बेखबर है शिकारी ये क्या हो रहा...शायर श्री कुमार श्री , shri kumar ghazal
ฝัง
- เผยแพร่เมื่อ 5 ต.ค. 2024
- shri Kumar "shri" ghazal,
बेख़बर है शिकारी ये क्या हो रहा,
कैद का पंछी फिर से रिहा हो रहा।।
दौर है ये वबा* का भरोसा नहीं,
जो भरोसे का था बेवफा हो रहा।।
*महामारी
अब न इंसानियत आदमी में बची,
जिसको देखो वही अब खुदा हो रहा।।
ये तबस्सुम का जादू है तेरा सनम,
आज मौसम तभी खुशनुमा हो रहा।।
उल्लुओं से मुझे पूछना है यही,
किसलिए प्यार में रतजगा हो रहा।।
तू जुदा क्या हुआ श्री" निखरने लगा,
कुछ पुराना नहीं सब नया हो रहा।।