यही है ज्ञान जो मुक्तीका मार्ग खोल सकता है,धन्य भाग मेरे ऐसे शब्द सुनने का अवसर प्राप्त हुआ है।बडे बडे महात्मा भी ऐसा ज्ञान खुला करके नही समझाते जो आप कर रहे हो।सब यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान और समाधी ऐसे कुट प्रश्न खडे करते है ताकी वे हमें और उलझनमें डालते है,हमे डर लगे और हम हीन दीन ही रहे ताकी वे बडे सिंहासन पर बैठकर हम उनकी सेवामें लगे।गुरु हमें गुरुत्व की और ले जाता है वही असली गुरु है।प्रणाम आपको बारंबार जो दिया है हमको अमृतसार!
@@LifeIsNowHere123 sir chetana bahar nahi jati balki chetana bodh ko jagrutv drushti yani observal (kalpanashakti ) pradan karata hai vyaktiastitv bodh shuny ho jane par observal kalpanashakti akriy ho jati hai jaise hi hamare dimagi urjasharir ko kuch bodh hota hai to observal kalpanashakti sakriy ho jati hai
वेदों और उपनिषदों के हिसाब से वह भी सही बोलते हैं। अपना-अपना तरीका होता है समझाने का, जो वेद शास्त्रों में है। वह भी तो मान्य होता आया है। अष्टांग योग को समझना पड़ता है 🙏यह भी तो सत्य है
मूल बात कि आत्मा, चेतना अलग है, शरीर अलग है, में शरीर नहीं आत्मा हूँ - इस को बहुत अच्छे ढंग से समझाया है। लेकिन यह कहना कि बेहोश होने पर या सोते हुए आत्मा (चेतना) शरीर से चले जाती है, यह ठीक नहीं है। आत्मा इंद्रियों के द्वारा जानने का कार्य करती है जब इंद्रियां सो जाती हैं तो आत्मा तो वहीं होती है लेकिन सोई हुई इंद्री का काम रुक जाता है। जैसे खिड़की के अंदर खड़ा व्यक्ति खिड़की के द्वारा कमरे के बाहर का दृश्य देखता है लेकिन खिड़की बंद करने पर बाहर का दृश्य दिखाई नहीं देता हालांकि व्यक्ति वहीं है, बाहर का दृश्य भी वहीं है। यहां व्यक्ति को आत्मा, खिड़की को इंद्री मानने पर पर सब समझ मे आ जाता है कि इंद्री की सुप्तावस्था में देखने, महसूस करने की इंद्री का काम बाधित हुआ लेकिन मन का कार्य जारी रहता है इसीलिए स्वप्न आते हैं। आत्मा उस समय शरीर मे न रहे तो स्वप्न कैसे आता। आत्मा के निकलने पर शरीर निर्जीव अर्थात बिना जीव के हो जाता है। सोने को अवस्था को निर्जीव नहीं कहते। सुप्तावस्था कहते हैं अर्थात इंद्रियों की सुप्तावस्था।
आत्मा न कहीं जाती है न कहीं से आती है अचल है अविनाशी है सम्पूर्ण विश्व को एक धागा समझो और उसमें मणीऐ शरीर है मन भाव कर्म के अनुसार निश्चित समय पर मणीया टुट जाता है कर्म से फिर जन्म और ये चलता रहता है अगर कर्म न रहे या निश्काम कर्म हो। भक्ति हो गुरु से ज्ञान प्राप्त कोई भी तब मणीया टुट जाता है फिर धागा रह गया बस एक ही तो है अपने ही स्वरूप में । आत्मा ही परमात्मा।
आपको असंख्य नमन आपने बहुत अच्छा वर्णन किया है जड़ और चेतन का स्वरुप का❤ लेकिन मनुष्य के पास इतना समय ही नहीं है जो खुद को जान पाए यह माया बहुत प्रबल है कोई कोई ही बच पाया है ❤संसार में
