प्रभावी साक्षात्कार . अंजुम साहित्यकारों के लिए सहज वातावरण बनाते हैं । अरुण कमल दोस्ताना अंदाज़ में कटु यथार्थ को पाठक तक पहुँचाने का गुर जानते हैं। बहुत अच्छा लगा यह साक्षात्कार !सहज, जीवंत और ज़रूरी ! बहुत-बहुत बधाइयाँ दोनों को!
कितना आभार कहें अंजुम जी! लखनऊ में आदरणीय कमल साहब को सुनने का अवसर मिला था! लाजवाब रचनाकारों से उनके अनुभव सुनकर अक्सर विस्मित रह जाती हूॅं। "थोड़े से लोग बस हों, ज़िन्दगी चल जाती है! " सच कहा कमल साहब ने! आप दोनों को सादर अभिवादन!🎉🎉
अरुण जी ने सही कहा है कि हमारा समाज साहित्य को समर्थन नहीं देता। पूर्णरूप से साहित्य पर निर्भर रहकर भारतीय समाज में अपना दैनिक जीवन चला पाना हमेशा ही असंभव रहा है।
अरुण कमल जी ने बहुत सधे हुए अंदाज़ में बहुत hi विवेकपूर्ण बातें कही है। कविता ko बंधी हुई शैली में लिखी जाये तो अच्छा है। कविता अगर अखबार की रिपोर्ट बन जाए तो यह ठीक नहीं है। मैं भी एक कवि होने के नाते कवियों को पर्याप्त प्रोत्साहन और धनराशि दिए जाने का समर्थन करता हूँ। आखिरकार कवि ही वह इंसान है जो मानवता को बेहतर बनाने का प्रयास करता है ।वह जीवन के अनुभव संसार से एक सघन अनुसंधान के बाद सृजन कर पाता है।
अपना क्या है इस जीवन में सब तो लिया उधार सारा लोहा उन लोगों का अपनी केवल धार। नए युग के नागार्जुन के साथ संगत की पंगत में शामिल करने के लिए धन्यवाद । अंजुम आप लेखक या कवि को अपनी पकड़ से बाहर नही जाने देते।क्रॉस क्वेश्चन जरूर करते है😊
कविता के और लेखन से संबंधित बहुत अच्छा वक्तव्य दिया है। आज केवल पुस्तक प्रकाशन वालों को ही लेखक कवि माना जाता है परन्तु पुस्तक प्रकाशन की कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए ब्लॉग लिखने लगे यूट्यूब पर कविता अपलोड करते हैं उन्हें भी ध्यान में रखना चाहिए उचित होगा धन्यवाद।
वाह। सुन्दर बातचीत। यहाँ सहजता, विनम्रता, ठहराव, गम्भीरता... एक साथ कितना कुछ है। प्रेरक। कवि अग्रज को शुभकामनाएँ। प्रिय अंजुम जी, आपका और आपकी टीम का आभार। - कमल जीत चौधरी ( जम्मू-कश्मीर)
उतारे कोई डर का बोझ सर से, मैं कोशिश कर चुका अपने हुनर से! ख़ुशी के पल भी सब कुछ जानते हैं, गुज़रते तक नहीं हैं मेरे घर से! मेरे ही दोस्त से शादी भी हाए, ये दोहरी चोट है दोहरे असर से! कहाँ जाए निकाला जो गया हो, मुहब्बत की गली से यार के घर से! मेरे अपने भी मुझसे कम नहीं हैं, नमक भी हाथ में दुख भी नज़र से! #स्वरचित
हिंदी कविता की किताबें कम क्यों बिकती हैं यह समझने के लिए हिन्दी के कवि को आत्म निरीक्षण भी करना होगा। समाज को दोष देने से काम नहीं चलेगा। आज हिन्दी का पाठक कविता का आनंद लेने के लिए निदा फ़ाज़ली, बशीर बद्र, ख़ुमार बाराबंकवी जैसे उर्दू के कवियों को पढ़ना/ सुनना अधिक पसंद करता है। दरअसल हिंदी कविता में छन्द मुक्त कविता के नाम पर गद्य की पंक्तियों को आड़ा तिरछा तोड़ कर लिख देना ही कविता मान लिया गया है। आज की हिंदी कविता से छन्द ही नहीं, लय, प्रवाह, ध्वन्यात्मकता सभी कुछ ग़ायब है। एक आम पाठक के लिये आज की हिंदी कविता में काव्यात्मकता का कोई आनंद नहीं है। फिर एक आम पाठक से समर्थन की उम्मीद भी क्यों?
