- महामति प्राणनाथजी प्रणित श्री तारतम सागर, श्री कलश ग्रन्थ, प्रकरण ७ इस्क बड़ा रे सबन में, ना कोई इस्क समान। एक तेरे इस्क बिना, उड़ गई सब जहान।।१।। चौदे तबक हिसाब में, हिसाब निरंजन सुंन। न्यारा इस्क हिसाब थें, जिन देख्या पिउ वतन।।२।।लोक अलोक हिसाब में, हिसाब जो हद बेहद। न्यारा इस्क जो पिउ का, जिन किया आद लों रद।।३।।एक अनेक हिसाब में, और निराकार निरगुन। न्यारा इस्क हिसाब थें, जो कछू ना देखे तुम बिन।।४।। और इस्क कोई जिन कथो, इस्कें ना पोहोंच्या कोए। इस्क तहां जाए पोहोंचिया, जहां सुन्य सब्द ना होए।।५।। नाहीं कथनी इस्क की, और कोई कथियो जिन। इस्क तो आगे चल गया, सब्द समाना सुंन।।६।।सब्द जो सूकया अंग में, हले नहीं हाथ पाए। इस्क बेसुध न करें, रही अंदर बिलखाए।।७।।पांपण पल ना लेवही, दसो दिस नैन फिराऊं। देह बिना दौड़ों अन्दर, पिया कित मिलसी कहां जाऊं।।८।। इस्क को ए लछन, जो नैनों पलक ना ले। दौड़े फिरे न मिल सके, अन्दर नजर पिया में दे।।९।। नजरों निमख न छूटहीं, तो नाहीं लागत पल। अन्दर तो न्यारा नहीं, पर जाए न दाह बिना मिल।।१०।।जो दुख तुमहीं बिछुरे, मोहे लाग्यो जो तासों प्यार। एता सुख तेरे विरह में, तो कौन सुख होसी विहार।।११।।
अति मन मोहक आवज तबला उस्तै सुनमा सुगन्ध ❤❤❤ प्रेम प्रणाम 🙏🙏
प्रेम प्रणाम्❤️🙏
Anando, Maja aagaya 🙏🌷🌹🙏
Prem prànam sundar sathji 🌹🌹🌹🌹
Bht sundar , bht samay bad kisi ko surila vani gayan gate hue suna ❤ bht hi sundar ❤
कोटि कोटि प्रेम प्रणामजी🙏
मगंल प्रेम प्रणाम हजुर
प्रेम प्रणाम जी ❤
Dàndvat Pranam Ji 🌷🌹🙏
Pranamji 🙏🙏🙏
Prem pranamji🙏🙏
Divya Vani gayan!!
Prem pranamji 🙏🙏🙏🙏
🙏🙏
Pranam 🙏
daju🙏
Atti sundar ❤
દંડવત પ્રણામ જી 🌹🌷🙏
Pranam, ❤❤
Jati sune ni napugne ❤
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
- महामति प्राणनाथजी प्रणित श्री तारतम सागर, श्री कलश ग्रन्थ, प्रकरण ७
इस्क बड़ा रे सबन में, ना कोई इस्क समान। एक तेरे इस्क बिना, उड़ गई सब जहान।।१।।
चौदे तबक हिसाब में, हिसाब निरंजन सुंन। न्यारा इस्क हिसाब थें, जिन देख्या पिउ वतन।।२।।लोक अलोक हिसाब में, हिसाब जो हद बेहद। न्यारा इस्क जो पिउ का, जिन किया आद लों रद।।३।।एक अनेक हिसाब में, और निराकार निरगुन। न्यारा इस्क हिसाब थें, जो कछू ना देखे तुम बिन।।४।।
और इस्क कोई जिन कथो, इस्कें ना पोहोंच्या कोए। इस्क तहां जाए पोहोंचिया, जहां सुन्य सब्द ना होए।।५।।
नाहीं कथनी इस्क की, और कोई कथियो जिन। इस्क तो आगे चल गया, सब्द समाना सुंन।।६।।सब्द जो सूकया अंग में, हले नहीं हाथ पाए। इस्क बेसुध न करें, रही अंदर बिलखाए।।७।।पांपण पल ना लेवही, दसो दिस नैन फिराऊं। देह बिना दौड़ों अन्दर, पिया कित मिलसी कहां जाऊं।।८।।
इस्क को ए लछन, जो नैनों पलक ना ले। दौड़े फिरे न मिल सके, अन्दर नजर पिया में दे।।९।।
नजरों निमख न छूटहीं, तो नाहीं लागत पल। अन्दर तो न्यारा नहीं, पर जाए न दाह बिना मिल।।१०।।जो दुख तुमहीं बिछुरे, मोहे लाग्यो जो तासों प्यार। एता सुख तेरे विरह में, तो कौन सुख होसी विहार।।११।।
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Nice one