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आपका हार्दिक आभार । जिस तरह से आपने मूलाधार संबंधी जानकारी दी है, अद्भुत है ।मैं पूरी तरह से आश्वस्त हो गया हूँ । पुनः आपका हार्दिक आभार । अनेक शुभकामनाएँ ।
Guruji ke charano m hamara pranam guruji mai jab se muladhar chakra ke liye dhyaan kar rha hu to mere peeth aur kamar m dard bani rahti h iska kya matlab hai mera margdarshan kraye
@dhyankagyan777 After meditation chanting m suffering from bad thoughts which never happened before. Nd i am suffering from autoimmune disease which indicates that cold hand feet, tiredness, brain fog . Is it becuz of muladhara chakra?
guru ji pranam kal raat me 5 baje meditation karne baitha to kuch der bar mere mathe k beech m agya chakra ki jagah vibrations feel huye or achanak mujhe white light dikhi iska matlab kya hai guruji.
आज्ञा चक्र पर यानि दोनों भौहों के बीच मे वाइब्रेशन होना और प्रकाश दिखाई देना इसके प्राकृतिक चिन्ह है, ऐसा होना स्वाभाविक ही है । शिव तंत्र में कहा गया है की तीसरी आंख होश की भूखी है यानि इस पर फोकस करने से य़ह शीघ्र ही जागृत होने लगती है, अवेयरनेस इसका फूड है, आज्ञा चक्र पर ध्यान देते ही य़ह वाइब्रेशन देने लगता है, ऐसा इसके अतिसंवेदनशील होने के कारण है और य़ह वाइब्रेशन मात्र एक शुरुआती लक्षण है इस बात का की चक्र गति ले रहा है, जैसे जैसे साधना सघन होगी वैसे वैसे इस वाइब्रेशन का स्थूल शरीर से प्रभाव लुप्त हो जाएगा और सूक्ष्म शरीर में यही वाइब्रेशन सहज व विश्रांतदाई स्थिरता का रूप ले लेगी तब बाहरी शरीर पर इसकी इतनी प्रतीति नहीं होती लेकिन आरंभ में तो खूब होगी और होनी भी चाहिए क्योंकि य़ह एक शुभ लक्षण है। आपको चाहिए की आप इस वाइब्रेशन या प्रकाश की चिंता ना करे, इसे होने दे, और इस कारण से अपना ध्यान का अभ्यास बंद ना करे, समयानुसार जब ऊर्जा संतुलित होगी तो अपने आप य़ह चीज सामान्य हो जाएगी, बस फिलहाल इतना ध्यान रखे की अभ्यास के समय अपने आज्ञा चक्र पर अति की एकाग्रता ना करके सहज रूप से व विश्रांति के साथ ध्यान लगाये।
डर हमारी असुरक्षा की भावना से जुड़ा है जो मूलाधार चक्र की कमजोरी से पैदा होता है अतः आपको अपने मूलाधार चक्र की साधना करनी चाहिए । इसके इलावा भय मुक्त होने के लिये भय की जांच पड़ताल करे । अधिकतर भय का कारण हमारे बचपन की परवरिश मे छिपा होता है । पुराने समय मे बच्चों को आज्ञा कारी बनाने के लिये उनको विभिन्न तरीकों से डराया जाता था और फिर वही ड़र सारी जिन्दगी के लिये उनके कोमल मन मे व उनके अवचेतन मे बैठ जाता है । दूसरा कारण होता है की हम जीवन को किस नजरिये से देखते है, एक जैसी परिस्थति मे एक व्यक्ति तो मजे से रह लेता है जबकी दूसरा व्यक्ति उसी परिस्तिथि मे भय का शिकार हो जाता है । अथार्त अगर आप जीवन मे बहुत गम्भीर यदि होगे, चीज़ो को व परिस्तिथियों को स्वीकार नही करेगे, अपना चिंतन नकरात्मक बना कर रखेगे, बाहर से अनुचित व नकरात्मक सूचनाएँ अपने भीतर संकलित करेगे तो आप मे भय आयु के साथ साथ बढता ही चला जायेगा । ऐसे मे भय मुक्ति के कुछ उपाय है जैसे : जीवन मे सांसारिकता को कम व आध्यात्मिकता को अधिक स्थान दे, लंबी आयु का मोह त्याग कर मृत्यु को मानसिक रूप से स्वीकार करे, अपने नित्य प्रति के जीवन मे योग, व्यायाम, प्राणायाम, ध्यान, ज्ञान को सर्वोच्च स्थान दे, मस्तिष्क को मजबूत बनाने वाली व होश को विकसित करने वाली आर्युवेदीक जड़ी बूटी ले जैसे ब्रह्मी, अश्वगंधा आदि । किसी प्रकार का भी व्यसन जो मस्तिष्क को कमजोर करे उसे ना करे । किसी भी प्रकार के हालात या संकट आदि से निपटने के लिये खुद को मानसिक रूप से हमेशा तेयार रखे । हमारे अधिकतर भय भविष्य आधारित व काल्पनिक होते है जो कभी घटित नही होते, इस तथ्य को सम्झे । भय की जड़े हमारे चेतन नही अपितु अवचेतन मन मे होती है अतः कभी भी ऐसी बाते ना देखे ना सुने और ना करे जो आपके अवचेतन मन मे जाकर आपको कमजोर करे । रोज 8 घन्टे की गहरी नींद ले, तनाव व चिंता करने की आदत से बचे ।
गुरु जी आपका ध्यनवाद ये ज्ञान देने के लिए । ये बात बिलकुल सच है । ये सारे चीजे मेरे साथ हो रही है । मुझे अंजना सा डर लगता रहता है । और बीमार भी होती रहती हु । इसके अलावा पेट हमेशा खराब रहता है । पहले नहीं था मगर क्या ऐसा होता है की कुछ गलत लोग जो हमारे आस पास रहते है और हमसे वेवाजय लड़ाई करते रहते है। वो भी हमारे चक्रों की ऊर्जा खा के जीते हैं। इसमें कोई जानकारी दीजिए ।
जी हाँ, निश्चित ही ऐसा होता है की कुछ नकरात्मक प्रवृत्ति के लोग समय समय पर दूसरों की पॉजिटिव इनर्जी को चूस लेते हैं जिससे उनको तो लाभ हो जाता है लेकिन दूसरे का नुकसान हो जाता है। ऐसा वे जानबूझकर भी नहीं करते, बस उनका सभाव, नेचर ही ऐसी होती है । ऐसे लोग आपके दुश्मनों मे ही नहीं बल्कि आपके मित्रों अथवा घर के सदस्यों मे भी मौजूद हो सकते है। ऐसे मे बेहतर यही होता है कि आप ऐसे लोगों से उचित दूरी बनाये रखे या न्यूट्रल रहे, क्युकी इनको बदलना असम्भव के समान होता है। आपका पेट खराब होना और डर लगना, दोनों चीजें एक दूसरे से जुड़ी हुई है क्युकी यदि आपको कोई भावनात्मक तनाव होगा तो उस वजह से पेट खराब हो जाता है। इसलिए जब आपका डर यदि खत्म हो गया तो पेट भी ठीक हो जाएगा और बीमारी भी ठीक हो जायेगी । डर हमारी असुरक्षा की भावना से जुड़ा है जो मूलाधार चक्र की कमजोरी से पैदा होता है अतः आपको अपने मूलाधार चक्र की साधना करनी चाहिए । इसके इलावा भय मुक्त होने के लिये भय की जांच पड़ताल करे । अधिकतर भय का कारण हमारे बचपन की परवरिश मे छिपा होता है । पुराने समय मे बच्चों को आज्ञा कारी बनाने के लिये उनको विभिन्न तरीकों से डराया जाता था और फिर वही ड़र सारी जिन्दगी के लिये उनके कोमल मन मे व उनके अवचेतन मे बैठ जाता है । दूसरा कारण होता है की हम जीवन को किस नजरिये से देखते है, एक जैसी परिस्थति मे एक व्यक्ति तो मजे से रह लेता है जबकी दूसरा व्यक्ति उसी परिस्तिथि मे भय का शिकार हो जाता है । अथार्त अगर आप जीवन मे बहुत गम्भीर यदि होगे, चीज़ो को व परिस्तिथियों को स्वीकार नही करेगे, अपना चिंतन नकरात्मक बना कर रखेगे, बाहर से अनुचित व नकरात्मक सूचनाएँ अपने भीतर संकलित करेगे तो आप मे भय आयु के साथ साथ बढता ही चला जायेगा । ऐसे मे भय मुक्ति के कुछ उपाय है जैसे : जीवन मे सांसारिकता को कम व आध्यात्मिकता को अधिक स्थान दे, लंबी आयु का मोह त्याग कर मृत्यु को मानसिक रूप से स्वीकार करे, अपने नित्य प्रति के जीवन मे योग, व्यायाम, प्राणायाम, ध्यान, ज्ञान को सर्वोच्च स्थान दे, मस्तिष्क को मजबूत बनाने वाली व होश को विकसित करने वाली आर्युवेदीक जड़ी बूटी ले जैसे ब्रह्मी, अश्वगंधा आदि । किसी प्रकार का भी व्यसन जो मस्तिष्क को कमजोर करे उसे ना करे । किसी भी प्रकार के हालात या संकट आदि से निपटने के लिये खुद को मानसिक रूप से हमेशा तेयार रखे । हमारे अधिकतर भय भविष्य आधारित व काल्पनिक होते है जो कभी घटित नही होते, इस तथ्य को सम्झे । भय की जड़े हमारे चेतन नही अपितु अवचेतन मन मे होती है अतः कभी भी ऐसी बाते ना देखे ना सुने और ना करे जो आपके अवचेतन मन मे जाकर आपको कमजोर करे । रोज 8 घन्टे की गहरी नींद ले, तनाव व चिंता करने की आदत से बचे ।
Sir mera root chakra over active hogaya hai.. Jabhi bhi me mantra ucharan karta hu to sirf root chakra jyada energy khinchi ti hai.. Esko kaise neutral karu?
Ye acchi baat hai, pahle root chakra hi activate hoga or energy bhi sari yahi accumulate hogi, so no problem, just let it happen, jab ek baar excess main energy root chakra par ikathi hogi toh apne aap upar ke chakra usko apni or khich lege
जब आपका आज्ञा चक्र जागृत होने लगेगा तो आपको बाकी के चक्रों की अलग से जागृत करने की जरूरत नहीं है क्यूंकि सभी चक्र आपस मे जुड़े हैं, पिनीयल ग्लेनड जोकि आज्ञा चक्र की ही स्थूल अभिव्यक्ति है, इसको मास्टर ग्लेनड बोला गया है, इसलिए केवल पिनीयल ग्रंथि के यानि केवल आज्ञा चक्र के एक्टिव होने से बाकी के सभी चक्र स्वयं से ही एक्टिव हो जायेगे, उसके लिए अलग से कुछ करने की जरूरत नहीं है। दूसरी बात, आज्ञा चक्र और मूलाधार चक्र, ये दोनों चक्र एक ही पोल के दो विपरित ध्रुव है, मूलाधार पोल के एक हिस्से यानि नीचे स्थित है और आज्ञा चक्र पोल के दूसरे हिस्से यानि ऊपर स्थित है और इन दोनों चक्रों के बीच मे ही चार अन्य चक्र स्थित है, और जैसे ही आज्ञा चक्र एक्टिव होगा तो ठीक उसी अनुपात मे नीचे इसका दूसरा ध्रुव यानि मूलाधार चक्र भी एक्टिव हो जाएगा या अगर मूलाधार नीचे पहले जागृत होता है तो उसी अनुपात मे ऊपर आज्ञा चक्र भी जागृत होने लगेगा क्यूंकि दोनों आपस मे जुड़े है, और बीच के रेखा मे अन्य चक्र भी इसी मे जुड़े हैं, इसलिए य़ह कहा जा सकता है की मात्र आज्ञा चक्र की जागृति से बाकी के चक्र स्वत ही जागृत होने लगेंगे। एक सधे सब सधे यानि एकमात्र आज्ञा चक्र के जागृत होने से ही सब हो जाएगा।
प्रणिपात गुरुश्री, आपने मेरे सालो की शंका को दूर किया ही इसीलिए में आपका आभारी हु में आपसे शायद कभी मिल तो नहीं सकता इसीलिए यही से इस तुच्छ शिष्य का प्रणाम स्वीकार करे, हर हर महादेव।🥲🙏
आप अपना मूलाधार चक्र इस प्रकार विकसित कर सकते है:- सप्त चक्रों के क्रम मे मूलाधार पहला चक्र है, इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मे सुधार होता है तथा उसकी समाजिक असुरक्षा दूर होती है । व्यक्ति के शरीर का मध्य भाग व इसके अंग गुप्तांग, गुर्दे, लिवर आदि का स्वास्थ्य उतम रहता है । ऊर्जा की प्रबलता बनी रहती है तथा मूलाधार से आगे के चक्रों मे बढने मे सुविधा हो जाती है । इस चक्र के जागृत होने से भगवान गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है । मूलाधार जागृति के लिये निम्न बाते बहुत जरुरी है :- मूलाधार चक्र का रंग लाल है अतः लाल रंग की वस्तुओं को अपने समीप रखना व लाल रंग के खाध पदार्थों का उपभोग करना उतम है, इसके इलावा कुछ ऐसे व्यायाम करना जिससे हमारे शरीर के मध्य भाग मे जोर पडे जैसे उठक-बैठक, दौडना, टहलना आदि लाभदायक है । कुछ योग आसन जैसे भुजंंग आसन, धनुरसन, चक्र आसन, कुर्सी आसन आदि भी मूलाधार जागृति करते है, कपालभाति, अग्निसार, भस्त्रिका आदि प्राणायाम भी मूलाधार मे जाग्रति लाते है । इसके इलावा ताड़न क्रिया, अश्वनी मुद्रा भी बहुत प्रभावी है । इस चक्र के देवता श्री गणेश है अतः इस चक्र पर ध्यान लगाते हुए भगवान गणेश जी के मंत्र का जाप करने से यह चक्र जागृत होता है । मंत्र इस प्रकार है : ॐ गं गणपतये नम: निम्नलिखित ध्यान से भी आप मूलाधार जागृति कर सकते है : किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएं। अपने दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें तथा अपनी आंखों को बन्द करके रखें। अपनी गर्दन, पीठ व कमर को सीधा करके रखें। अब सबसे पहले अपने ध्यान को गुदा द्वार व जननेन्द्रिय के बीच स्थान मे मूलाधार चक्र पर ले जाएं। फिर मूलाधार चक्र पर अपने मन को एकाग्र व स्थिर करें और अपने मन में चार पंखुड़ियों वाले बन्द लाल रंग वाले कमल के फूल की कल्पना करें। फिर अपने मन को एकाग्र करते हुए उस फूल की पंखुड़ियों को एक-एक करके खुलते हुए कमल के फूल का अनुभव करें। इसकी कल्पना के साथ ही उस आनन्द का अनुभव करने की कोशिश करें। उसकी पंखुड़ियों तथा कमल के बीच परागों से ओत-प्रोत सुन्दर फूल की कल्पना करें। इस तरह कल्पना करते हुए तथा उसके आनन्द को महसूस करते हुए अपने मन को कुछ समय तक मूलाधार चक्र पर स्थिर रखें। अथवा शांत होकर, आँखे बंद करके, कमर को सीधा रखते हुए, ध्यानस्थ मुद्रा मे बैठ जाये, अब अपना पुरा ध्यान अपनी आती जाती श्वास पर लाये और जब भी श्वास अंदर आये तो " औम" और जब भी श्वास बाहर आये तो " लं " बीज मंत्र का मानसिक उचारण करे ।
जी हाँ, मूलाधार चक्र की विकृति से शरीर में कफ असन्तुलित हो सकता है, इसके लिए आप मूलाधार चक्र को संतुलित करने के उपाय करे। इसके अलावा आप हर रोज कुछ देर तक शारीरिक व्यायाम करे, प्राणायाम करे, गर्म तासीर की चीजें खाए, समय से सोये और जल्दी उठे, शरीर की हर रोज मालिश करे ।
@@Dhyankagyan777 sir 🙏🌹 aap se bat Karna chahta hu. Sari isthti btani h. Mere sath bhut kuch ho rha h. I don't know what is that.koi contact Dene ki cripa Kare.
