Effects of Rahu in 12th House By- Acharya Vasudev

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  • เผยแพร่เมื่อ 22 ก.ย. 2019
  • वैदिक ज्योतिष में द्वादश भाव का बहुत महत्त्व है, कालपुरुष की कुंडली में द्वादश भाव में मीन राशि आती है जिसके स्वामी ग्रह देवगुरु बृहस्पति है. इस भाव के नैसर्गिक स्वामी ग्रह देवगुरु बृहस्पति है और कारक स्वामी ग्रह भी देवगुरु बृहस्पति है. द्वादश भाव एक अशुभ भाव है जो व्यय को दर्शाता है अतः किसी भी प्रकार का खर्चा और यह भाव मोक्ष का है अतः कुंडली का अंतिम भाव जो समस्त प्रकार से अंत हो दर्शाता है. केतु की इस भाव में स्तिथि बहुत ही शुभ कही जाती है क्योकि केतु एक मोक्षप्रदान करने वाला ग्रह है और यदि इस भाव में केतु हो तो यह जातक का अंतिम जीवन होता है उसके पश्चात् वह साक्षात् स्वर्ग जाता है. मीन राशि एक जलीय राशि है, यह भाव चेतना और कल्पना का भाव भी है इस भाव से हम मस्तिष्क की समस्त क्रियाओं को देखते है जो किसी समस्या को सुलझाने में लगा रहता है. इस भाव का उद्देश्य है की स्वपन में रहना यदि लग्नेश का सम्बन्ध हो तो ऐसे जातक स्वप्न में भी सच्चाई या भविष्य में होने वाली घटनाओं को देख सकतें है. इस भाव का अर्थ है दुनियां से बिलकुल एकांत हो जाना, एकांतवास में रहना जिसका अर्थ है भौतिक जीवन से अपने आप को अलग कर लेना. इस भाव से हम आध्यात्मिक गुरु,अनाथालय, पागलखाना, अस्पताल, मोक्ष, कामसुख , शैयासुख, गुप्तशत्रु, विदेश प्रवास, समस्त प्रकार का खर्चा या व्यय क्योकि कोई भी द्वादश भाव अपने स्थान से हानि और खर्चे को दर्शाता है. इस भाव से हम पैरों से पंजे अंगूठा, और कफ का विचार भी करते है. इस भाव से हम आध्यात्मिक गुरु, मानसिक रोगों का इलाज करना, आरोग्य प्रदान करने वाला, किसी भी चीज़ की तह तक पहुंचने की शक्ति, ज्योतिषाचार्य, कथावाचक, जेल का संचालक, जासूस, चोरी करना, विदेश में पैसा लगाना, आजीवन विदेश भूमि पर रहना, चिकित्सक, अस्पताल में काम करना, जेल, पागलखाना और किसी भी प्रकार से धर्मार्थ में काम करना.मंदिर के पुजारी, किसी भी प्रक की सेवाएं जो रिस्टोर की जा सकती हो. इस भाव से हम परलौकिक अनुभव, रहस्यवाद, परमानन्द, शुद्धि, बलिदान, बड़ी सस्थाओं में कार्यरत रहना, निस्वार्थ सेवा करना, भक्ति, उच्च आदर्श, छिपी हुई गतिविधियां, संसार से हटना, गुप्त शत्रु, गुप्त लगाव, व्यय, अपव्यय, अंतिम मुक्ति, यौन सम्बन्ध, शैया सुख, भटकना, साझेदारी में परेशानी, मानसिक चिंता, मृत्यु के बाद की गति, दुर्भाग्य, उच्च ज्योतिषीय ज्ञान, अलगाव, जन्म स्थान से दूर का जीवन. आइये बात करते है राहु के द्वादश भाव में क्या फल होते है- आप संत है यह पाप कर्मों में रत है यह द्वादश भाव से आसानी से पता लगाया जा सकता है राहु द्वादश भाव में आपको दोनों प्राकर के फल दे सकता है क्योकि यह कुछ हद तक द्वादश भाव में राशि उसका नक्षत्र बल और अन्य भावों और लग्नेश की मज़बूत स्तिथि पर निर्भर करता है. स्वामी विवेकानंद और नाथूराम गोडसे इसका सबसे अच्छा उदारहण है गोडसे की पत्रिका में उच्च का राहु द्वादश भाव में विराजमान है

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