श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 श्लोक 14 उच्चारण | Bhagavad Geeta Chapter 7 Verse 14

แชร์
ฝัง
  • เผยแพร่เมื่อ 30 ก.ย. 2024
  • 🌹ॐ श्रीपरमात्मने नमः 🌹
    अथ सप्तमोऽध्यायः
    दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।
    मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते॥14॥
    दैवी=दैवी(अलौकिक), हि= क्योंकि, एषा=यह,गुणमयी= त्रिगुणमयी, मम=मेरी, माया= माया, दुरत्यया=बड़ी दुस्तर है अर्थात् इससे पार पाना बड़ा कठिन है, माम्=मुझे, एव=ही, ये=जो, प्रपद्यन्ते=शरण होते हैं, मायाम्=माया को, एताम्=इस, तरन्ति=तर जाते हैं अर्थात् उल्लंघन कर जाते हैं, ते=वे।
    भावार्थ- क्योंकि यह दैवी, अलौकिक त्रिगुणमयी मेरी माया बड़ी दुस्तर है अर्थात् इससे पार पाना बड़ा कठिन है परंतु जो पुरुष केवल मुझको ही शरण होते हैं, वे ही इस माया उल्लंघन कर जाते हैं अर्थात् संसार से तर जाते हैं।
    व्याख्या--
    "दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया"-
    भगवान् कहते हैं कि यह तीन गुणों वाली (सत्व,रज और तम) दैवी अर्थात् परमात्मा की माया बड़ी ही 'दुरत्यया' है। यह माया सबको मोहित कर देती है। इससे पार पाना बड़ा कठिन है। माया का पर्दा हटाना बहुत ही दुष्कर है। यह इस प्रकार का मोह निर्माण कर देती है कि जन्म-जन्मांतर तक यह चक्र चलता रहता है। इस प्रकार की प्रबल शक्ति यह माया है। भगवान् ने इसके लिए विशेषण प्रयोग किया है "दुरत्यया"।
    इसके आगे किसी का बस नहीं चलता। इस माया में बॅंधे जीव कभी सुखी,कभी दुखी,कभी समझदार, कभी नासमझ, आने जाने वाले प्राकृत भावों, पदार्थों में तादात्म्य करके ममता- कामना करके बॅंधे रहते हैं। इससे पार पाना मुश्किल है क्योंकि यह दैवी है, देव के, भगवान् के साथ है,अत्यन्त समीप है। तीन गुणों के कारण इसमें आकर्षण भी है,चमक- दमक भी है।
    "मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते"-
    जो मनुष्य केवल मेरे ही शरण होते हैं,वे ही इस माया को तर जाते हैं,इसको लाॅंघ सकते हैं, इसके परे जा सकते हैं।
    पूरी तरह से शरण हो जाना इसको 'प्रपत्ति' कहते हैं।
    इस माया के कारण ही हमारे ऊपर अज्ञान का पर्दा पड़ा है। माया को जीतना है तो मायापति की शरण में जाना ही पड़ेगा।
    भगवान् कहते हैं कि जो केवल मेरी ही शरण में आ गया उसके लिए यह बात इतनी सरल हो जाती है कि फिर उसे कुछ करना नहीं पड़ता। उसके लिए यह माया की नदी अंतर्धान हो जाती है। स्वयं के बल पर इस माया से पार पाना असंभव है। भगवत् शरणागति ही एकमात्र उपाय है।
    विशेष-
    इस श्लोक का भाव यह हुआ कि जो केवल भगवान् के ही शरण होते हैं अर्थात् दैवी संपत्ति वाले होते हैं, वे भगवान् की गुणमयी माया को तर जाते हैं।
    माया को सत्ता मनुष्य ने ही दी है, अगर वह माया को सत्ता न देकर भगवान् की शरण में ही रहता है तो वह माया को तर जाता है अर्थात् उसके लिए माया की सत्ता ही नहीं रहती।
    भगवान् की शरणागति स्वीकार करने का तात्पर्य है कि भगवान् की सत्ता में ही अपनी सत्ता मिला देना।
    🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹

ความคิดเห็น • 8

  • @savitadevisharma7354
    @savitadevisharma7354 2 หลายเดือนก่อน

    Jai shree Krishna didi

    • @kusum_maru
      @kusum_maru  2 หลายเดือนก่อน

      जय श्री कृष्ण

  • @anmoljain1686
    @anmoljain1686 2 หลายเดือนก่อน

    Jai shree krishna didi

    • @kusum_maru
      @kusum_maru  2 หลายเดือนก่อน

      जय श्री कृष्ण

  • @shardasadani2740
    @shardasadani2740 2 หลายเดือนก่อน

    Jai shree Krishna

    • @kusum_maru
      @kusum_maru  2 หลายเดือนก่อน

      जय श्री कृष्ण

  • @bankatlslvaishnav3904
    @bankatlslvaishnav3904 2 หลายเดือนก่อน

    जय श्री कृष्ण।।

    • @kusum_maru
      @kusum_maru  2 หลายเดือนก่อน

      जय श्री कृष्ण