Varanasi Darshan l Ep 01 l Banaras Darshan l Ganga Aarti l Dasasmegh Ghat l Kashi Darshan

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  • เผยแพร่เมื่อ 16 ต.ค. 2024
  • वाराणसी (Varanasi), जिसे काशी (Kashi) और बनारस (Benaras) भी कहा जाता है, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा नदी के तट पर स्थित एक प्राचीन नगर है। हिंदू धर्म में यह एक अतयन्त महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, और बौद्ध व जैन धर्मों का भी एक तीर्थ है। हिन्दू मान्यता में इसे "अविमुक्त क्षेत्र" कहा जाता है।
    वाराणसी नाम का उद्गम संभवतः यहां की दो स्थानीय नदियों वरुणा नदी एवं असि नदी के नाम से मिलकर बना है। ये नदियाँ गंगा नदी में क्रमशः उत्तर एवं दक्षिण से आकर मिलती हैं।नाम का एक अन्य विचार वरुणा नदी के नाम से ही आता है जिसे संभवतः प्राचीन काल में वरणासि ही कहा जाता होगा और इसी से शहर को नाम मिला।
    ऋग्वेद में शहर को काशी या कासी नाम से बुलाया गया है। इसे प्रकाशित शब्द से लिया गया है, जिसका अभिप्राय शहर के ऐतिहासिक स्तर से है, क्योंकि ये शहर सदा से ज्ञान, शिक्षा एवं संस्कृति का केन्द्र रहा है।
    वाराणसी या काशी को हिन्दू धर्म में पवित्रतम नगर बताया गया है। यहां प्रतिवर्ष १० लाख से अधिक तीर्थ यात्री आते हैं।[61] यहां का प्रमुख आकर्षण है काशी विश्वनाथ मंदिर, जिसमें भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में से प्रमुख शिवलिंग यहां स्थापित है।[झ][62][63]
    हिन्दू मान्यता अनुसार गंगा नदी सबके पाप मार्जन करती है और काशी में मृत्यु सौभाग्य से ही मिलती है और यदि मिल जाये तो आत्मा पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो कर मोक्ष पाती है। इक्यावन शक्तिपीठ में से एक विशालाक्षी मंदिर यहां स्थित है, जहां भगवती सती की कान की मणिकर्णिका गिरी थी। वह स्थान मणिकर्णिका घाट के निकट स्थित है। हिन्दू धर्म में शाक्त मत के लोग देवी गंगा को भी शक्ति का ही अवतार मानते हैं। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म पर अपनी टीका यहीं आकर लिखी थी, जिसके परिणामस्वरूप हिन्दू पुनर्जागरण हुआ।
    वाराणसी बौद्ध धर्म के पवित्रतम स्थलों में से एक है और गौतम बुद्ध से संबंधित चार तीर्थ स्थलों में से एक है। शेष तीन कुशीनगर, बोध गया और लुंबिनी हैं। वाराणसी के मुख्य शहर से हटकर ही सारनाथ है, जहां भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन दिया था। इसमें उन्होंने बौद्ध धर्म के मूलभूत सिद्दांतों का वर्णन किया था। अशोक-पूर्व स्तूपों में से कुछ ही शेष हैं, जिनमें से एक धामेक स्तूप यहीं अब भी खड़ा है, हालांकि अब उसके मात्र आधारशिला के अवशेष ही शेष हैं। इसके अलावा यहां चौखंडी स्तूप भी स्थित है, जहां बुद्ध अपने प्रथम शिष्यों से (लगभग ५वीं शताब्दी ई.पू या उससे भी पहले) मिले थे। वहां एक अष्टभुजी मीनार बनवायी गई थी।
    वाराणसी हिन्दुओं एवं बौद्धों के अलावा जैन धर्म के अवलंबियों के लिये भी पवित तीर्थ है। इसे २३वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ का जन्मस्थान माना जाता है।[64] वाराणसी पर इस्लाम संस्कृति ने भी अपना प्रभाव डाला है। हिन्दू-मुस्लिम समुदायों में तनाव की स्थिति कुछ हद तक बहुत समय से बनी हुई है।
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