Looks as if Pt Jasraj 's Voice descending in string notes and unmatched amalgamation of violin.the pious fingers of Kalaji dragging guru's ascending descending notes of raga ahir bhairav in true unison wid violin notes,the echos of Pt Jasraj do reflect their in.Hats off.
एक उम्र हो चली है जब से बर्मन दा ने अहीर भैरव को भारतीय श्रोताओं के मानस पटल पर ऐसा अंकित किया है कि इन स्वरों को सुनते ही हरिदय इन्हीं के साथ बह निकलता है। कला जी के वादन के क्या कहने। वाह वाह।
पोपली साहब, आप शायद “पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई “ की बात कर रहे हैं . अहीर भैरव में निबद्ध यह धुन दरअसल बांग्ला के प्रसिद्ध कवि “क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम “ की है जो बर्मन दादा के अनन्य मित्रों में थे. उन्हीं के लिखा और स्वरबद्ध किया गीत “अरुण कान्ति के गो जोगी भिखारी” की धुन को बर्मन दादा ने हूबहू अपनी फ़िल्म “मेरी सूरत तेरी आँखें” में ले लिया और इस तरह से ये गाना हुआ “पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई “.
Namaste Gopika ji, I do not recollect seeing your name in the comments section before. It is very nice to have audiences like you who understand that this music is absolutely divine; do continue to stay in touch with us. We upload one full concert a week. The remaining parts of this concert will be published as the week goes by. Looking forward to hearing from you again. 🙂🙏
Looks as if Pt Jasraj 's Voice descending in string notes and unmatched amalgamation of violin.the pious fingers of Kalaji dragging guru's ascending descending notes of raga ahir bhairav in true unison wid violin notes,the echos of Pt Jasraj do reflect their in.Hats off.
Excellent. It touched my heart.
🙏🙏🙏🙏
राग अहीर भैरव को वायलिन पर सुना बहुत अच्छा बजाया है मनमोहक प्रस्तुति के लिए माननीया कला रामनाथ जी का अभिनंदन है ।
Thank you very much for your words of appreciation. Stay tuned with us.
एक उम्र हो चली है जब से बर्मन दा ने अहीर भैरव को भारतीय श्रोताओं के मानस पटल पर ऐसा अंकित किया है कि इन स्वरों को सुनते ही हरिदय इन्हीं के साथ बह निकलता है। कला जी के वादन के क्या कहने। वाह वाह।
पोपली साहब, आप शायद “पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई “ की बात कर रहे हैं . अहीर भैरव में निबद्ध यह धुन दरअसल बांग्ला के प्रसिद्ध कवि “क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम “ की है जो बर्मन दादा के अनन्य मित्रों में थे. उन्हीं के लिखा और स्वरबद्ध किया गीत “अरुण कान्ति के गो जोगी भिखारी” की धुन को बर्मन दादा ने हूबहू अपनी फ़िल्म “मेरी सूरत तेरी आँखें” में ले लिया और इस तरह से ये गाना हुआ “पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई “.
Piece full, which touching directly to heart.
Wonderful ahir bhairav 🙏🙏very soothing
💎mind blowing Ahirbhairav💎 purely divine😌
Namaste Gopika ji, I do not recollect seeing your name in the comments section before. It is very nice to have audiences like you who understand that this music is absolutely divine; do continue to stay in touch with us. We upload one full concert a week. The remaining parts of this concert will be published as the week goes by. Looking forward to hearing from you again. 🙂🙏
Tremendous gratitude mam🙏🙏🙏❤
❤🙏
🙏🙏🙏🙏
I love you so much
Use shalya on leg