संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 76से 80, ramcharitmanas। पं. राहुल पाण्डेय

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  • เผยแพร่เมื่อ 5 มิ.ย. 2024
  • संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 76से 80, ramcharitmanas। पं. राहुल पाण्डेय
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    जय श्रीराम 🙏 मैं राहुल पाण्डेय आप लोगों के बीच रामचरितमानस की चौपाइयों का गान करने के लिए प्रस्तुत हुआ हूं और इस आशा से कि ये चौपाइयां जो महामंत्र स्वरूप हैं और जिनका गान बाबा विश्वनाथ भी करते हैं "महामंत्र सोई जपत महेसू" इनकी गूंज विश्व के कोने-कोने में सुनाई दे जिससे नकारात्मक ऊर्जा का ह्रास हो और सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो।
    मैं सोशल मीडिया के माध्यम से रामचरितमानस को जन-जन तक पहुंचाना चाहता हूं। यदि मेरा यह प्रयास सार्थक लगता है तो आशीर्वाद दीजीए । आप लोगों से करबद्ध निवेदन है कि इन चौपाइयों को यदि संभव हो सके तो साथ में बैठकर रामचरितमानस को लेकर मेरे साथ गान करें। यदि गान नहीं कर पा रहे तो इस वीडियो के माध्यम से इन चौपाइयों को बजाएं और अपने घर तथा आस पास के वातावरण में गुंजायमान होने दें। और अधिक से अधिक लोगों तक शेयर करें जिससे सभी का कल्याण हो।
    गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है "कहहि सुनहि अनुमोदन करहीं। ते गोपद ईव भव निधि तरहीं।।"
    जय श्रीराम🙏
    कतहुँ मुनिन्ह उपदेसहिं ग्याना। कतहुँ राम गुन करहिं बखाना॥
    जदपि अकाम तदपि भगवाना। भगत बिरह दुख दुखित सुजाना॥
    एहि बिधि गयउ कालु बहु बीती। नित नै होइ राम पद प्रीती॥
    नैमु प्रेमु संकर कर देखा। अबिचल हृदयँ भगति कै रेखा॥
    प्रगटै रामु कृतग्य कृपाला। रूप सील निधि तेज बिसाला॥
    बहु प्रकार संकरहि सराहा। तुम्ह बिनु अस ब्रतु को निरबाहा॥
    बहुबिधि राम सिवहि समुझावा। पारबती कर जन्मु सुनावा॥
    अति पुनीत गिरिजा कै करनी। बिस्तर सहित कृपानिधि बरनी॥
    दोहा- अब बिनती मम सुनेहु सिव जौं मो पर निज नेहु।
    जाइ बिबाहहु सैलजहि यह मोहि मागें देहु॥७६॥
    कह सिव जदपि उचित अस नाहीं। नाथ बचन पुनि मेटि न जाहीं॥
    सिर धरि आयसु करिअ तुम्हारा। परम धरमु यह नाथ हमारा॥
    मातु पिता गुर प्रभु कै बानी। बिनहिं बिचार करिअ सुभ जानी॥
    तुम्ह सब भाँति परम हितकारी। अग्या सिर पर नाथ तुम्हारी॥
    प्रभु तोषेउ सुनि संकर बचना। भक्ति बिबेक धर्म जुत रचना॥
    कह प्रभु हर तुम्हार पन रहेऊ। अब उर राखेहु जो हम कहेऊ॥
    अंतरधान भए अस भाषी। संकर सोइ मूरति उर राखी॥
    तबहिं सप्तरिषि सिव पहिं आए। बोले प्रभु अति बचन सुहाए॥
    दोहा- पारबती पहिं जाइ तुम्ह प्रेम परिच्छा लेहु।
    गिरिहि प्रेरि पठएहु भवन दूरि करेहु संदेहु॥७७॥
    रिषिन्ह गौरि देखी तहँ कैसी। मूरतिमंत तपस्या जैसी॥
    बोले मुनि सुनु सैलकुमारी। करहु कवन कारन तपु भारी॥
    केहि अवराधहु का तुम्ह चहहू। हम सन सत्य मरमु किन कहहू॥
    कहत बचत मनु अति सकुचाई। हँसिहहु सुनि हमारि जड़ताई॥
    मनु हठ परा न सुनइ सिखावा। चहत बारि पर भीति उठावा॥
    नारद कहा सत्य सोइ जाना। बिनु पंखन्ह हम चहहिं उड़ाना॥
    देखहु मुनि अबिबेकु हमारा। चाहिअ सदा सिवहि भरतारा॥
    दोहा- सुनत बचन बिहसे रिषय गिरिसंभव तब देह।
    नारद कर उपदेसु सुनि कहहु बसेउ किसु गेह॥७८॥
    दच्छसुतन्ह उपदेसेन्हि जाई। तिन्ह फिरि भवनु न देखा आई॥
    चित्रकेतु कर घरु उन घाला। कनककसिपु कर पुनि अस हाला॥
    नारद सिख जे सुनहिं नर नारी। अवसि होहिं तजि भवनु भिखारी॥
    मन कपटी तन सज्जन चीन्हा। आपु सरिस सबही चह कीन्हा॥
    तेहि कें बचन मानि बिस्वासा। तुम्ह चाहहु पति सहज उदासा॥
    निर्गुन निलज कुबेष कपाली। अकुल अगेह दिगंबर ब्याली॥
    कहहु कवन सुखु अस बरु पाएँ। भल भूलिहु ठग के बौराएँ॥
    पंच कहें सिवँ सती बिबाही। पुनि अवडेरि मराएन्हि ताही॥
    दोहा- अब सुख सोवत सोचु नहि भीख मागि भव खाहिं।
    सहज एकाकिन्ह के भवन कबहुँ कि नारि खटाहिं॥७९॥
    अजहूँ मानहु कहा हमारा। हम तुम्ह कहुँ बरु नीक बिचारा॥
    अति सुंदर सुचि सुखद सुसीला। गावहिं बेद जासु जस लीला॥
    दूषन रहित सकल गुन रासी। श्रीपति पुर बैकुंठ निवासी॥
    अस बरु तुम्हहि मिलाउब आनी। सुनत बिहसि कह बचन भवानी॥
    सत्य कहेहु गिरिभव तनु एहा। हठ न छूट छूटै बरु देहा॥
    कनकउ पुनि पषान तें होई। जारेहुँ सहजु न परिहर सोई॥
    नारद बचन न मैं परिहरऊँ। बसउ भवनु उजरउ नहिं डरऊँ॥
    गुर कें बचन प्रतीति न जेही। सपनेहुँ सुगम न सुख सिधि तेही॥
    दोहा- महादेव अवगुन भवन बिष्नु सकल गुन धाम।
    जेहि कर मनु रम जाहि सन तेहि तेही सन काम॥८०॥
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