।।अखण्ड सारशबद मार्ग दर्शन-संतो की वाणी।।खूब पढी,रामायण गीता, खूब सुना वेदो का ज्ञान, जबसे पहचाना शबद गुरु परमात्मा, वही मेरा भगवान।।00।।हे जग वालो जरा गौर से शबद भेदी सद्गुरु की, गुरु वाणी को सुन समझ लो। आत्मा परमात्मा की सुसंगत से, सतधाम की राह पकड लो।।सारशबद अखण्ड सुपात्र जीव हंसो को, विदेही सतगुरु परमात्मा खुद ही लखाते है। लखचौरासी का चक्र छुडा कर, काल की जेल से मुक्त कराते है।।01।।हर मानव को है जग वालो, खास जरूरत पिता परमेश्वर की। इसीलिए भाई अरुण जी रोज सतसंग सुनाते है, और विदेही बेहदी परमपिता जी सारशबद चित्त मे लखाते है।।सुरति को शबद से मिलालो मेरे भाई बहनो, तुम्हे मानव जीवन का ईनाम मिलेगा। भेदी गुरु संत सुजान हंस का सतसंग सुनलो, तुम्हे परम प्रगट प्रत्यक्ष परमपिता सतखंडी का साथ मिलेगा।।02।।लिखे सारशब्दानंद अपने भजनो मे, भवसागर तर जाओगे पल मे। गजब की शक्ती है सारशबद मे, सतधाम लेकर जाऐगा अंतिम क्षण मे।।नही जाना शबद गुरु सा कोई विदेही प्रभू सृष्टी मे, सारशबद अखण्ड अविनाशी की दया होगई पल मे। सारशबद अखण्ड तो सकल समाया, जाननहारा सीधा परममोक्ष को पाया।।03।।,,भाई अरुण जी महाराज नासिक महाराष्ट्र को सादर समर्पित,,सारशब्दानंद,,🙏🏻🌹
Lol tera kabir ek aur information ki duniya me le jayega tujhe mujhe astitv se 0 hona hai duniya ko observ karate karate thak gaya hu pata nahi kitane janmo se observal ban ke ghum raha hu ab bas ho gaya ab mujhe shant hona hai mujhe chahiye observal se mukti
कथन अच्छा लगा। लेकिन अकाश को आप ने खाली जगह कहा।जब कि अकाश वायु से सूक्ष्म और निराकार ब्रह्म से स्थूल एक तत्त्व है।जिसका गुण शब्द है।ऐसे मेरुः सग्यान में है ।
ईश्वर सच्चिदानंद स्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम , सर्वाधार , सर्वेश्वर, सर्वव्यापक,सर्वान्तर्यामि, अजर ,अमर , अभय , नित्य, पवित्र, और सृष्टिकर्ता है ये सभी गुण परमात्मा के है। जो की आत्मा से एक या दो गुण ही मेल खाता है । अगर आत्मा परमात्मा का ही अंश होता तो । ईश्वर क्यो अपने अंश आत्मा को क्यों प्रकृति के बंधनों मे बाँधता । ऐसा करके परमात्मा का कोन सा प्रयोजन सिद्ध होता हैं । अगर आत्मा हीं परमात्मा होता तो सभी प्राणी ज्ञानवान स्वतः हीं होते और कोई व्यक्ति पाप कर्म नहीं करता । सत्य तो यह है की आत्मा परमात्मा का अंश नहीं है । अगर होता तो ये सारे गुण आत्मा मे होते।
साधारण रूप से जब हम कहते हैं कि आत्मा ही परमात्मा है तो भाव होता है कि आत्मा अपने को कर्म जाल से मुक्त कराकर परमात्मा बनने की शक्ति संजोए है। दूसरे, आत्मा हमेशा कर्मों से पृथक है। कर्मो से आच्छादित है परंतु कर्मों से एकमके नहीं है। अतः वह अपने शुद्ध स्वरूप में भी कायम है, इसी शुद्ध स्वरूप को हम परमात्मा, ईश्वर, चेतना कहते हैं।
कोई दिव्य शक्ति है क्योंकि मुझे ऐसे वीडियो देखने के लिए मिल जाते हैं बस में विचार करता हूं इसी तरह से मुझे ज्ञान मिलने आ रहा है ❤❤ प्रणाम गुरुवरधन्यवाद
Ankhe khol di..apne.. beautiful..sakshi bhav..drishta each moments kaise bane rahe? Apne Ghar vapas kaise Jaye? Sirf me bramh hu kah ke par ho sakte hai?
