संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 81 से 85, ramcharitmanas। पं. राहुल पाण्डेय

แชร์
ฝัง
  • เผยแพร่เมื่อ 6 มิ.ย. 2024
  • संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 81से 85, ramcharitmanas। पं. राहुल पाण्डेय
    #ramayan #song #shreeramcharitmanas #hinduepic #shriram #music #shriramcharitmanas #hinduscripture #ram #love
    जय श्रीराम 🙏 मैं राहुल पाण्डेय आप लोगों के बीच रामचरितमानस की चौपाइयों का गान करने के लिए प्रस्तुत हुआ हूं और इस आशा से कि ये चौपाइयां जो महामंत्र स्वरूप हैं और जिनका गान बाबा विश्वनाथ भी करते हैं "महामंत्र सोई जपत महेसू" इनकी गूंज विश्व के कोने-कोने में सुनाई दे जिससे नकारात्मक ऊर्जा का ह्रास हो और सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो।
    मैं सोशल मीडिया के माध्यम से रामचरितमानस को जन-जन तक पहुंचाना चाहता हूं। यदि मेरा यह प्रयास सार्थक लगता है तो आशीर्वाद दीजीए । आप लोगों से करबद्ध निवेदन है कि इन चौपाइयों को यदि संभव हो सके तो साथ में बैठकर रामचरितमानस को लेकर मेरे साथ गान करें। यदि गान नहीं कर पा रहे तो इस वीडियो के माध्यम से इन चौपाइयों को बजाएं और अपने घर तथा आस पास के वातावरण में गुंजायमान होने दें। और अधिक से अधिक लोगों तक शेयर करें जिससे सभी का कल्याण हो।
    गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है "कहहि सुनहि अनुमोदन करहीं। ते गोपद ईव भव निधि तरहीं।।"
    जय श्रीराम🙏
    जौं तुम्ह मिलतेहु प्रथम मुनीसा। सुनतिउँ सिख तुम्हारि धरि सीसा॥
    अब मैं जन्मु संभु हित हारा। को गुन दूषन करै बिचारा॥
    जौं तुम्हरे हठ हृदयँ बिसेषी। रहि न जाइ बिनु किएँ बरेषी॥
    तौ कौतुकिअन्ह आलसु नाहीं। बर कन्या अनेक जग माहीं॥
    जन्म कोटि लगि रगर हमारी। बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी॥
    तजउँ न नारद कर उपदेसू। आपु कहहि सत बार महेसू॥
    मैं पा परउँ कहइ जगदंबा। तुम्ह गृह गवनहु भयउ बिलंबा॥
    देखि प्रेमु बोले मुनि ग्यानी। जय जय जगदंबिके भवानी॥
    दोहा- तुम्ह माया भगवान सिव सकल जगत पितु मातु।
    नाइ चरन सिर मुनि चले पुनि पुनि हरषत गातु॥८१॥
    जाइ मुनिन्ह हिमवंतु पठाए। करि बिनती गिरजहिं गृह ल्याए॥
    बहुरि सप्तरिषि सिव पहिं जाई। कथा उमा कै सकल सुनाई॥
    भए मगन सिव सुनत सनेहा। हरषि सप्तरिषि गवने गेहा॥
    मनु थिर करि तब संभु सुजाना। लगे करन रघुनायक ध्याना॥
    तारकु असुर भयउ तेहि काला। भुज प्रताप बल तेज बिसाला॥
    तेंहि सब लोक लोकपति जीते। भए देव सुख संपति रीते॥
