श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 6 श्लोक 42 उच्चारण | Bhagavad Geeta Chapter 6 Verse 42
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- เผยแพร่เมื่อ 15 มิ.ย. 2024
- 🌹ॐ श्रीपरमात्मने नमः 🌹
अथ षष्ठोऽध्यायः
अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम्।
एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम्॥42॥
अथवा=अथवा, योगिनाम्= योगियों के, एव=ही, कुले=कुल में, भवति=जन्म लेता है, धीमताम्=ज्ञानवान्, एतत्=यह, हि=निःसन्देह, दुर्लभतरम्= अत्यन्त दुर्लभ है, लोके=संसार में, जन्म=जन्म है, यत्=जो, ईदृशम्=इस प्रकार का।
भावार्थ- अथवा वह वैराग्यवान् पुरुष उन लोकों में न जाकर ज्ञानवान् योगियों के ही कुल में जन्म लेता है परंतु इस प्रकार का जो यह जन्म है संसार में निःसंदेह अत्यंत दुर्लभ है।
व्याख्या--
योगभ्रष्ट योगी की दूसरी प्रकार की गति बताते हुए भगवान् कहते हैं कि आवश्यक नहीं कि वहाँ पर समृद्धि हो...
"अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम्"-
दूसरा पर्याय बताते हैं कि यह ज्ञानवान् योगियों के कुल में पैदा होता है। जिनकी हर पीढ़ी में कोई न कोई यति,योगी हुआ करता है,वह है योगियों का कुल। संस्कार संपन्न घराने में उसका जन्म होता है
पहली गति भगवान् बताते हैं "शुचीनां श्रीमतां गेहे" और दूसरी बताते हैं "धीमताम् योगिनां कुले"।
"एतत् हि दुर्लभतरं"-
पहला प्रकार ही दुर्लभ है। यहाँ भगवान् कहते हैं 'दुर्लभतर' शुचि श्रीमंत के घर में पैदा होना तो दुर्लभ है ही लेकिन किसी धीमान् योगी के घर में जन्म लेना अपेक्षाकृत अधिक दुर्लभ है।
"लोके जन्म यदीदृशम्"
भगवान् कहते हैं कि संसार में निःसंदेह इस प्रकार का जन्म पाना अत्यंत कठिन है।
उसको ऐसा घर मिलता है जहाँ बचपन से ही उसके कानों में वेदों के मंत्र आते हैं, संतों का वाङ्गमय पढ़ने में आता है, चर्चा चलती है तो शास्त्रों की, संत महात्मा सत्पुरुष घर पर आते रहते हैं,उनके समीप बैठने को, सुनने को मिलता है,भगवद्गीता का पाठ चलता है....।
विशेष-
भगवान् दोनों में तुलना करते हुए कहते हैं कि योगभ्रष्ट होकर शुचि श्रीमंत के घर में जन्म लेना तो दुर्लभ है ही लेकिन संस्कार संपन्न,सादगी संपन्न योगियों के कुल में जन्म लेना उससे भी दुर्लभतर है। ऐसे सद्कुल में जन्म लेने के बाद वह बचपन से ही अलग प्रतीत होता है, उसकी वृत्तियाँ भगवत् उन्मुख होती हैं। अपने आप ही कितनी सारी बातें उसको सूझती हैं। वह बचपन से ही साधन में लग जाता है।
अब वहाँ जन्म होने के बाद आगे क्या होता है? कल....
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जय श्री कृष्ण।।
जय श्री कृष्ण।