बुध्द ने आत्मा को क्यों नकार दिया || Logic of Buddha on Aatma || Aaj Ki Baat || Awaaz India TV

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  • เผยแพร่เมื่อ 6 ม.ค. 2025

ความคิดเห็น • 13

  • @dharmrajsingh6125
    @dharmrajsingh6125 3 ปีที่แล้ว

    Right...
    Namo Buddhay

  • @kushwahasarkar8229
    @kushwahasarkar8229 3 ปีที่แล้ว

    Very good

  • @nileshwarchaware6129
    @nileshwarchaware6129 3 ปีที่แล้ว

    Great team Aawaz india TV show with Fule sir,

  • @kushwahasarkar8229
    @kushwahasarkar8229 3 ปีที่แล้ว

    Nomo bhuddhaye

    • @tik5703
      @tik5703 6 หลายเดือนก่อน

      कौनसे बुद्धिस्ट हो
      क्योंकि अंबेडकर जी ने नवबौद्ध बनाया था जो कि हीनयान महायान वज्रयान से अलग है 😅😂😂😂

  • @mannukumarch3049
    @mannukumarch3049 3 ปีที่แล้ว

    Namo buddhay Jay Bheem

  • @krkrishnan9612
    @krkrishnan9612 3 ปีที่แล้ว +1

    कृपया पूरा पड़े 🙏(2021) के जनगणना मै रविदासिया धर्म लिखवाने की अपील सतकारयोग गुरु🙏 प्यारी साध संगत 🙏# दुनिया के अलग है धर्मो के लोग अपने अपने धर्म के प्रचार के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं 🙏और अपने धर्म का प्रचार करते हैं पर सामाजिक सवास़थ ही इस तरह कि बनी हुई है की जगतगुरु रविदास जी महाराज को मानने वाले समाज ने हमेशा धर्म का काम आगे बढ़ा कर किया पर इस समाज को अधर्मी ही माना गया वा इनके दुखो 🙏 को किसी ने नहीं समझा इस समाज की अनपढ़ता , अज्ञानता और दुःखी को खत्म करने के लिए ऐबम 🙏 श्री गुरु रविदास जी को मिशन को पूरा करने का धुरा माने जाते डेरा श्री 108 संत सरवन दास जी सचखंड बल्ला पंजाब के महापुरषों ने समय समय पर समाज को जागरूक करने के लिए अपना बहुल्मुल योगदान डाला व गुरु जी के जन्म स्थान पर सात मंजिले मन्दिर का निर्माण कर के समाज का में उचा किया तथा अनेकों जगह पर देश विदेशो मै सतगुरु रविदास जी का मंदिर बनवा कर समाज पर बहुत बड़ा उपकार किया और समाज को जागृत करने का काम किया पर मनुवादी लोगो को ये बात हजम नहीं हुआ की अगर ये लोग अपने महापुरषों को याद करने लगे तो हम अधर्मी किसे कहेंगे मनुवादी लोग बार बार हमारे गुरु पर हमला करवाते रहते थे इसी कारण हमारे गुरु संत निरंजन दास जी को काफी चोट भी आए थे इसी हमला मै संत रामानंद महाराज भी चल बसे तब जा कर सतगुरु रविदास जी के 633 वे प्रकाश दिवस पर देश विदेशो से आए हुए सर्धालू के अगुयायो 🙏 में संत निरंजन दास 🙏 महाराज ने अपने समाज के हीत में❤️रविदासिया❤️ धर्म को स्थापना किया था चमार समाज की इतनी आबादी होने के बाबजूद भी दूसरे धर्म चले जाते है जबकि हमारे महापुरोसो ने अपने समाज के हीत में ये धर्म बनाया था🙏रविदासिया कहीं भूल ना जाना जन- गणना में रविदासिया धर्म लिखवाना है अगला मोका दस वर्ष बाद ही आएगा रविदासिया बनो चमार जाती के लोग 🙏 जय गुरुदेव धन गुरुदेव जय भीम जय बाबु जी 🙏🙏🙏🙏🙏🙏i

  • @lobbyfig7634
    @lobbyfig7634 2 ปีที่แล้ว

    Mai nastik hu. But I big fan of Lord buddha🙏

  • @upenderkumar4858
    @upenderkumar4858 3 ปีที่แล้ว

    Jay bheem namo buddhay Jay Bharat 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

