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เข้าร่วมเมื่อ 1 ก.พ. 2021
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Shree Ram Sharnam
भक्ति में बहुत शक्ति होती है। भक्ति का तात्पर्य है-स्वयं के अंतस को ईश्वर के साथ जोड़ देना। जुड़ने की प्रवृत्ति ही भक्ति है। दुनियादारी के रिश्तों में जुट जाना भक्ति नहीं है
Shree Ram Sharnam
भक्ति में बहुत शक्ति होती है। भक्ति का तात्पर्य है-स्वयं के अंतस को ईश्वर के साथ जोड़ देना। जुड़ने की प्रवृत्ति ही भक्ति है। दुनियादारी के रिश्तों में जुट जाना भक्ति नहीं है
श्री भक्ति प्रकाश भाग (738)**ऋषि याज्ञवल्क्य और मैत्री।**भाग- ९* @bhaktimeshakti2281
Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281
परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1324))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग (738)*
*ऋषि याज्ञवल्क्य और मैत्री।*
*भाग- ९*
मैत्री की चर्चा पूज्यपाद स्वामी जी महाराज जी ने कल शुरू की थी । आज भी वही चर्चा जारी है । महर्षि याज्ञवल्क्य एक ऐसे संत हुए हैं जो बहुत अमीर थे । जिनके पास प्रचुर धन संपत्ति थी । सामान्यता संतो के पास, ऋषियों मुनियों के पास धन संपत्ति होती नहीं । होनी भी नहीं चाहिए । साधक जनो यह संताई के साथ नहीं चलती । जहां धन संपत्ति का बोलबाला हो जाता है, वहां संताई लोप हो जाती है । प्राय: देखने में यही आता है । अतएव संतों महात्माओं के पास धन संपत्ति का होना शोभा नहीं देता । लेकिन यह महर्षि याज्ञवल्क्य एक ऐसे संत महात्मा हैं जिनके पास प्रचुर संपत्ति है, धन है । लेकिन कभी अपना नहीं माना । यह कोई छोटी बात नहीं है । राजा जनक भी, उनको राजऋषि कहा जाता है । यह भी ऐसे ही । राजा जनक ने सब कुछ होते हुए अपना कभी कुछ नहीं माना । ना मेरा राज है ना मेरा पाट है । मेरा कुछ नहीं है । यह धन-संपत्ति Nothing belongs to me. मेरा कुछ नहीं है । राजा जनक भी ऐसे ही मानते और महर्षि याज्ञवल्क्य भी यही मानते हैं ।
बहुत देर इस संसार में रहते हुए हो गए । मन में एकांत की भारी उत्कंठा है । अतएव सोचा दो पत्नियां है, कात्यायनी एवं मैत्री । इन दोनों को अपनी संपत्ति एक जैसी बांट कर तो कहीं एकांत में चला जाता हूं । वहां जाकर एकांत में साधना करूंगा । मानो साधना के अतिरिक्त और कोई काम नहीं Whole time sadhak. संसार में रहकर साधक जनो Whole time sadhak बनना असंभव नहीं, तो कठिन तो बहुत है, इसमें कोई शक नहीं । एकांत में आदमी चला जाता है तो काफी सारी कठिनाइयां कम हो जाती है । Distractions कम हो जाती है, जो संसार में स्वाभाविक है । वहां जाकर काफी कुछ आसान हो जाता है । इसलिए हर संत महात्मा एकांतवास करता ही है । उससे उसे बहुत लाभ होता है । उसे तो जो लाभ होता है होता ही है उसके जो संगी साथी साथ होते हैं, जो साथ भक्त होते हैं, उन्हें कहीं अधिक लाभ होता है, इसमें कोई शक नहीं ।
