साहित्य का इतिहास विमर्श का हिस्सा क्यों नहीं बना? | प्रथम सामाजिकी व्याख्यान Prof Francesca Orsini

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  • เผยแพร่เมื่อ 1 ธ.ค. 2024

ความคิดเห็น • 8

  • @drramvinaysharma5616
    @drramvinaysharma5616 10 หลายเดือนก่อน +1

    गम्भीर, शोधपरक एवं प्रवाहपूर्ण व्याख्यान। बहुपठनीयता का परिचय। भारतीय भाषा केन्द्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की पुरातन छात्रा को बरसों बाद सुनकर बहुत अच्छा लगा।

  • @madhuri_tiwari
    @madhuri_tiwari 10 หลายเดือนก่อน +1

    मात्र पौन घंटे में वृहत हिन्दी इतिहास के विविध पहलुओं की इतनी सुगठित, स्पष्ट व सुरुचिपूर्ण प्रस्तुति आपके गूढ़ ज्ञान की परिचायक है और हम जैसे हिन्दी प्रेमियों के लिए वरदान। बहुत-बहुत धन्यवाद।

  • @isandeepmurarka
    @isandeepmurarka 10 หลายเดือนก่อน

    सारगर्भित व्याख्यान

  • @gopalkrishnajoshi6338
    @gopalkrishnajoshi6338 11 หลายเดือนก่อน

    ❤Heartly best wishes

  • @sursenbahadur3112
    @sursenbahadur3112 11 หลายเดือนก่อน

    बहुत बढ़िया वक्तव्य। मार्मिक और ज्ञानवर्धक।

  • @gopalkrishnajoshi6338
    @gopalkrishnajoshi6338 11 หลายเดือนก่อน

  • @satyendrasinghbhadauriya
    @satyendrasinghbhadauriya 11 หลายเดือนก่อน

    विश्व विख्यात साहित्यकार चिंतक आलोचक संपादक नई कहानी के जनक राजेन्द्र यादव ने हंस पत्रिका में आपके बारे में बहुत लिखा था जिसे मैंने पढ़ा था। राजेन्द्र यादव के दिवंगत होने के बाद हंस पत्रिका लेना बंद कर दिया है। आपको हार्दिक शुभकामनाएं 💓👌🌹👍

  • @hindiekkhoj7800
    @hindiekkhoj7800 11 หลายเดือนก่อน

    🎉