  • @nileshwarchaware6129
    @nileshwarchaware6129 3 ปีที่แล้ว

    Jay Bhim Namo Buddhay

  • @kartikbaraik6705
    @kartikbaraik6705 3 ปีที่แล้ว

    Is kitaab ka naam kya hai main bhi padhna chahta hoon

  • @Mayank00007
    @Mayank00007 9 หลายเดือนก่อน

    बुद्ध की यह वेदांतिक विचार धारा को कोटि कोटि प्रणाम

  • @tik5703
    @tik5703 6 หลายเดือนก่อน

    दिन में तारे नहीं दिखते इसका मतलब दिन में तारे होते ही नहीं क्या?
    अगर अपनी आँखों की पुतलियों को घुमाया जाए तो सारा दृश्य / बाहरी जगत घूमने वाला प्रतीत होता है क्या इसका मतलब सारी दुनिया घूम रही थी क्या ?
    जब रात्रि में या कम प्रकाश में रस्सी में सर्प का आभास होता है तो क्या वो रस्सी साप होती है क्या
    आत्मा की कोई अनुभूति नहीं है यह कैसे मान लिया बुद्धा ने ?
    आत्मा स्वयं चैतन्यमय है इसीलिए जड़ शरीर में चेतना आती है
    मांडूक्योपनिषद अथर्ववेद के ब्राह्मण भाग से लिया गया है
    शंकराचार्य जी ने इस पर भाष्य लिखा है और गौड पादाचार्य जी ने कारिकाऐं लिखी हैं
    आत्मा चतुष्पाद है अर्थात् उसकी अभिव्यक्ति की चार अवस्थाएँ हैं जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय।

    जाग्रत अवस्था की आत्मा को वैश्वानर कहते हैं, इसलिये कि इस रूप में सब नर एक योनि से दूसरी में जाते रहते हैं। इस अवस्था का जीवात्मा बहिर्मुखी होकर "सप्तांगों" तथा इंद्रियादि 19 मुखों से स्थूल अर्थात् इंद्रियग्राह्य विषयों का रस लेता है। अत: वह बहिष्प्रज्ञ है।

    दूसरी तेजस नामक स्वप्नावस्था है जिसमें जीव अंत:प्रज्ञ होकर सप्तांगों और 19 मुर्खी से जाग्रत अवस्था की अनुभूतियों का मन के स्फुरण द्वारा बुद्धि पर पड़े हुए विभिन्न संस्कारों का शरीर के भीतर भोग करता है।

    तीसरी अवस्था सुषुप्ति अर्थात् प्रगाढ़ निद्रा का लय हो जाता है और जीवात्मा क स्थिति आनंदमय ज्ञान स्वरूप हो जाती है। इस कारण अवस्थिति में वह सर्वेश्वर, सर्वज्ञ और अंतर्यामी एवं समस्त प्राणियों की उत्पत्ति और लय का कारण है।

    परंतु इन तीनों अवस्थाओं के परे आत्मा का चतुर्थ पाद अर्थात् तुरीय अवस्था ही उसक सच्चा और अंतिम स्वरूप है जिसमें वह ने अंत: प्रज्ञ है, न बहिष्प्रज्ञ और न इन दोनों क संघात है, न प्रज्ञानघन है, न प्रज्ञ और न अप्रज्ञ, वरन अदृष्ट, अव्यवहार्य, अग्राह्य, अलक्षण, अचिंत्य, अव्यपदेश्य, एकात्मप्रत्ययसार, शांत, शिव और अद्वैत है जहाँ जगत्, जीव और ब्रह्म के भेद रूपी प्रपंच का अस्तित्व नहीं है (मंत्र 7)
    ओंकार रूपी आत्मा का जो स्वरूप उसके चतुष्पाद की दृष्टि से इस प्रकार निष्पन्न होता है उसे ही ऊँकार की मात्राओं के विचार से इस प्रकार व्यक्त किया गया है कि ऊँ की अकार मात्रा से वाणी का आरंभ होता है और अकार वाणी में व्याप्त भी है। सुषुप्ति स्थानीय प्राज्ञ ऊँ कार की मकार मात्रा है जिसमें विश्व और तेजस के प्राज्ञ में लय होने की तरह अकार और उकार का लय होता है, एवं ऊँ का उच्चारण दुहराते समय मकार के अकार उकार निकलते से प्रतीत होते है। तात्पर्य यह कि ऊँकार जगत् की उत्पत्ति और लय का कारण है।
    वैश्वानर, तेजस और प्राज्ञ अवस्थाओं के सदृश त्रैमात्रिक ओंकार प्रपंच तथा पुनर्जन्म से आबद्ध है किंतु तुरीय की तरह अ मात्र ऊँ अव्यवहार्य आत्मा है जहाँ जीव, जगत् और आत्मा (ब्रह्म) के भेद का प्रपंच नहीं है और केवल अद्वैत शिव ही शिव रह जाता है।
    सुख दुख ठंडा गर्म यह सब मन बुद्धि अहंकार और कर्म संस्कार से बने सूक्ष्म शरीर को पंचमहाभूत पंचप्राण पंच ज्ञानेंद्रिय पंच कर्मेन्द्रिय वाले शरीर कि द्वारा होती है
    अरे भाई वेदान्त अद्वैत को समझना तुम जैसे संकीर्ण विचार वाले और पूर्वनिर्धारित विचारों वाले लोगो को बहुत कठिन है ।
    बिना सनातनी उत्तम गुरु के तुम लोग ऐसे ही खुदकी गौतम बुद्धा को अपमानीत करते रहोगे
    जनेऊ धारी सनातनी भगवान बुद्ध
    और गौतम बुद्धा अलग अलग है ।
    गौतम बुद्धा ने सनातनी गुरुओ से शिक्षा लेके ८ साल साधना करते गये लेकिन एक दिन दृढ़ निश्चय करके आत्मा को जानने के संकल्प से गया में एक वृक्ष के नीचे बैठ गये बाद में कुछ दिनों के बाद उनको साक्षात्कार किया ।