ब्राह्मणों ने अपने ग्रंथ में लिखा है की परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रिय विहीन किया फिर क्षत्रिय की विधवा औरत और ब्राह्मणों से क्षत्रियों का वंश आगे बढ़ा
नमस्कार, मैं दक्षिण भारत के एक पंच द्रविड़ ब्राह्मण उपजाति से आता हूं। हम लोग बिलकुल हल अपने अग्रहार में चलाते आ रहें हैं। हमारा समाज हमेशा पौरोहित्य भी करते थे। तो यह कहना गलत हैं की ब्राह्मण कृषि नहीं करते थे।
मैंने उत्तराखंड की बात की है। वहां भी ब्राह्मण हल लगाते हैं, परंतु पहले उनको छोटा ब्राह्मण कहा जाता था। हालांकि अब यह भेद खत्म हो चुका है। यह अच्छी बात है।
@@himalayilog श्रीमान, मैं जानता हूं की आपका वीडियो हिमाली ब्राह्मण समाज की बारे मे हैं। मैने अपने समाज का उदाहरण दिया, क्योंकी समस्त ब्रह्मावृंद में कुछ नियम एक समान ही होते हैं। कहने का तात्पर्य यह हैं की ब्राह्मण कहीं का भी हो हिमाली, गौड़, द्रविड़, उत्कल, मणिपुरी या बाली का सबके नित्यकर्म और सोलह संस्कार एक जैसे ही होते हैं। और रही बात कृषि की, तो अगर कोई ब्राह्मण स्वयं की उदर निर्वाह के लिए अगर हल चलाता हैं तो उसे पतित ब्राह्मण नहीं समझा जाता। हा यह बात हैं की ब्राह्मण सहसा बाजार में अपना कृषि उत्पादन नहीं विक्री करते हैं। हमारे यहां मराठा राजो ने भारत भर से अनेक प्रगाढ़ पंडितों को दक्खन मे आमंत्रित कर के स्वयमचलित अग्रहार प्रदान किए थे। पानीपत के युद्ध के पश्चात स्थानिक कृषक समाज के मर्द काफ़ी संख्या में मारे गए थे, इसलिए ब्राह्मणों को हल चलाना धर्म रक्षण के लिए अनिवार्य हुआ था। बाद में स्थिति सुधर गई, मगर ब्राह्मण हमेशा स्वयं के अग्रहार में कृषि करते ही आ रहें हैं। आपकी जानकारी के लिए हमारे इलाके में मराठों ने बसाए ब्राह्मण उत्तराखंड नेपाल, मिथिला, आंध्र, केरल और मणिपुर से आए थे। आज हमारा समाज पूर्णतः मराठी ब्राह्मण समाज में एकत्रित हो चुका हैं। मेरे पूर्वज नेपाल के जुमला प्रांत से आए थे ऐसा मानना है। शायद हम खस समाज से आए होंगे।
@@himalayilog धन्यवाद लेखड़ा महोदय, महाराष्ट्र में पेशवा के पतन के बाद ब्राह्मण द्वेष धीरे धीरे बढ़कर आजकल शरद पवार के नेतृत्व में चरण सीमा पर पहुंच गया हैं। इतना ही नहीं भाजपा और संघ भी यहा ब्राह्मणों को नजरंदाज कर रहीं हैं। रोज़ आप सरेआम ब्रह्मणोको खुलेआम मीडिया पर गाली गलोच अपमान सहन करना पड़ता है। यहां ब्राह्मण केवल ३% हैं, और बहुत सारे विदेश जाने की तयारी में है। ऐसी हालत में आपको कोई भी पुस्तक महाराष्ट्रीय ब्राह्मणों पर नहीं मिलेगी। मात्र यहां के कुछ प्रमुख ब्राह्मण उपजाति अपने खुद के लिए इतिहास लिखती आ रही हैं। संक्षिप्त में महाराष्ट्रीय ब्राह्मण उपजाति की जानकारी यहां प्रस्तुत करना चाहता