Legendary Hindustani classical musician Annapurna Devi dies in Mumbai hospital: Family sou

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  • เผยแพร่เมื่อ 16 ก.ย. 2024
  • Legendary Hindustani classical musician Annapurna Devi dies in Mumbai hospital: Family sources.

ความคิดเห็น • 4

  • @kamaleshsarkar4268
    @kamaleshsarkar4268 10 หลายเดือนก่อน +1

    Legends leave their life story remains as a pain for their art admirers…

  • @RaviKanT_Ojha
    @RaviKanT_Ojha 6 ปีที่แล้ว

    Part 2 Of 2
    गुरु माँ अन्नपूर्णा देवी : पाने के सम्मोहन से परे
    अपने पिता उस्ताद अलाउद्दीन खां साहब की तरह ही उन्होंने अपने पीछे श्रेष्ठतम शिष्यों की एक लम्बी परम्परा रच दी है, जिनमें पण्डित हरि प्रसाद चौरसिया, पण्डित वसंत काबरा, उस्ताद आशीष खां, उस्ताद बहादुर खां और पंडित नित्यानंद हल्दीपुर जैसे बेहतरीन कलाकार शामिल हैं।
    अन्नपूर्णा जी ने अपने वैवाहिक जीवन को संकट से बचाने के लिए अपनी कला से किनारा कर लिया था। पण्डित रविशंकर को इस बात की आशंका थी कि अन्नपूर्णा देवी उनसे कहीं बेहतरीन कलाकार हैं और जल्दी ही वे उनसे आगे निकल जाएंगी। इस इतने से पुरुषोचित अहम् के चलते उन्होंने सुर-बहार जैसे खूबसूरत वाद्य को सार्वजनिक तौर पर बजाना ही बंद कर दिया था। जब उनकी शादी टूटी, उसके बाद भी उन्होंने सार्वजानिक तौर पर एक कलाकार के बतौर कभी सुर-बहार को छुआ तक नहीं। यह बात बहुत विचलित करती है कि एक बड़े कलाकार के वैभव निर्माण के पीछे, एक दूसरे विलक्षण कलाकार की असमय मृत्यु हो गयी। ....और शास्त्रीय संगीत का समाज चुपचाप यह प्रहसन देखता रहा।
    अन्नपूर्णा जी ने नेपथ्य में रहकर बड़े शान्त ढंग से अपनी कला का उत्तराधिकार तैयार किया। जैसे, वे पण्डित रविशंकर को संकेतों और प्रतीकों में यह बताना चाहती रहीं हों कि भले ही मैंने बजाना बंद कर दिया है, लेकिन देश भर में फैले हुए बेहतरीन शिष्यों ने मेरी ही कला को बजाकर मेरी महान तालीम को सिद्ध कर दिया हो।
    याद आती है कथाकार संजीव की कहानी 'मानपत्र', जिसमें उन्होंने पण्डित रविशंकर और अन्नपूर्णा देवी जी के रिश्ते को मार्मिक ढंग से उकेरा है। और साथ ही, ऋषिकेश मुखर्जी की फ़िल्म 'अभिमान' जो ऐसी ही कला-ईर्ष्या को लेकर बनायी गयी थी।
    आज 91 बरस की उम्र में अन्नपूर्णा जी चली गयीं और शास्त्रीय संगीत की दुनिया उनकी उदारता को हतप्रभ देखता रह गया। स्त्री-स्वतंत्रता के इस युग में अन्नपूर्णा देवी जैसे चरित्रों का होना यह बात सिद्ध करता है कि प्रतिस्पर्धा और राजनीति से परे भी कलाओं की एक ज़्यादा उदार और वैकल्पिक दुनिया रची जा सकती है। बस, उसमें कुछ पाने का सम्मोहन छूट जाता है।

  • @RaviKanT_Ojha
    @RaviKanT_Ojha 6 ปีที่แล้ว

    Part-1 Of 2
    सुरबहार और सितार की महान वादक और उस्ताद अलाउद्दीन खान की बेटी अन्नपूर्णा देवी (मूल नाम : रोशन आरा) ९४ वर्ष की उम्र में चल बसीं. उन्होंने अपने महान पिता की ही तरह कई योग्य शिष्यों को तालीम दी जिनमें बहादुर खान, निखिल बनर्जी, हरिप्रसाद चौरसिया और आशीष खान आदि थे और हैं. रविशंकर के साथ अपने वैवाहिक जीवन को टूटने से बचाने के लिए उन्होंने सुरबहार को सार्वजनिक तौर पर बजाना बंद कर दिया क्योंकि रविशंकर को आशंका थी कि वे उनसे ज्यादा मशहूर हो जायेंगी. विवाह आखिरकार टूट गया, लेकिन अन्नपूर्णा ने फिर से बजाना शुरू नहीं किया, न अपनी कोई ध्वनि या दृश्य रिकॉर्डिंग होने दी. वे सिर्फ अपने शिष्यों को सिखाती रहीं. शायद उनमें से किसी के पास कोई निजी रिकॉर्डिंग हो. इन्टरनेट पर उनकी कुछ आरंभिक रिकॉर्डिंग ज़रूर हैं, लेकिन उनका तकनीकी स्तर खराब है.
    इस विलक्षण कलाकार और रविशंकर के लिए अपनी तमाम प्रतिभा को कहीं पीछे धकेल देने वाली 'संगतकार' को याद करते हुए सहसा एक कविता याद आयी:
    संगतकार
    मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती
    वह आवाज़ सुंदर कमजोर काँपती हुई थी
    वह मुख्य गायक का छोटा भाई है
    या उसका शिष्य
    या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार
    मुख्य गायक की गरज़ में
    वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से
    गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में
    खो चुका होता है
    या अपने ही सरगम को लाँघकर
    चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में
    तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है
    जैसा समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान
    जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन
    जब वह नौसिखिया था
    तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
    प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
    आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
    तभी मुख्य गायक को ढाढस बँधाता
    कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर
    कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
    यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
    और यह कि फिर से गाया जा सकता है
    गाया जा चुका राग
    और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है
    या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है
    उसे विफलता नहीं
    उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।

  • @bickysingh7813
    @bickysingh7813 6 ปีที่แล้ว

    Pujo te asa kori bristi na ase.