गुस्सा अथवा क्रोध की वास्तविक शान्ति तो समझ के साथ और व्यक्ति के अनुभवी व मानसिक रूप से प्रौढ़ होने पर ही होती है, जिसमे समय लगता है । किंतु फिर भी कुछ बातों का ख्याल रख के क्रोध को नियंत्रित किया जा सकता है जैसे की:- 1) अपने अहंकार पर नियंत्रण रखे, क्युकि अधिकतर तो हम अहंकार के वशीभूत होकर ही क्रोधित होते है । 2) जीवन मे शिकायत कम करके, स्वीकार भाव से जीना सिखे, क्युकि जब हम किसी चीज़ की शिकायत या विरोध करते है तो क्रोध उत्पन होता है, जबकि स्थिति को स्वीकार कर लेने से क्रोध खत्म हो जाता है । 3) अपने अंदर श्रमा भाव को विकसित करे, दूसरे को नादान मानकर उनको श्रमा कर दे । 4) हृदय मे प्रेम, सहनशिलता, करूणा, परोपकार, सहायता जैसे उच्च भावों व विचारो को विकसित करे । जहा उच्च विचार होते है वहा क्रोध जन्म नही ले पाता । 5) स्वयं को हमेशा विनित बनाकर परमात्मा के चरणों मे समर्पित कर के रखे । 6) अपने आहार मे गर्म तासिर के खाध पदार्थ, मादक पदार्थ व मदिरा आदि का सेवन न करे । 7) नित्यप्रति सुसंगति मे रहे, दुर्जनों के संग का त्याग करे, भगवान का भजन, ध्यान, सत्संग आदि करे । 8) योग व प्राणायाम का हर रोज सुबह अभ्यास करे । खासकर अनुलोम विलोम, शीतली, सित्कारि, चंद्र भेदी प्राणायाम करे, इनके अभ्यास से आपमे शीतलता बढ़ेगी और क्रोध घटेगा । 9) आपको नित्य प्रति अपने हृदय चक्र को संतुलित करने के लिए विशेष ध्यान का अभ्यास करना चाहिए, क्यूंकि हृदय चक्र के असंतुलित होने से ही क्रोध उत्पन्न होता है जबकि इस चक्र के संतुलित होने से श्रमा और प्रेम उत्पन्न होता है।
Parnam guru ji mai aapse puchha chahta hu ki jo kundalini jagarn se jo hame sidhiya milti Keya ye sidhiya aage chalkar kam ho jati hai Keya jara marg darshan de guru ji
समान्य स्थिति में तो ऐसा होता है की हमारा सूक्ष्म शरीर और सूक्ष्म शरीर मे स्थित सभी चक्र और कुंडलिनी शक्ति आदि, इन सब की स्थिति, की चक्र कितनी अवस्था मे जागृत या सुप्त रहेगे, य़ह इस बात पर निर्भर करेगा की हमारे सूक्ष्म शरीर मे प्राण ऊर्जा का स्तर क्या है, क्यूंकि हमारे सभी चक्र प्राण ऊर्जा के ही घटने बढ़ने से जागृत या सुप्त होते हैं, जिस चक्र को जितनी प्राण की मात्रा उपलब्ध होगी वह चक्र उतना ही जागृत होगा और चक्र को यदि प्राण ऊर्जा पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं होगी तो चक्र सुप्त अथवा ब्लॉक भी हो सकता है। अतः ऐसा नहीं है की कोई भी चक्र स्थाई रूप से शत प्रतिशत हमेशा जागृत ही रहेगा या सुप्त ही रहेगा, इनकी स्थिति हमेशा आंशिक या पूर्ण रूप से ऊर्जा की आपूर्ति के आधर पर घटती बढ़ती रहती हैं। इसलिए जब तक हमारी साधना जारी रहेगी तब तक चक्रों मे क्रमिक विकास चलता रहता है क्यूंकि उनको प्राणायाम व ध्यान के माध्यम से प्राण ऊर्जा उपलब्ध होती रहती है किन्तु यदि साधना बिल्कुल बंद कर दी जाये तो ऊर्जा की कम आपूर्ति के कारण जागृत चक्र वापिस सुप्त अवस्था मे भी जा सकता है। किन्तु य़ह भी सत्य है की अगर सफ़लतापूर्वक लंबी साधना हो तो कुछ चक्रों का स्थाई जागरण भी हो सकता है क्योंकि जैसे मस्तिष्क के कुछ तन्तु जो खुल गए तो फिर वो सदा के लिए ही खुल गए फिर वो कभी बंद नहीं होते, ऐसा विकास की क्रिया के आधार पर होता है, उदाहरण के लिए जिस व्यक्ती ने दसवी कक्षा पास कर ली तो वो फिर अब पीछे आठवीं कक्षा मे कभी नहीं जाएगा ब्लकि आगे की कक्षा मे ही जाएगा।
आप अपना मूलाधार चक्र इस प्रकार बैलेन्स व विकसित कर सकते है:- सप्त चक्रों के क्रम मे मूलाधार पहला चक्र है, इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मे सुधार होता है तथा उसकी समाजिक असुरक्षा दूर होती है । व्यक्ति के शरीर का मध्य भाग व इसके अंग गुप्तांग, गुर्दे, लिवर आदि का स्वास्थ्य उतम रहता है । ऊर्जा की प्रबलता बनी रहती है तथा मूलाधार से आगे के चक्रों मे बढने मे सुविधा हो जाती है । इस चक्र के जागृत होने से भगवान गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है । मूलाधार जागृति के लिये निम्न बाते बहुत जरुरी है :- मूलाधार चक्र का रंग लाल है अतः लाल रंग की वस्तुओं को अपने समीप रखना व लाल रंग के खाध पदार्थों का उपभोग करना उतम है, इसके इलावा कुछ ऐसे व्यायाम करना जिससे हमारे शरीर के मध्य भाग मे जोर पडे जैसे उठक-बैठक, दौडना, टहलना आदि लाभदायक है । कुछ योग आसन जैसे भुजंंग आसन, धनुरसन, चक्र आसन, कुर्सी आसन आदि भी मूलाधार जागृति करते है, कपालभाति, अग्निसार, भस्त्रिका आदि प्राणायाम भी मूलाधार मे जाग्रति लाते है । इसके इलावा ताड़न क्रिया, अश्वनी मुद्रा भी बहुत प्रभावी है । इस चक्र के देवता श्री गणेश है अतः इस चक्र पर ध्यान लगाते हुए भगवान गणेश जी के मंत्र का जाप करने से यह चक्र जागृत होता है । मंत्र इस प्रकार है : ॐ गं गणपतये नम: निम्नलिखित ध्यान से भी आप मूलाधार जागृति कर सकते है : किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएं। अपने दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें तथा अपनी आंखों को बन्द करके रखें। अपनी गर्दन, पीठ व कमर को सीधा करके रखें। अब सबसे पहले अपने ध्यान को गुदा द्वार व जननेन्द्रिय के बीच स्थान मे मूलाधार चक्र पर ले जाएं। फिर मूलाधार चक्र पर अपने मन को एकाग्र व स्थिर करें और अपने मन में चार पंखुड़ियों वाले बन्द लाल रंग वाले कमल के फूल की कल्पना करें। फिर अपने मन को एकाग्र करते हुए उस फूल की पंखुड़ियों को एक-एक करके खुलते हुए कमल के फूल का अनुभव करें। इसकी कल्पना के साथ ही उस आनन्द का अनुभव करने की कोशिश करें। उसकी पंखुड़ियों तथा कमल के बीच परागों से ओत-प्रोत सुन्दर फूल की कल्पना करें। इस तरह कल्पना करते हुए तथा उसके आनन्द को महसूस करते हुए अपने मन को कुछ समय तक मूलाधार चक्र पर स्थिर रखें। अथवा शांत होकर, आँखे बंद करके, कमर को सीधा रखते हुए, ध्यानस्थ मुद्रा मे बैठ जाये, अब अपना पुरा ध्यान अपनी आती जाती श्वास पर लाये और जब भी श्वास अंदर आये तो " औम" और जब भी श्वास बाहर आये तो " लं " बीज मंत्र का मानसिक उचारण करे ।
People says that this practices should be done under a qualified & experience demontrster Other wise It may be harmful What do you suggest & what is your charges with the required time to get proper training.
You are saying right, actually each exercise of yoga and meditation should be done under the guidence of a teacher then after learning it properly you can practice it at home with yourself as well For the moment, we are not taking any meditation camp, in which we use to teach such kriyas
Libido पॉवर को बढ़ाने के लिए मूलाधार चक्र को स्ट्रॉन्ग बनाना चाहिए क्युकी यही चक्र हमारी काम शक्ति और हमारे काम अंगों का प्रतिनिधित्व करता है। मूलाधार चक्र को मज़बूत करने के लिये निम्न बाते बहुत जरुरी है :- मूलाधार चक्र का रंग लाल है अतः लाल रंग की वस्तुओं को अपने समीप रखना व लाल रंग के खाध पदार्थों का उपभोग करना उतम है, इसके इलावा कुछ ऐसे व्यायाम करना जिससे हमारे शरीर के मध्य भाग मे जोर पडे जैसे उठक-बैठक, दौडना, टहलना आदि लाभदायक है । कुछ योग आसन जैसे भुजंंग आसन, धनुरसन, चक्र आसन, कुर्सी आसन आदि भी मूलाधार जागृति करते है, कपालभाति, अग्निसार, भस्त्रिका आदि प्राणायाम भी मूलाधार मे जाग्रति लाते है । इसके इलावा ताड़न क्रिया, अश्वनी मुद्रा भी बहुत प्रभावी है । इन क्रियाओं के अभ्यास से आपकी Libido पॉवर बढ़नी शुरू हो जायेगी।
आप अपना मूलाधार चक्र इस प्रकार विकसित कर सकते है:- सप्त चक्रों के क्रम मे मूलाधार पहला चक्र है, इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मे सुधार होता है तथा उसकी समाजिक असुरक्षा दूर होती है । व्यक्ति के शरीर का मध्य भाग व इसके अंग गुप्तांग, गुर्दे, लिवर आदि का स्वास्थ्य उतम रहता है । ऊर्जा की प्रबलता बनी रहती है तथा मूलाधार से आगे के चक्रों मे बढने मे सुविधा हो जाती है । इस चक्र के जागृत होने से भगवान गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है । मूलाधार जागृति के लिये निम्न बाते बहुत जरुरी है :- मूलाधार चक्र का रंग लाल है अतः लाल रंग की वस्तुओं को अपने समीप रखना व लाल रंग के खाध पदार्थों का उपभोग करना उतम है, इसके इलावा कुछ ऐसे व्यायाम करना जिससे हमारे शरीर के मध्य भाग मे जोर पडे जैसे उठक-बैठक, दौडना, टहलना आदि लाभदायक है । कुछ योग आसन जैसे भुजंंग आसन, धनुरसन, चक्र आसन, कुर्सी आसन आदि भी मूलाधार जागृति करते है, कपालभाति, अग्निसार, भस्त्रिका आदि प्राणायाम भी मूलाधार मे जाग्रति लाते है । इसके इलावा ताड़न क्रिया, अश्वनी मुद्रा भी बहुत प्रभावी है । इस चक्र के देवता श्री गणेश है अतः इस चक्र पर ध्यान लगाते हुए भगवान गणेश जी के मंत्र का जाप करने से यह चक्र जागृत होता है । मंत्र इस प्रकार है : ॐ गं गणपतये नम: निम्नलिखित ध्यान से भी आप मूलाधार जागृति कर सकते है : किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएं। अपने दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें तथा अपनी आंखों को बन्द करके रखें। अपनी गर्दन, पीठ व कमर को सीधा करके रखें। अब सबसे पहले अपने ध्यान को गुदा द्वार व जननेन्द्रिय के बीच स्थान मे मूलाधार चक्र पर ले जाएं। फिर मूलाधार चक्र पर अपने मन को एकाग्र व स्थिर करें और अपने मन में चार पंखुड़ियों वाले बन्द लाल रंग वाले कमल के फूल की कल्पना करें। फिर अपने मन को एकाग्र करते हुए उस फूल की पंखुड़ियों को एक-एक करके खुलते हुए कमल के फूल का अनुभव करें। इसकी कल्पना के साथ ही उस आनन्द का अनुभव करने की कोशिश करें। उसकी पंखुड़ियों तथा कमल के बीच परागों से ओत-प्रोत सुन्दर फूल की कल्पना करें। इस तरह कल्पना करते हुए तथा उसके आनन्द को महसूस करते हुए अपने मन को कुछ समय तक मूलाधार चक्र पर स्थिर रखें। अथवा शांत होकर, आँखे बंद करके, कमर को सीधा रखते हुए, ध्यानस्थ मुद्रा मे बैठ जाये, अब अपना पुरा ध्यान अपनी आती जाती श्वास पर लाये और जब भी श्वास अंदर आये तो " औम" और जब भी श्वास बाहर आये तो " लं " बीज मंत्र का मानसिक उचारण करे ।
And ek aur cheeez sir mere throat chkaras me aaj kal energy circulation feel sense ho rhi hai... Kabhi kabhi ye chakas ki speed bd jati hai.... Sote( sleeping) time...
