दृष्टा और साक्षी का अंत | साक्षी भाव के परे |

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  • เผยแพร่เมื่อ 24 ก.ย. 2024
  • दृष्टा और साक्षी का अंत | Amit Ji का गहन व्याख्यान
    क्या आपने कभी अपने विचारों और भावनाओं को एक तटस्थ प्रेक्षक की तरह देखा है? यदि नहीं, तो यह वीडियो आपके लिए है। इस वीडियो में हम साक्षी भाव और दृष्टा भाव के बारे में गहराई से चर्चा करेंगे।
    इस वीडियो में आप जानेंगे:
    साक्षी भाव क्या है: हम आपको साक्षी भाव की अवधारणा को सरल भाषा में समझाएंगे।
    दृष्टा भाव क्या है: हम दृष्टा भाव और साक्षी भाव के बीच के अंतर को स्पष्ट करेंगे।
    साक्षी भाव में कैसे स्थित हों: हम आपको साक्षी भाव में स्थित होने के लिए व्यावहारिक तकनीकें सिखाएंगे।
    साक्षी भाव की साधना: हम साक्षी भाव की साधना के विभिन्न तरीकों पर चर्चा करेंगे।
    दृष्टा भाव की साधना: हम दृष्टा भाव की साधना के बारे में भी बात करेंगे।
    सदा साक्षी कैसे रहें: हम आपको सदा साक्षी रहने के लिए आवश्यक कौशल और अभ्यास सिखाएंगे।
    विटनेसिंग मेडिटेशन: हम विटनेसिंग मेडिटेशन तकनीक के बारे में विस्तार से बताएंगे।
    मुख्य विषय और तर्क:
    अद्वैतवाद: Amit Ji के व्याख्यान का मुख्य केंद्र अद्वैतवाद है, जिसमें यह बताया गया है कि आत्मा और ब्रह्मांड अलग नहीं हैं। दृष्टा और दृश्य के बीच कोई वास्तविक विभाजन नहीं है, यह केवल एक भ्रांति है।
    विभाजन का भ्रम: Amit Ji यह स्पष्ट करते हैं कि आत्मा और ब्रह्म के बीच विभाजन मात्र एक मानसिक निर्माण है। यह भ्रम हमारे मन की उपज है, जबकि सच्चाई यह है कि सभी अनुभव, भावनाएं, और विचार अंततः एक ही स्रोत से उत्पन्न होते हैं।
    एकता चेतना: इस व्याख्यान का अंतिम लक्ष्य एकता चेतना को प्राप्त करना है, जहाँ व्यक्ति और ब्रह्मांड के बीच कोई भेद नहीं रह जाता। यह वही अवस्था है, जहाँ दृष्टा और दृश्य एक हो जाते हैं।
    द्वैत का पारगमन: Amit Ji हमें द्वैतवादी सोच, जैसे 'स्व' और 'अन्य', 'अच्छाई' और 'बुराई', 'विषय' और 'वस्तु' के द्वैत से ऊपर उठने का मार्ग दिखाते हैं। द्वैत से पार होने के बाद ही व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार की अवस्था को प्राप्त कर सकता है।
    आत्म-साक्षात्कार: इस व्याख्यान का अंतिम लक्ष्य आत्म-साक्षात्कार है, जहाँ व्यक्ति यह समझता है कि उसका व्यक्तिगत 'स्व' ब्रह्मांड से अलग नहीं है। यह अनुभव हमें उस परम शांति और आनंद की ओर ले जाता है, जिसे हम अपने बाहरी जीवन में तलाशते रहते हैं।
    मुख्य बिंदु:
    सभी चीजों का अंतर्संबंध: Amit Ji के अनुसार, यह संसार एक गहन अंतर्संबंधित जाल है। हर वस्तु, हर व्यक्ति, हर विचार और हर भावना एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। कोई भी चीज़ स्वतंत्र नहीं है।
    व्यक्तिगतता का भ्रम: यह धारणा कि हम एक अलग इकाई हैं, एक भ्रम है। यह भ्रम हमें बंधनों में जकड़ता है और आत्मज्ञान से दूर रखता है।
    चेतना की एकता: वास्तविकता में, केवल एक चेतना ही है, जो सभी अनुभवों, घटनाओं और वस्तुओं का आधार है। यही चेतना 'मैं' है, और इसे समझना ही आत्मज्ञान का वास्तविक मार्ग है।
    द्वैत का पारगमन: Amit Ji हमें सिखाते हैं कि द्वैतवादी दृष्टिकोण सीमित है। हमें इसके परे जाकर उस सत्य को देखना होगा, जो सभी द्वैत से मुक्त है। यही अद्वैत है।
    आत्म-साक्षात्कार: आत्म-साक्षात्कार का अर्थ है, अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानना। यह समझना कि 'मैं' न केवल यह शरीर या मन हूँ, बल्कि 'मैं' वह शुद्ध चेतना हूँ, जो इस ब्रह्मांड का आधार है।
    Amit Ji की शिक्षा: स्वामी अमित जी इस व्याख्यान में विभिन्न आध्यात्मिक और दार्शनिक अवधारणाओं का गहन विश्लेषण करते हैं। वे यह बताते हैं कि दृष्टा और दृश्य अलग नहीं हैं। जो देख रहा है, वह भी वही है, जिसे देखा जा रहा है। यह दृष्टि केवल चेतना के स्तर पर संभव है, और इसे प्राप्त करने के लिए हमें अपने मन के सीमित दृष्टिकोण से ऊपर उठना होगा।
    चेतना की प्रकृति: Amit Ji के अनुसार, चेतना ही इस पूरे अस्तित्व की मूलभूत वास्तविकता है। यह चेतना अनंत और असीम है, और इसे अनुभव करना ही आत्मज्ञान का मार्ग है। चेतना को किसी वस्तु या विचार के रूप में नहीं देखा जा सकता, यह केवल अनुभव की जा सकती है।
    मन की भूमिका: मन एक अद्वितीय उपकरण है, जो हमें इस संसार को समझने में मदद करता है, लेकिन यह भ्रम और दुख का कारण भी बन सकता है। अमित जी यह बताते हैं कि मन को शांत करने और इसके भ्रम से मुक्त होने के बाद ही हम अपने वास्तविक स्वरूप को जान सकते हैं।
    ज्ञानोदय का मार्ग: ज्ञानोदय का मार्ग केवल मन की सीमाओं से परे जाने और वास्तविकता की शुद्ध स्थिति को अनुभव करने में है। जब हम मन के विचारों, भावनाओं और धारणाओं से ऊपर उठते हैं, तब हमें अपनी आत्मा का साक्षात्कार होता है। यही ज्ञानोदय है।
    समग्र निष्कर्ष: Amit Ji के इस व्याख्यान का मुख्य संदेश है कि आत्म-साक्षात्कार ही वास्तविक स्वतंत्रता और आनंद का स्रोत है। जब हम अपने दृष्टा स्वरूप को पहचान लेते हैं और उसे साक्षी भाव से देखते हैं, तब हमें इस संसार के भ्रम से मुक्ति मिलती है। यह व्याख्यान हमें अपनी चेतना की गहराइयों में ले जाता है और हमें उस अंतिम सत्य से जोड़ता है, जो हमारी वास्तविक पहचान है।
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