श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 6 श्लोक 38 उच्चारण | Bhagavad Geeta Chapter 6 Verse 38
ฝัง
- เผยแพร่เมื่อ 11 มิ.ย. 2024
- 🌹ॐ श्रीपरमात्मने नमः🌹
अथ षष्ठोऽध्यायः
कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति।
अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मणः पथि॥38॥
कच्चित्=क्या, उभयविभ्रष्टः= दोनों ओर से भ्रष्ट होकर, छिन्नाभ्रमम् इव=छिन्नभिन्न बादल की तरह,न नश्यति= नष्ट तो नहीं हो जाता, अप्रतिष्ठः= संसार के आश्रय से रहित, महाबाहो=हे महाबाहो! विमूढः =मोहित अर्थात् विचलित, ब्रह्मणः पथि= परमात्मा प्राप्ति के मार्ग में।
भावार्थ- हे महाबाहो! संसार के आश्रय से रहित और परमात्म प्राप्ति के मार्ग में मोहित अर्थात् विचलित, दोनों ओर से भ्रष्ट हुआ साधक क्या छिन्न- भिन्न बादल की तरह नष्ट तो नहीं हो जाता?
व्याख्या--
पूर्व श्लोक में अर्जुन ने "कां गतिं कृष्ण गच्छति' कहकर जो बात पूछी थी उसी का खुलासा इस श्लोक में पूछते हैं-
"अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मणः पथि"-
हे महाबाहो! उसने संसार का आश्रय भी छोड़ दिया।संसार के सुख,आराम,आदर,सत्कार, यश,प्रतिष्ठा इत्यादि की कामना छोड़ दी और परमात्मप्राप्ति के मार्ग पर चला और उससे भटक गया।अंतसमय में परमात्मा की स्मृति नहीं रही,अंतिम क्षण में साधन से विचलित हो गया तो क्या वह अप्रतिष्ठ हो जाएगा अर्थात् आश्रय रहित हो जाएगा यानि वह कहीं का नहीं रहेगा। न माया मिली न राम। न यहाँ का रहा न वहाँ का रहा।
"कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति"-
कहीं ऐसा तो नहीं है कि वह साधक छिन्न-भिन्न बादल की तरह नष्ट तो हो जाता हो। वह तो सांसारिक और पारमार्थिक दोनों उन्नतियों से रहित रह गया। संसार के आश्रय को तो पहले ही छोड़ दिया और अब अंत समय में परमात्मा की स्मृति भी नहीं रही,योग से विचलित हो गया; फिर वह नष्ट तो नहीं हो जाता,उसका पतन तो नहीं हो जाता?
ऐसा साधक किस गति को जाएगा जिसने संपूर्ण जीवन सात्विक जीवन जिया और अंत काल में भटक गया, मन में कोई और ही विचार आ गया।
विशेष-
बहुत ही मार्मिक प्रश्न है। आयु के उत्तरार्ध में इस मार्ग का पता चला। श्रद्धा भी निर्माण हो गई और श्रद्धापूर्वक चल पड़े। विलंब तो हो गया था।जितना प्रयास अपेक्षित था,उतना कर नहीं पाए, मन भी भगवान् में उतना एकाग्र नहीं कर पाए और योग के गंतव्य तक पहुॅंचने से पूर्व ही शरीर छूट गया। अब प्रपंच भी छूटा और परमार्थ का साध्य भी नहीं मिला।वह तो दोनों ही ओर से गया।तो अब उसका क्या होगा?
श्रीमद्भागवत् में जड़ भरत की कथा तो सबने सुनी ही है। ब्रह्म में चिंतन था लेकिन भटक गए, विचलित हो गए। अंतकाल समीप आने पर ब्रह्म का चिंतन छूटा और हिरण का चिंतन होने लगा.. और उसी स्थिति में प्राणोत्क्रमण किया। ऐसे साधक का क्या होगा?
🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹
🎉🎉🎉🎉🎉
🙏🙏🙏🙏🙏
जय श्री कृष्ण।
जय श्री कृष्ण।।