श्री भक्ति प्रकाश भाग(709)**सेवक और सूरमा(उपदेश मंजरी)*भाग-४

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  • เผยแพร่เมื่อ 26 เม.ย. 2024
  • Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281
    परम पूज्य डॉक्टर विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
    ((1292))
    श्री भक्ति प्रकाश भाग(709)
    सेवक और सूरमा(उपदेश मंजरी)
    भाग-४
    आज यह राजा साहब दो साल के बाद, तीन साल के बाद राजाओं के राजा के पास वृंदावन गए हैं, बांके बिहारी जी के दर्शन करने के लिए । सीढ़ियों से लेकर अंदर तक, कल आप जी से कहा था छोटी जाति का है, राजा साहब के साथ अंदर नहीं जाता । कहीं भी वह जाते है तो अंदर नहीं जाता बाहर खड़ा रहता है । मानो अपनी औकात कभी नहीं भूली | आज सीढ़ियों से लेकर ही लोग दंडवत प्रणाम करते हैं, बड़ी-बड़ी पंक्तियां लगी हुई है यह कौन है अंदर ? जिसको इतना झुक झुक कर प्रणाम लोग कर रहे हैं। यह कौन है अंदर, यह बड़े राजा भी अंदर को जा रहे हैं इतनी सारी भेंट साथ ली हुई है। So many presents । टोकरे उठाए हुए हैं, और भीतर जा रहे हैं बड़ा सजा हुआ मंदिर । कौन है इसके अंदर । दर्शन नहीं किए नहीं, मैं भीतर जा नहीं सकता |
    राजा साहब से पूछा कौन है अंदर । अखिलेश, राजा साहब ने कहा अखिलेश्वर ,अखिल ब्रह्मांड का जो ईश्वर है वह अखिलेश्वर अंदर है | राजा साहब क्षमा करें मैं आपकी नौकरी छोड़ता हूं मैं इन्हीं की नौकरी करूंगा | वत्स इनकी नौकरी ब्राह्मण कर सकते हैं, गोसाई कर सकते हैं, पांडे कर सकते हैं । जैसे तू हमारी करता रहा है । तुझे यह सब कुछ करने की इजाजत यहां नहीं मिलेगी | कोई बात नहीं, युवक कहता है कोई बात नहीं, बाहर द्वार पर तो मैं खड़ा हो सकता हूं | हां, पुजारियों गोसाईयों से बात की, क्या इसको बाहर खड़े होने की इजाजत दोगे | हां, देंगे । बाहर खड़ा रहना शुरू कर दिया । यह राजा साहब अपना माथा टेककर प्रसाद लेकर तो वापस चले गए हैं ।
    यह युवक मानो ना छोटे राजा के साथ कोई चिपकाहट थी । ना बड़े राजा के साथ ही कोई आसक्ति है | अनासक्त होकर अपने लक्ष्य को बहुत अच्छी तरह याद रखने वाला सेवक । सबसे बड़े की मुझे नौकरी करनी है। दिनभर खड़ा रहता है कब राजा बाहर निकलते होंगे मुझे दर्शन होंगे |
    अनेक दिन व्यतीत हो गए राजा साहब बाहर नहीं निकले । यह प्रतीक्षारत है, कहीं ऐसा तो नहीं मेरी Duty जब खत्म हो जाती है उसके बाद Second Shift में यह निकलते हो । अतएव आज से दिन रात वहां रहना शुरू कर दिया है I don’t want to miss him । रात को बाहर निकलेंगे तो रात को दर्शन करूंगा | अनेक दिन फिर बीत गए राजा साहब बाहर नहीं निकले | मन में हुआ कहीं ऐसा तो नहीं जिस वक्त मेरी झपकी लग जाती है, उस वक्त राजा साहब निकल जाते हो । आज निर्णय ले लिया आज से सोऊंगा नहीं | लग्न, लक्ष्य प्राप्ति की लग्न । कितनी कठिन बातें हैं इतनी आसान नहीं |
    हम सुख सुविधाएं भी भुगतते हैं और यह भी चाहते हैं कि हमें लक्ष्य की प्राप्ति हो जाए | देवियों कोई मेल सज्जनों नहीं बैठता | तप का मार्ग, तपस्या का मार्ग, त्याग का मार्ग। और हम जिस चीज को पकड़ते हैं उसे छोड़ने का नाम ही नहीं लेते | राजा से कोई आसक्ति नहीं छोटे राजा से आसक्ति नहीं बड़े राजा से किसी से कोई आसक्ति नहीं एक ही से आसक्ति है जो सबसे बड़ा है उसी की नौकरी करनी है |
    राधा अष्टमी का दिन है आज । मंदिर सज गए । फूल ही फूल सजा हुआ है बांके बिहारी जी का मंदिर । प्रभु के शयन की तैयारी । बाहर खड़े खड़े इस Post पर मन बिल्कुल साफ हो गया | किसी प्रकार की कोई कामना नहीं । भीतर कुछ नहीं । साफ सुथरा मन । भीतर क्या हो रहा है । ना भीतर गए हुए भी पता लगता है कि अंदर शयन के कपड़े बदले जा रहे हैं । गहने इत्यादि उतारे जा रहे हैं उन्हें Box में रखा जा रहा है । ताला लगाया जा रहा है । मंदिर बंद होने का समय आ गया है । बाहर से उस वक्त की बातें होंगी आजकल पता नहीं क्या है । बाहर मंदिर के ताला लगा और पुजारी चले गए । गोसाई चले गए Routine ही होगा यह, पर आज विशेष दिन है राधा अष्टमी का दिन है। मध्यरात्रि हो गई यह Constable की तरह खड़ा है द्वार पर |
    परमेश्वर की कृपा देखिए बड़ी सरकार की कृपा देखिए । दो घोड़े आए हैं अपनी आंखों से सब कुछ देख रहा है । मंदिर के आगे दो घोड़े । सफेद घोड़े द्वार पर सज धज कर अंदर से महारानी और महाराजा बाहर निकले हैं | आज प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं दोनों के चरणों पर गिरकर प्रणाम किया है, मानो सब कुछ पा लिया । जीवन में जो कुछ पाना था पा लिया । कोई मांग अब शेष नहीं । एक ही बार में इतनी तृप्ति हो गई, संतोष मिल गया । अब कुछ मांगने को और नहीं । अब कुछ करने को और नहीं । अब कुछ जानने को और कुछ नहीं । हर प्रकार से ऐसी तृप्ति इस युवक को आज मिल गई | बड़े प्रेम से उन्होंने चरणों को हाथ लगवाया | महारानी साहिबा ने कहा यमुना किनारे जा रहे हैं आप भी चलो, गदगद !
    उन राजाओं की नौकरी से यह सीख चुका हुआ था कि राजा लोगों को घोड़े पर किस प्रकार से बिठाया जाता है अतएव महाराजा साहब को, महारानी को घोड़ों पर बिठाया है और साथ साथ चलना शुरू हो गया है | वहां जाकर क्या देखा होगा, कोई नहीं जानता सिवाय इसके या दिखाने वालों के । भोर होने से पहले पहले दोनों आ गए हैं । महारानी बहुत प्रसन्न है इस युवक पर अतएव अपनी एक पायल उतार कर तो उसे दे दी है |

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