दो पत्नियां हैं याज्ञवल्क्य की । कात्यायनी बड़ी पत्नी है । घर के कामकाज में बहुत सुघड़ हैं, बहुत अच्छी तरह से घर का कामकाज करती हैं, संभालती हैं मानो कोई ज्यादा इच्छा नहीं । दोनों बुद्धिमान हैं लेकिन यह कम बुद्धि की है । मैत्री अधिक बुद्धिमान है । वह अधिक बुद्धिमान है इसका अर्थ नहीं है की worldly wise है । नहीं, मैत्री worldly wise नहीं है, कात्यायनी worldly wise है । तो ठीक है, दोनों में किसी प्रकार का कोई, किसी प्रकार का कोई टकराव नहीं है । कोई जैसी सौत में भाव होते हैं, ऐसा कुछ ईर्ष्या इत्यादि कुछ नहीं है दोनों प्रेम पूर्वक रहती हैं संत की छत्रछाया
में । यह कोई छोटी बात नहीं, एक ही घर में दो महिलाओं का रहना । एक पति, यह कोई छोटी बात नहीं है ।
मैत्री प्राय: पतिदेव से परमार्थ पर चर्चा करती रहती है, अध्यात्म पर चर्चा करती रहती है । घर के कामकाज में कोई रुचि नहीं । शुरू से ही नहीं है । छोटी है समझो प्यारी भी होगी, लेकिन कोई रुचि घर के कामकाज में नहीं
है । भोगी जीवन भाता नहीं है । अच्छा नहीं लगता । भोगी जीवन से पहले ही मैत्री उपरान है । आज याज्ञवल्क्य जी ने propose किया है, मैं एकांत में जाना चाहता हूं, साधना करना चाहता हूं, अमरत्व की प्राप्ति करना चाहता हूं । विशेष शब्द याज्ञवल्क्य जी का, कोई favourite है, मैं अमरत्व को प्राप्त करना चाहता हूं । आपको कोई आपत्ति तो नहीं ? किसी ने कोई जवाब नहीं दिया ।
There is no contradiction at all. तो याज्ञवल्क्य जी ने कहा -जितनी मेरी पूंजी है मैं आप दोनों में बांट देना चाहता हूं । एक जैसी । कात्यायनी बहुत खुश है, मानो सब कुछ मिल गया उसे । उसे अभी परमार्थ का कोई बोध नहीं है । ज्ञान, ध्यान, किसी चीज का कोई बोध नहीं है । मैत्री को भी हिस्सा दिया गया है । लेकिन चुप है । क्यों चुप है ? मन ही मन सोच रही है इनके पास अवश्य धन से कहीं अधिक महत्वपूर्ण कुछ है, जिसे पाने के लिए यह जा रहे हैं । वह क्या है ? अभी अपने ही मन में प्रश्न है । अभी याज्ञवल्क्य जी से नहीं पूछा, महर्षि से कोई बात नहीं की । अपने ही मन में चर्चा है । अपने ही विचार चल रहे हैं । खूब इसका दिमाग चलता था इस चीज में । अपना ही दिमाग चल रहा है । यह सारी की सारी संपत्ति यहां छोड़ कर जा रहा है । क्या प्राप्त करना चाहता है ? लोग धन संपत्ति के लिए अपनी सारी की सारी आयु घोंप देते हैं । सारी की सारी जिंदगी घोंप देते हैं । लेकिन यह सब कुछ इसे प्राप्त है, यह सब कुछ छोड़ कर जा रहा है । क्या प्राप्त करना चाहता है यह । मानो इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, जो यह प्राप्त करना चाहता है। वह क्या है ? मैत्री के मन में यह प्रश्न उठा है, वह क्या है, मैं भी वहीं पाऊंगी ।
परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1324))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग (738)*
*ऋषि याज्ञवल्क्य और मैत्री।*
*भाग- ९*
