हल्द्वानी रानीबाग़ की ये कहानी आपके होश उड़ा देगी | History Of Ranibagh | Jiya Rani |

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  • เผยแพร่เมื่อ 11 ก.ย. 2024
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    हल्द्वानी रानीबाग़ की ये कहानी आपके होश उड़ा देगी | History Of Ranibagh | Jiya Rani |
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ความคิดเห็น • 12

  • @user-zz8dc7sg3p
    @user-zz8dc7sg3p 6 หลายเดือนก่อน

    ❤❤❤❤ Jai jiya Mata ki hamari kuldevi

  • @mayabameta5838
    @mayabameta5838 3 หลายเดือนก่อน

    जय माता जिया रानी 💐💐💐💐🙏🙏

  • @alokpandey2936
    @alokpandey2936 11 หลายเดือนก่อน +1

    Congratulations keep making such interesting vlogs 🙏🙏🙏 Jai Maa Jia

  • @KamlaGoswami-ys6ue
    @KamlaGoswami-ys6ue ปีที่แล้ว

    Jai mata rani.. Kripa kro maa mere ghr pariwar mei apka ashirwaad bna rhe

  • @manjubisht8807
    @manjubisht8807 ปีที่แล้ว

    Jai ho 🙏

  • @sandeepsingh-jg9zj
    @sandeepsingh-jg9zj ปีที่แล้ว

    Jai ho.

