Sangat Ep.68 | Bhagwandas Morwal on Mewat, Mughal, Khanzada, Hathras & Hindi Politics | Anjum Sharma
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- เผยแพร่เมื่อ 11 เม.ย. 2024
- हिंदी साहित्य-संस्कृति-संसार के व्यक्तित्वों के वीडियो साक्षात्कार से जुड़ी सीरीज़ ‘संगत’ के 68वें एपिसोड में मिलिए सुपरिचित कथाकार भगवानदास मोरवाल से। 23 जनवरी 1960 को नगीना, मेवात में जन्म। राजस्थान विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिंदी) और साथ ही पत्रकारिता में डिप्लोमा। आधुनिक कथा साहित्य जगत में भगवानदास मोरवाल का महत्वपूर्ण स्थान है। उनका कथा साहित्य आधुनिक संदर्भों को समझने में पाठ्य वर्ग की पूर्ण रूप से सहायता करता है। उनके कथा साहित्य में स्वातन्त्रोत्तर युग में आए परिवर्तनों, उत्पन्न हुई समस्याओं तथा सामाजिक विघटनों को हमारे समक्ष यथार्थ रूप में अभिव्यक्त करता है। लेखक ने अपने उपन्यासों और कहानियों में भारत के उन अनछुए क्षेत्रों को उभारा है जो अभी तक हाशिए पर थे। जिनकी समस्याओं, परिवेश तथा संस्कृति से हम अनभिज्ञ थे। मोरवाल ने अपने कथा साहित्य के माध्यम से इन्हें केन्द्र में लाने की चेष्टा की है। उनके कथा साहित्य के अध्ययन से इन अनछुए क्षेत्रों में व्याप्त विभिन्न सामाजिक समस्याओं, विघटन, सामाजिक उथल-पुथल को न केवल हम समझ पाए बल्कि इनसे निजात पाने के लिए हमे नई दिशा और दृष्टि प्राप्त हुई। उनके लेखन में मेवात क्षेत्र की ग्रामीण समस्याएँ उभर कर सामने आती हैं। उनके पात्र हिंदू-मुस्लिम सभ्यता के गंगा जमुनी किरदार होते हैं। कंजरों की जीवन शैली पर आधारित उपन्यास रेत को लेकर उन्हें मेवात में कड़े विरोध का सामना करना पड़ा।
कृतियाँ : ‘काला पहाड़’ (1999), ‘बाबल तेरा देस में’ (2004), ‘रेत’ (2008), ‘नरक मसीहा’ (2014), ‘हलाला’ (2015), ‘सुर बंजारन’ (2017), ‘वंचना’ (2019), ‘शकुंतिका’ (2020), ‘ख़ानज़ादा’ (2021), ‘मोक्षवन’ (2023) (उपन्यास); ‘सीढ़ियाँ, माँ और उसका देवता’ (2008), ‘लक्ष्मण-रेखा’ (2010), दस ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ (2014), ‘धूप से जले सूरजमुखी’ (2021), ‘महराब और अन्य कहानियाँ’ (2021), ‘कहानी अब तक’ (दो खंड, 2023) (कहानी-संग्रह); ‘पकी जेठ का गुलमोहर’ (2016), ‘यहाँ कौन है तेरा’ (2023) (स्मृति-कथा); ‘लेखक का मन’ (2017) (वैचारिकी); ‘दोपहरी चुप है’ (1990) (कविता); ‘बच्चों के लिए कलयुगी पंचायत’ (1997) एवं अन्य दो पुस्तकों का सम्पादन; कुछ कृतियों का अंग्रेज़ी और अन्य भाषाओं में अनुवाद।
सम्मान/पुरस्कार : मुंशी प्रेमचन्द स्मारक सारस्वत सम्मान (2020-21), दिल्ली विधानसभा; वनमाली कथा सम्मान, भोपाल (2019); स्पन्दन कृति सम्मान, भोपाल (2017); श्रवण सहाय अवार्ड (2012); जनकवि मेहरसिंह सम्मान (2010), हरियाणा साहित्य अकादमी; अन्तरराष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा सम्मान (2009); कथा (यूके) लन्दन; ‘शब्द साधक ज्यूरी सम्मान’ (2009); कथाक्रम सम्मान, लखनऊ (2006); साहित्यकार सम्मान (2004), हिन्दी अकादमी, दिल्ली सरकार; साहित्यिक कृति सम्मान (1994), हिन्दी अकादमी, दिल्ली सरकार; साहित्यिक कृति सम्मान (1999), हिन्दी अकादमी, दिल्ली सरकार; पूर्व राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमण द्वारा मद्रास का राजाजी सम्मान (1995); डॉ. अम्बेडकर सम्मान (1985), भारतीय दलित साहित्य अकादमी; पत्रकारिता के लिए प्रभादत्त मेमोरियल अवार्ड (1985) तथा शोभना अवार्ड (1984)