आप अपना मूलाधार चक्र इस प्रकार विकसित कर सकते है:- सप्त चक्रों के क्रम मे मूलाधार पहला चक्र है, इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मे सुधार होता है तथा उसकी समाजिक असुरक्षा दूर होती है । व्यक्ति के शरीर का मध्य भाग व इसके अंग गुप्तांग, गुर्दे, लिवर आदि का स्वास्थ्य उतम रहता है । ऊर्जा की प्रबलता बनी रहती है तथा मूलाधार से आगे के चक्रों मे बढने मे सुविधा हो जाती है । इस चक्र के जागृत होने से भगवान गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है । मूलाधार जागृति के लिये निम्न बाते बहुत जरुरी है :- मूलाधार चक्र का रंग लाल है अतः लाल रंग की वस्तुओं को अपने समीप रखना व लाल रंग के खाध पदार्थों का उपभोग करना उतम है, इसके इलावा कुछ ऐसे व्यायाम करना जिससे हमारे शरीर के मध्य भाग मे जोर पडे जैसे उठक-बैठक, दौडना, टहलना आदि लाभदायक है । कुछ योग आसन जैसे भुजंंग आसन, धनुरसन, चक्र आसन, कुर्सी आसन आदि भी मूलाधार जागृति करते है, कपालभाति, अग्निसार, भस्त्रिका आदि प्राणायाम भी मूलाधार मे जाग्रति लाते है । इसके इलावा ताड़न क्रिया, अश्वनी मुद्रा भी बहुत प्रभावी है । इस चक्र के देवता श्री गणेश है अतः इस चक्र पर ध्यान लगाते हुए भगवान गणेश जी के मंत्र का जाप करने से यह चक्र जागृत होता है । मंत्र इस प्रकार है : ॐ गं गणपतये नम: निम्नलिखित ध्यान से भी आप मूलाधार जागृति कर सकते है : किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएं। अपने दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें तथा अपनी आंखों को बन्द करके रखें। अपनी गर्दन, पीठ व कमर को सीधा करके रखें। अब सबसे पहले अपने ध्यान को गुदा द्वार व जननेन्द्रिय के बीच स्थान मे मूलाधार चक्र पर ले जाएं। फिर मूलाधार चक्र पर अपने मन को एकाग्र व स्थिर करें और अपने मन में चार पंखुड़ियों वाले बन्द लाल रंग वाले कमल के फूल की कल्पना करें। फिर अपने मन को एकाग्र करते हुए उस फूल की पंखुड़ियों को एक-एक करके खुलते हुए कमल के फूल का अनुभव करें। इसकी कल्पना के साथ ही उस आनन्द का अनुभव करने की कोशिश करें। उसकी पंखुड़ियों तथा कमल के बीच परागों से ओत-प्रोत सुन्दर फूल की कल्पना करें। इस तरह कल्पना करते हुए तथा उसके आनन्द को महसूस करते हुए अपने मन को कुछ समय तक मूलाधार चक्र पर स्थिर रखें। अथवा शांत होकर, आँखे बंद करके, कमर को सीधा रखते हुए, ध्यानस्थ मुद्रा मे बैठ जाये, अब अपना पुरा ध्यान अपनी आती जाती श्वास पर लाये और जब भी श्वास अंदर आये तो " औम" और जब भी श्वास बाहर आये तो " लं " बीज मंत्र का मानसिक उचारण करे ।
“संकल्प-प्रार्थना” वक़्तुंड. महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ। निर्विष्न॑ कुरु मे देव! सर्वकार्येषु सर्वदा।।॥।। सर्वस्य बुद्धिर्पेण जनस्य हृदि संस्थिते। स्वर्गपवर्गदा देवि! नारायणि! _ नमोस्तुते।|2।। गुरुब्रह्या.. गुरुर्विष्णु, गुरुदेवों महेश्वरः| गुरु: साक्षात् परब्रहम तस्मे श्री गुरुवेनमः”||3।। 4. मन ही गणेश (गण » ईश अर्थात् इन्द्रिय समूह को हिलाने वाला) है। 2. बुद्धि ही सर्वन्तर्व्याप्त ज्ञान देवी सरस्वती है। 3. आत्मा ही परब्रह्म परमात्मा है। और, 4, आत्मा की सत्वरज-तमात्मक त्रिमूर्ति श्री दत्तात्रेय स्वरूप सदगुरु हैं। अर्थ--हे वक्रतुंड (ठेढ़ी सुण्ड वाले) ऊँकार! आप विश्वोदर हो, विश्वव्यापी हो, अनन्त कोटि सूर्यतुल्य आपका प्रकाश है। आपको मेरा बारम्बार प्रणाम है। भगवान मेरे सम्पूर्ण विघ्न नष्ठ करके मेरे सम्पूर्ण कार्य सदैव सिद्ध करो। सम्पूर्ण लोगों के हृदय में बुद्धिरूप से सदा विराजमान रहने वाली और स्वर्ग तथा मोक्ष देने वाली हे परम दयालु माता देवी नारायणी! तेरे चरण कमल में मेरा बार-बार प्रणाम है। आप मुझे सदैव सुबुद्धि दो। हे जगदगुरो! आप ही ब्रह्मा, विष्णु, महेंश्वर हो सम्पूर्ण जगत् के प्रेरक तथा चालक हो। आप ही की आज्ञा से चन्द्र सूर्य प्रकाशित होते हैं, वायु बहता है, मेघ बरसते हैं और सम्पूर्ण चराचर जीव अपना-अपना कार्य सुयन्त्रित कर रहे हैं। आप साक्षात् परब्रह्म परमेश्वर हो, अनाथों के नाथ हो, ठोकर लगने पर ही सम्हालने वाली भूमि की तरह अनन्त अपराध हाथ से होने पर भी -- महान् अपराधी होने पर भी -- हमें सम्हालने वाले, हमारे एक मात्र आधार आप ही हो, हम आप ही की शरण में हैं। आप शरणागत वत्सल हो, आप हमें सच्चे सन्मार्ग से कभी विचलित न होने दो। आपको मेरा विनम्र बार-बार प्रणाम है।
आप अपना मूलाधार चक्र इस प्रकार विकसित कर सकते है:- सप्त चक्रों के क्रम मे मूलाधार पहला चक्र है, इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मे सुधार होता है तथा उसकी समाजिक असुरक्षा दूर होती है । व्यक्ति के शरीर का मध्य भाग व इसके अंग गुप्तांग, गुर्दे, लिवर आदि का स्वास्थ्य उतम रहता है । ऊर्जा की प्रबलता बनी रहती है तथा मूलाधार से आगे के चक्रों मे बढने मे सुविधा हो जाती है । इस चक्र के जागृत होने से भगवान गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है । मूलाधार जागृति के लिये निम्न बाते बहुत जरुरी है :- मूलाधार चक्र का रंग लाल है अतः लाल रंग की वस्तुओं को अपने समीप रखना व लाल रंग के खाध पदार्थों का उपभोग करना उतम है, इसके इलावा कुछ ऐसे व्यायाम करना जिससे हमारे शरीर के मध्य भाग मे जोर पडे जैसे उठक-बैठक, दौडना, टहलना आदि लाभदायक है । कुछ योग आसन जैसे भुजंंग आसन, धनुरसन, चक्र आसन, कुर्सी आसन आदि भी मूलाधार जागृति करते है, कपालभाति, अग्निसार, भस्त्रिका आदि प्राणायाम भी मूलाधार मे जाग्रति लाते है । इसके इलावा ताड़न क्रिया, अश्वनी मुद्रा भी बहुत प्रभावी है । इस चक्र के देवता श्री गणेश है अतः इस चक्र पर ध्यान लगाते हुए भगवान गणेश जी के मंत्र का जाप करने से यह चक्र जागृत होता है । मंत्र इस प्रकार है : ॐ गं गणपतये नम: निम्नलिखित ध्यान से भी आप मूलाधार जागृति कर सकते है : किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएं। अपने दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें तथा अपनी आंखों को बन्द करके रखें। अपनी गर्दन, पीठ व कमर को सीधा करके रखें। अब सबसे पहले अपने ध्यान को गुदा द्वार व जननेन्द्रिय के बीच स्थान मे मूलाधार चक्र पर ले जाएं। फिर मूलाधार चक्र पर अपने मन को एकाग्र व स्थिर करें और अपने मन में चार पंखुड़ियों वाले बन्द लाल रंग वाले कमल के फूल की कल्पना करें। फिर अपने मन को एकाग्र करते हुए उस फूल की पंखुड़ियों को एक-एक करके खुलते हुए कमल के फूल का अनुभव करें। इसकी कल्पना के साथ ही उस आनन्द का अनुभव करने की कोशिश करें। उसकी पंखुड़ियों तथा कमल के बीच परागों से ओत-प्रोत सुन्दर फूल की कल्पना करें। इस तरह कल्पना करते हुए तथा उसके आनन्द को महसूस करते हुए अपने मन को कुछ समय तक मूलाधार चक्र पर स्थिर रखें। अथवा शांत होकर, आँखे बंद करके, कमर को सीधा रखते हुए, ध्यानस्थ मुद्रा मे बैठ जाये, अब अपना पुरा ध्यान अपनी आती जाती श्वास पर लाये और जब भी श्वास अंदर आये तो " औम" और जब भी श्वास बाहर आये तो " लं " बीज मंत्र का मानसिक उचारण करे ।
ध्यान के अभ्यास के दौरान गुप्तांगों मे तनाव होना एक अच्छा संकेत है, इसका मतलब आपके मूलाधार चक्र मे ऊर्जा जागृत होनी शुरू हो गई है। एक्चुअली हमारे मूलाधार चक्र पर कुंडलिनी शक्ति भी वास करती है और इसी स्थान पर हमारे काम केंद्र भी स्थित है, तो होता क्या है जब इस चक्र पर ऊर्जा जागती है तो ऊपर का मार्ग यदि अभी खुला ना हुआ तो ऊर्जा गुप्तांगों मे प्रवेश कर जाती है, जिस कारण आपको तनाव महसुस हो रहा हैं। लेकिन धीरे-धीरे, जब ऊपर का मार्ग खुलेगा तो ऊर्जा काम केंद्रों मे जाने की बजाय ऊर्ध्व गमन करना शुरू कर देगी, तब ऐसा नहीं होगा।
@@Dhyankagyan777 aapki baat se mujhe bahut achha laga.. 20 Dino se brahmacharya Kiya hai Married life hai. Kay sadhna me sambhog kay ja sakata hai. Ek baat or batayega ki kundli ki urja kitne din mein upar ki or uthti hai. Dhanyawad ji
Mere meditation me achanak ak din chipkali ka vichar a gaya aur wah vichar bar bar ata tha jb mai meditate karta tha ab wah vichar adat se overthinking se depression me tabdeel ho raha he jisse dar waham hota he 8 mahio se kya karu please Help me 😢😢😢😢😢
Sir me jab sharir ke kisi bhi hisse par dhyan lagata hu to ek sensation hoti hai aisa lagta hai koi sui chub rahi ho jaise hatheli ke bich me hona ya naak par dhyan dene par aisa hona.... ye kis chiz ka lakshan hai Mene vipassana ki hai us samay mere puri body me chitiya chalne ya yu kahe sui chubne jaisa hua hai raat ko sota tha tab bhi body me ye chlta rahta tha.... Ek din sharir ke andar ke organ par dhyan lagaya tab andar bhi chitya chlna jaisa laga mujhe samjh nahi aaya ye kya hai? 3 saal ke baad ab dhyan karta hu to hath par ,naak par or daato par sensation hoti hai
Guru ji mere head me pichse vibration ho rahi h ab left side me hoti h Or kabi kabi pure body me sensation tingling ho rahi Or chakkar jesa bi lag raha he plz muje batao na🙏🙏head bi piche ke tarf jata h
वाइब्रेशन फिल होने का मतलब है की आपकी प्राण ऊर्जा शरीर के उस स्थान पर बढ़ रहीं हैं या सक्रीय हो रहीं हैं, इसमे कुछ गलत नहीं है, जब आपकी इनर्जी उस बॉडी पार्ट पर अपना काम पूरा कर लेगी तो सब नॉर्मल हो जायेगा इसलिए आप चिंता ना करे ।
इसका संबंध भी मूलाधार चक्र से है अतः जब आप मूलाधार चक्र की साधना करेगे तो आपको एक आत्मिक स्वतंत्रता का एहसास होगा और आप किसी भी प्रकार के बंधन से बाहर निकल जायेगे।
बिल्कुल, योग व ध्यान की कुछ वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति से ऐसा उपचार किया जाता है, जैसे आयुर्वेद, रेकी, प्रभामंडल उपचार, चक्र क्लिनिक आदि। इसकी कुछ टेक्निक आप मेरे इस विडियो से देख सकते हैं :- th-cam.com/video/BmaK_pXvJGU/w-d-xo.html इस प्रकार की समस्या शारिरिक कारणों से भी हो सकती है और सूक्ष्म शरीर के उस हिस्से मे ऊर्जा के ब्लॉक हो जाने से भी हो सकती है अथवा चक्र विकृति के कारण या उर्ज़ा के विकृत हो जाने के कारण भी ऐसा हो सकता है । एक बिल्कुल साधारण विधि इस प्रकार से है :- आप अपना पुरा ध्यान रोग वाली जगह पर लेकर आये और भाव करे की आपकी हर अंदर जाती सांस के साथ आपकी शरीर की ऊर्जा सफेद प्रकाश के रूप मे रोग वाले स्थान पर एकत्रित हो रही है और हर बाहर जाती सांस के साथ यह ऊर्जा उस ब्लाक को खोल रही है, जिस समय सांस बाहर निकले ठीक उसी समय अपने मन की आँखो से व्याधि को काले धुएं के रूप मे वाष्पीभूत होता हुआ भी देखे । जब इस प्रकार आप अपना ध्यान सम्बंधित स्थान पर एकाग्र करेगे तो उपचार करने वाली ऊर्जा स्थान को रिफ्रेश कर देगी और राहत मिलने लगेगी।
