श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 6 श्लोक 45 उच्चारण | Bhagavad Geeta Chapter 6 Verse 45

แชร์
ฝัง
  • เผยแพร่เมื่อ 30 ก.ย. 2024
  • 🌹ॐ श्रीपरमात्मने नमः 🌹
    अथ षष्ठोऽध्यायः
    प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः।
    अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम्॥45॥
    प्रयत्नात्=प्रयत्नपूर्वक,यतमानः =अभ्यास करने वाला, तु= परन्तु,योगी=योगी,
    संशुद्धकिल्बिषः=सम्पूर्ण पापों से रहित,अनेकजन्मसंसिद्धः= अनेक जन्मों के संस्कार बल से इसी जन्म में संसिद्ध होकर, ततः=फिर,याति=प्राप्त हो जाता है,पराम्=परम, गतिम्= गति को।
    भावार्थ- परन्तु जो योगी है, प्रयत्नपूर्वक यत्न करता है और जिसके सम्पूर्ण पाप नष्ट हो गए हैं तथा जो अनेक जन्मों से संसिद्ध हुआ है फिर वह परम गति को प्राप्त हो जाता है।
    व्याख्या--
    "प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः"-
    भगवान् कहते हैं कि जो यतमान है,प्रयत्नशील है,अब वह और तत्परता से प्रयत्न करता है और अपने बचे-खुचे जो भी किल्बिष हैं,पाप कर्म हैं, अशुद्ध कर्म है ; उनको नष्ट कर देता है।
    भगवान् यहाँ कह रहे हैं कि अब यह "संशुद्धकिल्बिष" हो गया है, इसके सारे विकार धुल गए हैं। यह प्रयत्नपूर्वक साधन करने पर ही संभव है। प्रयत्नपूर्वक साधन करने का तात्पर्य है कि उसके भीतर परमात्मा की तरफ चलने की जो तीव्र उत्कंठा है वह दिन प्रतिदिन बढ़ती ही रहती है। साधन में उसकी निरंतर सजगता रहती है।
    "अनेकजन्मसंसिद्धः"-
    एक से अधिक जन्म हो चुके साधन करते-करते तब फिर योग के यत्न से चित्त शुद्धि हुई परन्तु अंत समय में योग से विचलित होकर स्वर्गादि लोकों में गया वहाँ के भोगों में अरुचि होने से शुद्धि हुई और फिर शुद्ध श्रीमंतों के घर में जन्म लेकर परमात्म प्राप्ति के लिए पुनः तत्परतापूर्वक यत्न करने से वह "संसिद्ध" हो गया। भगवान् ने 'सिद्ध' नहीं कहा 'संसिद्ध' कहा सम्यक् रीति से पूर्णतया सिद्ध हो गया। और फिर
    "ततो याति परांगतिम्"-
    तब उसको लक्ष्य की प्राप्ति परम गति अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। मोक्ष के लिए योग का अभ्यास करने वाला यदि अंतिम समय में योग भ्रष्ट हो भी गया तो भी इस जन्म में इतना इतना प्रवास करने के बाद अंत में उसको परम गति प्राप्त हो ही जाएगी। जिसको प्राप्त कर लेने के बाद उससे बढ़कर कोई भी लाभ मानने में नहीं आता। जिसमें स्थित होने पर भयंकर से भयंकर दुःख भी विचलित नहीं कर सकता; ऐसे आत्यन्तिक सुख को वह प्राप्त हो जाता है।
    विशेष-
    भगवान् बतलाते हैं कि उसका जो साधन अधूरा रह गया था वहाँ से उसका साधन आगे बढ़ता है। बहुत थोड़े से जो दोष बचे हुए हैं,उन्हें प्रयत्नपूर्वक नष्ट करने का प्रयास वह कर लेता है। यह एक जन्म का साधन मार्ग नहीं है,जन्म- जन्मान्तर का कचरा भीतर जमा हुआ है, उसकी शुद्धि में अनेक जन्म लग जाते हैं और ये सारे जन्म समान भी नहीं होते। एक- एक जन्म में वह अनेक सीढ़ियाँ ऊपर जाता जाता अन्त में प्रभु के साथ एक रूप हो जाता है। उसके बाद आनन्द ही आनन्द की अनुभूति रहती है।
    🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹

ความคิดเห็น • 3

  • @satishkgoyal
    @satishkgoyal 3 หลายเดือนก่อน

    जय श्री कृष्ण।

  • @bankatlslvaishnav3904
    @bankatlslvaishnav3904 3 หลายเดือนก่อน

    जय श्री कृष्ण।।

    • @kusum_maru
      @kusum_maru  3 หลายเดือนก่อน

      Jai Shri Krishna