हूं, महाराष्ट्रीय ब्राह्मण प्रमुख रुप से दो गुट के है, पंच द्रविड़ और पंच गौड़। यह माना जाता है की द्रविड़ ब्राह्मणों का आचरण विचार दक्षिण भारत के ब्राह्मणों से मिलता है। इस गुट में यह उपजाति शामिल हैं, देशस्थ, जो महाराष्ट्र और कर्नाटक के दखन मैदानी (देश) इलाके में रहते आ रहे हैं. यह ब्राह्मण संख्या में सबसे ज्यादा है और पारंपरिक रूप से अपने आप को श्रेष्ठ मानते थे। मराठा साम्राज्य में धर्माधिकारी हमेशा इसी समाज का हुआ करता था। छत्रपति शिवाजी महाराज की अष्टप्रधान मंत्री मंडल में पंत देशस्थ ब्राह्मण रहा करते थे। जैसे छत्रपति महाराज के सब से पहले सचिव पंत सचिव थे, जो एक वैदिकी देशस्थ ब्राह्मण थे। पुरंदरे, चंद्रचूड़, देशपांडे, कुलकर्णी, पंत, जोशी, टोपे, पांडे, शाळीग्राम, आमटे, फडणवीस इत्यादि नाम इनमे पाए जाते हैं। कोकणस्थ ब्राह्मण, यह ब्राह्मण ज्यादातर महाराष्ट्र की पश्चिमी किनारे (कोकन) में पाए जाते थे। इन्हे पहले चितपावन कहा जाता था, क्यों की यह द्वितीय दर्जे के ब्राह्मण माने जाते थे। अन्य ब्राह्मण जाती इनसे पुराने जमाने में विवाह संबंध नहीं रखते थे। मगर यह भी द्रविड़ ब्राह्मण माने जाते हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज के पश्चात मराठा साम्राज्य के प्रधान मंत्री इसी समाज से आए, मात्र इन्हे पंत नहीं पेशवा कहते थे। पंत देशस्थ समाज के थे। पेशवा के इतिहास के बारे में पूरा उत्तर भारत जानता ही है। बाजीराव के समय मराठा साम्राज्य चरण सीमा पर था, मात्र दुर्दैवी पानीपत के संग्राम के पश्चात महाराष्ट्र में में बहुत लोगों ने अपनी जान गमाई। इसीलिए पेशवा माधवराव के शासन में भारत के अन्य इलाके से ब्राह्मण यहां आए और बसे। उदाहरण पर मेरे पूर्वज नेपाल से आए और एक कऱ्हाडे ब्राह्मण के अग्रहर में शरण लिए, आज हम उसी समाज में मिलजूल गए है। हमारा नेपाल से ज्यादा कोई संबध नही रहा। कोकणस्थ मे गोखले, देवधर, रानडे, टिळक, बर्वे, आगाशे, पटवर्धन इत्यादि नाम पाए जाते है। तीसरा गुट है कऱ्हाडे ब्राह्मण जिन्हें उपाध्ये भी बोला जाता है। ये भी दक्षिण कोकण, गोवा, गोकर्ण, उडुपी और कासरगोड इलाके में पाए जाते है। ये शाक्त ब्राह्मण हैं और द्रविड़ ब्राह्मण गुट में आते है। इसी समाज में उत्तर भारत, गुजरात और नेपाल से आए ब्राह्मण समाविष्ट हो गए थे। रानी लक्ष्मीबाई इसी समाज की थी। खेर, गुर्जर, पाध्ये, उपाध्ये, हर्डीकर, नेवाळकर, प्रभुदेसाई, अभिषेकी, टेंगशे, कुरण, ललित, महाजनी, भट, गोळवलकर इत्यादि नाम इनमें पाए जाते है। चौथा सबसे बड़ा गुट है सारस्वत ब्राह्मण जो की गौड़ ब्राह्मण माने जाते है। इनमें मांसाहार वर्ज्य नहीं है। यह माना जाता है की सारस्वत ब्राह्मण सिंध, पंजाब, कश्मीर, ओरिसा, मिथिला, बंगाल और आसाम से दक्षिण को आए थे। यह लोग लगभग कऱ्हाडे ब्राह्मण जिस इलाके में होते है उसी इलाके में पाए जाते है। तेंडुलकर, गावस्कर, मल्ल्या, कर्नाड, पदुकोण, प्रभू, सरदेसाई, पै, कामत ऐसी इंकी नाम होते है। मांसाहार के कारण से द्रविड़ और गौड़ ब्राह्मण आपस में शादी नहीं करते थे।