सूरज वाला उदाहरण बहुत ही उपयुक्त है....
संत जी को नमन । आप जौ बता रहै हो वह बहुत ऊपर की बात है । लैकीन आज कल कै लोगो को राम राम बोलनै मै ही दिक्कत हो रही हे।
Yes
यही है ज्ञान जो मुक्तीका मार्ग खोल सकता है,धन्य भाग मेरे ऐसे शब्द सुनने का अवसर प्राप्त हुआ है।बडे बडे महात्मा भी ऐसा ज्ञान खुला करके नही समझाते जो आप कर रहे हो।सब यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान और समाधी ऐसे कुट प्रश्न खडे करते है ताकी वे हमें और उलझनमें डालते है,हमे डर लगे और हम हीन दीन ही रहे ताकी वे बडे सिंहासन पर बैठकर हम उनकी सेवामें लगे।गुरु हमें गुरुत्व की और ले जाता है वही असली गुरु है।प्रणाम आपको बारंबार जो दिया है हमको अमृतसार!
सत्य तो सदैव ही सरल है। जहां सत्य को जटिल बनाकर प्रस्तुत किया जाता है, वहां सत्य नहीं है, ऐसा ही जानिए।🌹
@@LifeIsNowHere123 sir chetana bahar nahi jati balki chetana bodh ko jagrutv drushti yani observal (kalpanashakti ) pradan karata hai vyaktiastitv bodh shuny ho jane par observal kalpanashakti akriy ho jati hai jaise hi hamare dimagi urjasharir ko kuch bodh hota hai to observal kalpanashakti sakriy ho jati hai
100% सही बात
वेदों और उपनिषदों के हिसाब से वह भी सही बोलते हैं। अपना-अपना तरीका होता है समझाने का, जो वेद शास्त्रों में है। वह भी तो मान्य होता आया है। अष्टांग योग को समझना पड़ता है 🙏यह भी तो सत्य है
In ni.
By the XD
अद्भुत.... आप निःशब्द कर देते हैँ.... This is my favourite video...
