श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 6 श्लोक 30 उच्चारण | Bhagavad Geeta Chapter 6 Verse 30
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- เผยแพร่เมื่อ 30 ก.ย. 2024
- 🌹ॐ श्रीपरमात्मने नमः🌹
अथ षष्ठोऽध्यायः
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥30॥
यः=जो पुरुष,माम्=मुझे,पश्यति=
देखता है,सर्वत्र=सबमें,सर्वम्= सबको,च=और,मयि=मुझमें, पश्यति=देखता है,तस्य=उसके लिए,अहम्=मैं, न प्रणश्यामि= अदृश्य नहीं होता,सः=वह,च= और,मे=मेरे लिए,न प्रणश्यति= अदृश्य नहीं होता।
भावार्थ- जो भक्त सब में मुझे देखता है और मुझ में सबको देखता है,उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिए अदृश्य नहीं होता।
व्याख्या--
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति"-
भगवान् कहते हैं कि अर्जुन! उस योगी को अंतरंग में भगवत् अनुभूति हो गई और उसके बाद वही अनुभूति सर्वत्र होने लगी,एक प्रभु सब में दिखने लगे।यहाँ भगवान् दो भूमिकाओं का वर्णन कर देते हैं- एकान्त आराधना के समय अथवा समाधि के समय उसे सारा अस्तित्व एक परमात्मा में ही दिखता है और समाधि के समापन के पश्चात व्युत्थानावस्था में आते ही उस परमात्मा की अनुभूति उसे सर्वत्र होती है। लोक व्यवहार में जब वह आता है तो सारे संसार में वही परमात्मा सब में विराजमान हैं,यह उसकी अनुभूति बन जाती है। (जानकारी होना एक बात है और अनुभूति होना दूसरी बात है) भगवान् से बिछड़ना हुआ ही नहीं। पूजाघर में बैठे तो भगवान् हैं और बाहर निकले तो भी सर्वत्र भगवान् ही हैं।भगवान् कहते हैं कि इसका बहुत बड़ा फल होता है-
"तस्याहं न् प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति"-
अर्जुन! किसी भी अवस्था में मैं उससे भिन्न नहीं हो सकता और वह मुझे भिन्न नहीं हो सकता। अरे! वह तो मेरे साथ एकाकार हो गया, एकरूप हो गया।अब उसे भगवान् से और भगवान् को उससे किसी भी प्रकार दूर किया ही नहीं जा सकता। उसे परमात्म रस की अनुभूति अंतरबाह्य होने लग जाती है। जिस प्रकार दीपक और प्रकाश एक रूप हैं उसी प्रकार वह संत और भगवान् एक रूप हो जाते हैं।
विशेष-
भगवान् कहते हैं कि जब ध्यान के लिए बैठे हो तब संसार को भूल जाओ,भगवान् में सारे संसार को देखो। साधन के समय संसार का विस्मरण और संपूर्ण संसार का अपने भगवान् में ही दर्शन। कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है, वृत्यन्तर करने से समस्या का समाधान होता है। जब ठाकुरबाड़ी में पूजा की उस समय ठाकुर जी में सारे संसार को देखूॅं और जब ठाकुरबाड़ी से बाहर आऊॅं तो सारे संसार में ठाकुर जी को देखूॅं। यह आराधना और लोक व्यवहार इन दोनों का संतुलन है,समाधि और व्युत्थान दोनों अवस्थाओं का संतुलन है।
भगवान् कहते हैं अर्जुन! जो इस अवस्था तक पहुॅंच गया, इस अनुभूति तक पहुॅंच गया उसके साथ एक बात और हो जाती है....
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🙏Jai shree krishan🙏
Jai Shree krishna Didi
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जय श्री कृष्ण।।
जय श्री कृष्ण।