श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 श्लोक 4 उच्चारण | Bhagavad Geeta Chapter 10 Verse 4

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  • เผยแพร่เมื่อ 30 ก.ย. 2024
  • 🌹ॐ श्रीपरमात्मने नमः 🌹
    अथ दशमोऽध्यायः
    बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोहः क्षमा सत्यं दमः शमः।
    सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च॥4॥
    बुद्धिः=निश्चय करने की शक्ति,ज्ञानम्=यथार्थ ज्ञान,असम्मोहः= असम्मूढता,क्षमा=क्षमा,सत्यम्=सत्य,दमः=इन्द्रियों को वश में करना,शमः=मन का निग्रह,सुखम्=सुख,दुःखम्=दुःख,भवः= उत्पत्ति,अभावः=प्रलय,भयम्=भय, च=और,अभयम्=अभय, एव=तथा,च=और।
    भावार्थ - निश्चय करने की शक्ति, यथार्थ ज्ञान,असम्मूढता,क्षमा, सत्य,इन्द्रियनिग्रह,मन का निग्रह तथा सुख-दुःख,उत्पत्ति और प्रलय।
    व्याख्या -
    चौथे और पाॅंचवें श्लोक में भगवान् ने कुल मिलाकर 20 भाव विभूतियाॅं बतलाई हैं। हमारे मन में कई प्रकार के भाव उमड़ते हैं।
    प्रस्तुत श्लोक में भगवान् ने 13 भाव विभूतियाॅं बतलाई हैं। भगवान् कहते हैं कि इन सब भीतर के भावों को भी मैंने ही निर्माण किया है। इन भावनाओं में मेरी विभूति को जानो।
    "बुद्धि:" - निश्चयात्मिका बुद्धि जिससे ज्ञान प्राप्त होता है। बुद्धि भगवान् ने हरेक को दी है।
    "ज्ञानम्"- बुद्धि का उपयोग करके जो प्राप्त होता है वह ज्ञान है। ज्ञान का सम्पादन करना पड़ता है,ज्ञान कमाना पड़ता है। भगवान् की दृष्टि से ज्ञान यानि 'विवेक'।
    "असम्मोहः"- अज्ञान के छॅंट जाने से एक स्पष्ट प्रकाश की अवस्था प्राप्त होती है,वह है 'असम्मोह'।
    "क्षमा"- क्षमा का एक अर्थ है- "सहनशीलता" और दूसरा अर्थ है कि क्षम होते हुए भी किसी के द्वारा अपराध हो गया हो तो उसे माफ कर देना।
    "सत्य"- सत्य भाषण करना।
    "दमः"- इन्द्रियों को विषयों से हटाकर अपने वश में करना।
    "शमः"- मन पर नियंत्रण रखना। मन को सांसारिक भोगों के चिंतन से हटाने का नाम 'शम' है। मन का संयम,मन विषयों की ओर जाता ही नहीं।
    "सुखम्"- अनुकूल लगने वाली संवेदना,जो हमें अनुकूल लगता है उसे हम 'सुख' बोलते हैं।
    "दुःखम्"- प्रतिकूल लगने वाली संवेदना, प्रतिकूल स्थिति आने पर जो अप्रसन्नता हमें होती है,उसका नाम 'दुःख' है।
    "भवः अभावः"- सृजन और विलय।
    भगवान् कहते हैं कि उत्पत्ति भी मेरे कारण है और प्रलय भी मेरे कारण है। उत्पन्न होने का नाम 'भव' है और सबके लीन होने का नाम 'अभाव' है।
    "भयं चाभयमेव च"-शास्त्र और लोक मर्यादा के विरुद्ध कार्य होने से अंतःकरण में जो एक आशंका होती है उसको 'भय' कहते हैं और शास्त्र के विरुद्ध आचरण नहीं करेंगे तो भय नहीं रहेगा, किसी से डरना नहीं पड़ेगा 'अभय' रहेगा।
    विशेष - इस श्लोक का क्रियापद अगले श्लोक में होने से समापन अगले श्लोक में होगा। भव और अभाव कर्मजभाव हैं तथा बाकी सब अंतःकरणज भाव हैं। ये सभी भाव भगवान् की विभूति हैं।
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ความคิดเห็น • 2

  • @satishkgoyal
    @satishkgoyal 3 วันที่ผ่านมา

    जय श्री कृष्ण।

  • @bankatlslvaishnav3904
    @bankatlslvaishnav3904 6 วันที่ผ่านมา

    जय श्री कृष्ण।।