तंत्र-सूत्र-विधि-05 (ओशो) -

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  • เผยแพร่เมื่อ 25 ส.ค. 2024
  • भृकुटियों के बीच अवधान को स्‍थिर कर विचार को मन के सामने करो। फिर सहस्‍त्रार तक रूप को श्‍वास-तत्‍व से, प्राण से भरने दो। वहां वह प्रकाश की तरह बरसेगा।
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    यह विधि पाइथागोरस को दी गई थी। पाइथागोरस इसे लेकर यूनान वापस गए। और वह पश्‍चिम के समस्‍त रहस्‍यवाद के आधार बन गए। पश्‍चिम में अध्‍यात्‍मवाद के वे पिता है। यह विधि बहुत गहरी विधियों में ऐ एक है। इसे समझने की कोशिश करो।
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    इसलिए दुनिया भी की सभी विधियों में इसका समावेश किया गया है। अवधान को प्रशिक्षित करने में यह सरलतम है, क्‍योंकि इसमे तुम ही चेष्‍टा नही करते, यह ग्रंथि भी तुम्‍हारी मदद करती है। यह चुंबकीय है। तुम्‍हारे अवधान को यह बलपूर्वक खींच लेती है।
    तंत्र के पुराने ग्रंथों में कहा गया है कि अवधान तीसरी आँख का भोजन है। यह भूखी है; जन्‍मों-जन्‍मों से भूखी है। जब तुम इसे अवधान देते हो यह जीवित हो उठती है। इसे भोजन मिल गया है। और जब तुम जान लोगे कि अवधान इसका भोजन है, जान लोगे कि तुम्‍हारे अवधान को यह चुंबक की तरह खींच लेती है। तब अवधान कठिन नहीं रह जाएगा। सिर्फ सही बिंदु को जानना है।
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    यह सूत्र कहता है कि जब तुम भृकुटियों के बीच स्‍थिर हो और प्राण को अनुभव करते हो, तब रूप को भरने दो। अब कल्‍पना करो कि प्राण तुम्‍हारे पूरे मस्‍तिष्‍क को भर रहे है। विशेषकर सहस्‍त्रार को जो सर्वोच्‍च मनस केंद्र है। उस क्षण तुम कल्‍पना करो। और वह भर जाएगा। कल्‍पना करो कि वह प्राण तुम्‍हारे सहस्‍त्रार से प्रकाश की तरह बरसेगा। और वह बरसने लगेगा। और उस प्रकाश की वर्षा में तुम ताजा हो जाओगे। तुम्‍हारा पुनर्जन्‍म हो जाएगा। तुम बिलकुल नए हो जाओगे। आंतरिक जन्‍म का यही अर्थ है।
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    और उससे ठीक उलटा भी घटित हो सकता है। जो त्रिनेत्र पर थिर हो गया, उसके लिए स्‍वप्‍न यथार्थ हो जाएगा। और यथार्थ स्‍वप्‍न हो जाएगा। क्‍योंकि जब तुम्‍हारा स्‍वप्‍न सच हो जाता है तब तुम जानते हो कि स्‍वप्‍न और यथार्थ में बुनियादी भेद नहीं है।
    इसलिए जब शंकर कहते है कि सब संसार माया है, परमात्‍मा का स्‍वप्‍न है, तब यह कोई सैद्धांतिक प्रस्‍तावना या कोई मीमांसक वक्‍तव्‍य नहीं है। यह उस व्‍यक्‍ति का आंतरिक अनुभव है जो शिवनेत्र में थिर हो गया है।
    अंत: जब तुम तीसरे नेत्र पर केंद्रित हो जाओ तब कल्‍पना करो कि सहस्‍त्रार से प्राण बरस रहा है; जैसे कि तुम किसी वृक्ष के नीचे बैठे हो और फूल बरस रहे है, या तुम आकाश के नीचे हो और कोई बदली बरसने लगी। या सुबह तुम बैठे हो और सूरज उग रहा है और उसकी किरणें बरसने लगी है। कल्‍पना करो और तुरंत तुम्‍हारे सहस्‍त्रार से प्रकाश की वर्षा होने लगेगी। यह वर्षा मनुष्‍य को पुनर्निर्मित करती है, उसका नया जन्‍म दे जाती है। तब उसका पुनर्जन्‍म हो जाता है।
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ความคิดเห็น • 3

  • @anime.montage966
    @anime.montage966 10 หลายเดือนก่อน +1

    Adbhut vidhi

  • @accurateaccountancy8603
    @accurateaccountancy8603 10 หลายเดือนก่อน

    osho ke photo ka use mat kijiye

    • @indianprideYA
      @indianprideYA  9 หลายเดือนก่อน

      Kyo, osho ka pravachan tantra shutra pr English me hai, unka Hindi translation share kr rhe hai to photo bhi aayega aur naam bhi.
      Jo English sahi se samajh skte hai vo osho ki original voice me sun skte hai. Hindi users ke liye ye hai. Ab osho to dobara aayege nhi Hindi me khane