मजे की बात: दिल्ली विश्वविद्यालय के एक गर्ल्स कॉलेज में स्त्री विमर्श पढ़ाने के क्रम में ’संबंध’ कविता का संदर्भ देने को महिला शिक्षिकाओं ने आपत्तिजनक करार दिया
संगत हिंदवी का एक सराहनीय प्रयास है। अंजुम जी की प्रस्तुति इसे और बेहतरीन बनाती है।
प्रभावी साक्षात्कार . अंजुम साहित्यकारों के लिए सहज वातावरण बनाते हैं । अरुण कमल दोस्ताना अंदाज़ में कटु यथार्थ को पाठक तक पहुँचाने का गुर जानते हैं।
बहुत अच्छा लगा यह साक्षात्कार !सहज, जीवंत और ज़रूरी !
बहुत-बहुत बधाइयाँ दोनों को!
बहुत ही सुन्दर। बहुत कुछ जाना आज अरूण कमल जी आपके बारे में। जो मेरे शोध विषय में बहुत ही मूल्यवान रहा। थैंक्यू। अंजुम शर्मा जी
बहुत मन लगा अरुण कमल जी की बातचीत में।रात के एक बजे गए।घड़ी को धकेल कर सुना गुना।अंजुम का कमाल है संगत।
😮
प्रेम सबसे करो पर विश्वास थोड़े से लोगों पर करो.......कितनी बढ़िया बात
अंजुम जी आप को बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत ही अद्भुत अनुभव है अंजुम जी बहुत अच्छा लगा सुनकर
अंजुम शर्मा भी संबंध कविता को सुनकर भावना से भर गए। कितना कठिन होता है साक्षात्कार लेना।
जिसके पास हम बार-बार जाएं यही प्रेम है..... सही कहा है अरूण कमल जी ने अभिनंदन 🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉
कितना आभार कहें अंजुम जी! लखनऊ में आदरणीय कमल साहब को सुनने का अवसर मिला था! लाजवाब रचनाकारों से उनके अनुभव सुनकर अक्सर विस्मित रह जाती हूॅं। "थोड़े से लोग बस हों, ज़िन्दगी चल जाती है! " सच कहा कमल साहब ने! आप दोनों को सादर अभिवादन!🎉🎉
अरुण जी ने सही कहा है कि हमारा समाज साहित्य को समर्थन नहीं देता। पूर्णरूप से साहित्य पर निर्भर रहकर भारतीय समाज में अपना दैनिक जीवन चला पाना हमेशा ही असंभव रहा है।
कमाल
कमाल ❤
अद्भुत बातचीत रही।
अरुण कमल जी और अंजुम शर्मा दोनों का अभिनन्दन ❤❤
अंजुम आपके द्वारा लिया गया साक्षात्कार बहुत ही उत्तम होता है।
अरुण कमल जी ने बहुत सधे हुए अंदाज़ में बहुत hi विवेकपूर्ण बातें कही है। कविता ko बंधी हुई शैली में लिखी जाये तो अच्छा है। कविता अगर अखबार की रिपोर्ट बन जाए तो यह ठीक नहीं है। मैं भी एक कवि होने के नाते कवियों को पर्याप्त प्रोत्साहन और धनराशि दिए जाने का समर्थन करता हूँ। आखिरकार कवि ही वह इंसान है जो मानवता को बेहतर बनाने का प्रयास करता है ।वह जीवन के अनुभव संसार से एक सघन अनुसंधान के बाद सृजन कर पाता है।
मी ऐकतेय या महान हिंदी साहित्यिकांना.अंजुम शर्मा उत्तम मुलाखतकार आहेत.
अपना क्या है इस जीवन में
सब तो लिया उधार
सारा लोहा उन लोगों का
अपनी केवल धार।
नए युग के नागार्जुन के साथ संगत की पंगत में शामिल करने के लिए धन्यवाद ।
अंजुम आप लेखक या कवि को अपनी पकड़ से बाहर नही जाने देते।क्रॉस क्वेश्चन जरूर करते है😊
बहुत सुन्दर साक्षात्कार ❤
बहुत शानदार बातचीत।
Great personality...
