ज्यान और ग्यान दोनों ही गलत हैं परन्तु ज्+ञ का उच्चारण ग्यान' शब्द उच्चारण के अधिक निकट लगता है । आप्तवाक्यप्रमाण न्याय से। तुलसीदास जी निःसन्देह आप्त हैं। उन्होने ग्यान (ज्ञान का तद्भव) ही लिखा। माना कि दही = दूध और छाछ का मिश्रण है परन्तु दही अन्ततः दोनों ही से अलग है उसको दूध छाछ नही करना चाहिए ।यह बालक भी आप ही से सहमत है भगवन् ।
🙏मैं यज्ञ आदि में जकार ध्वनी ही मानता हूं। गकार अथवा आप जो ध्वनी उच्चारित कर रहे हैं उसको नहीं। आपने जो लक्ष्मण आदि उदाहरणों में प्रश्न उठाया है वह ठीक नहीं क्योंकि वहां हम रुक कर नहीं बोलते दो हल् एक साथ है तो एक साथ ही बोलेंगे आप कहते हैं वहां रुक कर क्यों नहीं बोलते भला ऐसा हम क्यों बोले ? इसी प्रकार ज्ञ में भी हम बिना रुके बोलते हैं। अर्थात् क्ष में हम क् और ष् मानते हैं और उसका उच्चारण अत्यंत निकटता से होता भी है और वह बोध भी होता है इसी प्रकार ज्ञ में ज् और ञ् मानते और बोलते हैं और बोध भी होता है। और आपने कहा ज् ञ् कहीं लिखे हुए देखे हो ? किंतु यह प्रश्न तो ग् ञ् पर भी लागू होता है उसको भी हमने नहीं देखा है । और आपने एक सूत्र के नाम से भी दिखाया की "जञोर्ज्ञ:" ऐसा सूत्र है। सूत्र कहने से अधिक प्रमाणिकता हो जाती है किंतु यह सूत्र कैसे ? वैसे तो कोई यह टीकाकार है दृढ प्रमाण नहीं किंतु फिर भी इससे यह सिद्ध नहीं होता की यह गकार ध्वनी वाला ज्ञ है। किंतु लिपि में ऐसा मिला कर लिखना चाहिए ऐसा भी अर्थ हो सकता है। अथवा ज् ञ् के बीच में दूरता से उच्चारण न हो मिलाकर क्ष के समान उच्चारण करना चाहिए। यह अर्थ भी हो सकता है।
@@Acharysiyaramdasnaiyayik 🙏यह बात आपकी ठीक है कि मैं क्या कहता हूं वह प्रमाण नहीं किंतु मैंने स्पष्टता के लिए मात्र अपना पक्ष प्रस्तुत किया है। और यह बताने का प्रयास किया है कि जो आपने गकार ध्वनि अथवा जकार को छोड़कर जो अन्य ध्वनी दर्शाई है तथा उनमें जो युक्तियां दी हैं वह ठीक नहीं। और इस ज्ञ में जकार उच्चारण ही होना चाहिए इस बात में कोई हठ नहीं है यदि आपकी युक्तियां प्रमाण ठीक होते तो मैं उस बात को अवश्य स्वीकार करता। जकार ध्वनि श्रवण में जकार और ञकार का होना ही अपने आप में दृढ प्रमाण है और विद्वत्वरेण्यों में यह पक्ष भी स्तुत्य है । तथा ग् श्रवण में कोई प्रमाण व युक्ति नहीं है।
