। जिमि प्रतिलाभ लोभ अधिकाई॥
    अतिबल कुंभकरन अस भ्राता। जेहि कहुँ नहिं प्रतिभट जग जाता॥
    करइ पान सोवइ षट मासा। जागत होइ तिहुँ पुर त्रासा॥
    जौं दिन प्रति अहार कर सोई। बिस्व बेगि सब चौपट होई॥
    समर धीर नहिं जाइ बखाना। तेहि सम अमित बीर बलवाना॥
    बारिदनाद जेठ सुत तासू। भट महुँ प्रथम लीक जग जासू॥
    जेहि न होइ रन सनमुख कोई। सुरपुर नितहिं परावन होई॥
    दोहा- कुमुख अकंपन कुलिसरद धूमकेतु अतिकाय।
    एक एक जग जीति सक ऐसे सुभट निकाय॥१८०॥

ความคิดเห็น • 1

  • @HiteshSharma-qn2gn
    @HiteshSharma-qn2gn 3 หลายเดือนก่อน +2

    जय सियाराम जय श्री राम