कुदरत की फ़ितरत पाना , है बुद्धि के पार ! रचना - एल पी शर्मा " जयपुर राज .
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- เผยแพร่เมื่อ 8 ก.พ. 2025
- कुदरत की फ़ितरत पाना , है बुद्धि के पार ,
सांसे सौ सौ बार आती , निकले बस एक बार !
यह कैसी पल घड़ीयाँ , जीवन सफर की ,
जाके फिर ना लौटे , घढ़ जाती यादगार !!
कुदरत की फ़ितरत पाना , है बुद्धि के पार !
चल रे प्रकृति संग राही , मिले छांव या धूप ,
होनी आती एक बार , फिर जाती अंध कूप !
समय का लाभ उठा लेना , चातुर्य का प्रारूप ,
सफल उसी को मानिये , चले काल अनुरूप !!
विवेक ध्यान से करे , मन इन्द्रियों पर अधिकार ,
कुदरत की फ़ितरत पाना , है बुद्धि के पार !
एक घड़ी टाले टले , अनागत घड़ीयों को टाल ,
बड़े भाग्य सौभाग्य से , जो घड़ीयाँ आती हाल !
जो ना पहचाना ज्ञान से , हवा का रुख नादान,
अपने द्वार बंद कर , भावी पलट करे प्रस्थान !!
उचित दिशा में चलने दे , सत् नैया की पतवार ,
कुदरत की फ़ितरत पाना , है बुद्धि के पार !
एक पल उद्धारक क्षण , एक पल पतन समान ,
क्षणभंगुर संसार का , हर क्षण अमोलक मान !
सांस सांस में राम जप , मन में कृष्ण सुजान ,
एक हरि तारक सिवा , मिथ्या सकल जहान !!
कुदरत की फ़ितरत पाना , है बुद्धि के पार ,
सांसें सौ सौ बार आती , निकले बस एक बार !
कुदरत की फ़ितरत पाना , है बुद्धि के पार !
लक्ष्य
एल . पी . शर्मा
जयपुर !
राज .