@@user-rj6xq4el5f जी ! शब्दप्रयोग वस्तुत: तत्तत्स्थलों में विभिन्नताओं को लिए हुए दृष्टिगोचर होता है । जैसे कृष्ण को क्रुष्ण आदि । जहां जैसा प्रयोग हो रहा है । वहां के लोग वैसा ही सही सयझते भी हैं। कृष्ण के स्थान पर क्रुष्ण कृपा के सथान पर क्रुपा ही बोलना महाराष्ट्री एवं गुजरातियों का अनादि सिद्ध स्वभाव है । हन धातु हिंसा और गत्यर्थक होते हु ए भी सप्तद्वीपा वसुमती में कहीं तो गत्यर्थ में भी प्रयुक्त होती ही होगी । अन्यथा उसका गत्यर्थक निरूपण व्यर्थ हो जायेगा । रही बात क्+ष् = क्ष की । तो जहां मातृकान्यास या न्यासान्तर के साधक तत्तद्वर्णों का तत्तदंगों में न्यास करते है । वहां ष से भिन्न क्ष का न्यास भी किया जाता है । ज्+ ञ् = ज्ञ् । इन दोनों वर्णों के स्थान पर यदि ज् ञान ही लेखनप्रयोग हो तो हमे इस पर कोई आपत्ति नही होगी । आपत्ति तो उच्चारण के वैविध्य को लेकर ही है । लृकार में दीर्घ होने पर दीर्घ ऋ ही होता है । पर न्यासप्रक्रिया में ह्रस्व लृ की भांति दीर्घ लृ का न्यास वाम कपोल में विहित है । ज+ञ् = ज्ञ -- यहां की स्थिति हमें तत्तत् स्थलों के उच्चारणभेद को ध्यान में रखकर ही करना चाहिए ; क्योंकि ये उच्चारण विद्वानों मे समादृत भी है । अस्तु । धन्यवाद ।
@@Acharysiyaramdasnaiyayik 🙏संस्कृत भाषा के शब्दों के प्रयोग में स्थल नहीं देखा जाता सभी स्थलों पर एक ही जैसा उच्चारण होना चाहिए। और हिंदी आदि भाषाओं में भी जो संस्कृत के शब्द है वह भी प्रायः सब जगह एक ही जैसे उच्चारण होने चाहिए। अन्यथा वे अशुद्ध ही समझे जाएंगे। हन् धातु के बारे में जो कहां उसका इस प्रसंग से कोई मेल नहीं दिखता। और आपने विडियो में ज्ञ के लेखन को लेकर भी ग् ञ् उच्चारण मान्यता की पुष्टि भी की थी, उसका खण्डन होने पर अब कहते हैं कि आपत्ति तो उच्चारण को लेकर है। तत्तत्स्थलों पर ज्ञ का उच्चारण किसी को समझाने मात्र के लिए अशुद्ध उच्चारण(ग् ञ् आदि) करे तो अलग बात है अन्यथा ज् ञ् उच्चारण ही होना चाहिए इसी प्रकार की ढिलाई के कारण तो बहुत सारे वर्णों का उच्चारण बिगड़ गया है और ज्ञ का तो विद्वान तक में भी मतभेद उत्पन्न हो गया है। धन्यवाद 🙏
@@user-rj6xq4el5f जी ! ज्ञ के उच्चारण का न खण्डन हुआ है और न होगा । हम प्रयोग यथावत् करते आये हैं और कर रहे हैं। वैदिकों में भी प्रयोग यथावत् है । दृष्टांत और दार्ष्टान्त के प्रयोग को समझना भी बहुत आसान नही है।
Gurudev Namaskar! Kya aap mujhe Sanskrit ke liye acchi Vyakaran kitab ka naam bata sakte hain. Kripya lekhak ka naam bhi bataiyega. Main sanskrit sikhna chahta hoon.
