संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 141 से 145, ramcharitmanas। पं. राहुल पाण्डेय

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  • เผยแพร่เมื่อ 18 มิ.ย. 2024
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    संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 141 से 145, ramcharitmanas। पं. राहुल पाण्डेय
    अपर हेतु सुनु सैलकुमारी। कहउँ बिचित्र कथा बिस्तारी॥
    जेहि कारन अज अगुन अरूपा। ब्रह्म भयउ कोसलपुर भूपा॥
    जो प्रभु बिपिन फिरत तुम्ह देखा। बंधु समेत धरें मुनिबेषा॥
    जासु चरित अवलोकि भवानी। सती सरीर रहिहु बौरानी॥
    अजहुँ न छाया मिटति तुम्हारी। तासु चरित सुनु भ्रम रुज हारी॥
    लीला कीन्हि जो तेहिं अवतारा। सो सब कहिहउँ मति अनुसारा॥
    भरद्वाज सुनि संकर बानी। सकुचि सप्रेम उमा मुसकानी॥
    लगे बहुरि बरने बृषकेतू। सो अवतार भयउ जेहि हेतू॥
    दोहा- सो मैं तुम्ह सन कहउँ सबु सुनु मुनीस मन लाई॥
    राम कथा कलि मल हरनि मंगल करनि सुहाइ॥१४१॥
    स्वायंभू मनु अरु सतरूपा। जिन्ह तें भै नरसृष्टि अनूपा॥
    दंपति धरम आचरन नीका। अजहुँ गाव श्रुति जिन्ह कै लीका॥
    नृप उत्तानपाद सुत तासू। ध्रुव हरि भगत भयउ सुत जासू॥
    लघु सुत नाम प्रिय्रब्रत ताही। बेद पुरान प्रसंसहि जाही॥
    देवहूति पुनि तासु कुमारी। जो मुनि कर्दम कै प्रिय नारी॥
    आदिदेव प्रभु दीनदयाला। जठर धरेउ जेहिं कपिल कृपाला॥
    सांख्य सास्त्र जिन्ह प्रगट बखाना। तत्व बिचार निपुन भगवाना॥
    तेहिं मनु राज कीन्ह बहु काला। प्रभु आयसु सब बिधि प्रतिपाला॥
    सोरठा- होइ न बिषय बिराग भवन बसत भा चौथपन।
    हृदयँ बहुत दुख लाग जनम गयउ हरिभगति बिनु॥१४२॥
    बरबस राज सुतहि तब दीन्हा। नारि समेत गवन बन कीन्हा॥
    तीरथ बर नैमिष बिख्याता। अति पुनीत साधक सिधि दाता॥
    बसहिं तहाँ मुनि सिद्ध समाजा। तहँ हियँ हरषि चलेउ मनु राजा॥
    पंथ जात सोहहिं मतिधीरा। ग्यान भगति जनु धरें सरीरा॥
    पहुँचे जाइ धेनुमति तीरा। हरषि नहाने निरमल नीरा॥
    आए मिलन सिद्ध मुनि ग्यानी। धरम धुरंधर नृपरिषि जानी॥
    जहँ जँह तीरथ रहे सुहाए। मुनिन्ह सकल सादर करवाए॥
    कृस सरीर मुनिपट परिधाना। सत समाज नित सुनहिं पुराना ।
    दोहा- द्वादस अच्छर मंत्र पुनि जपहिं सहित अनुराग।
    बासुदेव पद पंकरुह दंपति मन अति लाग॥१४३॥
    करहिं अहार साक फल कंदा। सुमिरहिं ब्रह्म सच्चिदानंदा॥
    पुनि हरि हेतु करन तप लागे। बारि अधार मूल फल त्यागे॥
    उर अभिलाष निंरंतर होई। देखअ नयन परम प्रभु सोई॥
    अगुन अखंड अनंत अनादी। जेहि चिंतहिं परमारथबादी॥
    नेति नेति जेहि बेद निरूपा। निजानंद निरुपाधि अनूपा॥
    संभु बिरंचि बिष्नु भगवाना। उपजहिं जासु अंस तें नाना॥
    ऐसेउ प्रभु सेवक बस अहई। भगत हेतु लीलातनु गहई॥
    जौं यह बचन सत्य श्रुति भाषा। तौ हमार पूजहि अभिलाषा॥
    दोहा- एहि बिधि बीतें बरष षट सहस बारि आहार।
    संबत सप्त सहस्त्र पुनि रहे समीर अधार॥१४४॥
    बरष सहस दस त्यागेउ सोऊ। ठाढ़े रहे एक पद दोऊ॥
    बिधि हरि तप देखि अपारा। मनु समीप आए बहु बारा॥
    मागहु बर बहु भाँति लोभाए। परम धीर नहिं चलहिं चलाए॥
    अस्थिमात्र होइ रहे सरीरा। तदपि मनाग मनहिं नहिं पीरा॥
    प्रभु सर्बग्य दास निज जानी। गति अनन्य तापस नृप रानी॥
    मागु मागु बरु भै नभ बानी। परम गभीर कृपामृत सानी॥
    मृतक जिआवनि गिरा सुहाई। श्रबन रंध्र होइ उर जब आई॥
    ह्रष्टपुष्ट तन भए सुहाए। मानहुँ अबहिं भवन ते आए॥
    दोहा- श्रवन सुधा सम बचन सुनि पुलक प्रफुल्लित गात।
    बोले मनु करि दंडवत प्रेम न हृदयँ समात॥१४५॥
    जय श्री राम 🙏
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