संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 86 से 90, ramcharitmanas। पं. राहुल पाण्डेय

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  • เผยแพร่เมื่อ 7 มิ.ย. 2024
  • संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 86 से 90, ramcharitmanas। पं. राहुल पाण्डेय
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    जय श्रीराम 🙏 मैं राहुल पाण्डेय आप लोगों के बीच रामचरितमानस की चौपाइयों का गान करने के लिए प्रस्तुत हुआ हूं और इस आशा से कि ये चौपाइयां जो महामंत्र स्वरूप हैं और जिनका गान बाबा विश्वनाथ भी करते हैं "महामंत्र सोई जपत महेसू" इनकी गूंज विश्व के कोने-कोने में सुनाई दे जिससे नकारात्मक ऊर्जा का ह्रास हो और सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो।
    मैं सोशल मीडिया के माध्यम से रामचरितमानस को जन-जन तक पहुंचाना चाहता हूं। यदि मेरा यह प्रयास सार्थक लगता है तो आशीर्वाद दीजीए । आप लोगों से करबद्ध निवेदन है कि इन चौपाइयों को यदि संभव हो सके तो साथ में बैठकर रामचरितमानस को लेकर मेरे साथ गान करें। यदि गान नहीं कर पा रहे तो इस वीडियो के माध्यम से इन चौपाइयों को बजाएं और अपने घर तथा आस पास के वातावरण में गुंजायमान होने दें। और अधिक से अधिक लोगों तक शेयर करें जिससे सभी का कल्याण हो।
    गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है "कहहि सुनहि अनुमोदन करहीं। ते गोपद ईव भव निधि तरहीं।।"
    जय श्रीराम🙏
    उभय घरी अस कौतुक भयऊ। जौ लगि कामु संभु पहिं गयऊ॥
    सिवहि बिलोकि ससंकेउ मारू। भयउ जथाथिति सबु संसारू॥
    भए तुरत सब जीव सुखारे। जिमि मद उतरि गएँ मतवारे॥
    रुद्रहि देखि मदन भय माना। दुराधरष दुर्गम भगवाना॥
    फिरत लाज कछु करि नहिं जाई। मरनु ठानि मन रचेसि उपाई॥
    प्रगटेसि तुरत रुचिर रितुराजा। कुसुमित नव तरु राजि बिराजा॥
    बन उपबन बापिका तड़ागा। परम सुभग सब दिसा बिभागा॥
    जहँ तहँ जनु उमगत अनुरागा। देखि मुएहुँ मन मनसिज जागा॥
    छंद- जागइ मनोभव मुएहुँ मन बन सुभगता न परै कही।
    सीतल सुगंध सुमंद मारुत मदन अनल सखा सही॥
    बिकसे सरन्हि बहु कंज गुंजत पुंज मंजुल मधुकरा।
    कलहंस पिक सुक सरस रव करि गान नाचहिं अपछरा॥
    दोहा- सकल कला करि कोटि बिधि हारेउ सेन समेत।
    चली न अचल समाधि सिव कोपेउ हृदयनिकेत॥८६॥
    देखि रसाल बिटप बर साखा। तेहि पर चढ़ेउ मदनु मन माखा॥
    सुमन चाप निज सर संधाने। अति रिस ताकि श्रवन लगि ताने॥
    छाड़े बिषम बिसिख उर लागे। छुटि समाधि संभु तब जागे॥
    भयउ ईस मन छोभु बिसेषी। नयन उघारि सकल दिसि देखी॥
    सौरभ पल्लव मदनु बिलोका। भयउ कोपु कंपेउ त्रैलोका॥
    तब सिवँ तीसर नयन उघारा। चितवत कामु भयउ जरि छारा॥
    हाहाकार भयउ जग भारी। डरपे सुर भए असुर सुखारी॥
    समुझि कामसुखु सोचहिं भोगी। भए अकंटक साधक जोगी॥
    छंद- जोगि अकंटक भए पति गति सुनत रति मुरुछित भई।
    रोदति बदति बहु भाँति करुना करति संकर पहिं गई।
    अति प्रेम करि बिनती बिबिध बिधि जोरि कर सन्मुख रही।
    प्रभु आसुतोष कृपाल सिव अबला निरखि बोले सही॥
    दोहा- अब तें रति तव नाथ कर होइहि नामु अनंगु।
    बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु॥८७॥
    जब जदुबंस कृष्न अवतारा। होइहि हरन महा महिभारा॥
    कृष्न तनय होइहि पति तोरा। बचनु अन्यथा होइ न मोरा॥
    रति गवनी सुनि संकर बानी। कथा अपर अब कहउँ बखानी॥
    देवन्ह समाचार सब पाए। ब्रह्मादिक बैकुंठ सिधाए॥
    सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता। गए जहाँ सिव कृपानिकेता॥
    पृथक पृथक तिन्ह कीन्हि प्रसंसा। भए प्रसन्न चंद्र अवतंसा॥
    बोले कृपासिंधु बृषकेतू। कहहु अमर आए केहि हेतू॥
    कह बिधि तुम्ह प्रभु अंतरजामी। तदपि भगति बस बिनवउँ स्वामी॥
    दोहा- सकल सुरन्ह के हृदयँ अस संकर परम उछाहु।
    निज नयनन्हि देखा चहहिं नाथ तुम्हार बिबाहु॥८८॥
    यह उत्सव देखिअ भरि लोचन। सोइ कछु करहु मदन मद मोचन।
    कामु जारि रति कहुँ बरु दीन्हा। कृपासिंधु यह अति भल कीन्हा॥
    सासति करि पुनि करहिं पसाऊ। नाथ प्रभुन्ह कर सहज सुभाऊ॥
    पारबतीं तपु कीन्ह अपारा। करहु तासु अब अंगीकारा॥
    सुनि बिधि बिनय समुझि प्रभु बानी। ऐसेइ होउ कहा सुखु मानी॥
    तब देवन्ह दुंदुभीं बजाईं। बरषि सुमन जय जय सुर साई॥
    अवसरु जानि सप्तरिषि आए। तुरतहिं बिधि गिरिभवन पठाए॥
    प्रथम गए जहँ रही भवानी। बोले मधुर बचन छल सानी॥
    दोहा- कहा हमार न सुनेहु तब नारद कें उपदेस।
    अब भा झूठ तुम्हार पन जारेउ कामु महेस॥८९॥
    मासपारायण,तीसरा विश्राम
    सुनि बोलीं मुसकाइ भवानी। उचित कहेहु मुनिबर बिग्यानी॥
    तुम्हरें जान कामु अब जारा। अब लगि संभु रहे सबिकारा॥
    हमरें जान सदा सिव जोगी। अज अनवद्य अकाम अभोगी॥
    जौं मैं सिव सेये अस जानी। प्रीति समेत कर्म मन बानी॥
    तौ हमार पन सुनहु मुनीसा। करिहहिं सत्य कृपानिधि ईसा॥
    तुम्ह जो कहा हर जारेउ मारा। सोइ अति बड़ अबिबेकु तुम्हारा॥
    तात अनल कर सहज सुभाऊ। हिम तेहि निकट जाइ नहिं काऊ॥
    गएँ समीप सो अवसि नसाई। असि मन्मथ महेस की नाई॥
    दोहा- हियँ हरषे मुनि बचन सुनि देखि प्रीति बिस्वास॥
    चले भवानिहि नाइ सिर गए हिमाचल पास॥९०॥
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