अक्सर जब साधक अपनी साधना के दौरान योग, प्राणायाम व ध्यान आदि की विभिन्न क्रियाओं का अभ्यास करता है तो कुछ दिनो मे इन क्रियाओं के प्रभाव से शरीर मे गर्मी बढ़ने लग जाती है, ताकि शरीर मे ताप को बढ़ा कर अशुद्धियों को जलाया जा सके । शास्त्रो मे प्रतीकात्मक वर्णन है की जब साधना के प्रभाव से सूक्ष्म शरीर मे कुंडलिनी शक्ती जागती है तो अपनी गर्मी से खुन पी जाती है और मांस खा जाती है, इसका अर्थ है की जागृत हुई कुंडलिनि हमारे शरीर की अशुद्धियों व अनावश्यक पदार्थों वसा, फैट, विष, हानिकारक पदार्थों आदि को खत्म करती है ताकी उसका मार्ग साफ व प्रशस्त हो सके, और यह जागृत ऊर्जा अपने मार्ग की सफाई शरीर मे ताप को बढ़ा कर करती है ताकी उतप्त हुए शरीर मे सभी अशुद्धिया जल जाये । इसी लिये शरीर का वजन कम हो जाता है, खुन कम हो जाता है। अतः जब भी साधना के दौरान आपको ऐसे लक्षण अनुभव हो तो उनको स्वीकार करे व ऊर्जा को अपना काम करने दे । किंतु फिर भी यदि आपको ज्यादा तकलिफ हो तो आप ज्यादा से ज्यादा इतना कर सकते है की खुब पानी पिये, अपने आहार मे ठण्डी तासिर के खाध पदार्थो तथा सुपाच्य भोजन व फल आदि का सेवन करे । अनुलोम-विलोम, शीतली, सित्कारि, चंद्र भेदी प्राणायाम का नित्य अभ्यास करे । अधिकतर जब आप सोते या लेटते है तो बाई नासिका को ऊपर की और रख कर सोये यानि दाई करवट लेकर सोये इससे आपकी चंद्र नाडि जो शरीर को शीतलता देती है, वह चलेगी और शरीर की अति की गर्मी शान्त होगी । अधिकतर कुछ दिनों मे जब शरीर सभी प्रकार के हानिकारक पदार्थों को बाहर निकाल देता है तो स्वयं सब ठीक हो जाता है, इस दौरान आपका वजन भी गिर सकता है किंतु इस सारी प्रकिया के बाद जब आप समान्य होगे तब आप बहुत हल्का, रिफ्रेश, तरो ताजा और आनंदित महसूस करेगे, आपको ऐसा लगेगा जैसे आपके शरीर से कोई बोझ उतर गया हो । तब आपको एक नये स्वास्थ व उमंग का अहसास होगा ।
सामन्यतः जब हम मेडिटेशन करते हैं तो धीरे-धीरे सभी प्रकार के मेडिटेशन इनर्जी को उपर की और ले जाने का ही कार्य करते हैं अतः सभी प्रकार की ध्यान विधियां इसमे सहयोगी है। लेकिन यदि आप स्पेसिफिक तरीके से ऊर्जा का ऊर्ध्व गमन करना चाहते हैं तो आप को एक तो सिद्धासन का अभ्यास करना चाहिए क्योंकि सिद्धासन मे हमारी प्राण ऊर्जा का लीकेज बंद हो जाता है और ऊर्जा उपर की और उठने लगती हैं और दूसरी बात की सिद्धासन मे बैठकर ही अश्वनी मुद्रा का अभ्यास करे। ये दोनों क्रियाएं इनर्जी को उपर शिफ्ट करने के लिए बेस्ट है।
Plz ans dijye me meditation roz krti hu yoga bhi kar rhi bht se spritual thinks bhi feel hote h mujhe But sex krne ki iccha paida ho gyi h man me bht tez samjh ni aarha me khud ko santusht krne kosis me lag jati hu Jabki mera iss chiz se koi lena dena nai h plz guide kre
bhai mai bht din se alaspan aur motaape ka shikaar hoon. pichle 2.5yrs se maine non veg chora hai, aur pichle 4 months se NAAM JAP kr rha hoon. bahut adhyatmik baatein sunta hoon ,krta hoon ,log prabhavit hote hai meri baaton se. par apne andar ek khoklapan ka abhaas hota hai,bhagwan ke prati puri nishtha hai jo barhke ke kabhi over-spiritual krdeta hai, to kabhi sab jhoot man na chahta hai. Aur kitna vi bhramcharya ka palan krna chahoon 3-4mahine ke baad naash hohi jaata hai. *mai KUNDALINI yog se darta hoon , kyuki mere pass koi guru nahi hai,mai 20varsh ka hoon, mera prashn hai ki kya exercise,ashwini mudra,hard music, Ganesh bhagwan ki puja se muladhara chakr me sudhar asakta hai. kripa marg darshan kare*
आप नियमित रूप से योग व व्यायाम करके अपने मोटापे और आलस्य को दूर कर सकते है। अपने अंदर जो आप खोखला पन देखते हैं वह आपके अंदर का शून्य है जिसका दिखना अच्छी बात है। ब्रह्मचर्य का पालन करने में अनावश्यक प्रयास नहीं करे, सहज रहे क्युकी अभी आपकी आयु ही ऐसी हैं। आपने मूलाधार चक्र के बारे में पूछा है, आप उसे इस प्रकार जागृत कर सकते है :- सप्त चक्रों के क्रम मे मूलाधार पहला चक्र है, इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मे सुधार होता है तथा उसकी समाजिक असुरक्षा दूर होती है । व्यक्ति के शरीर का मध्य भाग व इसके अंग गुप्तांग, गुर्दे, लिवर आदि का स्वास्थ्य उतम रहता है । ऊर्जा की प्रबलता बनी रहती है तथा मूलाधार से आगे के चक्रों मे बढने मे सुविधा हो जाती है । इस चक्र के जागृत होने से भगवान गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है । मूलाधार जागृति के लिये निम्न बाते बहुत जरुरी है :- मूलाधार चक्र का रंग लाल है अतः लाल रंग की वस्तुओं को अपने समीप रखना व लाल रंग के खाध पदार्थों का उपभोग करना उतम है, इसके इलावा कुछ ऐसे व्यायाम करना जिससे हमारे शरीर के मध्य भाग मे जोर पडे जैसे उठक-बैठक, दौडना, टहलना आदि लाभदायक है । कुछ योग आसन जैसे भुजंंग आसन, धनुरसन, चक्र आसन, कुर्सी आसन आदि भी मूलाधार जागृति करते है, कपालभाति, अग्निसार, भस्त्रिका आदि प्राणायाम भी मूलाधार मे जाग्रति लाते है । इसके इलावा ताड़न क्रिया, अश्वनी मुद्रा भी बहुत प्रभावी है । इस चक्र के देवता श्री गणेश है अतः इस चक्र पर ध्यान लगाते हुए भगवान गणेश जी के मंत्र का जाप करने से यह चक्र जागृत होता है । मंत्र इस प्रकार है : ॐ गं गणपतये नम: निम्नलिखित ध्यान से भी आप मूलाधार जागृति कर सकते है : किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएं। अपने दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें तथा अपनी आंखों को बन्द करके रखें। अपनी गर्दन, पीठ व कमर को सीधा करके रखें। अब सबसे पहले अपने ध्यान को गुदा द्वार व जननेन्द्रिय के बीच स्थान मे मूलाधार चक्र पर ले जाएं। फिर मूलाधार चक्र पर अपने मन को एकाग्र व स्थिर करें और अपने मन में चार पंखुड़ियों वाले बन्द लाल रंग वाले कमल के फूल की कल्पना करें। फिर अपने मन को एकाग्र करते हुए उस फूल की पंखुड़ियों को एक-एक करके खुलते हुए कमल के फूल का अनुभव करें। इसकी कल्पना के साथ ही उस आनन्द का अनुभव करने की कोशिश करें। उसकी पंखुड़ियों तथा कमल के बीच परागों से ओत-प्रोत सुन्दर फूल की कल्पना करें। इस तरह कल्पना करते हुए तथा उसके आनन्द को महसूस करते हुए अपने मन को कुछ समय तक मूलाधार चक्र पर स्थिर रखें। अथवा शांत होकर, आँखे बंद करके, कमर को सीधा रखते हुए, ध्यानस्थ मुद्रा मे बैठ जाये, अब अपना पुरा ध्यान अपनी आती जाती श्वास पर लाये और जब भी श्वास अंदर आये तो " औम" और जब भी श्वास बाहर आये तो " लं " बीज मंत्र का मानसिक उचारण करे ।
@@Dhyankagyan777 After meditation chanting m suffering from bad thoughts which never happened before. Nd i am suffering from autoimmune disease which indicates that cold hand feet, tiredness, brain fog, negative thoughts, low confidence, stress,anxietyanddepression. Is it becuz of muladhara chakra?
@@Dhyankagyan777 parson ye tha Guruji ki ek rat ki m so rha tha muje MERI aankhe band hotey huye pta chla mere right ear mein aawaj aai rrrrrrrrrrrrrrrhhhhhh or pure sharire mein vibration hui bohot tej Jaise sir fatega koi uthne ki kosise Kar rha tha m dar gya tha fir tin din bad Maine ek video dekhi ye sari process aatma ki sharire se Bhar nikalne ki thi
क्युकी ध्यान के कारण हमारा शरीर शांत हो जाता है और साथ ही हमारा ब्लेडर जोकि मूत्र को अपने मे समेट कर रखता है वह भी ढीला पड़ जाता है, जबकि पेशाब लीक ना हो इसलिए समान्य अवस्था मे वह टाइट बना रहता है तो इसलिए ध्यान के बाद यूरिन के लिए एक से अधिक बार जाना एक समान्य बात है। लेकिन यदि आपको असमान्य रूप से पेशाब की अधिकता हो रहीं हैं तो बेहतर होगा की आप चिकित्सक से परामर्श करे।
हमारे शरीर के हिलने अथवा गति शील बने रहने का मुख्य कारण होता है हमारा चंचल मन, जितना हमारा मन शांत होगा, उसी अनुपात मे शरीर भी शांत होता चला जाएगा । या इससे उल्टी बात भी सच है की यदि शरीर को शांत कर दे तो मन भी शांत हो जाएगा क्योंकि दोनों आपस मे जुड़े है। इसलिए यदि आपका शरीर स्थिर नहीं होता तो कोई बात नहीं, आप अपना मन शांत करे, तो शरीर भी शांत हो जाएगा। लेकिन ध्यान के दौरान शरीर हिलने का दूसरा कारण होता है ऊर्जा का जागरण, जब मूलाधार से ऊर्जा जागकर उपर उठती है तो भी शरीर ऊर्जा के कारण हिलता है । अगर आपको ज्यादा त्रिवता से शरीर हील रहा है तो आप कुछ दिन अनुलोम विलोम प्राणयाम करे, ऐसा करने से ऊर्जा संतुलित हो जायेगी। दूसरी बात, ध्यान के दौरान रोना आना बहुत कॉमन है, इसका कारण होता है हमारे अंदर हो रहे परिवर्तन, हमारे अवचेतन मन मे हमारी बचपन की या पूर्व जन्मों की बहुत सी स्मृतियां दबी रहती है जो ध्यान के प्रभाव मे अवचेतन मन से चेतन मन मे ऐसे ऊपर आ जाती है जैसे रुके हुए जल को हिलानेे से उसकी तलछट ऊपर सतह पर आ जाती है। इसके अलावा जब ध्यान के प्रभाव से हृदय चक्र जागृत होता है तब भी भावनाएं उमड़ने के कारण रोना आता है। और अच्छा है की ऐसा हो क्योंकि रोने से ऊर्जा मुक्त हो जाती है और हल्का कर देती है। य़ह एक अच्छी स्थिति है, जिनके दिल पवित्र व साफ़ होते हैं उनको ही रोना आता है, इसका अर्थ है की आपके अवचेतन में छिपे भाव प्रकट हो रहे है और मुक्त हो रहे है, आपको जब भी रोना आए तो बंद कमरे में बैठकर खुलकर रोये, इससे आपका अवचेतन मन साफ़ होगा और आप हल्का महसूस करेगे ।
@@Dhyankagyan777 tysm guru ji lekin y sirf dhyaan k samay hi nai hilta ese b bich bich m hilta rehta aur meri subeh 3:30 yn 4 bje neend khul jati h apne ap y sharir hilta hai jo guru ji vo bndh ho skta mere sharir m hosh nahi rehti fr
@@Dhyankagyan777 Guru ji mera sharir jalpeer ki samasya k karan hilta rehta hai iska koi upaay btaye guru ji bohot ilaj Karaya h please guru ji jisse y samasya thk ho jye iske liye koi asan yn pranayam h toh btaye guru ji 🙏😓
guruji mai naya sadhak hu aur koi bhi guru nahi hai mera agar mujhe apka number mil jata direct contact k liye to bohot accha hota mera age 17 saal hai or mujhe meditation karna accha lagta tai pranam guruji
Best 👌 bahut sunder lovely sweet voice heart ❤️ 💖 💗 touching èxplanation on .muladhar Chakra love ❤️ 😍 💖 and like 👍 👌 very much with respect 🙏 👏 and regards thanks ♥️ ❤️
बहुत सुंदर ज्ञान मीला कोटी कोटी नमन गुरु वर
शत शत नमन गुरु जी,,,🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
सूक्ष्म, शब्द का उच्चार गलत था ।
हार्दिक आभार |
बहुत अत्यावश्यक और अच्छी जानकारीका लाभ हो गया |
धन्यवादजी!
शुक्रिया आपका ❤🙏
Thank you pure soul ❤️🌹🙏
आपका हार्दिक आभार ।
जिस तरह से आपने मूलाधार संबंधी जानकारी दी है, अद्भुत है ।मैं पूरी तरह से आश्वस्त हो गया हूँ । पुनः आपका हार्दिक आभार ।
अनेक शुभकामनाएँ ।
Ati uttam jankari.dhanyavad
Pranam Guruji बहुत-बहुत dhanyvad Itna acche video banane ke liye aur banate Rahane ke liye bhi
अति सुंदर जानकारी बहुत बहुत धन्यवाद❤❤
Guruji ke charano m hamara pranam guruji mai jab se muladhar chakra ke liye dhyaan kar rha hu to mere peeth aur kamar m dard bani rahti h iska kya matlab hai mera margdarshan kraye
Dhanyawad sir ji..❤❤❤😊
Thanks guru ji🌹🌹🌹🌹🌹
Good
Jay ho Guru Dev 🚩🇮🇳👏
Vere good
@dhyankagyan777 After meditation chanting m suffering from bad thoughts which never happened before. Nd i am suffering from autoimmune disease which indicates that cold hand feet, tiredness, brain fog . Is it becuz of muladhara chakra?
Jai guru
Parnam sahib ji bahut bahut shukriya ji
Main meditation krti hu root chakra ki par mujhe red colour nhi dikhta,kya Krna chaiye
THANK YOU
I m really confused how to know weather muladhaar is over or under activated… I hv mixed symptoms 😢 plz help me.
धन्यवाद गुरुदेव🙏🙏
Thank you
Thank you very nice
Hari Om guru ji
Thank you so much sir
Non vegetarian LAM mantra ka jaap kar sakte hai???
Bhai tussi punjabi ho basically 😊😊....good info. Thank you.
guru ji pranam
kal raat me 5 baje meditation karne baitha to kuch der bar mere mathe k beech m agya chakra ki jagah vibrations feel huye or achanak mujhe white light dikhi
iska matlab kya hai guruji.