गुरूजी जब क्ष का उच्चारण आदि में हो रहा है तब क यह ध्वनि उच्चरित नहीं होती जैसे क्षय । किन्तु मध्यान्त अवस्था मे ककार ध्वनि स्पष्ट है । जैसे अक्षु में क यह ध्वनि भी है ।
@@Acharysiyaramdasnaiyayik गुरुदेव आपके लघुसिद्धान्त के और भाग यहां उपलब्ध नहीं है । आप लघुसिद्धांत रूपी सम्पूर्ण आशीष प्रदान करें । तथा माहेश्वरसूत्रों के जैसे हयवरट् सूत्र की दार्शनिक व्याख्या बताई आपश्री ने तदेव प्रत्येकसूत्रों के विषय मे मुझ अज्ञानी को बताएं । सादर चरण स्पर्श । (दासानुदास अमित रघुनाथी)
साधो! आचार्यजी, कृपया "ष" के सही उच्चारण के बारे में भी ज्ञान दे। वेदपाठी ब्राह्मण बहुधा ष का उच्चारण ख की तरह करते हैं। इन उदाहरणों में ष अपने तद्भ्व रूप में ख को प्राप्त है:- लक्ष-लाख, अक्ष-आंख
नमस्ते आचार्य जी। यद्यपि आप व्याकरण के विद्वान् हैं किन्तु लोकव्यवहार से प्रमाण देना ठीक नहीं। मैं सच में प्रत्यक्-ष आदि ही बोलता हूं अतः आपके समस्त प्रमाण मेरे लिए व्यर्थ हुए। पुनश्च मैं यज्-ञ ही कहूं तो भी कोई गलती वाला प्रमाण आपने नहीं दिया, बस "आधा सोना नहीं अपितु पूरा सोना" मैं नहीं कर रहा। सादर अभिवादन 🙏।
He can not pronounce the letters क्ष ष ज्ञ ञ, correctly. He may have knowledge about them but can't pronounce it. He is pronouncing ञ as इयां क्ष as क्छ
@@vasudevswaroop542 जी ! आप इस चैनल के about को क्लिक करेंगे तो वहां फोन नंबर लिखा है । वे आपको मुझसे बात करा सकते हैं । मैं प्राय: फोन कभी कभी ही उठा पाता हूं । कोई सुनिश्चित समय नहीं है ।
राम् (Rām) राम (Rāma), and रामा (Rāmā) all pronounced differently. Hindi and Sanskrit both are phonetic languages unlike English i.e. they are pronounced exactly the same way they are written. In hindi even though it is written as राम (Rāma) but while speaking it is pronouced as राम् (Rām) which is wrong. So राम (Rāma) is correct pronounciation. Mostly in today's Hindi schwa is omitted (removing अ swara/vowel from the vyanjana/consonant )now a days and made halanta due to the influence of Urdu (Thanks to Bollywood). The English spelling Rama is correct as well - first a is for आ(ā) and second is for अ(a). Observe how we sing National Anthem, we say Bhārata (भारत) and not Bharat (भारत्) or Jana (जण), Gana (गण), Mana (मन) not Jan (जण्), Gan (गण्), Man (मन्)
सुंदर व्याख्या
प्रमाण सहित
बहुत बहुत धन्यवाद
गुरुवर के कथन से यह भी समझ आता है कि ॐ को ओम् क्यों बोलते हैं अऊम् क्यों नहीं।
मैने बहुत लोगों को सुना है जो ज्ञ का ज्यं उच्चारण करके भ्रमित करते रहते है। प्रभु उन अशुद्ध उच्चारण जीवो को सद्बुद्धि दे 🙏
क्या आप इसके उच्चारण को लिख कर दे सकते है कृपया 🙏🏻
@@s.s.classes7156 ग्यं / gyañ (ant me "ñ" hai vo anuswar hai)
प्रणाम आचार्य जी! बहुत ही सुंदर उत्तर दिया है आपने। सिर्फ़ तर्क नहीं, किंतु प्रमाण के साथ समझाया है आपने। आभार।
साभार धन्यवाद । प्रसन्न रहें Anu Jasbir जी
So good
जयश्रीमन्नारायण
अद्धभुत जानकारियां भगवन
प्रणाम
प्रसन्न रहें दुबे जी
महोदय ,आप व्याकरण बहुत अच्छा पढ़ाते है 🙏🙏
धन्यवाद । श्रीराम
Sahi kaha aapne
जय श्री राम।
कुछ लोगों पर सरस्वती माता की कृपा कम रही होगी। 🕉️🙏
Maharaj ji ki jai ho
जयगुरूदेव आपको। कोटि-कोटि पृणाम
जय हो गुरुदेव
उत्तम प्रस्तुति 🙏🙏🙏🙏🙏
સ્વામીજી,જયસીયારામ
કોનસા સૂત્ર હૈ...