    अजर अमर सो जीति न जाई। हारे सुर करि बिबिध लराई॥
    तब बिरंचि सन जाइ पुकारे। देखे बिधि सब देव दुखारे॥
    दोहा- सब सन कहा बुझाइ बिधि दनुज निधन तब होइ।
    संभु सुक्र संभूत सुत एहि जीतइ रन सोइ॥८२॥
    मोर कहा सुनि करहु उपाई। होइहि ईस्वर करिहि सहाई॥
    सतीं जो तजी दच्छ मख देहा। जनमी जाइ हिमाचल गेहा॥
    तेहिं तपु कीन्ह संभु पति लागी। सिव समाधि बैठे सबु त्यागी॥
    जदपि अहइ असमंजस भारी। तदपि बात एक सुनहु हमारी॥
    पठवहु कामु जाइ सिव पाहीं। करै छोभु संकर मन माहीं॥
    तब हम जाइ सिवहि सिर नाई। करवाउब बिबाहु बरिआई॥
    एहि बिधि भलेहि देवहित होई। मर अति नीक कहइ सबु कोई॥
    अस्तुति सुरन्ह कीन्हि अति हेतू। प्रगटेउ बिषमबान झषकेतू॥
    दोहा- सुरन्ह कहीं निज बिपति सब सुनि मन कीन्ह बिचार।
    संभु बिरोध न कुसल मोहि बिहसि कहेउ अस मार॥८३॥
    तदपि करब मैं काजु तुम्हारा। श्रुति कह परम धरम उपकारा॥
    पर हित लागि तजइ जो देही। संतत संत प्रसंसहिं तेही॥
    अस कहि चलेउ सबहि सिरु नाई। सुमन धनुष कर सहित सहाई॥
    चलत मार अस हृदयँ बिचारा। सिव बिरोध ध्रुव मरनु हमारा॥
    तब आपन प्रभाउ बिस्तारा। निज बस कीन्ह सकल संसारा॥
    कोपेउ जबहि बारिचरकेतू। छन महुँ मिटे सकल श्रुति सेतू॥
    ब्रह्मचर्ज ब्रत संजम नाना। धीरज धरम ग्यान बिग्याना॥
    सदाचार जप जोग बिरागा। सभय बिबेक कटकु सब भागा॥
    छंद- भागेउ बिबेक सहाय सहित सो सुभट संजुग महि मुरे।
    सदग्रंथ पर्बत कंदरन्हि महुँ जाइ तेहि अवसर दुरे॥
    होनिहार का करतार को रखवार जग खरभरु परा।
    दुइ माथ केहि रतिनाथ जेहि कहुँ कोपि कर धनु सरु धरा॥
    दोहा- जे सजीव जग अचर चर नारि पुरुष अस नाम।
    ते निज निज मरजाद तजि भए सकल बस काम॥८४॥
    सब के हृदयँ मदन अभिलाषा। लता निहारि नवहिं तरु साखा॥
    नदीं उमगि अंबुधि कहुँ धाई। संगम करहिं तलाव तलाई॥
    जहँ असि दसा जड़न्ह कै बरनी। को कहि सकइ सचेतन करनी॥
    पसु पच्छी नभ जल थलचारी। भए कामबस समय बिसारी॥
    मदन अंध ब्याकुल सब लोका। निसि दिनु न8हिं अवलोकहिं कोका॥
    देव दनुज नर किंनर ब्याला। प्रेत पिसाच भूत बेताला॥
    इन्ह कै दसा न कहेउँ बखानी। सदा काम के चेरे जानी॥
    सिद्ध बिरक्त महामुनि जोगी। तेपि कामबस भए बियोगी॥
    छंद- भए कामबस जोगीस तापस पावँरन्हि की को कहै।
    देखहिं चराचर नारिमय जे ब्रह्ममय देखत रहे॥
    अबला बिलोकहिं पुरुषमय जगु पुरुष सब अबलामयं।
    दुइ दंड भरि ब्रह्मांड भीतर कामकृत कौतुक अयं॥
    सोरठा- धरी न काहूँ धिर सबके मन मनसिज हरे।
    जे राखे रघुबीर ते उबरे तेहि काल महुँ॥८५॥
  • เพลง

ความคิดเห็น •