मैत्री की चर्चा पूज्यपाद स्वामी जी महाराज जी ने कल शुरू की थी । आज भी वही चर्चा जारी है । महर्षि याज्ञवल्क्य एक ऐसे संत हुए हैं जो बहुत अमीर थे । जिनके पास प्रचुर धन संपत्ति थी । सामान्यता संतो के पास, ऋषियों मुनियों के पास धन संपत्ति होती नहीं । होनी भी नहीं चाहिए । साधक जनो यह संताई के साथ नहीं चलती । जहां धन संपत्ति का बोलबाला हो जाता है, वहां संताई लोप हो जाती है । प्राय: देखने में यही आता है । अतएव संतों महात्माओं के पास धन संपत्ति का होना शोभा नहीं देता । लेकिन यह महर्षि याज्ञवल्क्य एक ऐसे संत महात्मा हैं जिनके पास प्रचुर संपत्ति है, धन है । लेकिन कभी अपना नहीं माना । यह कोई छोटी बात नहीं है । राजा जनक भी, उनको राजऋषि कहा जाता है । यह भी ऐसे ही । राजा जनक ने सब कुछ होते हुए अपना कभी कुछ नहीं माना । ना मेरा राज है ना मेरा पाट है । मेरा कुछ नहीं है । यह धन-संपत्ति Nothing belongs to me. मेरा कुछ नहीं है । राजा जनक भी ऐसे ही मानते और महर्षि याज्ञवल्क्य भी यही मानते हैं ।
बहुत देर इस संसार में रहते हुए हो गए । मन में एकांत की भारी उत्कंठा है । अतएव सोचा दो पत्नियां है, कात्यायनी एवं मैत्री । इन दोनों को अपनी संपत्ति एक जैसी बांट कर तो कहीं एकांत में चला जाता हूं । वहां जाकर एकांत में साधना करूंगा । मानो साधना के अतिरिक्त और कोई काम नहीं Whole time sadhak. संसार में रहकर साधक जनो Whole time sadhak बनना असंभव नहीं, तो कठिन तो बहुत है, इसमें कोई शक नहीं । एकांत में आदमी चला जाता है तो काफी सारी कठिनाइयां कम हो जाती है । Distractions कम हो जाती है, जो संसार में स्वाभाविक है । वहां जाकर काफी कुछ आसान हो जाता है । इसलिए हर संत महात्मा एकांतवास करता ही है । उससे उसे बहुत लाभ होता है । उसे तो जो लाभ होता है होता ही है उसके जो संगी साथी साथ होते हैं, जो साथ भक्त होते हैं, उन्हें कहीं अधिक लाभ होता है, इसमें कोई शक नहीं ।
दो पत्नियां हैं याज्ञवल्क्य की । कात्यायनी बड़ी पत्नी है । घर के कामकाज में बहुत सुघड़ हैं, बहुत अच्छी तरह से घर का कामकाज करती हैं, संभालती हैं मानो कोई ज्यादा इच्छा नहीं । दोनों बुद्धिमान हैं लेकिन यह कम बुद्धि की है । मैत्री अधिक बुद्धिमान है । वह अधिक बुद्धिमान है इसका अर्थ नहीं है की worldly wise है । नहीं, मैत्री worldly wise नहीं है, कात्यायनी worldly wise है । तो ठीक है, दोनों में किसी प्रकार का कोई, किसी प्रकार का कोई टकराव नहीं है । कोई जैसी सौत में भाव होते हैं, ऐसा कुछ ईर्ष्या इत्यादि कुछ नहीं है दोनों प्रेम पूर्वक रहती हैं संत की छत्रछाया
में । यह कोई छोटी बात नहीं, एक ही घर में दो महिलाओं का रहना । एक पति, यह कोई छोटी बात नहीं है ।
मैत्री प्राय: पतिदेव से परमार्थ पर चर्चा करती रहती है, अध्यात्म पर चर्चा करती रहती है । घर के कामकाज में कोई रुचि नहीं । शुरू से ही नहीं है । छोटी है समझो प्यारी भी होगी, लेकिन कोई रुचि घर के कामकाज में नहीं
है । भोगी जीवन भाता नहीं है । अच्छा नहीं लगता । भोगी जीवन से पहले ही मैत्री उपरान है । आज याज्ञवल्क्य जी ने propose किया है, मैं एकांत में जाना चाहता हूं, साधना करना चाहता हूं, अमरत्व की प्राप्ति करना चाहता हूं । विशेष शब्द याज्ञवल्क्य जी का, कोई favourite है, मैं अमरत्व को प्राप्त करना चाहता हूं । आपको कोई आपत्ति तो नहीं ? किसी ने कोई जवाब नहीं दिया ।
