संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 151 से 155 Sri ramcharitmanas। पं. राहुल पाण्डेय

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  • เผยแพร่เมื่อ 20 มิ.ย. 2024
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    संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 151 से 155 । राजा प्रताप भानु की कथा। Sri ramcharitmanas। पं. राहुल पाण्डेय
    सुनु मृदु गूढ़ रुचिर बर रचना। कृपासिंधु बोले मृदु बचना॥
    जो कछु रुचि तुम्हेर मन माहीं। मैं सो दीन्ह सब संसय नाहीं॥
    मातु बिबेक अलोकिक तोरें। कबहुँ न मिटिहि अनुग्रह मोरें ।
    बंदि चरन मनु कहेउ बहोरी। अवर एक बिनति प्रभु मोरी॥
    सुत बिषइक तव पद रति होऊ। मोहि बड़ मूढ़ कहै किन कोऊ॥
    मनि बिनु फनि जिमि जल बिनु मीना। मम जीवन तिमि तुम्हहि अधीना॥
    अस बरु मागि चरन गहि रहेऊ। एवमस्तु करुनानिधि कहेऊ॥
    अब तुम्ह मम अनुसासन मानी। बसहु जाइ सुरपति रजधानी॥
    सोरठा- तहँ करि भोग बिसाल तात गउँ कछु काल पुनि।
    होइहहु अवध भुआल तब मैं होब तुम्हार सुत॥१५१॥
    इच्छामय नरबेष सँवारें। होइहउँ प्रगट निकेत तुम्हारे॥
    अंसन्ह सहित देह धरि ताता। करिहउँ चरित भगत सुखदाता॥
    जे सुनि सादर नर बड़भागी। भव तरिहहिं ममता मद त्यागी॥
    आदिसक्ति जेहिं जग उपजाया। सोउ अवतरिहि मोरि यह माया॥
    पुरउब मैं अभिलाष तुम्हारा। सत्य सत्य पन सत्य हमारा॥
    पुनि पुनि अस कहि कृपानिधाना। अंतरधान भए भगवाना॥
    दंपति उर धरि भगत कृपाला। तेहिं आश्रम निवसे कछु काला॥
    समय पाइ तनु तजि अनयासा। जाइ कीन्ह अमरावति बासा॥
    दोहा- यह इतिहास पुनीत अति उमहि कही बृषकेतु।
    भरद्वाज सुनु अपर पुनि राम जनम कर हेतु॥१५२॥
    मासपारायण,पाँचवाँ विश्राम
    सुनु मुनि कथा पुनीत पुरानी। जो गिरिजा प्रति संभु बखानी॥
    बिस्व बिदित एक कैकय देसू। सत्यकेतु तहँ बसइ नरेसू॥
    धरम धुरंधर नीति निधाना। तेज प्रताप सील बलवाना॥
    तेहि कें भए जुगल सुत बीरा। सब गुन धाम महा रनधीरा॥
    राज धनी जो जेठ सुत आही। नाम प्रतापभानु अस ताही॥
    अपर सुतहि अरिमर्दन नामा। भुजबल अतुल अचल संग्रामा॥
    भाइहि भाइहि परम समीती। सकल दोष छल बरजित प्रीती॥
    जेठे सुतहि राज नृप दीन्हा। हरि हित आपु गवन बन कीन्हा॥
    दोहा- जब प्रतापरबि भयउ नृप फिरी दोहाई देस।
    प्रजा पाल अति बेदबिधि कतहुँ नहीं अघ लेस॥१५३॥
    नृप हितकारक सचिव सयाना। नाम धरमरुचि सुक्र समाना॥
    सचिव सयान बंधु बलबीरा। आपु प्रतापपुंज रनधीरा॥
    सेन संग चतुरंग अपारा। अमित सुभट सब समर जुझारा॥
    सेन बिलोकि राउ हरषाना। अरु बाजे गहगहे निसाना॥
    बिजय हेतु कटकई बनाई। सुदिन साधि नृप चलेउ बजाई॥
    जँह तहँ परीं अनेक लराईं। जीते सकल भूप बरिआई॥
    सप्त दीप भुजबल बस कीन्हे। लै लै दंड छाड़ि नृप दीन्हें॥
    सकल अवनि मंडल तेहि काला। एक प्रतापभानु महिपाला॥
    दोहा- स्वबस बिस्व करि बाहुबल निज पुर कीन्ह प्रबेसु।
    अरथ धरम कामादि सुख सेवइ समयँ नरेसु॥१५४॥
    भूप प्रतापभानु बल पाई। कामधेनु भै भूमि सुहाई॥
    सब दुख बरजित प्रजा सुखारी। धरमसील सुंदर नर नारी॥
    सचिव धरमरुचि हरि पद प्रीती। नृप हित हेतु सिखव नित नीती॥
    गुर सुर संत पितर महिदेवा। करइ सदा नृप सब कै सेवा॥
    भूप धरम जे बेद बखाने। सकल करइ सादर सुख माने॥
    दिन प्रति देह बिबिध बिधि दाना। सुनहु सास्त्र बर बेद पुराना॥
    नाना बापीं कूप तड़ागा। सुमन बाटिका सुंदर बागा॥
    बिप्रभवन सुरभवन सुहाए। सब तीरथन्ह बिचित्र बनाए॥
    दोहा- जँह लगि कहे पुरान श्रुति एक एक सब जाग।
    बार सहस्त्र सहस्त्र नृप किए सहित अनुराग॥१५५॥
    जय श्री राम 🙏
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