Sir ,kumaun me jammu se aaye Jamwal negi aur purniya negi bhi hal nahi chalate the , (bahut kam abadi hai yha inki)aaj bhi kayi gaaw me purnia negi hal nahi chalate ,almora m dwarahat k pas paithani ,kheda ,simalngaw etc jo kangda(himachal) se aaye purnia negi (minhas) aaj bhi nahi chalate
Bal kuch nahi chalate the kal ,likhte the kaiyo ka kal .par aj bhi hai kai d....m d....k...a.....l jo chin lete hai kaiyo ka kal ....aj bhi khate free phokat ka bal . RESERVATION
धन्यवाद सर जी इस जानकारी के लिए °®
Wlcm ji
वैदिक संस्कृति में मूर्ति पूजा नही होती सिर्फ यज्ञ होता है वैदिक कल्चर में पशुओं की बलि दी जाती है
भौत सुन्दर प्रस्तुति
ब्राह्मणों ने अपने ग्रंथ में लिखा है की परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रिय विहीन किया फिर क्षत्रिय की विधवा औरत और ब्राह्मणों से क्षत्रियों का वंश आगे बढ़ा
प्रणाम सुप्रभात नमस्कार जी बहुत ही सुंदर और अच्छी प्रस्तुति और सुंदर जानकारी देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद जी
🙏🌺🌹🙏
नमस्कार, मैं दक्षिण भारत के एक पंच द्रविड़ ब्राह्मण उपजाति से आता हूं। हम लोग बिलकुल हल अपने अग्रहार में चलाते आ रहें हैं। हमारा समाज हमेशा पौरोहित्य भी करते थे।
तो यह कहना गलत हैं की ब्राह्मण कृषि नहीं करते थे।
मैंने उत्तराखंड की बात की है। वहां भी ब्राह्मण हल लगाते हैं, परंतु पहले उनको छोटा ब्राह्मण कहा जाता था। हालांकि अब यह भेद खत्म हो चुका है। यह अच्छी बात है।
@@himalayilog श्रीमान, मैं जानता हूं की आपका वीडियो हिमाली ब्राह्मण समाज की बारे मे हैं। मैने अपने समाज का उदाहरण दिया, क्योंकी समस्त ब्रह्मावृंद में कुछ नियम एक समान ही होते हैं। कहने का तात्पर्य यह हैं की ब्राह्मण कहीं का भी हो हिमाली, गौड़, द्रविड़, उत्कल, मणिपुरी या बाली का सबके नित्यकर्म और सोलह संस्कार एक जैसे ही होते हैं। और रही बात कृषि की, तो अगर कोई ब्राह्मण स्वयं की उदर निर्वाह के लिए अगर हल चलाता हैं तो उसे पतित ब्राह्मण नहीं समझा जाता। हा यह बात हैं की ब्राह्मण सहसा बाजार में अपना कृषि उत्पादन नहीं विक्री करते हैं।
हमारे यहां मराठा राजो ने भारत भर से अनेक प्रगाढ़ पंडितों को दक्खन मे आमंत्रित कर के स्वयमचलित अग्रहार प्रदान किए थे। पानीपत के युद्ध के पश्चात स्थानिक कृषक समाज के मर्द काफ़ी संख्या में मारे गए थे, इसलिए ब्राह्मणों को हल चलाना धर्म रक्षण के लिए अनिवार्य हुआ था। बाद में स्थिति सुधर गई, मगर ब्राह्मण हमेशा स्वयं के अग्रहार में कृषि करते ही आ रहें हैं।