There is no contradiction at all. तो याज्ञवल्क्य जी ने कहा -जितनी मेरी पूंजी है मैं आप दोनों में बांट देना चाहता हूं । एक जैसी । कात्यायनी बहुत खुश है, मानो सब कुछ मिल गया उसे । उसे अभी परमार्थ का कोई बोध नहीं है । ज्ञान, ध्यान, किसी चीज का कोई बोध नहीं है । मैत्री को भी हिस्सा दिया गया है । लेकिन चुप है । क्यों चुप है ? मन ही मन सोच रही है इनके पास अवश्य धन से कहीं अधिक महत्वपूर्ण कुछ है, जिसे पाने के लिए यह जा रहे हैं । वह क्या है ? अभी अपने ही मन में प्रश्न है । अभी याज्ञवल्क्य जी से नहीं पूछा, महर्षि से कोई बात नहीं की । अपने ही मन में चर्चा है । अपने ही विचार चल रहे हैं । खूब इसका दिमाग चलता था इस चीज में । अपना ही दिमाग चल रहा है । यह सारी की सारी संपत्ति यहां छोड़ कर जा रहा है । क्या प्राप्त करना चाहता है ? लोग धन संपत्ति के लिए अपनी सारी की सारी आयु घोंप देते हैं । सारी की सारी जिंदगी घोंप देते हैं । लेकिन यह सब कुछ इसे प्राप्त है, यह सब कुछ छोड़ कर जा रहा है । क्या प्राप्त करना चाहता है यह । मानो इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, जो यह प्राप्त करना चाहता है। वह क्या है ? मैत्री के मन में यह प्रश्न उठा है, वह क्या है, मैं भी वहीं पाऊंगी ।
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*प्रारब्ध बहुत प्रबल*🙏 @bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 *प्रारब्ध बहुत प्रबल*🙏 #amritvanisatsang #rambhakti #ramsharnam #pravachan
श्री भक्ति प्रकाश भाग (737)**WHO AM I याज्ञवल्क्य का आत्मदर्शन**भाग -८* @bhaktimeshakti2281
มุมมอง 3802 ชั่วโมงที่ผ่านมา
Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से। ((1323)) *श्री भक्ति प्रकाश भाग (737)* *WHO AM I (मैं कौन हूं)* *(आत्मबोध) याज्ञवल्क्य का आत्मदर्शन* *भाग -८* यही एक ढंग है देवियो सज्जनो आत्मसाक्षात्कार का ।यह जितने भी साधन है, चाहे अखंड राम नाम स्मरण है, चाहे कुछ भी है, प्राणायाम करता है, योगाभ्यास करता है, कर्मयोग करता है, भक्तियोग करता है, ज्ञान ...
श्री भक्ति प्रकाश भाग (736)WHO AM I (आत्मबोध) याज्ञवल्क्य का आत्मदर्शनभाग -७ @bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से। ((1322)) *श्री भक्ति प्रकाश भाग (736)* *WHO AM I (मैं कौन हूं)* *(आत्मबोध) याज्ञवल्क्य का आत्मदर्शन* *भाग -७* *वह परमात्मदेव, वह परब्रह्म परमात्मा, हम सबके हृदयो में आत्मा के रूप में विराजमान है । ज्ञान उसे आत्मा कहता है । भक्त बहुत अच्छा मानता है, वह आत्मा नहीं, वह कहता है, परमात्मा मेरे भीतर विराजमा...
श्री भक्ति प्रकाश भाग (735)WHO AM I (आत्मबोध) याज्ञवल्क्य का आत्मदर्शन*भाग -६ @bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से। ((1321)) *श्री भक्ति प्रकाश भाग (735)* *WHO AM I (मैं कौन हूं)* *(आत्मबोध) याज्ञवल्क्य का आत्मदर्शन* *भाग -६* हार्दिक धन्यवाद देवियो । अति सुंदर प्रसंग शुरू हुआ है । साधक जनो मैत्री का कल भी जारी रहेगा, मैत्री पराशर संवाद । काश यह चर्चा थोड़ी शेष ना होती, तो आज ही मैत्री की चर्चा शुरू कर दी जाती, कल क...