आज्ञा चक्र पर यानि दोनों भौहों के बीच मे वाइब्रेशन होना और प्रकाश दिखाई देना इसके प्राकृतिक चिन्ह है, ऐसा होना स्वाभाविक ही है । शिव तंत्र में कहा गया है की तीसरी आंख होश की भूखी है यानि इस पर फोकस करने से य़ह शीघ्र ही जागृत होने लगती है, अवेयरनेस इसका फूड है, आज्ञा चक्र पर ध्यान देते ही य़ह वाइब्रेशन देने लगता है, ऐसा इसके अतिसंवेदनशील होने के कारण है और य़ह वाइब्रेशन मात्र एक शुरुआती लक्षण है इस बात का की चक्र गति ले रहा है, जैसे जैसे साधना सघन होगी वैसे वैसे इस वाइब्रेशन का स्थूल शरीर से प्रभाव लुप्त हो जाएगा और सूक्ष्म शरीर में यही वाइब्रेशन सहज व विश्रांतदाई स्थिरता का रूप ले लेगी तब बाहरी शरीर पर इसकी इतनी प्रतीति नहीं होती लेकिन आरंभ में तो खूब होगी और होनी भी चाहिए क्योंकि य़ह एक शुभ लक्षण है।
आपको चाहिए की आप इस वाइब्रेशन या प्रकाश की चिंता ना करे, इसे होने दे, और इस कारण से अपना ध्यान का अभ्यास बंद ना करे, समयानुसार जब ऊर्जा संतुलित होगी तो अपने आप य़ह चीज सामान्य हो जाएगी, बस फिलहाल इतना ध्यान रखे की अभ्यास के समय अपने आज्ञा चक्र पर अति की एकाग्रता ना करके सहज रूप से व विश्रांति के साथ ध्यान लगाये।
Jai Guru ji
प्रणाम गुरुजी 🙏🙏🙏
🙏🙏
Sir muje dar bhot lagta hai..
डर हमारी असुरक्षा की भावना से जुड़ा है जो मूलाधार चक्र की कमजोरी से पैदा होता है अतः आपको अपने मूलाधार चक्र की साधना करनी चाहिए ।
इसके इलावा भय मुक्त होने के लिये भय की जांच पड़ताल करे । अधिकतर भय का कारण हमारे बचपन की परवरिश मे छिपा होता है । पुराने समय मे बच्चों को आज्ञा कारी बनाने के लिये उनको विभिन्न तरीकों से डराया जाता था और फिर वही ड़र सारी जिन्दगी के लिये उनके कोमल मन मे व उनके अवचेतन मे बैठ जाता है ।
दूसरा कारण होता है की हम जीवन को किस नजरिये से देखते है, एक जैसी परिस्थति मे एक व्यक्ति तो मजे से रह लेता है जबकी दूसरा व्यक्ति उसी परिस्तिथि मे भय का शिकार हो जाता है । अथार्त अगर आप जीवन मे बहुत गम्भीर यदि होगे, चीज़ो को व परिस्तिथियों को स्वीकार नही करेगे, अपना चिंतन नकरात्मक बना कर रखेगे, बाहर से अनुचित व नकरात्मक सूचनाएँ अपने भीतर संकलित करेगे तो आप मे भय आयु के साथ साथ बढता ही चला जायेगा ।
ऐसे मे भय मुक्ति के कुछ उपाय है जैसे : जीवन मे सांसारिकता को कम व आध्यात्मिकता को अधिक स्थान दे, लंबी आयु का मोह त्याग कर मृत्यु को मानसिक रूप से स्वीकार करे, अपने नित्य प्रति के जीवन मे योग, व्यायाम, प्राणायाम, ध्यान, ज्ञान को सर्वोच्च स्थान दे, मस्तिष्क को मजबूत बनाने वाली व होश को विकसित करने वाली आर्युवेदीक जड़ी बूटी ले जैसे ब्रह्मी, अश्वगंधा आदि । किसी प्रकार का भी व्यसन जो मस्तिष्क को कमजोर करे उसे ना करे । किसी भी प्रकार के हालात या संकट आदि से निपटने के लिये खुद को मानसिक रूप से हमेशा तेयार रखे । हमारे अधिकतर भय भविष्य आधारित व काल्पनिक होते है जो कभी घटित नही होते, इस तथ्य को सम्झे । भय की जड़े हमारे चेतन नही अपितु अवचेतन मन मे होती है अतः कभी भी ऐसी बाते ना देखे ना सुने और ना करे जो आपके अवचेतन मन मे जाकर आपको कमजोर करे । रोज 8 घन्टे की गहरी नींद ले, तनाव व चिंता करने की आदत से बचे ।
Namaste guruji
Yha aaye hue har insan ka bidgdaa hua hi hoga promise
Mera sahi hai
Haan bhai kyonki itna perfect hona bahut rare hai
गुरु जी आपका ध्यनवाद ये ज्ञान देने के लिए । ये बात बिलकुल सच है । ये सारे चीजे मेरे साथ हो रही है । मुझे अंजना सा डर लगता रहता है । और बीमार भी होती रहती हु । इसके अलावा पेट हमेशा खराब रहता है । पहले नहीं था मगर क्या ऐसा होता है की कुछ गलत लोग जो हमारे आस पास रहते है और हमसे वेवाजय लड़ाई करते रहते है। वो भी हमारे चक्रों की ऊर्जा खा के जीते हैं। इसमें कोई जानकारी दीजिए ।
Khana khane ka niyam follow kijiye.garam paani pijiye.... pranayam is god
जी हाँ, निश्चित ही ऐसा होता है की कुछ नकरात्मक प्रवृत्ति के लोग समय समय पर दूसरों की पॉजिटिव इनर्जी को चूस लेते हैं जिससे उनको तो लाभ हो जाता है लेकिन दूसरे का नुकसान हो जाता है।
ऐसा वे जानबूझकर भी नहीं करते, बस उनका सभाव, नेचर ही ऐसी होती है । ऐसे लोग आपके दुश्मनों मे ही नहीं बल्कि आपके मित्रों अथवा घर के सदस्यों मे भी मौजूद हो सकते है।
ऐसे मे बेहतर यही होता है कि आप ऐसे लोगों से उचित दूरी बनाये रखे या न्यूट्रल रहे, क्युकी इनको बदलना असम्भव के समान होता है।
आपका पेट खराब होना और डर लगना, दोनों चीजें एक दूसरे से जुड़ी हुई है क्युकी यदि आपको कोई भावनात्मक तनाव होगा तो उस वजह से पेट खराब हो जाता है। इसलिए जब आपका डर यदि खत्म हो गया तो पेट भी ठीक हो जाएगा और बीमारी भी ठीक हो जायेगी ।
डर हमारी असुरक्षा की भावना से जुड़ा है जो मूलाधार चक्र की कमजोरी से पैदा होता है अतः आपको अपने मूलाधार चक्र की साधना करनी चाहिए ।
इसके इलावा भय मुक्त होने के लिये भय की जांच पड़ताल करे । अधिकतर भय का कारण हमारे बचपन की परवरिश मे छिपा होता है । पुराने समय मे बच्चों को आज्ञा कारी बनाने के लिये उनको विभिन्न तरीकों से डराया जाता था और फिर वही ड़र सारी जिन्दगी के लिये उनके कोमल मन मे व उनके अवचेतन मे बैठ जाता है ।
दूसरा कारण होता है की हम जीवन को किस नजरिये से देखते है, एक जैसी परिस्थति मे एक व्यक्ति तो मजे से रह लेता है जबकी दूसरा व्यक्ति उसी परिस्तिथि मे भय का शिकार हो जाता है । अथार्त अगर आप जीवन मे बहुत गम्भीर यदि होगे, चीज़ो को व परिस्तिथियों को स्वीकार नही करेगे, अपना चिंतन नकरात्मक बना कर रखेगे, बाहर से अनुचित व नकरात्मक सूचनाएँ अपने भीतर संकलित करेगे तो आप मे भय आयु के साथ साथ बढता ही चला जायेगा ।
ऐसे मे भय मुक्ति के कुछ उपाय है जैसे : जीवन मे सांसारिकता को कम व आध्यात्मिकता को अधिक स्थान दे, लंबी आयु का मोह त्याग कर मृत्यु को मानसिक रूप से स्वीकार करे, अपने नित्य प्रति के जीवन मे योग, व्यायाम, प्राणायाम, ध्यान, ज्ञान को सर्वोच्च स्थान दे, मस्तिष्क को मजबूत बनाने वाली व होश को विकसित करने वाली आर्युवेदीक जड़ी बूटी ले जैसे ब्रह्मी, अश्वगंधा आदि । किसी प्रकार का भी व्यसन जो मस्तिष्क को कमजोर करे उसे ना करे । किसी भी प्रकार के हालात या संकट आदि से निपटने के लिये खुद को मानसिक रूप से हमेशा तेयार रखे । हमारे अधिकतर भय भविष्य आधारित व काल्पनिक होते है जो कभी घटित नही होते, इस तथ्य को सम्झे । भय की जड़े हमारे चेतन नही अपितु अवचेतन मन मे होती है अतः कभी भी ऐसी बाते ना देखे ना सुने और ना करे जो आपके अवचेतन मन मे जाकर आपको कमजोर करे । रोज 8 घन्टे की गहरी नींद ले, तनाव व चिंता करने की आदत से बचे ।
@@Dhyankagyan777 आपका बहुत बहुत धन्यवाद। अपने ये ज्ञान दिया ।
Bhai mane joine kahi sako ke mara kaya chakra active 6
Sir mera root chakra over active hogaya hai.. Jabhi bhi me mantra ucharan karta hu to sirf root chakra jyada energy khinchi ti hai.. Esko kaise neutral karu?
Ye acchi baat hai, pahle root chakra hi activate hoga or energy bhi sari yahi accumulate hogi, so no problem, just let it happen, jab ek baar excess main energy root chakra par ikathi hogi toh apne aap upar ke chakra usko apni or khich lege
Guruji parnama
Guruji aksar dhyan agya chakra pr lgaya jata h to kya agya chakra pr dhyan lgane se baki ke chakra me activity ho sakti he ?
जब आपका आज्ञा चक्र जागृत होने लगेगा तो आपको बाकी के चक्रों की अलग से जागृत करने की जरूरत नहीं है क्यूंकि सभी चक्र आपस मे जुड़े हैं, पिनीयल ग्लेनड जोकि आज्ञा चक्र की ही स्थूल अभिव्यक्ति है, इसको मास्टर ग्लेनड बोला गया है, इसलिए केवल पिनीयल ग्रंथि के यानि केवल आज्ञा चक्र के एक्टिव होने से बाकी के सभी चक्र स्वयं से ही एक्टिव हो जायेगे, उसके लिए अलग से कुछ करने की जरूरत नहीं है।
दूसरी बात, आज्ञा चक्र और मूलाधार चक्र, ये दोनों चक्र एक ही पोल के दो विपरित ध्रुव है, मूलाधार पोल के एक हिस्से यानि नीचे स्थित है और आज्ञा चक्र पोल के दूसरे हिस्से यानि ऊपर स्थित है और इन दोनों चक्रों के बीच मे ही चार अन्य चक्र स्थित है, और जैसे ही आज्ञा चक्र एक्टिव होगा तो ठीक उसी अनुपात मे नीचे इसका दूसरा ध्रुव यानि मूलाधार चक्र भी एक्टिव हो जाएगा या अगर मूलाधार नीचे पहले जागृत होता है तो उसी अनुपात मे ऊपर आज्ञा चक्र भी जागृत होने लगेगा क्यूंकि दोनों आपस मे जुड़े है, और बीच के रेखा मे अन्य चक्र भी इसी मे जुड़े हैं, इसलिए य़ह कहा जा सकता है की मात्र आज्ञा चक्र की जागृति से बाकी के चक्र स्वत ही जागृत होने लगेंगे।
एक सधे सब सधे यानि एकमात्र आज्ञा चक्र के जागृत होने से ही सब हो जाएगा।
प्रणिपात गुरुश्री, आपने मेरे सालो की शंका को दूर किया ही इसीलिए में आपका आभारी हु में आपसे शायद कभी मिल तो नहीं सकता इसीलिए यही से इस तुच्छ शिष्य का प्रणाम स्वीकार करे, हर हर महादेव।🥲🙏
Sunderkand sun sakte hai, sriman narayana sun sakte hai?
Yes
IWISH TO KNOW HOW CAN I REJUVINATE/AWAKE
MY MULADHAR CHAKRA
I WISH TO ACTIVATE MY MULADHAR CHAKRA.
आप अपना मूलाधार चक्र इस प्रकार विकसित कर सकते है:-
सप्त चक्रों के क्रम मे मूलाधार पहला चक्र है, इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मे सुधार होता है तथा उसकी समाजिक असुरक्षा दूर होती है । व्यक्ति के शरीर का मध्य भाग व इसके अंग गुप्तांग, गुर्दे, लिवर आदि का स्वास्थ्य उतम रहता है । ऊर्जा की प्रबलता बनी रहती है तथा मूलाधार से आगे के चक्रों मे बढने मे सुविधा हो जाती है । इस चक्र के जागृत होने से भगवान गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है ।
मूलाधार जागृति के लिये निम्न बाते बहुत जरुरी है :-
मूलाधार चक्र का रंग लाल है अतः लाल रंग की वस्तुओं को अपने समीप रखना व लाल रंग के खाध पदार्थों का उपभोग करना उतम है, इसके इलावा कुछ ऐसे व्यायाम करना जिससे हमारे शरीर के मध्य भाग मे जोर पडे जैसे उठक-बैठक, दौडना, टहलना आदि लाभदायक है । कुछ योग आसन जैसे भुजंंग आसन, धनुरसन, चक्र आसन, कुर्सी आसन आदि भी मूलाधार जागृति करते है, कपालभाति, अग्निसार, भस्त्रिका आदि प्राणायाम भी मूलाधार मे जाग्रति लाते है । इसके इलावा ताड़न क्रिया, अश्वनी मुद्रा भी बहुत प्रभावी है ।
इस चक्र के देवता श्री गणेश है अतः इस चक्र पर ध्यान लगाते हुए भगवान गणेश जी के मंत्र का जाप करने से यह चक्र जागृत होता है । मंत्र इस प्रकार है : ॐ गं गणपतये नम:
निम्नलिखित ध्यान से भी आप मूलाधार जागृति कर सकते है :
किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएं। अपने दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें तथा अपनी आंखों को बन्द करके रखें। अपनी गर्दन, पीठ व कमर को सीधा करके रखें। अब सबसे पहले अपने ध्यान को गुदा द्वार व जननेन्द्रिय के बीच स्थान मे मूलाधार चक्र पर ले जाएं। फिर मूलाधार चक्र पर अपने मन को एकाग्र व स्थिर करें और अपने मन में चार पंखुड़ियों वाले बन्द लाल रंग वाले कमल के फूल की कल्पना करें। फिर अपने मन को एकाग्र करते हुए उस फूल की पंखुड़ियों को एक-एक करके खुलते हुए कमल के फूल का अनुभव करें। इसकी कल्पना के साथ ही उस आनन्द का अनुभव करने की कोशिश करें। उसकी पंखुड़ियों तथा कमल के बीच परागों से ओत-प्रोत सुन्दर फूल की कल्पना करें। इस तरह कल्पना करते हुए तथा उसके आनन्द को महसूस करते हुए अपने मन को कुछ समय तक मूलाधार चक्र पर स्थिर रखें।
अथवा
शांत होकर, आँखे बंद करके, कमर को सीधा रखते हुए, ध्यानस्थ मुद्रा मे बैठ जाये, अब अपना पुरा ध्यान अपनी आती जाती श्वास पर लाये और जब भी श्वास अंदर आये तो " औम" और जब भी श्वास बाहर आये तो " लं " बीज मंत्र का मानसिक उचारण करे ।
Sir 🙏 Kya muladhar chakara se cafa ki vriddhi bhi karta h. Ye chakra bigadne ya jagrti ka sanket h? Mera cafa bhut
jyada ho rha h. Kya karna chahiye?.