आपकी जानकारी के लिए हमारे इलाके में मराठों ने बसाए ब्राह्मण उत्तराखंड नेपाल, मिथिला, आंध्र, केरल और मणिपुर से आए थे। आज हमारा समाज पूर्णतः मराठी ब्राह्मण समाज में एकत्रित हो चुका हैं। मेरे पूर्वज नेपाल के जुमला प्रांत से आए थे ऐसा मानना है। शायद हम खस समाज से आए होंगे।
@@हपिएम् जी बहुत अच्छी जानकारी। महाराष्ट्र के ब्राह्मणों पर कोई पुस्तक है तो बताएं। वीडियो बनाऊंगा।
@@himalayilog धन्यवाद लेखड़ा महोदय, महाराष्ट्र में पेशवा के पतन के बाद ब्राह्मण द्वेष धीरे धीरे बढ़कर आजकल शरद पवार के नेतृत्व में चरण सीमा पर पहुंच गया हैं। इतना ही नहीं भाजपा और संघ भी यहा ब्राह्मणों को नजरंदाज कर रहीं हैं। रोज़ आप सरेआम ब्रह्मणोको खुलेआम मीडिया पर गाली गलोच अपमान सहन करना पड़ता है। यहां ब्राह्मण केवल ३% हैं, और बहुत सारे विदेश जाने की तयारी में है।
ऐसी हालत में आपको कोई भी पुस्तक महाराष्ट्रीय ब्राह्मणों पर नहीं मिलेगी। मात्र यहां के कुछ प्रमुख ब्राह्मण उपजाति अपने खुद के लिए इतिहास लिखती आ रही हैं।
संक्षिप्त में महाराष्ट्रीय ब्राह्मण उपजाति की जानकारी यहां प्रस्तुत करना चाहता हूं,
महाराष्ट्रीय ब्राह्मण प्रमुख रुप से दो गुट के है, पंच द्रविड़ और पंच गौड़।
यह माना जाता है की द्रविड़ ब्राह्मणों का आचरण विचार दक्षिण भारत के ब्राह्मणों से मिलता है। इस गुट में यह उपजाति शामिल हैं,
देशस्थ, जो महाराष्ट्र और कर्नाटक के दखन मैदानी (देश) इलाके में रहते आ रहे हैं. यह ब्राह्मण संख्या में सबसे ज्यादा है और पारंपरिक रूप से अपने आप को श्रेष्ठ मानते थे। मराठा साम्राज्य में धर्माधिकारी हमेशा इसी समाज का हुआ करता था। छत्रपति शिवाजी महाराज की अष्टप्रधान मंत्री मंडल में पंत देशस्थ ब्राह्मण रहा करते थे। जैसे छत्रपति महाराज के सब से पहले सचिव पंत सचिव थे, जो एक वैदिकी देशस्थ ब्राह्मण थे।
पुरंदरे, चंद्रचूड़, देशपांडे, कुलकर्णी, पंत, जोशी, टोपे, पांडे, शाळीग्राम, आमटे, फडणवीस इत्यादि नाम इनमे पाए जाते हैं।
कोकणस्थ ब्राह्मण, यह ब्राह्मण ज्यादातर महाराष्ट्र की पश्चिमी किनारे (कोकन) में पाए जाते थे। इन्हे पहले चितपावन कहा जाता था, क्यों की यह द्वितीय दर्जे के ब्राह्मण माने जाते थे। अन्य ब्राह्मण जाती इनसे पुराने जमाने में विवाह संबंध नहीं रखते थे। मगर यह भी द्रविड़ ब्राह्मण माने जाते हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज के पश्चात मराठा साम्राज्य के प्रधान मंत्री इसी समाज से आए, मात्र इन्हे पंत नहीं पेशवा कहते थे। पंत देशस्थ समाज के थे। पेशवा के इतिहास के बारे में पूरा उत्तर भारत जानता ही है।