🌹
Parnam 🙏
वाह्ह्ह वाह्ह्ह्ह....क्या कहूं...शब्द कम पड़ जाते हैँ.....🌹कितनी सरल सहज व्याख्या........कितना भी सुनो मन नहीं भरता......🌹
Har Har mahadev bahut achha guruji
अद्भुत ज्ञान है गुरुजी।🙏🏻👌🏻👌🏻👍🏻
मूल बात कि आत्मा, चेतना अलग है, शरीर अलग है, में शरीर नहीं आत्मा हूँ - इस को बहुत अच्छे ढंग से समझाया है। लेकिन यह कहना कि बेहोश होने पर या सोते हुए आत्मा (चेतना) शरीर से चले जाती है, यह ठीक नहीं है। आत्मा इंद्रियों के द्वारा जानने का कार्य करती है जब इंद्रियां सो जाती हैं तो आत्मा तो वहीं होती है लेकिन सोई हुई इंद्री का काम रुक जाता है। जैसे खिड़की के अंदर खड़ा व्यक्ति खिड़की के द्वारा कमरे के बाहर का दृश्य देखता है लेकिन खिड़की बंद करने पर बाहर का दृश्य दिखाई नहीं देता हालांकि व्यक्ति वहीं है, बाहर का दृश्य भी वहीं है। यहां व्यक्ति को आत्मा, खिड़की को इंद्री मानने पर पर सब समझ मे आ जाता है कि इंद्री की सुप्तावस्था में देखने, महसूस करने की इंद्री का काम बाधित हुआ लेकिन मन का कार्य जारी रहता है इसीलिए स्वप्न आते हैं। आत्मा उस समय शरीर मे न रहे तो स्वप्न कैसे आता। आत्मा के निकलने पर शरीर निर्जीव अर्थात बिना जीव के हो जाता है। सोने को अवस्था को निर्जीव नहीं कहते। सुप्तावस्था कहते हैं अर्थात इंद्रियों की सुप्तावस्था।
Perfactly said
हा जब ऑपरेशन k वक्त b आत्मा शरीर k बाहर नहीं जाती बस इंद्रिय को महसुस नहीं होता
Are bhai bodh shuny ho janepar vyaktiastitv observal bhi 0 ho jata hai jaise urjasharir ko bodh hota hai observal kalpashakti sakriy ho jati hai
आत्मा न कहीं जाती है न कहीं से आती है अचल है अविनाशी है सम्पूर्ण विश्व को एक धागा समझो और उसमें मणीऐ शरीर है मन भाव कर्म के अनुसार निश्चित समय पर मणीया टुट जाता है कर्म से फिर जन्म और ये चलता रहता है अगर कर्म न रहे या निश्काम कर्म हो। भक्ति हो गुरु से ज्ञान प्राप्त कोई भी तब मणीया टुट जाता है फिर धागा रह गया बस एक ही तो है अपने ही स्वरूप में ।
आत्मा ही परमात्मा।
विषयों से आसक्ति न रहने पर इन्द्रियां मन में ओर मन अहं तत्व में लीन हो जाता है
अहंकार से ही संसार होता है।
,🙏🙏🙏🙏🙏🚩 dhanyvad Guruji aapane Jo Gyan sikhayen bahut bahut dhanyvad aapko koti koti pranam, 🙏🙏🚩🌿 1:42
बेहतरीन❤
Iskelia koti koti naman
बहुत ही अच्छा लगा आपका विडियो
Vah bahut achcha Gyan
Bahut sunder guru jee
Advait se davait ka safer bahut sulabh tarikase samazaya
Dhanyavad .
Excellent ❤❤
Good Thought❤
महात्मा जी आपको बहुत बहुत धन्यवाद
Bahut achha laga dhanyawad
Excellent explanation
बहुत अच्छा उद्बोधन
Thank you Guruji
बहुत बहुत धन्यवाद आभार !
