हरिश्चन्द्र । भारतेंदु हरिश्चंद्र । पार्ट-1 Harishchandra । Bhartendu Harishchandra । Part-1

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  • เผยแพร่เมื่อ 29 ส.ค. 2024
  • हरिश्चन्द्र । भारतेंदु हरिश्चंद्र । पार्ट-1 Harishchandra । Bhartendu Harishchandra । Part-1
    कविवचनसुधा पत्रिका के सम्पादक
    भारतेन्दु के नाटक
    हरिश्चन्द्र मैगजीन
    हरिश्चन्द्र चंद्रिका
    बालाबोधिनी
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    अयोगवाह
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    ABOUT THIS VIDEO-
    भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म 9 सितम्बर, 1850 को काशी में हुआ। पिता गोपालचंद्र 'गिरधरदास' Gopalchandra giridhardas थे। nahush natak ke lekhak.
    राजा शिवप्रसाद 'सितारेहिन्द' Raja Shivaprasad sitare hind से भारतेन्दु ने अंग्रेजी सीखी। लै ब्योढ़ा ठाढ़े भए श्री अनिरुद्ध सुजान।
    बाणासुर की सेन को हनन लगे भगवान॥
    आचार्य रामचंद्र शुक्ल Acharaya ramchandra shukl -"भारतेन्दु अपनी सर्वतोमुखी प्रतिभा के बल से एक ओर तो पद्माकर, द्विजदेव की परम्परा में दिखाई पड़ते थे, तो दूसरी ओर बंग देश के माइकेल और हेमचन्द्र की श्रेणी में। प्राचीन और नवीन का सुन्दर सामंजस्य भारतेन्दु की कला का विशेष माधुर्य है।"
    1880 में 'भारतेंदु' (भारत का चंद्रमा) की उपाधि
    भारतेंदु हरिश्चंद्र 'रसा' (उपनाम) से ऊर्दू में लिखते थे।
    👉सम्पादित पत्र-पत्रिकाएँ:-
    1. 'कविवचनसुधा' पत्र 15 अगस्त 1867 ई. काशी (मासिक, पाक्षिक, साप्ताहिक)
    2. हरिश्चन्द्र मैगजीन /हरिश्चन्द्र चंद्रिका 15 अक्टूबर, 1873 ई. काशी ।
    3. 'बालाबोधिनी' पत्रिका काशी 1874 ई।
    👉संस्थाएं-
    1. कवितावर्धिनी सभा 1870 ई. kavitavardhinisabha
    2.तदीय समाज 1873 ई. tadiya samaj
    3. पेन्नी रीडिंग क्लब 1873 ई. penny reading club
    4. काशी नेशनल थियेटर
    👉मौलिक नाटक
    वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति (1873ई., प्रहसन) vaidiki hinsa hinsa na bhavati
    सत्य हरिश्चन्द्र (1875,नाटक) satya harishchandra
    श्री चंद्रावली (1876, नाटिका)
    विषस्य विषमौषधम् (1876, भाण) vishasya vishmaushadham
    भारत दुर्दशा (1880, नाट्य रासक) bharat durdasha
    नीलदेवी (1881, ऐतिहासिक गीति रूपक) neel devi
    अंधेर नगरी (1881, प्रहसन) andher nagari
    प्रेमजोगिनी (1975, नाटिका)
    सती प्रताप (1883) sati pratap
    अनूदित नाट्य रचनाएँ
    विद्यासुन्दर (1868,नाटक) vidyasundar
    पाखण्ड विखम्बन
    धनंजय विजय (1873)
    कर्पूर मंजरी (1875)
    भारत जननी bharat janani
    मुद्राराक्षस mudrarakshas
    दुर्लभ बंधु (1880, शेक्सपियर के ‘मर्चेंट ऑफ वेनिस’ का अनुवाद)
    निबंध :-
    नाटक
    दिल्ली दरबार दर्पण dilli darbar darpan
    कालचक्र (जर्नल) kalchakra
    लेवी प्राण लेवी Levi pran levi
    भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? bharatvarshonnati kaise ho sakti hai
    कश्मीर कुसुम
    संगीत सार
    हिंदी भाषा
    स्वर्ग में विचार सभा का अधिवेशन swarga me vichar sabha ka adhiveshan
    भ्रूण हत्या
    रामायण का समय
    काशी
    मणिकर्णिका
    कश्मीर कुसुम
    बादशाह दर्पण
    उदयपुरोदय
    संगीत सार
    तदीयसर्वस्व
    वैष्णवता और भारतवर्ष
    सूर्योदय
    ईश्वर बड़ा विलक्षण है
    बसंत
    ग्रीष्म ऋतु
    वर्षा काल
    बद्रीनाथ की यात्रा
    काव्यकृतियां:-
    प्रेम-तरंग prem tarang
    भक्तसर्वस्व (1870)
    प्रेममालिका (1871) prem malika
    कार्तिक स्नान
    वैशाख महात्म्य
    प्रेम सरोवर prem sarovar
    प्रेमाश्रुवर्षण
    जैन कुतूहल
    प्रेम सतसई श्रृंगार
    प्रेम माधुरी (1875)
    prem madhuri
    प्रेम-तरंग (1877)
    उत्तरार्द्ध भक्तमाल (1876-77)
    प्रेम-प्रलाप (1877)
    होली (1879)
    मधु मुकुल (1881)
    राग-संग्रह (1880)
    वर्षा-विनोद (1880)
    विनय प्रेम पचासा (1881)
    फूलों का गुच्छा- खड़ीबोली काव्य (1882)
    fulon ka guchchha
    प्रेम फुलवारी (1883)
    कृष्णचरित्र (1883)
    प्रातः स्मरण
    उरेहना
    तन्मय लीला
    दानलीला
    रानी छद्म लीला
    संस्कृत लावनी
    बसंत
    मुंह दिखावनी
    उर्दू का स्यापा
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    प्रबोधिनी
    नये ज़माने की मुकरी
    naye jamane ki mukari
    सुमनांजलि
    बन्दर सभा (हास्य व्यंग्य)
    bandar sabha
    बकरी विलाप (हास्य व्यंग्य)
    bakari vilap
    विजय वल्लरी
    विजयिनी विजय वैजयंती
    जातीय संगीत 1884
    रिपुनाष्टक
    कहानी:-
    अद्भुत अपूर्व स्वप्न
    adbhut apurv swapna
    यात्रा वृत्तान्त:-
    सरयूपार की यात्रा
    saryupar ki yatra
    लखनऊ
    आत्मकथा:-
    एक कहानी- कुछ आपबीती, कुछ जगबीती
    उपन्यास:-
    पूर्णप्रकाश
    चन्द्रप्रभा
    भारतेन्दु मंडल
    तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये ।
    झुके कूल सों जल परसन हित मनहूँ सुहाये॥
    आधुनिक हिंदी का जनक
    भारतेंदु आधुनिक खड़ी बोली गद्य के उन्नायक
    निज भाषा उन्नति लहै सब उन्नति को मूल।
    बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को शूल॥
    उन्होने सन् १८८४ में बलिया के दादरी मेले में 'भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है' भाषण दिया था।
    आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत
    हिंदी साहित्य के पितामह
    युग चारण
    हरिश्चन्द्र कॉलेज।
    तीन अप्रैल 1868 की शाम को शीतला प्रसाद त्रिपाठी कृत हिंदी नाटक जानकी मंगल का मंचन हुआ। तीन अप्रैल को हिंदी रंगमंच दिवस घोषित किया गया।
    भारतेंदु की 1885 में मृत्यु।
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