Pranam 🙏🙏🙏
हरि ॐ जय जय गुरू जी। सादर नमन्
श्रीचरणान् बहु स्मरामि ।🙏🙏🙏
नमो नारायणाय भगवन् नमोऽस्तु
नमो ब्रह्मणे भगवन् !
ज्यान और ग्यान दोनों ही गलत हैं परन्तु ज्+ञ का उच्चारण ग्यान' शब्द उच्चारण के अधिक निकट लगता है । आप्तवाक्यप्रमाण न्याय से। तुलसीदास जी निःसन्देह आप्त हैं। उन्होने ग्यान (ज्ञान का तद्भव) ही लिखा। माना कि दही = दूध और छाछ का मिश्रण है परन्तु दही अन्ततः दोनों ही से अलग है उसको दूध छाछ नही करना चाहिए ।यह बालक भी आप ही से सहमत है भगवन्
।
Jay Shri Govind
सादर प्रणाम 🙏🙏🌸🌻
प्रसन्न रहें दुबे जी
अपका समझाना बडा अच्छा लगा।
🙏मैं यज्ञ आदि में जकार ध्वनी ही मानता हूं। गकार अथवा आप जो ध्वनी उच्चारित कर रहे हैं उसको नहीं। आपने जो लक्ष्मण आदि उदाहरणों में प्रश्न उठाया है वह ठीक नहीं क्योंकि वहां हम रुक कर नहीं बोलते दो हल् एक साथ है तो एक साथ ही बोलेंगे आप कहते हैं वहां रुक कर क्यों नहीं बोलते भला ऐसा हम क्यों बोले ?
इसी प्रकार ज्ञ में भी हम बिना रुके बोलते हैं। अर्थात् क्ष में हम क् और ष् मानते हैं और उसका उच्चारण अत्यंत निकटता से होता भी है और वह बोध भी होता है इसी प्रकार ज्ञ में ज् और ञ् मानते और बोलते हैं और बोध भी होता है।
और आपने कहा ज् ञ् कहीं लिखे हुए देखे हो ? किंतु यह प्रश्न तो ग् ञ् पर भी लागू होता है उसको भी हमने नहीं देखा है ।
और आपने एक सूत्र के नाम से भी दिखाया की "जञोर्ज्ञ:" ऐसा सूत्र है। सूत्र कहने से अधिक प्रमाणिकता हो जाती है किंतु यह सूत्र कैसे ?
वैसे तो कोई यह टीकाकार है दृढ प्रमाण नहीं किंतु फिर भी इससे यह सिद्ध नहीं होता की यह गकार ध्वनी वाला ज्ञ है। किंतु लिपि में ऐसा मिला कर लिखना चाहिए ऐसा भी अर्थ हो सकता है।
अथवा ज् ञ् के बीच में दूरता से उच्चारण न हो मिलाकर क्ष के समान उच्चारण करना चाहिए। यह अर्थ भी हो सकता है।
आप क्या मानते हैं !- यह प्रमाण नही है । लोक में प्रामाणिकों का व्यवहार क्या है--इस आधार पर विवेचन अपेक्षित है । जो किया गया है ।
@@Acharysiyaramdasnaiyayik 🙏यह बात आपकी ठीक है कि मैं क्या कहता हूं वह प्रमाण नहीं किंतु मैंने स्पष्टता के लिए मात्र अपना पक्ष प्रस्तुत किया है।
और यह बताने का प्रयास किया है कि जो आपने गकार ध्वनि अथवा जकार को छोड़कर जो अन्य ध्वनी दर्शाई है तथा उनमें जो युक्तियां दी हैं वह ठीक नहीं।
और इस ज्ञ में जकार उच्चारण ही होना चाहिए इस बात में कोई हठ नहीं है यदि आपकी युक्तियां प्रमाण ठीक होते तो मैं उस बात को अवश्य स्वीकार करता।
जकार ध्वनि श्रवण में जकार और ञकार का होना ही अपने आप में दृढ प्रमाण है और विद्वत्वरेण्यों में यह पक्ष भी स्तुत्य है । तथा ग् श्रवण में कोई प्रमाण व युक्ति नहीं है।