पूर्व सदस्य : हिन्दी अकादमी, दिल्ली सरकार एवं हरियाणा साहित्य अकादमी।
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यह चैनल मेरे लिए सांस से कम नहीं है। मैं श्री अंजुम जी को प्रणाम करता हूँ।
मोरवाल जी महान कथाकार और उपन्यासकार हैं। भाषा शैली शानदार और रोचक है। कला पहाड़ का उत्तरार्द्ध स्वाभाविक कथा प्रक्रिया से हटकर आरोपित लगने लगता है। अन्य उपन्यासों में पूरे कथाक्रम स्वाभाविक लगते हैं। इनके शोधपरक लेखन अनुभवजन्य और जीवंत हैं और ये विशेषताएं उनके लेखन को उत्कृष्ट स्तर तक ले जाती हैं। यह बातचीत उनके लेखन कर्म और संवेदना की बेबाक अभिव्यक्ति है।
बेहद साधारण बात। मोरवाल जी कुछ कह न सके। उमर के साथ wisdom की बात अँजुम जी ने सही कही। अभी तक नहीं पाया।
बेबाक बात की बात। साधुवाद।
अंजुम जी तो इस साक्षात्कार में बिल्कुल थके हुए लग रहे हैं जैसे बेमन से बैठे हों। इससे बहुत बेहतर हो सकता था यह एपिसोड क्योंकि मोरवाल जी तो हर बात का बड़े चाव से जवाब दे रहे हैं।
जो जहाँ का है, जिस धरती से जुड़ा है वहीं का वास्तविक लिखेगा।
जरूरी साक्षात्कार भारत के गरीब दलित के जीवन की धड़कन🪔
अंजुम शर्मा का कटघरा वैसा ही है जैसे
रजत शर्मा टी वी वाले का ! अंजुम आप जिनका संगत करें, उनकी विधागत कृतियों को परदे पर दिखाएं।इसे प्रोमो में
दिखाएं।
It is the most interesting episode of your Szngat Anjum.
लेकिन हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि आप हमारे राज्य से हो, आपकी ज़्यादातर रचनाओं में मेवात की संस्कृति और सामाजिक ताने बाने की तस्वीरें हैं। मुझे समझ नहीं आता जब कोई नामी लेखक अपनी पृष्ठभूमि पर कोई रचना नहीं करता तो उसकी आलोचना होती है और जो अपनी पृष्ठभूमि पर लिखता है उसकी भी यह कह कर आलोचना शुरू हो जाती है कि आपकी हर दूसरी किताब में मेवात क्यों आ जाता है। मोरवाल जी आप हिन्दी भाषा के एक उम्दा लेखक हो और यह बात मैं आपकी रचनाओं को पढ़ने के बाद कह रहा हूँ🌸🌸🌼🌼
आप दोनों का संवाद सुनना बहुत रोचक लग रहा है। रचना प्रक्रिया को परत-दर-परत खोला जा रहा है।
Interview of Mr Bhagwandass Morwal by Mr Anjum of Hindvi,is really very informative and based on facts generally not known to even educated Mewaties like me,since very few sources are available in common libraries and in our educated Mewaties/ generation, historical facts of Mewat are not studied with depth. Thanks & congratulations to Mewati writer .
चित्रा मुद्गल जी और गीतांजलि श्री से संगत करें।
मोरवाल जी जो महान होता है वो दूसरो की उपलब्धियों की भी प्रशंसा भी करता है। आप में न उदारता है न बड़प्पन।
And of course I had the good fortune of my bogus stories published in Hans twice and a good story returned by Mr. Rajendra Yadav in 2005.
I agree that writing is not a Pratispardha. In any case I wrote short stories for the joy of writing.
वाह, अच्छे प्रश्न👌
यहां पाठकों का संसार है मोरवाल जी(तेरा)।
Sangat. By the way Narayana had been an area which was part of my jurisdiction twice, in the late seventies and early nineties, as a police officer in Delhi.
पुरस्कार जबरदस्ती नहीं मिलते मोरवाल जी
Learnt a lot about Mewat. Have not read much of Morwalji, though I am familiar with his name through Hans. My next boom buy has to be Kala Pahad.
