अभाव में मन का रस है -- बहुत बढ़िया! मन यह सोचता है की बाहर से कुछ जोड़ लू ताकि पूर्ण हो जाऊ, पर भाव में ही अभाव निहित है। शायद यही अभाव की परिणीति दुनिया में चल रही इतनी सारी गतिविधियों में हो रही है।
सही कहा आपने, मन का रस अभाव में होता है क्योंकि वो किसी न किसी चीज की तलाश में होता है। जब तक उसकी तलाश पूरी नहीं होती उसकी दौड़ चलती रहती है। इसी अभाव के कारण ही जैसा की आपने कहा ज्ञानी लोग मन के बाहर हो गए । पर जब तक मन का अस्तित्व बना रहता है उसके अभाव का भी अस्तित्व बना रहेगा। और मन का अस्तित्व तो खुद मन ही से होकर मिटाया जा सकता है पर क्या यही अंतिम सत्य है या फिर मन का ही एक ओर नया भ्रम 😊
अच्छा प्रश्न है आपका मैं कहूँगी के मन से बाहर होने का अर्थ है मन को उसके हाल पर छोड़ देना उसे और भोजन ना देना ,एक ऐसी स्थिति का होना जहां सब जो जैसा है वीज़ा अपना लिया जाए,दूसरे शब्दों में कहु तो केवल साक्षी होकर देखना भर मन कि विचारों को जब तक वो स्वयं ही अज्ञात में ना लीन हो जाए।
@@उर्वशी-0 पर उसी अज्ञात से ही तो मन का जन्म हुआ है और मन से विचारों का और फिर यही विचार हमें वापिस उस अज्ञात की ओर या फिर शून्य की ओर इशारा करते हैं। अगर थोड़ा गहराई से देखा जाए तो विचारशून्य होना भी तो एक विचार ही है तो कैसे कोई अपने मन को विचारों से मुक्त कर सकता है।
Nahi kar sakta tabhi to mene kaha uske hal par use chhod dia jae ,esa ho k vichar shunyata ho iski stithi ae iski chesta bhi na kia jae ,bas jo ghatit hota uska drishta bana jae or kuch nahi..kyuki yaha ham man ko or sharir ko alag alag dekhne ki bat kar rahe hai ..islie ham jb use drishta k tarah dekhege to anubhuti honi chahie k jo ghatit ho raha h wo kisi or k sath ho ra hai…wo vichar jo prateet honge wo apne nahi honge..
@@उर्वशी-0मैं आपकी बात से सहमत हूं कि जिस समय हम अपने विचारों को एक दृष्टा की तरह देखेगे उस समय वो विचार हमें हमारे प्रतित नहीं होंगे। मगर जिस तरह हमारे विचारों को एक दृष्टा की तरह देखने पर उनका कोई अर्थ नहीं रह जाता उसी तरह उस दृष्टा को भी एक दृष्टा के नजरिए से देखने पर वो भी अर्थहीन हो जाता है। 😊 आखिरकार देखने वाले को भी तो देखा जा सकता है....
@@Sahil-ev9my सही बात है। लेकिन जो बात व्यक्तिगत अनुभव की है उसे शब्दों में उतारना काफ़ी हद्द तक उसके मूल अर्थ को ख़राब करना है। शब्द ,प्रश्न उत्तर केवल सहारा मात्र है और अगर कोई सत्य के पास है तो वो कोशिश करता है उसे वो सूत्र किसी ना किसी रूप में मिल ही जाता है ,पर ये सब कुछ बिलकुल व्यक्तिगत है ।🙏
Man ki baat hi chod do , sukh dukh isi ke vichar me pura jeevan nikal jayega. Dukh se dur aur sukh ke piche aur mila toh kuch nahi na sukh na sampurn dukh , toh teher jao dukh ko dekhna shuru kardoge toh sukh kya hai jaan paoge . Hari om tatsat
Bas yahi chal rha hai pichle 20 saal se .....mein sochta tha jo apne bol diya 🙏🙏.....pr ab sabse badi samsya ye h ki kya kiya jaye..... sometimes i think.... ignorance is best....but what I can do now....cat is out of box
Hamara mann tabhi dukhi hota hai jab hum khawaishon se bhare hote hai aur jab hum khawaishon ko mita denge hamara mann kabhi dukhi hoga hi nahi ......😊✍️
Osho ki baate
अभाव में मन का रस है -- बहुत बढ़िया!
