18 एकदेशी वस्तु निराकार कैसे?उपासकों को ईश्वर कुछ अतिरिक्त देता है? - मुनि सत्यजित् जी - आर्ष न्यास
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- เผยแพร่เมื่อ 10 พ.ค. 2024
- Aarsh Nyas - is organization driven by vedic scholars, which has sole purpose of making ved , upanishad and darshan understanding in easy and scientific way.
विश्व के सभी मनुष्य दुःख को दूर कर सुख को प्राप्त करना चाहते हैं, दुःख का कारण अज्ञान है, सभी ज्ञान का मुख्य स्रोत वेद है. महर्षि मनु ने "सर्वज्ञानमयो हि स:" कह कर वेद को ही समस्त ज्ञान का मूल माना है, "वेदोsखिलो धर्ममूलम्" मनुस्मृति २-६ में वेद को धर्म का मूल उलेखित किया है, "धर्मं जिज्ञासमानानाम् प्रमाणम् परमं श्रुति: " अर्थात् जो धर्म का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिए परम प्रमाण वेद है.
इन आर्ष ग्रंथों के सरलतम रूप में प्रचार प्रसार एवं इससे सम्बंधित कार्य में कार्यरत ब्रह्मचारी, संन्यासी आर्यवीरों के सहयोग हेतु आर्ष न्यास का गठन दिनांक 16 अगस्त 2011 को स्वामी Vishvang जी, आचार्य सत्यजित् जी, श्री सुभाष स्वामी, श्री आदित्य स्वामी एवं श्री रामगोपाल गर्ग के द्वारा अजमेर में किया गया.
आर्ष न्यास आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक विषयों को जिज्ञासा समाधान, उपनिषद् भाष्य, पुस्तक एवं कथा के माध्यम से प्रस्तुत करने में अग्रणी है।
मुनि जी को सादर नमन एवं आभार।
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कल्याण हो रहा है 🙏🙏
Om Namasteji Muniji
नमस्ते मुनि जी
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Namaste ji
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इन्द्र,अग्नि,वरुण सूक्तों से फल मिलता है?
पुत्र वरदान, वर्षा का आगमन??
देखिए ईश्वर निराकार ही हैं। एक इंसान को यदि ईश्वर का प्रति लगन लग जाए तो उसके जीवन की इससे बड़ी उपलब्धि कुछ भी नहीं होता है। यही उसके भक्ति में कन्वर्ट हो जाता है। उसको ईश्वर साफ साफ दिखने लगते हैं और यही ईश्वर निराकार से साकार हो जाते हैं। इनका या साकार स्वरूप भी अनंत है। कुछ भी फिक्स नही। मन से भी तेज गति से उनका स्वरूप बदल जाता है। इनकी गति हमारे सोच से कई गुना तेज होता है इसीलिए वो सर्वव्यापी कहलाते हैं। यही अंतिम सत्य है और यही ईश्वर का सत्य स्वरूप है शायद।
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शायद?
@@Aarshnyas शायद इसलिए क्योंकि पूर्ण सत्य पूरे विश्व के ज्ञानी, शस्त्र, धर्मग्रंथ मिलकर भी नहीं जानते। मैं सिर्फ उनके बारे में सोच कर ही खुश होता हूं और चैन की नींद सोता हूं।
रावण को वरदान मिल गए थे.....रावण यम नियम का पालन नही किया।