बेहतर ✍️🙏
मेवाती खानजादा और मेव अलग हैं
मेवाती खानजादा के साथ मेवों का कोई संबंध नहीं है और ना ही मेव राजपूतों से कन्वर्ट हुये। 1947 तक मेवात के खानजादा अपने आपको राजस्थान के कायमखानीयों की ही तरह अपनी अलग पहचान बनाये हुये थे लेकिन बाद में बड़ी चालाकी से मेवों ने खानजादा के बलिदानों का श्रेय अपने नाम पर लेना शुरू कर दिया जो निंदनीय ही कहा जा सकता है।
प्रसिद्ध इतिहासकार ओझाजी के अनुसार मेव कुशानों व शकों के वंशज थै, जो पहली व दूसरी सदी में शासन करने वाले मेवक के वंशज है जो दस्यु प्रवृत्ति के थे और बाद में मीरान हुसैन जंग के तुच्छ प्रलोभन को स्वीकार करके अपने धर्म को छोड़कर विदेशी इस्लाम मजहब में चले गए।
मेवाती खानजादा कोटला व करोली के शौरसेनी यादवों की शाखा के राजपूत थे जिन्होंने मराज्य के कुछ लोग काकुराना बलोत के साथ मिलकर विधरमियों के तुच्छ प्रलोभन को स्वीकार करके अपना धर्म छोड़ कर मजहब में चले गए और अपने ही राजा के विरुद्ध विधर्मी लुटेरों की सहायता करना शुरू कर दिए थे और सैन्य महत्व की जानकारी भी विधरमियों तक पहुंचाने का विश्वासघात करके आर्थिक लाभ प्राप्त करते रहे जिसके परिणाम स्वरूप खानजादा शासकों को पराजय का मुंह देखना पड़ा और विवशतावस इस्लाम स्वीकार करना पड़ा था। मेवात में निवास करने से ये मेवाती खानजादा कहलाये । मेवात का अंतिम खानजादा शासक हसन खां था जो खानवा के युद्ध में अपने 3000 खानजादा सैनिकों के साथ राणा सांगा के पक्ष में युद्ध करने गया था लेकिन दुर्भाग्यवश उसके खिदमतदार लाद खां ने बाबर से रिश्वत लेकर उनकी छुरा घोंपकर हत्या कर दी थी। मेवाती खानजादों का मेवों से कभी कोई रक्त संबंध नहीं था और ना ही मेव राजपूतों से कन्वर्ट हुये। 1947 तक मेवात के खानजादा अपने आपको राजस्थान के कायमखानीयों की ही तरह अपनी अलग पहचान बनाये हुये थे लेकिन बाद में बड़ी चालाकी से मेवों ने खानजादा के बलिदानों का श्रेय अपने नाम पर लेना शुरू कर दिया जो निंदनीय ही कहा जा सकता है।
Ref: Archeological survey of India Vol-2 1882-83 by A.Conninghum
राजपूताने का इतिहास- प्रथम भाग- ओझाजी
I am sorry, I do not know how to write in Devanagari using this keypad. Or using the keypad of my new I-pad.
चित्रा मुद्गल जी का इंटरव्यू करिए
🎉❤
Maine bhi Sahitya Akademi ka samman Samarth nahin dekha.
निर्मल हृदय पर दलित को भी ताकतवर ढंग सत्य के साथ खड़ा होना चाहिए पूर्व ग्रह ग्रसित नही होना चाहिए
दलित जीवन के दारुण दुख महसूस हुई पर गरीब सब जगह दो टूक है
M tijara kasbe se hun mev samuday pichra rah gya swarna dwara shoshan hua
That was the point where I lost interest in writing.
मोरवाल जी का कोई भी उपन्यास राजेंद्र यादव के सारा आकाश के स्तर का नही है।मोरवाल जी को अलका सरावगी से भी जो समस्या है वह भी मोरवाल जी की कुंठा ही है।
हुमाऊ के कुकर्म नही याद
बाबर ने अपनी कौनसी बेटी कश्मीर के महाराजा धर्मचंद कटोच को ब्याही थी ?
गुलबदन बेगम
गुलरुख बेगम
फखरून निशा
गुलछहरा बेगम
गुलबर्ग बेगम
मोरवाल जी आत्म प्रशंसा अच्छी बात नही है।
मोरवाल जी, आप अहिंदी नहीं हिंदीतर कहें।
मेवात की सलीमा आधी हिंदू नही पूरी कन्वर्टेड मुस्लिम थी।