बाजीराव के समय मराठा साम्राज्य चरण सीमा पर था, मात्र दुर्दैवी पानीपत के संग्राम के पश्चात महाराष्ट्र में में बहुत लोगों ने अपनी जान गमाई। इसीलिए पेशवा माधवराव के शासन में भारत के अन्य इलाके से ब्राह्मण यहां आए और बसे। उदाहरण पर मेरे पूर्वज नेपाल से आए और एक कऱ्हाडे ब्राह्मण के अग्रहर में शरण लिए, आज हम उसी समाज में मिलजूल गए है। हमारा नेपाल से ज्यादा कोई संबध नही रहा।
कोकणस्थ मे गोखले, देवधर, रानडे, टिळक, बर्वे, आगाशे, पटवर्धन इत्यादि नाम पाए जाते है।
तीसरा गुट है कऱ्हाडे ब्राह्मण जिन्हें उपाध्ये भी बोला जाता है। ये भी दक्षिण कोकण, गोवा, गोकर्ण, उडुपी और कासरगोड इलाके में पाए जाते है। ये शाक्त ब्राह्मण हैं और द्रविड़ ब्राह्मण गुट में आते है। इसी समाज में उत्तर भारत, गुजरात और नेपाल से आए ब्राह्मण समाविष्ट हो गए थे। रानी लक्ष्मीबाई इसी समाज की थी।
खेर, गुर्जर, पाध्ये, उपाध्ये, हर्डीकर, नेवाळकर, प्रभुदेसाई, अभिषेकी, टेंगशे, कुरण, ललित, महाजनी, भट, गोळवलकर इत्यादि नाम इनमें पाए जाते है।
चौथा सबसे बड़ा गुट है सारस्वत ब्राह्मण जो की गौड़ ब्राह्मण माने जाते है। इनमें मांसाहार वर्ज्य नहीं है। यह माना जाता है की सारस्वत ब्राह्मण सिंध, पंजाब, कश्मीर, ओरिसा, मिथिला, बंगाल और आसाम से दक्षिण को आए थे। यह लोग लगभग कऱ्हाडे ब्राह्मण जिस इलाके में होते है उसी इलाके में पाए जाते है।
तेंडुलकर, गावस्कर, मल्ल्या, कर्नाड, पदुकोण, प्रभू, सरदेसाई, पै, कामत ऐसी इंकी नाम होते है।
मांसाहार के कारण से द्रविड़ और गौड़ ब्राह्मण आपस में शादी नहीं करते थे।
@@हपिएम् जी बहुत अच्छी जानकारी।
क्या ये मुझे मेल कर सकते हैं।
drhclakhera@gmail.com
बहुत सही बात खेती खत्म हो गई
Sir ,kumaun me jammu se aaye Jamwal negi aur purniya negi bhi hal nahi chalate the , (bahut kam abadi hai yha inki)aaj bhi kayi gaaw me purnia negi hal nahi chalate ,almora m dwarahat k pas paithani ,kheda ,simalngaw etc jo kangda(himachal) se aaye purnia negi (minhas) aaj bhi nahi chalate
Ok
Guru ji ko pranam this practice is still in existence in Kumaon region
ओ नही चलाते थे हल,,, हल में लगाना पड़ता था बल ओ फ्री का खाना चाहते है आज भी और कल
😄😄
Shi baat
Bal kuch nahi chalate the kal ,likhte the kaiyo ka kal .par aj bhi hai kai d....m d....k...a.....l jo chin lete hai kaiyo ka kal ....aj bhi khate free phokat ka bal . RESERVATION
Ky kre tuj bhi free khane ki free M bkne ki aadt pdi H, tere baap ko bhi thi bl
Bhraman, Rajput, vesya, sudra isme bhi video batao
Yaha pramanik hai?