जी हाँ, मूलाधार चक्र की विकृति से शरीर में कफ असन्तुलित हो सकता है, इसके लिए आप मूलाधार चक्र को संतुलित करने के उपाय करे।
इसके अलावा आप हर रोज कुछ देर तक शारीरिक व्यायाम करे, प्राणायाम करे, गर्म तासीर की चीजें खाए, समय से सोये और जल्दी उठे, शरीर की हर रोज मालिश करे ।
@@Dhyankagyan777 sir 🙏🌹 aap se bat Karna chahta hu. Sari isthti btani h. Mere sath bhut kuch ho rha h. I don't know what is that.koi contact Dene ki cripa Kare.
Parnam guruji mujhe gussa bhut ata h cantrol ni krpati kese cantrol kru gussa ko
गुस्सा अथवा क्रोध की वास्तविक शान्ति तो समझ के साथ और व्यक्ति के अनुभवी व मानसिक रूप से प्रौढ़ होने पर ही होती है, जिसमे समय लगता है । किंतु फिर भी कुछ बातों का ख्याल रख के क्रोध को नियंत्रित किया जा सकता है जैसे की:-
1) अपने अहंकार पर नियंत्रण रखे, क्युकि अधिकतर तो हम अहंकार के वशीभूत होकर ही क्रोधित होते है ।
2) जीवन मे शिकायत कम करके, स्वीकार भाव से जीना सिखे, क्युकि जब हम किसी चीज़ की शिकायत या विरोध करते है तो क्रोध उत्पन होता है, जबकि स्थिति को स्वीकार कर लेने से क्रोध खत्म हो जाता है ।
3) अपने अंदर श्रमा भाव को विकसित करे, दूसरे को नादान मानकर उनको श्रमा कर दे ।
4) हृदय मे प्रेम, सहनशिलता, करूणा, परोपकार, सहायता जैसे उच्च भावों व विचारो को विकसित करे । जहा उच्च विचार होते है वहा क्रोध जन्म नही ले पाता ।
5) स्वयं को हमेशा विनित बनाकर परमात्मा के चरणों मे समर्पित कर के रखे ।
6) अपने आहार मे गर्म तासिर के खाध पदार्थ, मादक पदार्थ व मदिरा आदि का सेवन न करे ।
7) नित्यप्रति सुसंगति मे रहे, दुर्जनों के संग का त्याग करे, भगवान का भजन, ध्यान, सत्संग आदि करे ।
8) योग व प्राणायाम का हर रोज सुबह अभ्यास करे । खासकर अनुलोम विलोम, शीतली, सित्कारि, चंद्र भेदी प्राणायाम करे, इनके अभ्यास से आपमे शीतलता बढ़ेगी और क्रोध घटेगा ।
9) आपको नित्य प्रति अपने हृदय चक्र को संतुलित करने के लिए विशेष ध्यान का अभ्यास करना चाहिए, क्यूंकि हृदय चक्र के असंतुलित होने से ही क्रोध उत्पन्न होता है जबकि इस चक्र के संतुलित होने से श्रमा और प्रेम उत्पन्न होता है।
Dhanywad guruji 🙏🙏❤️
Parnam guru ji mai aapse puchha chahta hu ki jo kundalini jagarn se jo hame sidhiya milti Keya ye sidhiya aage chalkar kam ho jati hai Keya jara marg darshan de guru ji
समान्य स्थिति में तो ऐसा होता है की हमारा सूक्ष्म शरीर और सूक्ष्म शरीर मे स्थित सभी चक्र और कुंडलिनी शक्ति आदि, इन सब की स्थिति, की चक्र कितनी अवस्था मे जागृत या सुप्त रहेगे, य़ह इस बात पर निर्भर करेगा की हमारे सूक्ष्म शरीर मे प्राण ऊर्जा का स्तर क्या है, क्यूंकि हमारे सभी चक्र प्राण ऊर्जा के ही घटने बढ़ने से जागृत या सुप्त होते हैं, जिस चक्र को जितनी प्राण की मात्रा उपलब्ध होगी वह चक्र उतना ही जागृत होगा और चक्र को यदि प्राण ऊर्जा पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं होगी तो चक्र सुप्त अथवा ब्लॉक भी हो सकता है।
अतः ऐसा नहीं है की कोई भी चक्र स्थाई रूप से शत प्रतिशत हमेशा जागृत ही रहेगा या सुप्त ही रहेगा, इनकी स्थिति हमेशा आंशिक या पूर्ण रूप से ऊर्जा की आपूर्ति के आधर पर घटती बढ़ती रहती हैं।
इसलिए जब तक हमारी साधना जारी रहेगी तब तक चक्रों मे क्रमिक विकास चलता रहता है क्यूंकि उनको प्राणायाम व ध्यान के माध्यम से प्राण ऊर्जा उपलब्ध होती रहती है किन्तु यदि साधना बिल्कुल बंद कर दी जाये तो ऊर्जा की कम आपूर्ति के कारण जागृत चक्र वापिस सुप्त अवस्था मे भी जा सकता है।
किन्तु य़ह भी सत्य है की अगर सफ़लतापूर्वक लंबी साधना हो तो कुछ चक्रों का स्थाई जागरण भी हो सकता है क्योंकि जैसे मस्तिष्क के कुछ तन्तु जो खुल गए तो फिर वो सदा के लिए ही खुल गए फिर वो कभी बंद नहीं होते, ऐसा विकास की क्रिया के आधार पर होता है, उदाहरण के लिए जिस व्यक्ती ने दसवी कक्षा पास कर ली तो वो फिर अब पीछे आठवीं कक्षा मे कभी नहीं जाएगा ब्लकि आगे की कक्षा मे ही जाएगा।
Muladhar majboot kese karu
आप अपना मूलाधार चक्र इस प्रकार बैलेन्स व विकसित कर सकते है:-
सप्त चक्रों के क्रम मे मूलाधार पहला चक्र है, इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मे सुधार होता है तथा उसकी समाजिक असुरक्षा दूर होती है । व्यक्ति के शरीर का मध्य भाग व इसके अंग गुप्तांग, गुर्दे, लिवर आदि का स्वास्थ्य उतम रहता है । ऊर्जा की प्रबलता बनी रहती है तथा मूलाधार से आगे के चक्रों मे बढने मे सुविधा हो जाती है । इस चक्र के जागृत होने से भगवान गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है ।
मूलाधार जागृति के लिये निम्न बाते बहुत जरुरी है :-
मूलाधार चक्र का रंग लाल है अतः लाल रंग की वस्तुओं को अपने समीप रखना व लाल रंग के खाध पदार्थों का उपभोग करना उतम है, इसके इलावा कुछ ऐसे व्यायाम करना जिससे हमारे शरीर के मध्य भाग मे जोर पडे जैसे उठक-बैठक, दौडना, टहलना आदि लाभदायक है । कुछ योग आसन जैसे भुजंंग आसन, धनुरसन, चक्र आसन, कुर्सी आसन आदि भी मूलाधार जागृति करते है, कपालभाति, अग्निसार, भस्त्रिका आदि प्राणायाम भी मूलाधार मे जाग्रति लाते है । इसके इलावा ताड़न क्रिया, अश्वनी मुद्रा भी बहुत प्रभावी है ।
इस चक्र के देवता श्री गणेश है अतः इस चक्र पर ध्यान लगाते हुए भगवान गणेश जी के मंत्र का जाप करने से यह चक्र जागृत होता है । मंत्र इस प्रकार है : ॐ गं गणपतये नम:
निम्नलिखित ध्यान से भी आप मूलाधार जागृति कर सकते है :
किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएं। अपने दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें तथा अपनी आंखों को बन्द करके रखें। अपनी गर्दन, पीठ व कमर को सीधा करके रखें। अब सबसे पहले अपने ध्यान को गुदा द्वार व जननेन्द्रिय के बीच स्थान मे मूलाधार चक्र पर ले जाएं। फिर मूलाधार चक्र पर अपने मन को एकाग्र व स्थिर करें और अपने मन में चार पंखुड़ियों वाले बन्द लाल रंग वाले कमल के फूल की कल्पना करें। फिर अपने मन को एकाग्र करते हुए उस फूल की पंखुड़ियों को एक-एक करके खुलते हुए कमल के फूल का अनुभव करें। इसकी कल्पना के साथ ही उस आनन्द का अनुभव करने की कोशिश करें। उसकी पंखुड़ियों तथा कमल के बीच परागों से ओत-प्रोत सुन्दर फूल की कल्पना करें। इस तरह कल्पना करते हुए तथा उसके आनन्द को महसूस करते हुए अपने मन को कुछ समय तक मूलाधार चक्र पर स्थिर रखें।
अथवा
शांत होकर, आँखे बंद करके, कमर को सीधा रखते हुए, ध्यानस्थ मुद्रा मे बैठ जाये, अब अपना पुरा ध्यान अपनी आती जाती श्वास पर लाये और जब भी श्वास अंदर आये तो " औम" और जब भी श्वास बाहर आये तो " लं " बीज मंत्र का मानसिक उचारण करे ।
People says that this practices should be done under a qualified & experience demontrster
Other wise It may be harmful
What do you suggest & what is your charges with the required time to get proper training.
You are saying right, actually each exercise of yoga and meditation should be done under the guidence of a teacher then after learning it properly you can practice it at home with yourself as well
For the moment, we are not taking any meditation camp, in which we use to teach such kriyas
Still If you add some shines❤
Libido power down ho gyi ho to k kre. Ise jldi s jldi ksa activate kre qki iski vgha s bahut problem ho rhi h pls reply
Libido पॉवर को बढ़ाने के लिए मूलाधार चक्र को स्ट्रॉन्ग बनाना चाहिए क्युकी यही चक्र हमारी काम शक्ति और हमारे काम अंगों का प्रतिनिधित्व करता है।
मूलाधार चक्र को मज़बूत करने के लिये निम्न बाते बहुत जरुरी है :-
मूलाधार चक्र का रंग लाल है अतः लाल रंग की वस्तुओं को अपने समीप रखना व लाल रंग के खाध पदार्थों का उपभोग करना उतम है, इसके इलावा कुछ ऐसे व्यायाम करना जिससे हमारे शरीर के मध्य भाग मे जोर पडे जैसे उठक-बैठक, दौडना, टहलना आदि लाभदायक है । कुछ योग आसन जैसे भुजंंग आसन, धनुरसन, चक्र आसन, कुर्सी आसन आदि भी मूलाधार जागृति करते है, कपालभाति, अग्निसार, भस्त्रिका आदि प्राणायाम भी मूलाधार मे जाग्रति लाते है । इसके इलावा ताड़न क्रिया, अश्वनी मुद्रा भी बहुत प्रभावी है । इन क्रियाओं के अभ्यास से आपकी Libido पॉवर बढ़नी शुरू हो जायेगी।
Main kehi mahino se lam mantra ka meditation kar rehi hu magar meri 7 chakra abhi tak active nehi huya .. main kya karu ??
Early morning me krti ho aap?
धन्य हो गुरुवर 🙏
मूलाधार चक्र को एक्टिवेट कैसे kary???plz batay
आप अपना मूलाधार चक्र इस प्रकार विकसित कर सकते है:-
सप्त चक्रों के क्रम मे मूलाधार पहला चक्र है, इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मे सुधार होता है तथा उसकी समाजिक असुरक्षा दूर होती है । व्यक्ति के शरीर का मध्य भाग व इसके अंग गुप्तांग, गुर्दे, लिवर आदि का स्वास्थ्य उतम रहता है । ऊर्जा की प्रबलता बनी रहती है तथा मूलाधार से आगे के चक्रों मे बढने मे सुविधा हो जाती है । इस चक्र के जागृत होने से भगवान गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है ।
मूलाधार जागृति के लिये निम्न बाते बहुत जरुरी है :-
मूलाधार चक्र का रंग लाल है अतः लाल रंग की वस्तुओं को अपने समीप रखना व लाल रंग के खाध पदार्थों का उपभोग करना उतम है, इसके इलावा कुछ ऐसे व्यायाम करना जिससे हमारे शरीर के मध्य भाग मे जोर पडे जैसे उठक-बैठक, दौडना, टहलना आदि लाभदायक है । कुछ योग आसन जैसे भुजंंग आसन, धनुरसन, चक्र आसन, कुर्सी आसन आदि भी मूलाधार जागृति करते है, कपालभाति, अग्निसार, भस्त्रिका आदि प्राणायाम भी मूलाधार मे जाग्रति लाते है । इसके इलावा ताड़न क्रिया, अश्वनी मुद्रा भी बहुत प्रभावी है ।
इस चक्र के देवता श्री गणेश है अतः इस चक्र पर ध्यान लगाते हुए भगवान गणेश जी के मंत्र का जाप करने से यह चक्र जागृत होता है । मंत्र इस प्रकार है : ॐ गं गणपतये नम:
निम्नलिखित ध्यान से भी आप मूलाधार जागृति कर सकते है :
किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएं। अपने दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें तथा अपनी आंखों को बन्द करके रखें। अपनी गर्दन, पीठ व कमर को सीधा करके रखें। अब सबसे पहले अपने ध्यान को गुदा द्वार व जननेन्द्रिय के बीच स्थान मे मूलाधार चक्र पर ले जाएं। फिर मूलाधार चक्र पर अपने मन को एकाग्र व स्थिर करें और अपने मन में चार पंखुड़ियों वाले बन्द लाल रंग वाले कमल के फूल की कल्पना करें। फिर अपने मन को एकाग्र करते हुए उस फूल की पंखुड़ियों को एक-एक करके खुलते हुए कमल के फूल का अनुभव करें। इसकी कल्पना के साथ ही उस आनन्द का अनुभव करने की कोशिश करें। उसकी पंखुड़ियों तथा कमल के बीच परागों से ओत-प्रोत सुन्दर फूल की कल्पना करें। इस तरह कल्पना करते हुए तथा उसके आनन्द को महसूस करते हुए अपने मन को कुछ समय तक मूलाधार चक्र पर स्थिर रखें।
अथवा
शांत होकर, आँखे बंद करके, कमर को सीधा रखते हुए, ध्यानस्थ मुद्रा मे बैठ जाये, अब अपना पुरा ध्यान अपनी आती जाती श्वास पर लाये और जब भी श्वास अंदर आये तो " औम" और जब भी श्वास बाहर आये तो " लं " बीज मंत्र का मानसिक उचारण करे ।
And ek aur cheeez sir mere throat chkaras me aaj kal energy circulation feel sense ho rhi hai... Kabhi kabhi ye chakas ki speed bd jati hai.... Sote( sleeping) time...