Thanks guruji for valuable information
आपको असंख्य नमन आपने बहुत अच्छा वर्णन किया है जड़ और चेतन का स्वरुप का❤ लेकिन मनुष्य के पास इतना समय ही नहीं है जो खुद को जान पाए यह माया बहुत प्रबल है कोई कोई ही बच पाया है ❤संसार में
।।अखण्ड सारशबद मार्ग दर्शन-संतो की वाणी।।खूब पढी,रामायण गीता, खूब सुना वेदो का ज्ञान, जबसे पहचाना शबद गुरु परमात्मा, वही मेरा भगवान।।00।।हे जग वालो जरा गौर से शबद भेदी सद्गुरु की, गुरु वाणी को सुन समझ लो। आत्मा परमात्मा की सुसंगत से, सतधाम की राह पकड लो।।सारशबद अखण्ड सुपात्र जीव हंसो को, विदेही सतगुरु परमात्मा खुद ही लखाते है। लखचौरासी का चक्र छुडा कर, काल की जेल से मुक्त कराते है।।01।।हर मानव को है जग वालो, खास जरूरत पिता परमेश्वर की। इसीलिए भाई अरुण जी रोज सतसंग सुनाते है, और विदेही बेहदी परमपिता जी सारशबद चित्त मे लखाते है।।सुरति को शबद से मिलालो मेरे भाई बहनो, तुम्हे मानव जीवन का ईनाम मिलेगा। भेदी गुरु संत सुजान हंस का सतसंग सुनलो, तुम्हे परम प्रगट प्रत्यक्ष परमपिता सतखंडी का साथ मिलेगा।।02।।लिखे सारशब्दानंद अपने भजनो मे, भवसागर तर जाओगे पल मे। गजब की शक्ती है सारशबद मे, सतधाम लेकर जाऐगा अंतिम क्षण मे।।नही जाना शबद गुरु सा कोई विदेही प्रभू सृष्टी मे, सारशबद अखण्ड अविनाशी की दया होगई पल मे। सारशबद अखण्ड तो सकल समाया, जाननहारा सीधा परममोक्ष को पाया।।03।।,,भाई अरुण जी महाराज नासिक महाराष्ट्र को सादर समर्पित,,सारशब्दानंद,,🙏🏻🌹
Lol tera kabir ek aur information ki duniya me le jayega tujhe mujhe astitv se 0 hona hai duniya ko observ karate karate thak gaya hu pata nahi kitane janmo se observal ban ke ghum raha hu ab bas ho gaya ab mujhe shant hona hai mujhe chahiye observal se mukti
वाह्ह्ह्ह 🙏🏻🙏🏻
समझाने का तरीका सुन्दर है ।Excellent 🎉😂🎉
❤❤❤❤❤
Bahut sundar samjaya
Bahut achha. 🙏🙏🙏🙏
बहुत अच्छा
Excellent... easily understandable
Nice video
Beautiful Discussion on Advaita Vedanta
Thanks a lot.Hari Om.Pronam
Excellent wow Gurudev 🙏🙏🙏
आपकी ज्ञान अनुभूति धन्य है
Satya Vachan❤❤❤
Super explaination .. I am grateful to u.. guruji 🙏🙏🙏❤️🙏
Life changing video 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Thanks for enlightening us ❤🎉🎉🙏🏻
Thanks guru ji
Jar(Matter) Consusness (Chetanya) Explain very clear.Awesome❤
Bahut sunder dhang se samjhaya gaya hai ki atma or permatma me kya bher hai.
Saheb bandagi 🚩SATNAAM 🚩🙏🙏🙏🙏🙏
वेदांत के गूढ़ रहस्य की सरल सहज व्याख्या....
Adbhut deep knowledge📚 manyver ❤
Sat, sat, vandan🎉
शत शत प्रणाम गुरूदेव
Sat 2bandam shi
😊1Very verry nice inter knowledge s thanks
बहुत सुंदर,, अंतरआत्मा को छूँ गया
कथन अच्छा लगा। लेकिन अकाश को आप ने खाली जगह कहा।जब कि अकाश वायु से सूक्ष्म और निराकार ब्रह्म से स्थूल एक तत्त्व है।जिसका गुण शब्द है।ऐसे मेरुः सग्यान में है ।
Sadar naman
Aap mahaan ho...sir ji...aap jo bata rahe hai....purna satya hai.
अड़ा अच्छा ढंग है जी समझने का शुक्रिय
Guruji sat sat naman
Bahut achha samjhaya🙏
❤
Sat sat vandan
Very good explanation of Vedanta philophy .Thank you .
समझाने की कला सहज और बढ़िया है
Thanks
Bahut achha gian hai.
