Swar Sanskar Mehfil (presentation by disciples of guruji)

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  • เผยแพร่เมื่อ 6 ก.ย. 2024
  • GAAYAN - HARSHALI NAIK
    MEENAKSHI NAGPAL
    SANJEEVNI PHALKE
    TABLA SANGAT- PAWAN MAHOR
    HAEMONIUM SANGAT- VARSHA MITTRA
    RAAG - MADHUWANTI ,BHUPALI , CHATARANG
    हिन्दुस्तनी राग मधुवंती, थाट: तोडी इस राग में 'गा'कोमल तथा 'म' तीव्र है। चलन मुल्तानी, भीमपलासी की तरह है। जाति : औडब- सम्पूर्ण आरोह : नि (मंद्र) सा गा म प नि सां। अवरोह : सा नि धा प म ग रे सा। वादी -संवादी : प -सा गायन समय : दिन का तीसरा प्रहर प्रकृति : कोमल रस : विरह जनित करुण पकड़ : ग (कोमल) म (तीव्र) प धा म प। आलाप :नि (मंद्र) सा गा म प, गा मा प ग नि धा प, म ग रे सा।
    ग म प ग म प नि धा प, प नि सां। सां नि धा प, नि धा प मा गा मा गा रे सा। गा मा प नि सां गां रें सां नि धा प म प गा म ग रे सा।
    Madhuvanti is a raga used in Indian classical music. It is a Hindustani music raga, which is reported to have been borrowed into Carnatic music,[1][2] and is structurally similar to Multani.
    This Raag is based on Todi Thaat (Mode). It is a romantic raga based on the foundation, eternity and colors of love. Madhu literally means honey. It is a very sweet raga with a very simple philosophy of love and romance.
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    Madhuvanti
    Thaat Todi
    Type Audava-sampurna
    Time of day Late evening
    Arohana S G₂ M₂ P N₃ Ṡ
    Avarohana Ṡ N₃ D₂ P M₂ G₂ R₂ S
    Synonym Ambika
    Equivalent Dharmavati
    Similar
    Multani
    Bhimpalasi
    Patdip
    राग भूपाली
    स्वर लिपि
    स्वर मध्यम, निषाद वर्ज्य। शेष शुद्ध स्वर।
    जाति औढव - औढव
    थाट कल्याण
    वादी/संवादी गंधार/धैवत
    समय रात्रि का प्रथम प्रहर
    विश्रांति स्थान सा; रे; ग; प; - प; ग; रे; सा;
    मुख्य अंग ग रे ग; प ग; ध प; सा' ध प ग; प ग रे ग; ग रे सा;
    आरोह-अवरोह सा रे ग प ध सा' - सा' ध प ग रे सा रे ,ध सा;
    विशेष: यह राग भूप के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह पूर्वांग प्रधान राग है। इसका विस्तार तथा चलन अधिकतर मध्य सप्तक के पूर्वांग व मन्द्र सप्तक में किया जाता है। यह चंद्र प्रकाश के समान शांत स्निग्ध वातावरण पैदा करने वाला मधुर राग है। जिसका प्रभाव वातावरण में बहुत ही जल्दी घुल जाता है। रात्रि के रागों में राग भूपाली सौम्य है। शांत रस प्रधान होने के कारण इसके गायन से वातावरण गंभीर व उदात्त बन जाता है। राग भूपाली कल्याण थाट का राग है।
    इस राग को गाते समय स्वरों पर न्यास का विशेष ध्यान देना चाहिए। यदि प ध प ; प ध ग प इस तरह से धैवत पर अधिक जोर दिया गया तो राग का स्वरूप बदल जाता है और यह राग देशकार हो जाता है। इसी तरह षडज से धैवत और पंचम से गंधार मींड में लेते समय यदि क्रमशः निषाद और मध्यम स्वरों का स्पर्श होने या कण लगने से भी भूपाली का स्वरूप बदल जाता है और यह राग शुद्ध कल्याण दिखने लगता है। अतः भूपाली को इन रागों से बचाते हुए गाना चाहिए। राग भूपाली में गंधार-धैवत संगती का एक विशेष महत्त्व है और रिषभ न्यास का स्वर है।
    इसे कर्नाटक संगीत में राग मोहन कहा जाता है। यह एक पूर्वांग प्रधान राग है और इसे मध्य और मन्द्र सप्तकों में गाया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग भूपाली का रूप दर्शाती हैं -
    सा ; सा ,ध सा रे ग ; रे ग सा रे ,ध सा ; सा रे ग प ; प ग रे ग ; रे प ग ; ग सा रे ; रे ,ध सा ; ग रे ग ; प ग ; प ध प प ; ध प ; ग प रे ग रे सा ,ध सा ; सा रे ग रे ग प ध सा' ; प ध प सा' ; सा' सा' ; रे' सा' ध सा' ; ध सा' रे' ग' रे' सा' ; ध सा' ध प ग रे ग ; प रे ग रे सा ; रे ,ध सा ;
    Bhoopali (राग भूपाली)
    Bhoopali, also known as Bhoop, Bhopali, or Bhupali, is a Hindustani classical raga. Bhupālī, is a raag in Kalyan Thaat. It is a pentatonic scale. Most of the songs in this raga are based on Bhakti rasa. Since it uses 5 notes, belongs to the "Audav jaati" of ragas. The same raga in Carnatic music is known as Mohanam. Wikipedia
    Pakad: S R G R S D1 S R G; S R G R S D1 S R G P G D P G R S; G R P G G R S R D1 S; G R S D1 S R G R P G D P G R S
    Vadi: G
    Thaat: Kalyan
    Equivalent: Mohanam; Major pentatonic scale
    Arohana: S R G P D S'
    Avarohana: S' D P G R S
    Samavadi: D
    Chaturang is a type of composition in Hindustani classical music. The word basically means 4 colors, and it incorporates four different styles
    Bol - poetry set to the selected raaga
    Sargam - singing note passages using note names
    Tarana - nonsense syllables set to a brisk laya
    Trivat / tabla bols - tabla or pakhavaj bols set to tune
    Chaturang is usually sung at a fast pace. It is predominantly a Gwalior gharana style. It can be sung in both khayal raagas as well as thumri-ang raagas

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