ऐसा होना अच्छा है, लेकिन यदि आपको असुविधा हो रहीं हो तो कुछ समय तक ओम मंत्र के उच्चारण से ठीक हो जायेगा।
@@Dhyankagyan777 thx g!!! Aaagey aap issi terha se marg darshan krte rehna guru g!!!
फिर कैसे ठीक करे उपाय भी बताऐ🙏🙏
आप अपना मूलाधार चक्र इस प्रकार विकसित कर सकते है:-
सप्त चक्रों के क्रम मे मूलाधार पहला चक्र है, इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मे सुधार होता है तथा उसकी समाजिक असुरक्षा दूर होती है । व्यक्ति के शरीर का मध्य भाग व इसके अंग गुप्तांग, गुर्दे, लिवर आदि का स्वास्थ्य उतम रहता है । ऊर्जा की प्रबलता बनी रहती है तथा मूलाधार से आगे के चक्रों मे बढने मे सुविधा हो जाती है । इस चक्र के जागृत होने से भगवान गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है ।
मूलाधार जागृति के लिये निम्न बाते बहुत जरुरी है :-
मूलाधार चक्र का रंग लाल है अतः लाल रंग की वस्तुओं को अपने समीप रखना व लाल रंग के खाध पदार्थों का उपभोग करना उतम है, इसके इलावा कुछ ऐसे व्यायाम करना जिससे हमारे शरीर के मध्य भाग मे जोर पडे जैसे उठक-बैठक, दौडना, टहलना आदि लाभदायक है । कुछ योग आसन जैसे भुजंंग आसन, धनुरसन, चक्र आसन, कुर्सी आसन आदि भी मूलाधार जागृति करते है, कपालभाति, अग्निसार, भस्त्रिका आदि प्राणायाम भी मूलाधार मे जाग्रति लाते है । इसके इलावा ताड़न क्रिया, अश्वनी मुद्रा भी बहुत प्रभावी है ।
इस चक्र के देवता श्री गणेश है अतः इस चक्र पर ध्यान लगाते हुए भगवान गणेश जी के मंत्र का जाप करने से यह चक्र जागृत होता है । मंत्र इस प्रकार है : ॐ गं गणपतये नम:
निम्नलिखित ध्यान से भी आप मूलाधार जागृति कर सकते है :
किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएं। अपने दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें तथा अपनी आंखों को बन्द करके रखें। अपनी गर्दन, पीठ व कमर को सीधा करके रखें। अब सबसे पहले अपने ध्यान को गुदा द्वार व जननेन्द्रिय के बीच स्थान मे मूलाधार चक्र पर ले जाएं। फिर मूलाधार चक्र पर अपने मन को एकाग्र व स्थिर करें और अपने मन में चार पंखुड़ियों वाले बन्द लाल रंग वाले कमल के फूल की कल्पना करें। फिर अपने मन को एकाग्र करते हुए उस फूल की पंखुड़ियों को एक-एक करके खुलते हुए कमल के फूल का अनुभव करें। इसकी कल्पना के साथ ही उस आनन्द का अनुभव करने की कोशिश करें। उसकी पंखुड़ियों तथा कमल के बीच परागों से ओत-प्रोत सुन्दर फूल की कल्पना करें। इस तरह कल्पना करते हुए तथा उसके आनन्द को महसूस करते हुए अपने मन को कुछ समय तक मूलाधार चक्र पर स्थिर रखें।
अथवा
शांत होकर, आँखे बंद करके, कमर को सीधा रखते हुए, ध्यानस्थ मुद्रा मे बैठ जाये, अब अपना पुरा ध्यान अपनी आती जाती श्वास पर लाये और जब भी श्वास अंदर आये तो " औम" और जब भी श्वास बाहर आये तो " लं " बीज मंत्र का मानसिक उचारण करे ।
“संकल्प-प्रार्थना”
वक़्तुंड. महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ।
निर्विष्न॑ कुरु मे देव! सर्वकार्येषु सर्वदा।।॥।।
सर्वस्य बुद्धिर्पेण जनस्य हृदि संस्थिते।
स्वर्गपवर्गदा देवि! नारायणि! _ नमोस्तुते।|2।।
गुरुब्रह्या.. गुरुर्विष्णु, गुरुदेवों महेश्वरः|
गुरु: साक्षात् परब्रहम तस्मे श्री गुरुवेनमः”||3।।
4. मन ही गणेश (गण » ईश अर्थात् इन्द्रिय समूह को हिलाने वाला) है।
2. बुद्धि ही सर्वन्तर्व्याप्त ज्ञान देवी सरस्वती है।
3. आत्मा ही परब्रह्म परमात्मा है। और,
4, आत्मा की सत्वरज-तमात्मक त्रिमूर्ति श्री दत्तात्रेय स्वरूप
सदगुरु हैं।
अर्थ--हे वक्रतुंड (ठेढ़ी सुण्ड वाले) ऊँकार! आप विश्वोदर हो,
विश्वव्यापी हो, अनन्त कोटि सूर्यतुल्य आपका प्रकाश है। आपको
मेरा बारम्बार प्रणाम है। भगवान मेरे सम्पूर्ण विघ्न नष्ठ करके मेरे
सम्पूर्ण कार्य सदैव सिद्ध करो। सम्पूर्ण लोगों के हृदय में बुद्धिरूप
से सदा विराजमान रहने वाली और स्वर्ग तथा मोक्ष देने वाली हे
परम दयालु माता देवी नारायणी! तेरे चरण कमल में मेरा बार-बार
प्रणाम है। आप मुझे सदैव सुबुद्धि दो। हे जगदगुरो! आप ही ब्रह्मा,
विष्णु, महेंश्वर हो सम्पूर्ण जगत् के प्रेरक तथा चालक हो। आप ही
की आज्ञा से चन्द्र सूर्य प्रकाशित होते हैं, वायु बहता है, मेघ बरसते
हैं और सम्पूर्ण चराचर जीव अपना-अपना कार्य सुयन्त्रित कर रहे
हैं। आप साक्षात् परब्रह्म परमेश्वर हो, अनाथों के नाथ हो, ठोकर
लगने पर ही सम्हालने वाली भूमि की तरह अनन्त अपराध हाथ से
होने पर भी -- महान् अपराधी होने पर भी -- हमें सम्हालने वाले,
हमारे एक मात्र आधार आप ही हो, हम आप ही की शरण में हैं।
आप शरणागत वत्सल हो, आप हमें सच्चे सन्मार्ग से कभी विचलित
न होने दो। आपको मेरा विनम्र बार-बार प्रणाम है।
Muladhar chakra kese jagrut kare bataye bhai
आप अपना मूलाधार चक्र इस प्रकार विकसित कर सकते है:-
सप्त चक्रों के क्रम मे मूलाधार पहला चक्र है, इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मे सुधार होता है तथा उसकी समाजिक असुरक्षा दूर होती है । व्यक्ति के शरीर का मध्य भाग व इसके अंग गुप्तांग, गुर्दे, लिवर आदि का स्वास्थ्य उतम रहता है । ऊर्जा की प्रबलता बनी रहती है तथा मूलाधार से आगे के चक्रों मे बढने मे सुविधा हो जाती है । इस चक्र के जागृत होने से भगवान गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है ।
मूलाधार जागृति के लिये निम्न बाते बहुत जरुरी है :-
मूलाधार चक्र का रंग लाल है अतः लाल रंग की वस्तुओं को अपने समीप रखना व लाल रंग के खाध पदार्थों का उपभोग करना उतम है, इसके इलावा कुछ ऐसे व्यायाम करना जिससे हमारे शरीर के मध्य भाग मे जोर पडे जैसे उठक-बैठक, दौडना, टहलना आदि लाभदायक है । कुछ योग आसन जैसे भुजंंग आसन, धनुरसन, चक्र आसन, कुर्सी आसन आदि भी मूलाधार जागृति करते है, कपालभाति, अग्निसार, भस्त्रिका आदि प्राणायाम भी मूलाधार मे जाग्रति लाते है । इसके इलावा ताड़न क्रिया, अश्वनी मुद्रा भी बहुत प्रभावी है ।
इस चक्र के देवता श्री गणेश है अतः इस चक्र पर ध्यान लगाते हुए भगवान गणेश जी के मंत्र का जाप करने से यह चक्र जागृत होता है । मंत्र इस प्रकार है : ॐ गं गणपतये नम:
निम्नलिखित ध्यान से भी आप मूलाधार जागृति कर सकते है :
किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएं। अपने दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें तथा अपनी आंखों को बन्द करके रखें। अपनी गर्दन, पीठ व कमर को सीधा करके रखें। अब सबसे पहले अपने ध्यान को गुदा द्वार व जननेन्द्रिय के बीच स्थान मे मूलाधार चक्र पर ले जाएं। फिर मूलाधार चक्र पर अपने मन को एकाग्र व स्थिर करें और अपने मन में चार पंखुड़ियों वाले बन्द लाल रंग वाले कमल के फूल की कल्पना करें। फिर अपने मन को एकाग्र करते हुए उस फूल की पंखुड़ियों को एक-एक करके खुलते हुए कमल के फूल का अनुभव करें। इसकी कल्पना के साथ ही उस आनन्द का अनुभव करने की कोशिश करें। उसकी पंखुड़ियों तथा कमल के बीच परागों से ओत-प्रोत सुन्दर फूल की कल्पना करें। इस तरह कल्पना करते हुए तथा उसके आनन्द को महसूस करते हुए अपने मन को कुछ समय तक मूलाधार चक्र पर स्थिर रखें।
अथवा
शांत होकर, आँखे बंद करके, कमर को सीधा रखते हुए, ध्यानस्थ मुद्रा मे बैठ जाये, अब अपना पुरा ध्यान अपनी आती जाती श्वास पर लाये और जब भी श्वास अंदर आये तो " औम" और जब भी श्वास बाहर आये तो " लं " बीज मंत्र का मानसिक उचारण करे ।
Mere guptang me bahut time se tanav aata hai sharir me kampan hai kya karu
ध्यान के अभ्यास के दौरान गुप्तांगों मे तनाव होना एक अच्छा संकेत है, इसका मतलब आपके मूलाधार चक्र मे ऊर्जा जागृत होनी शुरू हो गई है।
एक्चुअली हमारे मूलाधार चक्र पर कुंडलिनी शक्ति भी वास करती है और इसी स्थान पर हमारे काम केंद्र भी स्थित है, तो होता क्या है जब इस चक्र पर ऊर्जा जागती है तो ऊपर का मार्ग यदि अभी खुला ना हुआ तो ऊर्जा गुप्तांगों मे प्रवेश कर जाती है, जिस कारण आपको तनाव महसुस हो रहा हैं।
लेकिन धीरे-धीरे, जब ऊपर का मार्ग खुलेगा तो ऊर्जा काम केंद्रों मे जाने की बजाय ऊर्ध्व गमन करना शुरू कर देगी, तब ऐसा नहीं होगा।
@@Dhyankagyan777 aapki baat se mujhe bahut achha laga..
20 Dino se brahmacharya Kiya hai
Married life hai. Kay sadhna me sambhog kay ja sakata hai.
Ek baat or batayega ki kundli ki urja kitne din mein upar ki or uthti hai.
Dhanyawad ji
14:45
Mere meditation me achanak ak din chipkali ka vichar a gaya aur wah vichar bar bar ata tha jb mai meditate karta tha ab wah vichar adat se overthinking se depression me tabdeel ho raha he jisse dar waham hota he 8 mahio se kya karu please Help me 😢😢😢😢😢
Acha h
Sir me jab sharir ke kisi bhi hisse par dhyan lagata hu to ek sensation hoti hai aisa lagta hai koi sui chub rahi ho jaise hatheli ke bich me hona ya naak par dhyan dene par aisa hona.... ye kis chiz ka lakshan hai
Mene vipassana ki hai us samay mere puri body me chitiya chalne ya yu kahe sui chubne jaisa hua hai raat ko sota tha tab bhi body me ye chlta rahta tha....
Ek din sharir ke andar ke organ par dhyan lagaya tab andar bhi chitya chlna jaisa laga mujhe samjh nahi aaya ye kya hai?
3 saal ke baad ab dhyan karta hu to hath par ,naak par or daato par sensation hoti hai
Guru ji mere head me pichse vibration ho rahi h ab left side me hoti h Or kabi kabi pure body me sensation tingling ho rahi Or chakkar jesa bi lag raha he plz muje batao na🙏🙏head bi piche ke tarf jata h
वाइब्रेशन फिल होने का मतलब है की आपकी प्राण ऊर्जा शरीर के उस स्थान पर बढ़ रहीं हैं या सक्रीय हो रहीं हैं, इसमे कुछ गलत नहीं है, जब आपकी इनर्जी उस बॉडी पार्ट पर अपना काम पूरा कर लेगी तो सब नॉर्मल हो जायेगा इसलिए आप चिंता ना करे ।
@@Dhyankagyan777 thank you so much guru ji🙏
❤D
Jb hmare pas freedom nii hoti to iska sambhandh kon s chakra s h
इसका संबंध भी मूलाधार चक्र से है अतः जब आप मूलाधार चक्र की साधना करेगे तो आपको एक आत्मिक स्वतंत्रता का एहसास होगा और आप किसी भी प्रकार के बंधन से बाहर निकल जायेगे।
Nabhi chakra
@@Dhyankagyan777 ok tq so much
@@poojarade5527 tq
Feeling in secure 🔐😢
🙏🙏🙏❤️💜🧡❤️🌷
Sir , is there technique in meditation or yoga to heal your body especially paralysis .. rejuvenating cells
बिल्कुल, योग व ध्यान की कुछ वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति से ऐसा उपचार किया जाता है, जैसे आयुर्वेद, रेकी, प्रभामंडल उपचार, चक्र क्लिनिक आदि।
इसकी कुछ टेक्निक आप मेरे इस विडियो से देख सकते हैं :-
th-cam.com/video/BmaK_pXvJGU/w-d-xo.html
इस प्रकार की समस्या शारिरिक कारणों से भी हो सकती है और सूक्ष्म शरीर के उस हिस्से मे ऊर्जा के ब्लॉक हो जाने से भी हो सकती है अथवा चक्र विकृति के कारण या उर्ज़ा के विकृत हो जाने के कारण भी ऐसा हो सकता है ।
एक बिल्कुल साधारण विधि इस प्रकार से है :-
आप अपना पुरा ध्यान रोग वाली जगह पर लेकर आये और भाव करे की आपकी हर अंदर जाती सांस के साथ आपकी शरीर की ऊर्जा सफेद प्रकाश के रूप मे रोग वाले स्थान पर एकत्रित हो रही है और हर बाहर जाती सांस के साथ यह ऊर्जा उस ब्लाक को खोल रही है, जिस समय सांस बाहर निकले ठीक उसी समय अपने मन की आँखो से व्याधि को काले धुएं के रूप मे वाष्पीभूत होता हुआ भी देखे ।
जब इस प्रकार आप अपना ध्यान सम्बंधित स्थान पर एकाग्र करेगे तो उपचार करने वाली ऊर्जा स्थान को रिफ्रेश कर देगी और राहत मिलने लगेगी।
Sir muladhar chakra per dhyan lagane k kuch dino k ander hi himoglobin bht hi km ho gya..aisa 6 mhine me dusri bar hua hai.sir pls guide.