माननीय श्री अरूण कमल जी का स्वागत है अभिनंदन 🎉🎉🎉🎉🎉
बहुत अच्छा साक्षात्कार सुनने को मिला । धन्यवाद।
यह बहुत उपयोगी साक्षात्कार है। इससे कवियों और पाठकों को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
कविता के और लेखन से संबंधित बहुत अच्छा वक्तव्य दिया है।
आज केवल पुस्तक प्रकाशन वालों को ही लेखक कवि माना जाता है परन्तु पुस्तक प्रकाशन की कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए ब्लॉग लिखने लगे यूट्यूब पर कविता अपलोड करते हैं उन्हें भी ध्यान में रखना चाहिए उचित होगा धन्यवाद।
वाह। सुन्दर बातचीत। यहाँ सहजता, विनम्रता, ठहराव, गम्भीरता... एक साथ कितना कुछ है। प्रेरक। कवि अग्रज को शुभकामनाएँ।
प्रिय अंजुम जी, आपका और आपकी टीम का आभार।
- कमल जीत चौधरी
( जम्मू-कश्मीर)
बहुत सुन्दर 🎉🎉
बहुत प्यारे, संजीदा और अल्हड़ हैं अरुण जी। उन्हें बहुत इश्क़, मिलने का ख़्वाहिश-मंद हूॅं। शुक्रिया अंजुम!✨
शानदार अनुभव और बातचीत। बहुत सीखते हैं अरुण जी से। अपनी पीढी के नायाब कवि हैं। सबसे बड़ा कवि कहूँ तो शायद गलत नहीं है।
अरुण सर की कविता सहज ही प्रभावित करती हैं
क्या कमाल संयोग है आज ही विद्यालय में जयंत नार्लिकार जी की लिखी कहानी पढाई गयी और उनका ज़िक्र यहाँ भी आ गया
कई जगह अरुण कमल जी को सुनते हुए हंसी और गंभीर हुई। थोड़ी और समृद्ध हुई।
बहुत सुंदर था। शानदार बातचीत।🎉
कोई बेहतरीन कविता सुनने जैसा साक्षात्कार
दुनिया को बदलने वाले कवि के हौसले को हजारों हजार सलाम
बहुत सुन्दर साक्षात्कार
उम्दा साक्षात्कार।
बहुत अच्छा साक्षात्कार अंजुम जी!! आंनद आया। अत्यंत सार्थक वार्ता।
सराहनीय
What an anchoring and a polite conversation till last❤❤❤
बहुत ही शानदार साक्षात्कार।
बहुत अच्छी रही बातचीत ❤
बहुत ईमानदार इंटरविव लगा.. आभार!!
❤❤❤ gajab... thanku hindvi thanku Anjum jii 👍👍🙏
बहुत सुन्दर
बेहतरीन साक्षात्कार .
बेहद सुंदर साक्षात्कार
बढ़िया साक्षात्कार❤❤
उतारे कोई डर का बोझ सर से,
मैं कोशिश कर चुका अपने हुनर से!
ख़ुशी के पल भी सब कुछ जानते हैं,
गुज़रते तक नहीं हैं मेरे घर से!
मेरे ही दोस्त से शादी भी हाए,
ये दोहरी चोट है दोहरे असर से!
कहाँ जाए निकाला जो गया हो,
मुहब्बत की गली से यार के घर से!
मेरे अपने भी मुझसे कम नहीं हैं,
नमक भी हाथ में दुख भी नज़र से!
#स्वरचित
बहुत सुंदर।
शानदार है यह साक्षात्कार
बढ़िया जानकारी 🌼
हिंदी कविता की किताबें कम क्यों बिकती हैं यह समझने के लिए हिन्दी के कवि को आत्म निरीक्षण भी करना होगा। समाज को दोष देने से काम नहीं चलेगा। आज हिन्दी का पाठक कविता का आनंद लेने के लिए निदा फ़ाज़ली, बशीर बद्र, ख़ुमार बाराबंकवी जैसे उर्दू के कवियों को पढ़ना/ सुनना अधिक पसंद करता है। दरअसल हिंदी कविता में छन्द मुक्त कविता के नाम पर गद्य की पंक्तियों को आड़ा तिरछा तोड़ कर लिख देना ही कविता मान लिया गया है। आज की हिंदी कविता से छन्द ही नहीं, लय, प्रवाह, ध्वन्यात्मकता सभी कुछ ग़ायब है। एक आम पाठक के लिये आज की हिंदी कविता में काव्यात्मकता का कोई आनंद नहीं है। फिर एक आम पाठक से समर्थन की उम्मीद भी क्यों?
कितनी सधी हुई बात-चीत......किसने कहा कि ज्ञान प्रतिक्रियावादी होता है।
Bahut nayab
Charcha
❤
मजे की बात:
दिल्ली विश्वविद्यालय के एक गर्ल्स कॉलेज में स्त्री विमर्श पढ़ाने के क्रम में ’संबंध’ कविता का संदर्भ देने को महिला शिक्षिकाओं ने आपत्तिजनक करार दिया
30:09--कविता को कैसे पढ़ा जाना चाहिए
सोवियत संघ जब १९८५ में ग ए थे तो मेरे लिए कंघी ले आए थे।
Sir aj dayalu kaun hota h
Kay vakai m ye itna rare hi gaya h ?
अंजुम शर्मा भी संबंध कविता को सुनकर भावना से भर गए। कितना कठिन होता है साक्षात्कार लेना।