वेदों का प्रचार प्रसार किया/ ऋषि गीत/ रचनाकार हितेंद्र आर्य जी/Prabhu Stuti-Kirti Khurana/ 291

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  • เผยแพร่เมื่อ 9 ก.พ. 2024
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    धन्य है तुझको ऐ ऋषि..
    तर्ज: यह देश है वीर जवानों का
    वेदों का प्रचार प्रसार किया;
    अनगिन हम पर उपकार किया।
    उस ऋषि को शीश झुकाते है;
    कुछ सुंदर वचन सुनाते है।
    निर्बल की रक्षा जो करता;
    सद्गुण से जीवन को भरता।
    वही मानव वीर कहाते हैं;
    अपना सौभाग्य जगाते है।
    अन्याय के सम्मुख मत झुकना;
    परमार्थ राह पर मत रुकना;
    वेदों की तरफ लौटाते हैं;
    शुभकर्म से प्रीति बढ़ाते हैं।
    धृति क्षमा धर्म के लक्षण दस;
    कर पालन विषयों में ना फँस।
    जो योग अष्टांग अपनाते हैं;
    पूरी आयु को पाते हैं।
    मन को स्वाध्याय में नित्य लगा;
    भक्ति विवेक की लौ को जगा।
    जो संध्या करते कराते हैं;
    संस्कार से खुद को सजाते हैं।
    त्यागो जो भी है वेद विरूद्ध;
    कर के बुद्धि व मन को शुद्ध।
    जो जो प्रभु ओ३म को गाते हैं;
    आनंद धाम को पाते हैं।
    होवें स्वराज्य यह करो जतन,
    'हित' चाहो राष्ट्र का सदा प्रथम।
    आजादी यज्ञ रचाते हैं;
    लाखो आहूति बन जाते हैं।
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