अक्सर जब साधक अपनी साधना के दौरान योग, प्राणायाम व ध्यान आदि की विभिन्न क्रियाओं का अभ्यास करता है तो कुछ दिनो मे इन क्रियाओं के प्रभाव से शरीर मे गर्मी बढ़ने लग जाती है, ताकि शरीर मे ताप को बढ़ा कर अशुद्धियों को जलाया जा सके ।
शास्त्रो मे प्रतीकात्मक वर्णन है की जब साधना के प्रभाव से सूक्ष्म शरीर मे कुंडलिनी शक्ती जागती है तो अपनी गर्मी से खुन पी जाती है और मांस खा जाती है, इसका अर्थ है की जागृत हुई कुंडलिनि हमारे शरीर की अशुद्धियों व अनावश्यक पदार्थों वसा, फैट, विष, हानिकारक पदार्थों आदि को खत्म करती है ताकी उसका मार्ग साफ व प्रशस्त हो सके, और यह जागृत ऊर्जा अपने मार्ग की सफाई शरीर मे ताप को बढ़ा कर करती है ताकी उतप्त हुए शरीर मे सभी अशुद्धिया जल जाये । इसी लिये शरीर का वजन कम हो जाता है, खुन कम हो जाता है।
अतः जब भी साधना के दौरान आपको ऐसे लक्षण अनुभव हो तो उनको स्वीकार करे व ऊर्जा को अपना काम करने दे ।
किंतु फिर भी यदि आपको ज्यादा तकलिफ हो तो आप ज्यादा से ज्यादा इतना कर सकते है की खुब पानी पिये, अपने आहार मे ठण्डी तासिर के खाध पदार्थो तथा सुपाच्य भोजन व फल आदि का सेवन करे । अनुलोम-विलोम, शीतली, सित्कारि, चंद्र भेदी प्राणायाम का नित्य अभ्यास करे । अधिकतर जब आप सोते या लेटते है तो बाई नासिका को ऊपर की और रख कर सोये यानि दाई करवट लेकर सोये इससे आपकी चंद्र नाडि जो शरीर को शीतलता देती है, वह चलेगी और शरीर की अति की गर्मी शान्त होगी ।
अधिकतर कुछ दिनों मे जब शरीर सभी प्रकार के हानिकारक पदार्थों को बाहर निकाल देता है तो स्वयं सब ठीक हो जाता है, इस दौरान आपका वजन भी गिर सकता है किंतु इस सारी प्रकिया के बाद जब आप समान्य होगे तब आप बहुत हल्का, रिफ्रेश, तरो ताजा और आनंदित महसूस करेगे, आपको ऐसा लगेगा जैसे आपके शरीर से कोई बोझ उतर गया हो । तब आपको एक नये स्वास्थ व उमंग का अहसास होगा ।
Guru g energy ko upward shift krne k liye kon si vidhi hai plzz btaye!!! Aapka dhnya waad......
सामन्यतः जब हम मेडिटेशन करते हैं तो धीरे-धीरे सभी प्रकार के मेडिटेशन इनर्जी को उपर की और ले जाने का ही कार्य करते हैं अतः सभी प्रकार की ध्यान विधियां इसमे सहयोगी है।
लेकिन यदि आप स्पेसिफिक तरीके से ऊर्जा का ऊर्ध्व गमन करना चाहते हैं तो आप को एक तो सिद्धासन का अभ्यास करना चाहिए क्योंकि सिद्धासन मे हमारी प्राण ऊर्जा का लीकेज बंद हो जाता है और ऊर्जा उपर की और उठने लगती हैं और दूसरी बात की सिद्धासन मे बैठकर ही अश्वनी मुद्रा का अभ्यास करे।
ये दोनों क्रियाएं इनर्जी को उपर शिफ्ट करने के लिए बेस्ट है।
Thank you g!!!
🙏🙏🙏🙏🙏
Plz ans dijye me meditation roz krti hu yoga bhi kar rhi bht se spritual thinks bhi feel hote h mujhe
But sex krne ki iccha paida ho gyi h man me bht tez samjh ni aarha me khud ko santusht krne kosis me lag jati hu
Jabki mera iss chiz se koi lena dena nai h plz guide kre
Guru ji..isse pahle wali video p maine ek question pucha tha...kya aap uska uttar mujhe de payenge??🙏
bhai mai bht din se alaspan aur motaape ka shikaar hoon. pichle 2.5yrs se maine non veg chora hai, aur pichle 4 months se NAAM JAP kr rha hoon. bahut adhyatmik baatein sunta hoon ,krta hoon ,log prabhavit hote hai meri baaton se. par apne andar ek khoklapan ka abhaas hota hai,bhagwan ke prati puri nishtha hai jo barhke ke kabhi over-spiritual krdeta hai, to kabhi sab jhoot man na chahta hai. Aur kitna vi bhramcharya ka palan krna chahoon 3-4mahine ke baad naash hohi jaata hai. *mai KUNDALINI yog se darta hoon , kyuki mere pass koi guru nahi hai,mai 20varsh ka hoon, mera prashn hai ki kya exercise,ashwini mudra,hard music, Ganesh bhagwan ki puja se muladhara chakr me sudhar asakta hai. kripa marg darshan kare*
आप नियमित रूप से योग व व्यायाम करके अपने मोटापे और आलस्य को दूर कर सकते है। अपने अंदर जो आप खोखला पन देखते हैं वह आपके अंदर का शून्य है जिसका दिखना अच्छी बात है। ब्रह्मचर्य का पालन करने में अनावश्यक प्रयास नहीं करे, सहज रहे क्युकी अभी आपकी आयु ही ऐसी हैं।
आपने मूलाधार चक्र के बारे में पूछा है, आप उसे इस प्रकार जागृत कर सकते है :-
सप्त चक्रों के क्रम मे मूलाधार पहला चक्र है, इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मे सुधार होता है तथा उसकी समाजिक असुरक्षा दूर होती है । व्यक्ति के शरीर का मध्य भाग व इसके अंग गुप्तांग, गुर्दे, लिवर आदि का स्वास्थ्य उतम रहता है । ऊर्जा की प्रबलता बनी रहती है तथा मूलाधार से आगे के चक्रों मे बढने मे सुविधा हो जाती है । इस चक्र के जागृत होने से भगवान गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है ।
मूलाधार जागृति के लिये निम्न बाते बहुत जरुरी है :-
मूलाधार चक्र का रंग लाल है अतः लाल रंग की वस्तुओं को अपने समीप रखना व लाल रंग के खाध पदार्थों का उपभोग करना उतम है, इसके इलावा कुछ ऐसे व्यायाम करना जिससे हमारे शरीर के मध्य भाग मे जोर पडे जैसे उठक-बैठक, दौडना, टहलना आदि लाभदायक है । कुछ योग आसन जैसे भुजंंग आसन, धनुरसन, चक्र आसन, कुर्सी आसन आदि भी मूलाधार जागृति करते है, कपालभाति, अग्निसार, भस्त्रिका आदि प्राणायाम भी मूलाधार मे जाग्रति लाते है । इसके इलावा ताड़न क्रिया, अश्वनी मुद्रा भी बहुत प्रभावी है ।
इस चक्र के देवता श्री गणेश है अतः इस चक्र पर ध्यान लगाते हुए भगवान गणेश जी के मंत्र का जाप करने से यह चक्र जागृत होता है । मंत्र इस प्रकार है : ॐ गं गणपतये नम:
निम्नलिखित ध्यान से भी आप मूलाधार जागृति कर सकते है :
किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएं। अपने दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें तथा अपनी आंखों को बन्द करके रखें। अपनी गर्दन, पीठ व कमर को सीधा करके रखें। अब सबसे पहले अपने ध्यान को गुदा द्वार व जननेन्द्रिय के बीच स्थान मे मूलाधार चक्र पर ले जाएं। फिर मूलाधार चक्र पर अपने मन को एकाग्र व स्थिर करें और अपने मन में चार पंखुड़ियों वाले बन्द लाल रंग वाले कमल के फूल की कल्पना करें। फिर अपने मन को एकाग्र करते हुए उस फूल की पंखुड़ियों को एक-एक करके खुलते हुए कमल के फूल का अनुभव करें। इसकी कल्पना के साथ ही उस आनन्द का अनुभव करने की कोशिश करें। उसकी पंखुड़ियों तथा कमल के बीच परागों से ओत-प्रोत सुन्दर फूल की कल्पना करें। इस तरह कल्पना करते हुए तथा उसके आनन्द को महसूस करते हुए अपने मन को कुछ समय तक मूलाधार चक्र पर स्थिर रखें।
अथवा
शांत होकर, आँखे बंद करके, कमर को सीधा रखते हुए, ध्यानस्थ मुद्रा मे बैठ जाये, अब अपना पुरा ध्यान अपनी आती जाती श्वास पर लाये और जब भी श्वास अंदर आये तो " औम" और जब भी श्वास बाहर आये तो " लं " बीज मंत्र का मानसिक उचारण करे ।
@@Dhyankagyan777 After meditation chanting m suffering from bad thoughts which never happened before. Nd i am suffering from autoimmune disease which indicates that cold hand feet, tiredness, brain fog, negative thoughts, low confidence, stress,anxietyanddepression. Is it becuz of muladhara chakra?
@@preetbadyal7580yes. Neend aati hai immediately dhyan krne ke baad? Muladhar chakra pe dhyan krne ke baad?
Sab ko jwab de rkha h guru ji mere ko nhi Diya Aapne pi
आप कृपया अपना प्रश्न बताए ?
@@Dhyankagyan777 parson ye tha Guruji ki ek rat ki m so rha tha muje MERI aankhe band hotey huye pta chla mere right ear mein aawaj aai rrrrrrrrrrrrrrrhhhhhh or pure sharire mein vibration hui bohot tej Jaise sir fatega koi uthne ki kosise Kar rha tha m dar gya tha fir tin din bad Maine ek video dekhi ye sari process aatma ki sharire se Bhar nikalne ki thi
@@itwillbebest3170 😂🤣😅🤣😅
Dhyan karne ke bad use बार-बार bathroom Aata Hai iska Samadhan bataiye
क्युकी ध्यान के कारण हमारा शरीर शांत हो जाता है और साथ ही हमारा ब्लेडर जोकि मूत्र को अपने मे समेट कर रखता है वह भी ढीला पड़ जाता है, जबकि पेशाब लीक ना हो इसलिए समान्य अवस्था मे वह टाइट बना रहता है तो इसलिए ध्यान के बाद यूरिन के लिए एक से अधिक बार जाना एक समान्य बात है।
लेकिन यदि आपको असमान्य रूप से पेशाब की अधिकता हो रहीं हैं तो बेहतर होगा की आप चिकित्सक से परामर्श करे।
Guru ji mera sharir hilta rehta hai apne ap aur rona aata iska kya mtlb hua guru ji lete ho chahe bethe ho tbh b yeh movement hoti rehti hai
हमारे शरीर के हिलने अथवा गति शील बने रहने का मुख्य कारण होता है हमारा चंचल मन, जितना हमारा मन शांत होगा, उसी अनुपात मे शरीर भी शांत होता चला जाएगा । या इससे उल्टी बात भी सच है की यदि शरीर को शांत कर दे तो मन भी शांत हो जाएगा क्योंकि दोनों आपस मे जुड़े है।
इसलिए यदि आपका शरीर स्थिर नहीं होता तो कोई बात नहीं, आप अपना मन शांत करे, तो शरीर भी शांत हो जाएगा।
लेकिन ध्यान के दौरान शरीर हिलने का दूसरा कारण होता है ऊर्जा का जागरण, जब मूलाधार से ऊर्जा जागकर उपर उठती है तो भी शरीर ऊर्जा के कारण हिलता है ।
अगर आपको ज्यादा त्रिवता से शरीर हील रहा है तो आप कुछ दिन अनुलोम विलोम प्राणयाम करे, ऐसा करने से ऊर्जा संतुलित हो जायेगी।
दूसरी बात, ध्यान के दौरान रोना आना बहुत कॉमन है, इसका कारण होता है हमारे अंदर हो रहे परिवर्तन, हमारे अवचेतन मन मे हमारी बचपन की या पूर्व जन्मों की बहुत सी स्मृतियां दबी रहती है जो ध्यान के प्रभाव मे अवचेतन मन से चेतन मन मे ऐसे ऊपर आ जाती है जैसे रुके हुए जल को हिलानेे से उसकी तलछट ऊपर सतह पर आ जाती है।
इसके अलावा जब ध्यान के प्रभाव से हृदय चक्र जागृत होता है तब भी भावनाएं उमड़ने के कारण रोना आता है।
और अच्छा है की ऐसा हो क्योंकि रोने से ऊर्जा मुक्त हो जाती है और हल्का कर देती है।
य़ह एक अच्छी स्थिति है, जिनके दिल पवित्र व साफ़ होते हैं उनको ही रोना आता है, इसका अर्थ है की आपके अवचेतन में छिपे भाव प्रकट हो रहे है और मुक्त हो रहे है, आपको जब भी रोना आए तो बंद कमरे में बैठकर खुलकर रोये, इससे आपका अवचेतन मन साफ़ होगा और आप हल्का महसूस करेगे ।
@@Dhyankagyan777 tysm guru ji lekin y sirf dhyaan k samay hi nai hilta ese b bich bich m hilta rehta aur meri subeh 3:30 yn 4 bje neend khul jati h apne ap y sharir hilta hai jo guru ji vo bndh ho skta mere sharir m hosh nahi rehti fr
Agar aisa hai toh aap apna blood pressure bhi monitor kare or Anuloam viloam pranayam ki roj practice kare
@@Dhyankagyan777 Guru ji mera sharir jalpeer ki samasya k karan hilta rehta hai iska koi upaay btaye guru ji bohot ilaj Karaya h please guru ji jisse y samasya thk ho jye iske liye koi asan yn pranayam h toh btaye guru ji 🙏😓
Maaf kijiyega, aapki jalpeer ki samasya kewal vishesh chikitsk ke dwara hi thik ki ja sakti hai, isliye aapko unse hi consult karna hoga
आपको शब्दों का सही उच्चारण सीखना चाहिए
guruji mai naya sadhak hu aur koi bhi guru nahi hai mera agar mujhe apka number mil jata direct contact k liye to bohot accha hota mera age 17 saal hai or mujhe meditation karna accha lagta tai
pranam guruji
मुझे खेद है किन्तु मैं किसी भी अन्य प्रकार से बात करने मे फिलहाल असमर्थ हू, आप यदि चाहे तो कमेन्ट के माध्यम से ही अपनी बात पूछ सकते हैं।