अद्वैत दर्शन के दृष्टिकोण से ओम जय जगदीश हरे आरती | प्रार्थना परमात्मा से एक होकर |
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- เผยแพร่เมื่อ 24 ก.ย. 2024
- अद्वैत दर्शन के दृष्टिकोण से ओम जय जगदीश हरे आरती का गहरा विश्लेषण
Om Jai Jagdish hare aarti
Amit Ji कहते हैं कि प्रार्थना का सबसे मासूम और पवित्र तरीका वही है, जिसमें हम अपने भीतर की सच्ची भावनाओं से परमेश्वर को पुकारते हैं। प्रार्थना को किसी दिखावे या विधि-विधान की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि यह उस अंतर्निहित भावना की पुकार है, जिसमें 'मैं' और 'तू' की सीमाएं मिट जाती हैं। जब हम यह समझते हैं कि परमात्मा और आत्मा एक ही हैं, तब सच्चे अर्थों में ईश्वर प्रकट होते हैं।
Amit Ji के अनुसार, "अगर तुम मैं होते और मैं तुम होता, तो मैं इतनी देर इंतजार नहीं कराता।" यह वाक्य हमारी आत्मा की परमेश्वर से मिलन की गहरी आकांक्षा को दर्शाता है। जब हम अपने भीतर ईश्वर की उपस्थिति को महसूस करते हैं, तब हमें यह अहसास होता है कि हम उसी विरह की अग्नि में जल रहे हैं, जैसे कि प्रेमी अपने प्रिय के लिए तड़पता है।
Amit Ji आगे बताते हैं कि जब हम अपने और परमेश्वर के बीच के भेद को मिटा देते हैं, तब हमें यह समझ आता है कि "मैं" और "तुम" एक ही हैं। "तुम अगर मैं होते, और मैं तुम होता", यह भाव यह दर्शाता है कि हम सभी उसी अद्वितीय चेतना का हिस्सा हैं। भले ही हम दो अलग-अलग रूपों में प्रतीत होते हों, लेकिन हमारी आत्मा एक ही स्रोत से उत्पन्न होती है।
प्रार्थना का सही मार्ग
Amit Ji यह बताते हैं कि प्रार्थना का वास्तविक मार्ग वह है, जहाँ 'मैं' और 'तुम' की सीमाएं समाप्त हो जाती हैं। जब हम यह समझ लेते हैं कि हमारे और परमात्मा के बीच कोई भेद नहीं है, तब ईश्वर की उपस्थिति हमारे भीतर ही प्रकट हो जाती है। यह वही क्षण है, जब जगदीश्वर हमारे सामने साकार रूप में प्रकट हो जाते हैं।
जब हम अपने अहंकार और द्वैत को त्याग देते हैं, तो हमारी आत्मा परमेश्वर के साथ एकाकार हो जाती है। Amit Ji यह समझाते हैं कि यह अनुभव तभी होता है, जब हम अपनी प्रार्थना को प्रेम, भक्ति और समर्पण के साथ करते हैं। प्रार्थना में न कोई माँग होती है और न ही कोई अपेक्षा; यह केवल एक प्रेमी का अपने प्रिय से मिलन की आकांक्षा है।
प्रभु से मिलन की यात्रा
"मैं अगर तुम होता, और तुम अगर मैं होते," यह वाक्य हमारी आध्यात्मिक यात्रा का सार है। यह दिखाता है कि हम सभी परमात्मा के ही अंश हैं, और जब हम यह समझ लेते हैं, तब द्वैत समाप्त हो जाता है। यह वह स्थिति है, जहाँ ईश्वर और भक्त का मिलन होता है, और इस मिलन में हमें सच्ची शांति और आनंद प्राप्त होता है।
Amit Ji कहते हैं, "जगदीश्वर तब प्रकट हो जाते हैं, जब मैं और तू की सीमाएं मिट जाती हैं।" यह स्थिति ही हमारे जीवन का अंतिम लक्ष्य है, जहाँ हम अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानते हैं और यह अनुभव करते हैं कि हम ही ईश्वर हैं।
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आरती के जाप करते समय सही भावनाओं को धारण करना सीख सकते हैं।
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निष्कर्ष
इस गहन व्याख्यान में Amit Ji हमें यह समझाते हैं कि प्रार्थना का सही मार्ग अहंकार का त्याग और प्रेमपूर्ण समर्पण है। जब हम अपने 'मैं' को भुलाकर परमेश्वर के साथ एकाकार होते हैं, तब हमें सच्ची शांति और ईश्वर का अनुभव होता है। यह मिलन ही हमारे जीवन का अंतिम सत्य और उद्देश्य है।
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Hye Naaaaath Naaaarayana basudeba 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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जितनी सुंदर आरती, उतना सुंदर निरुपन.
Jagdish ji ko pranam
Thank you so much Prabhu
You're most welcome
Pranam bhagwan
प्रणाम जी
Parnam guru ji ❤❤
Prem pranam swamiji ❤❤❤
Dhanyawad Radhey Radhey swamiji
Prem pranam prabhuji❤
Prem pranam bhagwan 🙏🙏 thank you so much ❤my heartfelt gratitude 🌹❤️🙏
अमीत जी, आपका सरल से सरल सत्संग सुनकर हृदय गद गद् हो जाता है. प्रेम पूर्वक नम्र प्रणाम
कोटि कोटि प्रणाम 🙏 प्रभुजी
कोटि कोटि प्रणाम
प्रणाम प्रभु जी
प्रणाम जी
सादर प्रणाम 🙏🙏🙏🙏 स्वामी
प्रणाम जी
Prem Prnaam Prbhuji🙏🏻✨
Main ka main dwara is arti ke madhyam se Ati sundar adbhut bhavarth.....pahle kabhi na
suna na padha......🎉❤
राम राम स्वामी जी 🙏🙏
Prem pranam guruji
Pranam bhagwan🙏🙏
Prem Pranam 🙏🙏🙏Gurudev.
Prem pranam Guruvar
Hariom.gutuji❤❤❤❤
Swami ji , bahot rona aaya 😢 yeh video ke bhav se , parmatma ka prem ki anubhuti ❤️, thank you swami ji 🙏
Wellcome
🎉🎉🎉🎉🎉
🙏
🙏🙏🙏❤️❤️❤️
🙏🏼🌸
🙏🏻
🌹🌹🌹🙏🙏❤️
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