@@user-rj6xq4el5f जी ! शब्दप्रयोग वस्तुत: तत्तत्स्थलों में विभिन्नताओं को लिए हुए दृष्टिगोचर होता है । जैसे कृष्ण को क्रुष्ण आदि । जहां जैसा प्रयोग हो रहा है । वहां के लोग वैसा ही सही सयझते भी हैं। कृष्ण के स्थान पर क्रुष्ण कृपा के सथान पर क्रुपा ही बोलना महाराष्ट्री एवं गुजरातियों का अनादि सिद्ध स्वभाव है । हन धातु हिंसा और गत्यर्थक होते हु ए भी सप्तद्वीपा वसुमती में कहीं तो गत्यर्थ में भी प्रयुक्त होती ही होगी । अन्यथा उसका गत्यर्थक निरूपण व्यर्थ हो जायेगा । रही बात क्+ष् = क्ष की । तो जहां मातृकान्यास या न्यासान्तर के साधक तत्तद्वर्णों का तत्तदंगों में न्यास करते है । वहां ष से भिन्न क्ष का न्यास भी किया जाता है । ज्+ ञ् = ज्ञ् । इन दोनों वर्णों के स्थान पर यदि ज् ञान ही लेखनप्रयोग हो तो हमे इस पर कोई आपत्ति नही होगी । आपत्ति तो उच्चारण के वैविध्य को लेकर ही है । लृकार में दीर्घ होने पर दीर्घ ऋ ही होता है । पर न्यासप्रक्रिया में ह्रस्व लृ की भांति दीर्घ लृ का न्यास वाम कपोल में विहित है । ज+ञ् = ज्ञ -- यहां की स्थिति हमें तत्तत् स्थलों के उच्चारणभेद को ध्यान में रखकर ही करना चाहिए ; क्योंकि ये उच्चारण विद्वानों मे समादृत भी है । अस्तु । धन्यवाद ।
@@Acharysiyaramdasnaiyayik 🙏संस्कृत भाषा के शब्दों के प्रयोग में स्थल नहीं देखा जाता सभी स्थलों पर एक ही जैसा उच्चारण होना चाहिए। और हिंदी आदि भाषाओं में भी जो संस्कृत के शब्द है वह भी प्रायः सब जगह एक ही जैसे उच्चारण होने चाहिए। अन्यथा वे अशुद्ध ही समझे जाएंगे। हन् धातु के बारे में जो कहां उसका इस प्रसंग से कोई मेल नहीं दिखता।
और आपने विडियो में ज्ञ के लेखन को लेकर भी ग् ञ् उच्चारण मान्यता की पुष्टि भी की थी, उसका खण्डन होने पर अब कहते हैं कि आपत्ति तो उच्चारण को लेकर है।
तत्तत्स्थलों पर ज्ञ का उच्चारण किसी को समझाने मात्र के लिए अशुद्ध उच्चारण(ग् ञ् आदि) करे तो अलग बात है अन्यथा ज् ञ् उच्चारण ही होना चाहिए इसी प्रकार की ढिलाई के कारण तो बहुत सारे वर्णों का उच्चारण बिगड़ गया है और ज्ञ का तो विद्वान तक में भी मतभेद उत्पन्न हो गया है। धन्यवाद 🙏
@@user-rj6xq4el5f जी ! ज्ञ के उच्चारण का न खण्डन हुआ है और न होगा । हम प्रयोग यथावत् करते आये हैं और कर रहे हैं। वैदिकों में भी प्रयोग यथावत् है । दृष्टांत और दार्ष्टान्त के प्रयोग को समझना भी बहुत आसान नही है।
प्रणाम आचार्य... आपकी विद्वत्ता के सामने नतमस्तक हूं
धन्यवाद एवं आभार भगवन्।
Knowledge achi h
Gurudev aapke charno mein mera koti koti pranaam.