श्री भक्ति प्रकाश भाग (733)WHO AM I (आत्मबोध )याज्ञवल्क्य का आत्मदर्शन *भाग-४*@bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 परम पूज्य डॉ श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से ((1319)) *श्री भक्ति प्रकाश भाग (733)* *WHO AM I(मैं कौन हूं)* *(आत्मबोध )याज्ञवल्क्य का आत्मदर्शन* *भाग-४* पूज्य पाद स्वामी जी महाराज ने आज गार्गी की चर्चा की है । उपनिषद से है यह कथा । जिस देश का वर्णन किया गया है, जिस पारब्रह्म परमात्मा का महर्षि याज्ञवल्क्य ने वर्णन किया है, वहीं परम ब्रह्म परमात्मा आत...
*प्रवचन : अपने शरणागत के लिए प्रभु क्या नहीं करते !*@bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 *प्रवचन : अपने शरणागत के लिए प्रभु क्या नहीं करते !* #amritvanisatsang #rambhakti #ramsharnam
श्री भक्ति प्रकाश भाग (732)WHO AM I(आत्मबोध)*याज्ञवल्क्य का आत्मदर्शन*भाग-३* @bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से ((1318)) *श्री भक्ति प्रकाश भाग (732)* *WHO AM I(आत्मबोध)* *याज्ञवल्क्य का आत्मदर्शन* *भाग-३* आज रमन महर्षी kitchen में चले गए थोड़ा काम करने के लिए । सब्जी काट रहे हैं । हाथ में छुरी है । सब्जी काट रहे हैं । सारी संगत के लिए एक ही किचन है वहां पर । वही सबके लिए खाना बनता है । तो रमन महर्षी आज सेवा करन...
श्री भक्ति प्रकाश भाग (731)WHO AM I(आत्मबोध)**याज्ञवल्क्य का आत्मदर्शन*भाग-२* @bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से ((1317)) *श्री भक्ति प्रकाश भाग (731)* *WHO AM I(आत्मबोध)* *याज्ञवल्क्य का आत्मदर्शन* *भाग-२* शास्त्र कहता है, भक्त जनों हम सब नाम के उपासक हैं । हमारे लिए अत्यंत मार्मिक बात, जब तक देह बुद्धि दूर नहीं होगी, जब तक देह भाव दूर नहीं होगा, जब तक आप भगवत बुद्धि में स्थित नहीं होगे, आत्म बुद्धि में स्थित नह...
श्री भक्ति प्रकाश भाग (730)WHO AM I(आत्मबोध)**याज्ञवल्क्य का आत्मदर्शन**भाग-१*@bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से ((1316)) धुन: किसी से राग नहीं, किसी से द्वेष नहीं आत्मा निर्लेप, मुझे कोई भी क्लेश नहीं । किसी से राग नहीं, किसी से द्वेष नहीं आत्मा आनंद, मुझे कोई भी क्लेश नहीं ।। *श्री भक्ति प्रकाश भाग (730)* *WHO AM I(आत्मबोध)* *याज्ञवल्क्य का आत्मदर्शन* *भाग-१* पूज्य पाद स्वामी जी महाराज ने आज याज्ञवल्क्य का आत्म...
*श्री भक्ति प्रकाश भाग (729)**प्रारब्ध (होनी बहुत प्रबल है)**भाग २*@bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से ((1315)) *श्री भक्ति प्रकाश भाग (729)* *प्रारब्ध (होनी बहुत प्रबल है)* *भाग २* इसमें ऐसा मत समझिएगा, हम गृहस्थ हैं इसलिए हमें थोड़ी छूट होगी । नहीं, आप अपने किए को यदि परिवर्तित करना चाहते हो, परिवर्तित कर सकते हो । इसमें कोई संदेह नहीं, पर आपकी भक्ति बहुत प्रगाढ़ होनी चाहिए, अनन्य भक्ति, निष्काम भक्ति, आप की ह...