  • @arkmediasolutions8255
    @arkmediasolutions8255 ปีที่แล้ว

    Jai Mata di

  • @deepakdeepraj2713
    @deepakdeepraj2713 ปีที่แล้ว

    ओम् जय माता जिया देवी मां

  • @hemchandrajoshi5066
    @hemchandrajoshi5066 ปีที่แล้ว

    Jai ho chota kailas shiv temple bhimtal nainital uttrakhand

  • @Burash7496
    @Burash7496 ปีที่แล้ว

    खैरागढ़ के कत्यूरी सम्राट प्रीतमदेव (1380-1400) की महारानी जिया थी. उसका नाम प्यौंला या पिंगला भी बताया जाता हैं. कथनानुसार वो धामदेव व ब्रह्मदेव (1400-424) की माँ थी और प्रख्यात लोककथा नायक मालूशाही (1424-1440) की दादी.
    यदि हम रानीबाग के नाम पर जायें तो कभी यहाँ निश्चित रूप से कभी कोई बहुत बड़ा बाग़ रहा होगा. बद्री दत्त पांडे ने कुमाऊँ का इतिहास में कहा है कि कत्यूरी राजा धामदेव व ब्रह्मदेव की माता जियारानी यहाँ निवास करती थी.
    इतिहासकारों के अनुसार
    लिखित इतिहास न होने के कारण इतिहासकारों और अन्वेषकों ने अलग-अलग टुकड़ों को जोड़कर कुछ गाथाएँ तैयार की हैं. फिर भी रिक्त स्थान बहुत हैं. कई लोग जिया को मालवा देश के राजा की पुत्री कहते हैं. मालवा मध्य प्रदेश और पंजाब में दो स्थान हैं. हो सकता है तब मालवा कोई छोटा पहाड़ी राज्य रहा हो जिसकी कन्या जिया हो. जिया को अधिकतर खाती (राजपूत) वंश की बेटी माना जाता है. वे कुमाऊँ के बड़े राजपूत थे.
    इतिहासकारों के अनुसार सातवीं शताब्दी के उत्तराध में उत्तराखंड में कत्यूरी राज्य स्थापित हुआ. राहुल सांकृत्यायन तो ऐसा पहले से कहते हैं. कहा जाता है जब आदि शंकराचार्य जोशीमठ पहुंचे तो उन्होंने मठाधीश से शास्त्रार्थ का अवसर चाहा. उसमें शर्त थी कि जो जीतेगा उसकी बात दूसरे पक्ष को माननी होगी. सात दिन के शास्त्रार्थ के बाद मठाधीश हार गये. शर्त के अनुसार शंकराचार्य जी ने अयोध्या के राजा के अनुज को आमंत्रित किया.उसका राज्याभिषेक किया. यह भी कहा गया है कि कत्यूर काबुल के कछोर वंशी थे. अंग्रेज पावेल प्राइस कत्यूरों को ‘कुनिन्द’ मानता है. कार्तिकेय पर राजधानी होने के कारण कत्यूर कहलाए. कुछ कत्यूरों व शकों को कुषाणों के वंशज मानते हैं. बागेश्वर बैजनाथ को घाटी को भी वो कत्यूर घाटी कहते हैं.
    दन्त कथाओं के आधार पर
    प्रीतमदेव (पृथ्वीपाल, प्रीतमशाही, पिथौराशाही, राजा पिथिर) ने बुढ़ापे में जिया से शादी की. दोनों में अनबन रहती थी. रानी बड़ी आस्तिक, दानी, पुण्यकर्मी थी. जिया गौला (गार्गी) और पुष्या नदियों के संगम पर एक खुबसूरत चौड़े मैदान में रहने लगी. यह स्थान हल्द्वानी और नैनीताल के बीच है. वहीं एक गुफा हैं. उसमें जिया तपस्या करती थी.एक कथा के अनुसार सुतप ब्रह्म ने यहाँ 36 वर्ष तक तपस्या की. तब जाकर उन्हें ब्रह्मा, विष्णु, महेश से मनवांछित आशीर्वाद मिले. गौला फाट पर एक बेल बूटेदार पत्थर है. इसी के नाम पर इस जगह का नाम चित्रशिला पड़ा. यहाँ जिया का जनराज था. लोग इसे जियारानी का घाघरा भी कहते हैं
    उत्तरी भारत में गंगा-जमुना-रामगंगा के दोआबों में तुर्कों का राज स्थापित हो चुका था. उन्हें रुहेले या रोहिल्ले (रूहेलखण्डवाले) भी कहते हैं. रुहेले राज्य विस्तार या लूटपाट के इरादे से पर्वतों की ओर गौला नदी के किनारे-किनारे बढ़े.
    रानी बाग में उन्होंने गौला के नीले-नीले जल में विशालकेशी, विशालाक्षी, स्वर्णवदनी, जिया स्थानमग्न देखी. वे लालायित हुए. जिया ने समर्पण से साफ इंकार कर दिया तब युद्ध हुआ. जिया स्वयं मैदान में लड़ी. तुर्को के छक्के छूट गये और वे जान बचाकर भागे.कुछ गफलत हुई और जिया तुर्कों की रणनीति नहीं समझ सकी. रुहेलों ने एकाएक (कोई कहते हैं रात में) हमला किया. रानी लड़ते-लड़ते शहीद हुई. कहते हैं पत्थर पर जिया का हीरे-मोती जड़ा हुआ लहंगा फैला था. तुर्कों ने उसे उठाना चाहा तो वह पत्थर का हो गया. ये पत्थर आज भी है.प्रसिद्ध वीरांगना जिया रानी के नाम पर जिया रानी का मेला लगता है. रानीबाग नैनीताल जिले में काठगोदाम से पाँच कि.मी. दूर अल्मोड़ा मार्ग पर बसा है. यहाँ मकर संक्रांति के अवसर पर रात्रि में जिया रानी की जागर लगती है. कत्यूरपट्टी के गाँव से वंशानुगत जगरिये, औजी, बाजगी, अग्नि और ढोल-दमुवों के साथ कत्यूरी राजाओं की वंशावली तथा रानीबाग के युद्ध में जिया रानी के अद्भुत शौर्य की गाथा गाते हैं.(‘पुरवासी’ से साभार)

  • @jaichandsinghnegi5077
    @jaichandsinghnegi5077 ปีที่แล้ว

    Etana sahisiyo ke hitihas se bhar ukd ki bhoomi aj es ukd ko bhahu sankhiya meion bas raye hai bhari ke log aur poore ukd ka nash kar rahe aj ke dhuor meion neta aur parshan meion betheye nokarshah bhi bhari logo ko kubh jamin uplath kar te hai aur yaha fhir ho raha duohan horaha hai kiya ukd en logo ke liye banaya tha

  • @deepanshubangari3754
    @deepanshubangari3754 ปีที่แล้ว

    जय हो जिआ रानी