श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 6 श्लोक 37 उच्चारण | Bhagavad Geeta Chapter 6 Verse 37

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  • เผยแพร่เมื่อ 30 ก.ย. 2024
  • 🌹ॐ श्रीपरमात्मने नमः🌹
    अथ षष्ठोऽध्यायः
    अर्जुन उवाच
    अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः।
    अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति॥37॥
    अयतिः=जिसका प्रयत्न शिथिल है वह,श्रद्धया उपेतः=जिसकी साधन में श्रद्धा है,योगात्=योग से, चलितमानसः=जिसका मन विचलित हो गया है,अप्राप्य=प्राप्त न करके, योगसंसिद्धिम्=योग की सिद्धि को,काम्=किस,गतिम्=गति को, कृष्ण=हे कृष्ण! गच्छति= चला जाता है।
    भावार्थ- हे कृष्ण! जिसकी साधन में श्रद्धा है लेकिन जिसका प्रयत्न शिथिल है, अन्त समय में जिसका मन योग से विचलित हो गया है, ऐसा साधक योग की सिद्धि अर्थात् भगवत् साक्षात्कार को प्राप्त न करके किस गति को चला जाता है?
    व्याख्या--
    अर्जुन का यह प्रश्न बहुत ही सटीक है। ऐसा विचार हमारे मन में भी आता है-
    "अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः"-
    जिसके साधन में अर्थात् जप, ध्यान,सत्संग,स्वाध्याय आदि में रुचि है,श्रद्धा पूरी है परंतु अंतरंग और बहिरंग वश में न होने से साधन में तत्परता नहीं है,निरन्तर प्रयत्नशील, संयमशील नहीं है, ऐसा साधक
    जिसका अंत समय में योग से मन विचलित हो गया,संसार में राग रहने से,विषयों का चिंतन हो जाने से अपने साधन में जितना प्रयास अपेक्षित था उतना नहीं कर पाया, योग के गंतव्य तक नहीं पहुॅंच पाया,
    अंतिम क्षण में कहीं मन अटक गया, अपने ध्येय पर स्थिर नहीं रह सका... तो अब क्या होगा?
    "अप्राप्य योग संसिद्धिं"-
    असावधानी के कारण अंत काल में जिसका मन विचलित हो गया इस कारण योग की सिद्धि अर्थात् परमात्मा की प्राप्ति उसको नहीं हुई तो फिर...
    "कां गतिं कृष्ण गच्छति"-
    हे कृष्ण! वह किस गति को प्राप्त होता है,उसकी गति क्या है?
    विशेष-
    अर्जुन का प्रश्न है कि जीवन भर उसने भक्ति की परंतु अंत समय में प्रयास में शिथिलता आ गई,अंतिम घड़ी में उसका स्खलन हो गया, मन डाॅंवाडोल हो गया, तो वह कहाँ जाएगा?
    अब मोक्ष तो उसको है नहीं।अंतकाल में परमात्मा की स्मृति न रहने से उसको आप कौन सी गति देंगे।
    🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹

ความคิดเห็น • 2

  • @bankatlslvaishnav3904
    @bankatlslvaishnav3904 3 หลายเดือนก่อน

    जय श्री कृष्ण।।

  • @satishkgoyal
    @satishkgoyal 3 หลายเดือนก่อน

    जय श्री कृष्ण।