Prasann rhen
Aapne bahut kripa ki jankari de kar, pranam
Jai Shree Sitaram
Jai Shree Radheshyam
Har har Mahadev 🙌
Hari sharnam 🙏
प्रसन्न रहें उपाध्याय जी । जय श्रीराम
जय श्रमन्जी
ॐ गुरू पादुकाये नमो नम:। बहुत अच्छा लगा। कृपया कुछ न कुछ ज्ञान देते रहे। व्याकरण से सब डरते हैं गुरू जी, मेरा डर दूर करें।
नमाम्यहम्।
नमो नमो भगवन् ।
ज्ञ शब्द का अत्यारिक गलत उच्चारण आर्य समाजी करते हुए पाए जाते हैं
मेरी दृष्टि में यही उन की पहचान है
Subscribe kr leta hu jaldi se.
Gurudev Namaskar!
Kya aap mujhe Sanskrit ke liye acchi Vyakaran kitab ka naam bata sakte hain. Kripya lekhak ka naam bhi bataiyega.
Main sanskrit sikhna chahta hoon.
Guru ji
Hreem ya reem in may ky bolna cheiya batay app🙏
ह्रीं।
प्रणाम गुरुदेव🙏, कृपया स श एवं ष तथा न एवं ण के उच्चारण में क्या अंतर है बताने की कृपा करें🙏
गुरूजी जब क्ष का उच्चारण आदि में हो रहा है तब क यह ध्वनि उच्चरित नहीं होती जैसे क्षय । किन्तु मध्यान्त अवस्था मे ककार ध्वनि स्पष्ट है । जैसे अक्षु में क यह ध्वनि भी है ।
क्योंकि आदि में अच् नहीं है । अक्षु में क् अनुभूत होने पर भी तत्परवर्ती वर्ण का अनुभव उस रूप में नही होता ।
@@Acharysiyaramdasnaiyayik गुरुदेव आपके लघुसिद्धान्त के और भाग यहां उपलब्ध नहीं है । आप लघुसिद्धांत रूपी सम्पूर्ण आशीष प्रदान करें । तथा माहेश्वरसूत्रों के जैसे हयवरट् सूत्र की दार्शनिक व्याख्या बताई आपश्री ने तदेव प्रत्येकसूत्रों के विषय मे मुझ अज्ञानी को बताएं । सादर चरण स्पर्श ।
(दासानुदास अमित रघुनाथी)
@@Amit-kh2ro जी यह कार्य तभी होगा जब छात्रों की कृपा होगी ।
संपूर्ण गायत्री संध्या का भी ज्ञान दिजिये सभी मुद्रा के साथ , दिशा के साथ
7 16
साधो! आचार्यजी, कृपया "ष" के सही उच्चारण के बारे में भी ज्ञान दे। वेदपाठी ब्राह्मण बहुधा ष का उच्चारण ख की तरह करते हैं। इन उदाहरणों में ष अपने तद्भ्व रूप में ख को प्राप्त है:-
लक्ष-लाख, अक्ष-आंख
चतुर्वेदो में एक यजुर्वेदके माध्यन्दिन शाखा का उच्चारण नियम हैं जिसमें ष का उच्चारण ख किया जाता हैं।
ये वेद शिक्षा ग्रंथ से निश्चित होता है
नौमि
गोविन्द शुभाशीर्वचांसि वत्स,
👋
Kshma kaise bolna hai
नमस्ते आचार्य जी।
यद्यपि आप व्याकरण के विद्वान् हैं किन्तु लोकव्यवहार से प्रमाण देना ठीक नहीं।
मैं सच में प्रत्यक्-ष आदि ही बोलता हूं अतः आपके समस्त प्रमाण मेरे लिए व्यर्थ हुए।
पुनश्च मैं यज्-ञ ही कहूं तो भी कोई गलती वाला प्रमाण आपने नहीं दिया, बस "आधा सोना नहीं अपितु पूरा सोना" मैं नहीं कर रहा।
सादर अभिवादन 🙏।
बंगीय महानुभाव क्ष के स्थान पर क् ष् बोलते देखें गये हैं। लोकव्यवहार को प्रमाण स्वयं भगवान् पाणिनि ने माना है।
@@Acharysiyaramdasnaiyayik जी अवश्य। अतः क्या ज्ञ के
ग्य
ग्न
द्न
ज्न
आदि समस्त उच्चारण साधु हैं?
