Sangat Ep.70 | Vishwanath Prasad Tiwari on Poetry, Life, Gorakhpur, & Sahitya Akademy | Anjum Sharma
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- เผยแพร่เมื่อ 25 เม.ย. 2024
- हिंदी साहित्य-संस्कृति-संसार के व्यक्तित्वों के वीडियो साक्षात्कार से जुड़ी सीरीज़ ‘संगत’ के 70वें एपिसोड में मिलिए सुपरिचित साहित्यकार विश्वनाथ प्रसाद तिवारी से। विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का जन्म 20 जून, 1940 को भेड़िहारी, देवरिया, उत्तर प्रदेश में हुआ। वे गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष-पद से वर्ष 2001 में सेवानिवृत्त हुए।
वे गोरखपुर से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका ‘दस्तावेज़’ के संपादक हैं। यह पत्रिका रचना और आलोचना की विशिष्ट पत्रिका है जो 1978 से नियमित रूप से प्रकाशित हो रही है। वर्ष 2013 से 2017 तक की अवधि के लिए ‘साहित्य अकादेमी’ के अध्यक्ष रहे।
उन्होंने गाँव की धूल-भरी पगडंडी से इंग्लैंड, मारीशस, रूस, नेपाल, अमरीका, नीदरलैंड, जर्मनी, फ़्रांस, लक्ज़मबर्ग, बेल्जियम, चीन और थाईलैंड की ज़मीन नापी है।
उनका रचना-कर्म देश और भाषा की सीमा तोड़ता है। उड़िया में कविताओं के दो संकलन प्रकाशित हुए। हजारी प्रसाद द्विवेदी पर लिखी आलोचना पुस्तक का गुजराती और मराठी भाषा में अनुवाद हुआ। इसके अलावा रूसी, नेपाली, अंग्रेज़ी, मलयालम, पंजाबी, मराठी, बांग्ला, गुजराती, तेलगू, कन्नड़ व उर्दू में भी उनकी रचनाओं का अनुवाद हुआ है। उनके शोध व आलोचना, कविता-संग्रह, यात्रा-संस्मरण, लेखकों से जुड़े संस्मरण, साक्षात्कार आदि की दो दर्जन से ज़्यादा पुस्तकें प्रकाशित हैं। उन्होंने हिन्दी के कवियों, आलोचकों पर केंद्रित कई पुस्तकों का संपादन किया है।
वे ‘व्यास सम्मान’, ‘सरस्वती सम्मान’, ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’, ‘साहित्य भूषण सम्मान’, ‘पुश्किन सम्मान’ सहित कई सम्मानों से नवाजे जा चुके हैं।
वर्ष 2023 में साहित्य एवं शिक्षा में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित।
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बहुत ही सुन्दर गम्भीर व्यक्तित्व के धनी तिवारीजी से सारगर्भित चर्चा।
तिवारीजी ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता को महत्व देकर दरअसल वामपंथ पर सवाल उठाया है जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता को हमेशा कुचलता रहा है और सामूहिक अधिकार की बात करता है। एक झुंड मानसिकता का विचार कभी सभ्यता का आधार नहीं बन सकता। तिवारीजी को साधुवाद।
बहुत खूब। तिवारी जी ने मुझे एम ए में पढ़ाया है। अच्छे शिक्षक के रूप में हमेशा याद रखने योग्य अध्यापक है। सर को प्रणाम
इस साक्षात्कार में तिवारी जी पूरी तरह आर-पार दिखाई दे रहे हैं।यह अच्छी बात है।
वर्तमान हिंदी जगत को अपने पुराने साहित्य से तटस्थता, स्वाधीनता जैसे तत्त्वों को गृहण करने की आवश्यकता है।
तटस्थता।😂
बिल्कुल
समालोचना में विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की पुस्तकें बहुत अच्छी हैं।
स्त्री को केवल दुःख और करुणा का पात्र बना कर स्त्री के दुःख को महिमामंडित करना पितृ सता को बहुत प्रिय होती है।
Gonda ke Dr. Suryapal Singh ka interview kijiye.
जिस परिवार को बाधा समझते है कवि , वही उनको प्रेरणा भी देता है।
Kant प्रसिद्ध दार्शनिक कहते है
The light dove cleaving the air in free flight might imagine that it's flight would have been easier in empty space ... (But it is not so )
आदि शंकराचार्य की यह बात मुझे भी अच्छी लगी कि अम्मी के अंतिम संस्कार में वह गए। जबकि यह संन्यास के नियम के विरुद्ध है।
यह वचन देकर ही उन्हें संन्यास की आज्ञा मिली थी।
सही हो यह बात या न हो लेकिन यह अच्छी बात है।
अंजुम जी को गांव का ज्ञान शन्य है। इनके 10/15 ग्रामीण परिवेश के साक्षात्कार देखे तो निराशा हाथ लगी।
न इनको लोक का ज्ञान और न ही लोक साहित्य का ज्ञान।
इनका साक्षात्कार केवल प्रश्नावली जो बनी बनाई देते हैं उस तरह का होता है?
सुन्दर संवाद । बहुत कुछ जानने - समझने को मिला । धन्यवाद ।😊😊
अत्यन्त नीरस साक्षात्कार
बहुत सार्थक संवाद !💐💐
गुरुजी को सादर प्रणाम।
छठे दशक के उथलपुथल में राममनोहर लोहिया का बड़ा योगदान था, जिसे एंकर
ने नजरंदाज किया, जबकि अनेक लेखक -कलाकार-बुद्धिजीवी-संस्कृतिकर्मी लोहिया से जुड़े रहे थे।
Very good and didactic personality 👌
बहुत सुंदर।
बहुत सुन्दर
पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?
मैं क्या कहता नहीं सूझा कोई त्वरित और माक़ूल जवाब - मुक्तिबोध
अंजुम जी पॉलिटिक्स तो तय करना ही होगा नहीं तो कैसे न्याय की बात होगी।
बीच का रास्ता नहीं होता है- पाश
और आगे कुछ कहने की जरूरत नहीं है समझदार के लिए इशारा काफी है।
अंजुम शर्मा को साहित्यकारों का नहीं, राजनीति वालो का साक्षात्कार करना चाहिए।
इनके सवाल साहित्य से कम और राजनीति से प्रेरित ज्यादा होते हैं। वे बीच बीच में बोलकर साहित्य कार को पूरा बोलने का मौका नहीं देते।
तिवारी जी और अंजुम जी स्त्री के दुख को देख कर मुग्ध हैं स्त्री की आंतरिक शक्ति आपको न दिखती है ना अच्छी लगती है।
कोई भी मीटिंग लेखकों से बड़ी केसे हो गई? सत्ता के आगे समर्पण और तटस्थता का दावा?
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मार्क्सवाद का गलत व्याख्या कर रहे हैं ।
इनका वक्तव्य सत्ता के दलाल जैसा शब्द का प्रयोग कर रहे हैं।