श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 श्लोक 10 उच्चारण | Bhagavad Geeta Chapter 7 Verse 10

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  • เผยแพร่เมื่อ 30 มิ.ย. 2024
  • 🌹ॐ श्रीपरमात्मने नमः 🌹
    अथ सप्तमोऽध्यायः
    बीजं मां सर्वभूतानां
    विद्धि पार्थ सनातनम्।
    बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्॥10॥
    बीजम्=बीज,माम्=मुझको (ही),सर्वभूतानाम्=सम्पूर्ण भूतों का,विद्धि=जान,पार्थ=हे पृथानन्दन! सनातनम्=अनादि, बुद्धिः=बुद्धि(और),बुद्धिमताम् =बुद्धिमानों में,अस्मि=हूंँ, तेजः =तेज, तेजस्विनाम्=तेजस्वियों में, अहम्=मैं।
    भावार्थ- हे पृथानन्दन! सम्पूर्ण भूतों का अनादि बीज मुझको ही जान। मैं बुद्धिमानों में बुद्धि और तेजस्वियों में तेज हूंँ।
    व्याख्या--
    "बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्"-
    हे पार्थ! सम्पूर्ण प्राणियों का सनातन,अविनाशी बीज मैं हूंँ। बीज के लिए विशेषण दिया है "सनातन" जिसका अर्थ होता है नित्य रहने वाला। जितने भी बीज होते हैं, वह सब वृक्ष से उत्पन्न होते हैं और वृक्ष को पैदा करके नष्ट हो जाते हैं परंतु मैं अविनाशी सनातन बीज हूंँ। संपूर्ण प्राणी बीज रूप मेरे से ही उत्पन्न होते हैं। इसी को 9/8 में "अव्यय बीज" कहा है।
    "बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि"-
    बुद्धिमानों में बुद्धि मैं हूंँ। बुद्धि के कारण ही वे बुद्धिमान् कहलाते हैं। अगर उनमें बुद्धि न रहे तो उनकी बुद्धिमान् संज्ञा नहीं रहेगी।
    "तेजस्तेजस्विनामहम्"-
    जो तेजस्वी हैं, उनका तेज भी मैं ही हूंँ। तेज दैवी- संपत्ति का एक गुण है। तत्त्वज्ञ जीवन्मुक्त महापुरुषों में एक विशेष तेज शक्ति रहती है, इसके प्रभाव से दुर्गुणी,दुराचारी मनुष्य भी सद्गुणी,सदाचारी बन जाते हैं। हम कहते हैं न कि उनके मुख पर कितना तेज है। अधिकतर तेज ज्ञान का ही होता है।
    बिना तेज के मानव निस्तेज है। तेज ही मनुष्य को स्वस्थ और निरोगी भी रखता है,यह तेज भगवान का ही स्वरूप है।
    विशेष-
    भगवान् ने अपने आप को संसार मात्र का बीज कहते हुए एक विलक्षण बात बतलाई कि मैं "अनादि बीज" हूंँ। पैदा हुआ बीज नहीं हूंँ। मैं सनातन, अविनाशी बीज हूंँ। संसार मेरे से पैदा हो जाता है पर मैं मिटता नहीं हूंँ, जैसा का तैसा ही रहता हूंँ।
    भगवान् कहते हैं कि इस संसार में सार रूप से मैं ही हूंँ, इस बात को जान लो और समझ कर धारण करो।
    इसी अध्याय के छठे श्लोक में भगवान ने 'उपधारय' कहा और यहाँ 'विद्धि' कहते हैं। समझ कर धारण करने से असली प्रेम जागृत हो जाता है।
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