समाधान हेतु बहुत बहुत धन्यवाद।
संस्कृत का बोध अपने आप हो रहा है। सो प्रवल ईच्छा है को पथ पर सही चलाये।
To fir cha se chata ko kya khenge
He can not pronounce the letters क्ष ष ज्ञ ञ, correctly. He may have knowledge about them but can't pronounce it. He is pronouncing ञ as इयां क्ष as क्छ
अरे यह आश्रम कहाँ है?? दश बार पुछ चुका हूँ, बताओ ना... ॐ
MP k badwani jile me hai, is channel k about me padh lijiye.
Jai Shree Sitaram
Jai Shree Radheshyam
Har har Mahadev 🙌
Hari sharnam 🙏
ॐ नमः शिवाय, यह आश्रम MP में है??
धन्यवाद...
महाराज श्री का यदि का सम्पर्क सूत्र प्राप्त हो तो, बढी कृपा होगी.... ॐ नमः शिवाय
@@vasudevswaroop542 जी ! आप इस चैनल के about को क्लिक करेंगे तो वहां फोन नंबर लिखा है । वे आपको मुझसे बात करा सकते हैं । मैं प्राय: फोन कभी कभी ही उठा पाता हूं । कोई सुनिश्चित समय नहीं है ।
Aap apna number dijiye
राम् (Rām) राम (Rāma), and रामा (Rāmā) all pronounced differently. Hindi and Sanskrit both are phonetic languages unlike English i.e. they are pronounced exactly the same way they are written.
In hindi even though it is written as राम (Rāma) but while speaking it is pronouced as राम् (Rām) which is wrong. So राम (Rāma) is correct pronounciation. Mostly in today's Hindi schwa is omitted (removing अ swara/vowel from the vyanjana/consonant )now a days and made halanta due to the influence of Urdu (Thanks to Bollywood). The English spelling Rama is correct as well - first a is for आ(ā) and second is for अ(a). Observe how we sing National Anthem, we say Bhārata (भारत) and not Bharat (भारत्) or Jana (जण), Gana (गण), Mana (मन) not Jan (जण्), Gan (गण्), Man (मन्)
You are right 👍👍
2:50
ज्ञान (Dnyan) = द्+न्+या+न यह मराठी वाला उच्चार है| कृपया किसी उच्चारण को गलत या बेक्कार कहने से पहले उसके बारे मे सही से जानकारी ले.
सभी मराठी ऐसा नहीं बोलते। हमने संपर्क करने के बाद लिखा है।
@@Acharysiyaramdasnaiyayik
मराठी में और किस प्रकार का उच्चार है फिर?
गुरू जी सादर अभिवादन मै संस्कृत भाषा का व्यक्ति हूं लेकिन न्याय शास्त्र की भाषा को सरलता से किस तरह सीख सकूं मुझे मार्ग दर्शन करें फोन नंबर भेजें
न्याय दर्शन किसी सुयोग्य गुरु से पढ़कर संस्कार बनायें। तत्पश्चात् स्वयं ग्रन्थालोडन की योग्यता मिलेगी।