श्री भक्ति प्रकाश भाग (728)**प्रारब्ध (होनी बहुत प्रबल है) * @bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (728) प्रारब्ध (होनी बहुत प्रबल है) * @bhaktimeshakti2281
प्रवचन : प्रीतिपूर्वक भजन करने से प्रभु अपने भक्त को क्या प्रदान करते हैं - २?@bhaktimeshakti2281
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प्रवचन : प्रीतिपूर्वक भजन करने से प्रभु अपने भक्त को क्या प्रदान करते हैं - २?@bhaktimeshakti2281
*श्री भक्ति प्रकाश भाग (727)**राजा जनक**भाग-६*@bhaktimeshakti2281
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*श्री भक्ति प्रकाश भाग (727) राजा जनक भाग-६*@bhaktimeshakti2281
प्रवचन : प्रीतिपूर्वक भजन करने से प्रभु अपने भक्त को क्या प्रदान करते है ?*@bhaktimeshakti2281
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प्रवचन : प्रीतिपूर्वक भजन करने से प्रभु अपने भक्त को क्या प्रदान करते है ?*@bhaktimeshakti2281
श्री भक्ति प्रकाश भाग (726)**राजा जनक**भाग-५* @bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (726) राजा जनक भाग-५* @bhaktimeshakti2281
*श्री भक्ति प्रकाश भाग (725)**राजा जनक**भाग-४* @bhaktimeshakti2281
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*श्री भक्ति प्रकाश भाग (725) राजा जनक भाग-४* @bhaktimeshakti2281
श्री भक्ति प्रकाश भाग (724)**राजा जनक**भाग-३* @bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (724) राजा जनक भाग-३* @bhaktimeshakti2281
*श्री भक्ति प्रकाश भाग (723)**राजा जनक**भाग-२*@bhaktimeshakti2281
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*श्री भक्ति प्रकाश भाग (723) राजा जनक भाग-२*@bhaktimeshakti2281
*श्री भक्ति प्रकाश भाग (722)**राजा जनक पर चर्चा**भाग-१* @bhaktimeshakti2281
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*श्री भक्ति प्रकाश भाग (722) राजा जनक पर चर्चा भाग-१* @bhaktimeshakti2281
श्री भक्ति प्रकाश भाग (721)**जैसी करनी वैसा फल भाग ६**"@bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (721) जैसी करनी वैसा फल भाग ६ "@bhaktimeshakti2281
श्री भक्ति प्रकाश भाग (720)**जैसी करनी वैसा फल भाग ५**@bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (720) जैसी करनी वैसा फल भाग ५ @bhaktimeshakti2281
श्री भक्ति प्रकाश भाग (719)जैसी करनी वैसा फल(उपदेश मंजरी)**“भाग ३*@bhaktimeshakti2281
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प्रवचनःविपत्ति साधक की परीक्षा है।एवंसिमरन की तीन श्रेणियां हैं Use ear phone @bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (718)*जैसी करनी वैसा फल(उपदेश मंजरी)*भाग-२* @bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (717)*जैसी करनी वैसा फल(उपदेश मंजरी)भाग-१* @bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (717)*जैसी करनी वैसा फल(उपदेश मंजरी)भाग-१* @bhaktimeshakti2281
श्री भक्ति प्रकाश भाग (716)उपदेश मंजरी ( शिष्टाचार)श्री राम शरणम् की महत्ता**@bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (716)उपदेश मंजरी ( शिष्टाचार)श्री राम शरणम् की महत्ता @bhaktimeshakti2281
श्री भक्ति प्रकाश भाग (714)**नाना उक्तियां भाग-४**कटु वाणी पर चर्चा* @bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (714) नाना उक्तियां भाग-४ कटु वाणी पर चर्चा* @bhaktimeshakti2281
*प्रवचन : भक्ति प्राप्त करने के लिए तड़प ,प्रभु प्रीति कैसे हो ! -२*@bhaktimeshakti2281
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*प्रवचन : भक्ति प्राप्त करने के लिए तड़प ,प्रभु प्रीति कैसे हो ! -२*@bhaktimeshakti2281
*श्री भक्ति प्रकाश भाग (713)**नाना उक्तिया भाग-३**कटु वाणी पर चर्चा* @bhaktimeshakti2281
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*श्री भक्ति प्रकाश भाग (713) नाना उक्तिया भाग-३ कटु वाणी पर चर्चा* @bhaktimeshakti2281
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GURU MAHARAJ JI K SHREE CHARNON MEI SHAT- SHAT PRANAM
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