Good knowledge sir best important life story
🙏🌹।। हरि ओम।।🌹🙏
ईश्वर सच्चिदानंद स्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम , सर्वाधार , सर्वेश्वर, सर्वव्यापक,सर्वान्तर्यामि, अजर ,अमर , अभय , नित्य, पवित्र, और सृष्टिकर्ता है
ये सभी गुण परमात्मा के है। जो की आत्मा से एक या दो गुण ही मेल खाता है ।
अगर आत्मा परमात्मा का ही अंश होता तो । ईश्वर क्यो अपने अंश आत्मा को क्यों प्रकृति के बंधनों मे बाँधता । ऐसा करके परमात्मा का कोन सा प्रयोजन सिद्ध होता हैं ।
अगर आत्मा हीं परमात्मा होता तो सभी प्राणी ज्ञानवान स्वतः हीं होते और कोई व्यक्ति पाप कर्म नहीं करता ।
सत्य तो यह है की आत्मा परमात्मा का अंश नहीं है । अगर होता तो ये सारे गुण आत्मा मे होते।
बहुत सही कहा है
साधारण रूप से जब हम कहते हैं कि आत्मा ही परमात्मा है तो भाव होता है कि आत्मा अपने को कर्म जाल से मुक्त कराकर परमात्मा बनने की शक्ति संजोए है। दूसरे, आत्मा हमेशा कर्मों से पृथक है। कर्मो से आच्छादित है परंतु कर्मों से एकमके नहीं है। अतः वह अपने शुद्ध स्वरूप में भी कायम है, इसी शुद्ध स्वरूप को हम परमात्मा, ईश्वर, चेतना कहते हैं।
Koti 2 pranam Guru jee sat 2 naman 🙏🙏🙏
Very good stopic
बहुत ही अच्छे ज्ञान आप मुझे दिऐ। युगल परसाद। बिहार।
आपने वास्तविक जीवन के प्रति हमारी आँख खोल दी
निद्रा अवस्था में चेतना हृदय में रहती है जिसको susupati कहते हैं बाकी समझने का तरीका बड़ी सुंदर है प्रणाम
Kuch bhi ek adami bina heart ke machine ke sahare ek mahina jinda raha 😂😂
जय हो आपके ज्ञान तथा आपके गुरुदेव प्रणाम
कोई दिव्य शक्ति है क्योंकि मुझे ऐसे वीडियो देखने के लिए मिल जाते हैं बस में विचार करता हूं इसी तरह से मुझे ज्ञान मिलने आ रहा है
❤❤ प्रणाम गुरुवरधन्यवाद
Aap ne aakhen khol di
Jai sri ram
ॐ राम ॥
बहुत बढिया 🙏🙏🙏
Dhanyawad.Happy thoughts
सत सत वंदन Right 👍👍👍 दुनिया का सही सच 🙏🙏
😊😊
😊
😊😊😊
😊😊😊
😊😊😊
बहुत अच्छा ज्ञान दिया है आपने हमने आपको अपना गुरु मान लिया हैं
Top class explainstion
पूरा प्रवचन पूरा वीडियो कहा है
😂❤. Om. Jai 🕉️Jai Sachidanand 🙏Jee 🙏🌞🙏 Om Prakash Malkoti 🌞Ek Atma Parmatma Swaroop Jai Ho 🌞Jee 🙏🙏🙏🙏🙏🌞🙏........
Very nice
जय श्री गुरु देव भगवान की जय ❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
🙏🙏👍
Ankhe khol di..apne.. beautiful..sakshi bhav..drishta each moments kaise bane rahe? Apne Ghar vapas kaise Jaye? Sirf me bramh hu kah ke par ho sakte hai?
परमात्मा सर्वव्यापी है
Dhanyavad ji 🙏
Right guru ji 🙏🙏🙏🌹🌹♥️
Aho aho bhav 🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹
I am writing on this 'consciousness' theme.
I want to meet you Sir ji.
Thanks good
Deep deep gratitudes divine great master.
ऐक दम सही बात कही।
सत सत प्रणाम 🙏
Jai Ho Bala Ji ki
Easily understandable and achievable 🙏🙏🙏🙏
Super