मन यह सोचता है की बाहर से कुछ जोड़ लू ताकि पूर्ण हो जाऊ, पर भाव में ही अभाव निहित है।
शायद यही अभाव की परिणीति दुनिया में चल रही इतनी सारी गतिविधियों में हो रही है।
छान माहिती दिलीत 🎉
सही कहा आपने, मन का रस अभाव में होता है क्योंकि वो किसी न किसी चीज की तलाश में होता है। जब तक उसकी तलाश पूरी नहीं होती उसकी दौड़ चलती रहती है। इसी अभाव के कारण ही जैसा की आपने कहा ज्ञानी लोग मन के बाहर हो गए ।
पर जब तक मन का अस्तित्व बना रहता है उसके अभाव का भी अस्तित्व बना रहेगा।
और मन का अस्तित्व तो खुद मन ही से होकर मिटाया जा सकता है पर क्या यही अंतिम सत्य है या फिर मन का ही एक ओर नया भ्रम 😊
अच्छा प्रश्न है आपका मैं कहूँगी के मन से बाहर होने का अर्थ है मन को उसके हाल पर छोड़ देना उसे और भोजन ना देना ,एक ऐसी स्थिति का होना जहां सब जो जैसा है वीज़ा अपना लिया जाए,दूसरे शब्दों में कहु तो केवल साक्षी होकर देखना भर मन कि विचारों को जब तक वो स्वयं ही अज्ञात में ना लीन हो जाए।
@@उर्वशी-0 पर उसी अज्ञात से ही तो मन का जन्म हुआ है और मन से विचारों का और फिर यही विचार हमें वापिस उस अज्ञात की ओर या फिर शून्य की ओर इशारा करते हैं।
अगर थोड़ा गहराई से देखा जाए तो विचारशून्य होना भी तो एक विचार ही है तो कैसे कोई अपने मन को विचारों से मुक्त कर सकता है।
Nahi kar sakta tabhi to mene kaha uske hal par use chhod dia jae ,esa ho k vichar shunyata ho iski stithi ae iski chesta bhi na kia jae ,bas jo ghatit hota uska drishta bana jae or kuch nahi..kyuki yaha ham man ko or sharir ko alag alag dekhne ki bat kar rahe hai ..islie ham jb use drishta k tarah dekhege to anubhuti honi chahie k jo ghatit ho raha h wo kisi or k sath ho ra hai…wo vichar jo prateet honge wo apne nahi honge..
@@उर्वशी-0मैं आपकी बात से सहमत हूं कि जिस समय हम अपने विचारों को एक दृष्टा की तरह देखेगे उस समय वो विचार हमें हमारे प्रतित नहीं होंगे।
मगर जिस तरह हमारे विचारों को एक दृष्टा की तरह देखने पर उनका कोई अर्थ नहीं रह जाता उसी तरह उस दृष्टा को भी एक दृष्टा के नजरिए से देखने पर वो भी अर्थहीन हो जाता है। 😊
आखिरकार देखने वाले को भी तो देखा जा सकता है....
@@Sahil-ev9my सही बात है। लेकिन जो बात व्यक्तिगत अनुभव की है उसे शब्दों में उतारना काफ़ी हद्द तक उसके मूल अर्थ को ख़राब करना है। शब्द ,प्रश्न उत्तर केवल सहारा मात्र है और अगर कोई सत्य के पास है तो वो कोशिश करता है उसे वो सूत्र किसी ना किसी रूप में मिल ही जाता है ,पर ये सब कुछ बिलकुल व्यक्तिगत है ।🙏
Man ki baat hi chod do , sukh dukh isi ke vichar me pura jeevan nikal jayega. Dukh se dur aur sukh ke piche aur mila toh kuch nahi na sukh na sampurn dukh , toh teher jao dukh ko dekhna shuru kardoge toh sukh kya hai jaan paoge . Hari om tatsat
Lgta hai aap Osho rajnish ji ko follow kr rhi hai 😂😂😂
बोल आप रही हैं पर शब्द ओशो के हैं ❤
Bas yahi chal rha hai pichle 20 saal se .....mein sochta tha jo apne bol diya 🙏🙏.....pr ab sabse badi samsya ye h ki kya kiya jaye..... sometimes i think.... ignorance is best....but what I can do now....cat is out of box
Sahi bat hai ya to is sab se paar jao ya phir kuch na hi pata ho to acha.
Fir apne koi mantar to dhoonda hoga paar jabe ka
Hamara mann tabhi dukhi hota hai jab hum khawaishon se bhare hote hai aur jab hum khawaishon ko mita denge hamara mann kabhi dukhi hoga hi nahi ......😊✍️