सम्राट अशोक के शिलालेख , बौद्ध धम्म उपदेश के स्तूपों पर धम्म लिपि में कहीं पर भी चाणक्य / कौटिल्य का कोई वर्णन नहीं मिला है । यदि ये आदमी इतना महत्वपूर्ण था तो सम्राट अशोक के समय के मिले पुरातत्व प्रमाणों में क्यों इसका उल्लेख नहीं मिलता ।
Ish hisab sadar Vallabhbhai Patel k naam pr na major port, airport, railway station congress k time m itna nhi mil lega iska mtlb nhi wo the hi nhi ya or unka major contribution tha nhi Amit Shah hi ko dekh lo modi jeeta akela to nhi h Jitne bhi india m pm bne akele dum pr to Nhi bne unko kisi ka support to hoga unka naam kbhi sunte ho Document rhe honge documents jlane k baad khna bole Kuch deeno m ye professor dadu chle jae ge lekin inki liye likhi gyi kitabe baate to rhengi fir inko 50 saal proof Krna muskil ho jaega ye asa adami tha bhi na nhi Ya tv pr aane views paane k liye kuch bhi bolt dete the
Nalanda vishwavidyalay ko jalaya usk documents ko bhul jaoge , ou tm khudi updesh likhe hue history nhi likhi h ush pr Modi ne parliament bnawaya us pr Amit Shah ka naam nhi h Phle pta kro ye angrej log to nalanda ko nhi maante Ashok ko nhi maante the
आदरणीय SPSINGH🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
आदरणीय siddharth🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
मुद्रा राक्षस विशाखा दत्त ने 500AD के आस पास लिखा था ।।। इस मैं चंद्रगुप्त 2 के बारे मे लिखा है.... अपनी जानकारी थोडा अपडेट करे जातिवाद बहुत भरा है दिमाग में अपके
@@harshity4414 हर्शितजी ऊसके दिमाग में जातिवाद है या सत्य है या गलत जानकारी है यह मैं बता नहीं सकता. पर ईसका दोष निःसंशय आदरणिय मोदीजी और ऊनके सरकार को दे सकते है. 2012 से लेकर मई 2022 तक मैंने 1400 प्रार्थनापत्र दिये है सभी ऐतिहासिक, धार्मिक और जातीय विवादोंका समाधान करने के लीये... समाधान करने के उचित तरीके के साथ. पर आदरणिय मोदीजी की सरकार से कोई प्रतिसाद नहीं. आप मेरी काॅमेंट पढे ऐसी आपसे प्रार्थना है. 🙏. अवधूत जोशी
@@rnmishra7001 आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में मौजूद यूनानी राजदूत मैगस्थनीज ने इंडिका नामक पुस्तक लिखी। और उसमें चाणक्य का कोई जिक्र नहीं है। दूसरी तरफ चाणक्य को संस्कृत का विद्वान बताया गया है लेकिन मौर्य कालीन राज भाषा पालि प्राकृत है।
आदरणीय @mundarasatish8542🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@@rajupatil8569 धन्यवाद राजू पाटीलजी. आपकी बातसे मैं सहमत हूं. मैंने भी ईसका अनुभव लीया है. क्या करे बेचारे ऊनकी ड्यूटी निष्ठासे निभाते है. पर आप यह बात मुझे बताकर बिना वेतन के वैसीही मुर्खता क्यों कर रहे है? मेरे कॉमेंट का विषय अलग है. कृपया ईसे स्पष्ट करे ऐसी आपसे प्रार्थना है. 🙏. अवधूत जोशी
आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
Read the history and his book you will know the truth. According to you even the science math doesn't exist in this world. This is a leftist ideology to abuse the great man of india.
चंद्रगुप्त संस्कृत नहीं जानता था। चाणक्य पाली प्राकृत नहीं जानता था। चाणक्य के बारे में मात्र महावंश में मिलती है वो भी सिर्फ एक लाइन। महावन्श में बहुत सारी काल्पनिक बातें है। इसलिए विश्वास योग नहीं है।
Bhai phle to angrej Ashoka ki khaani jhuti bolte the Bhai jha kuch milta wo kalpanik h, jha nhi mila wo chij h nhi, Us hsisab thumare prbaba or unke pitaji kbhi hue nhi kyo ki unke koi sabut nhi Tumhe to kisi dhrti sansadhna bhog krne k liye bheja h
आदरणीय safarkerang🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
आप दोनों बंधुओं की वार्ता से एक बात स्पष्ट है कि चाणक्य अगर बौद्ध या जैन है तो उसका अस्तित्व स्वीकारा जा सक्ता है और यदि वह ब्राह्मण है तो वह गढ़ा हुआ चरित्र है। देश को गुमराह करने के लिए आप दौनों महापुरुषों का धन्यवाद।
bhai chandragupt bhi neech jaat ka nahi fir bhi ye log usko baap bana lete hai acha hua kese brahmin ne in neech jaat ke madad nahi ke varna ye log use bhi gali dete
आदरणीय r.r.ahirwar🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
Brahmado ne mushkil se 150 saal ke andar hi hinduu word me infiltrate kita hai...... Brahmado ne apni kisi bhi kitab me hinduu shabd ka prayog nhi kiya hai kyuki wo hindu se chidte the
बाबासाहब डॉ अम्बेडकरजी ने १९५६ में कहा था कि सही इतिहास पता चलने पर इस देश के सभी लोग बौद्ध धर्म को अपनाएंगे, मतलब बौद्ध धर्म में घर-वापसी कर लेंगे। और ब्राह्मण सबसे आखिर में बौद्ध धर्म अपनाएंगे। और बाबासाहब की भविष्यवाणी आज तक कभी गलत नहीं हुई है। वैसे भी तुम्हारा तथाकथित हिंदू धर्म पुरा बुद्धिज़्म के पुरातात्विक ढेर पर बसा हुआ है। हम भी देखते हैं वह और कितने बालू की भीत पर खड़ा रहता है। 😅
आदरणीय @sureshdohare8427🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
आदरणीय Jagjitsinggrewalji🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
If Bharat has to become again World Leader, we have to abolish Castes, like under Article 17 of the Indian Constitution Untouchability has been Abolished. We have to create scientific attitudes among our citizens.
@@bpp827 ईसमें हसने जैसा क्या है? कोई कॉमेडी शो तो है नहीं. मैं धार्मिक और सामाजिक विवादोंका समाधान ढूंढने की बात कर रहा हूं. और आप फालतू बाते कर रहे है. अगर पंडीत आंबेडकरके बारेमें नकारात्मक सोचते थे तो डाॅ.बाबासाहेब आंबेडकर भी पंडीतों के बारेमें वैसा ही नकारात्मक सोचते थे. ईसी को तो विवाद कहते है.
@@avadhutjoshi796 itna kissa khani likhne ki jarurat nhi hai.....hindu dharam jaisa kuch hai nhi vo srf brahmin baniya dharam hai....puri treh unhi k ayaashi or mjje k liye banaya gya ha ....srf or srf iss desh ki political and econimical malai lutne ko
आदरणीय mukeshchhawindraji🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@@mukeshchhawindra7364 जय भारत जय संविधान जय विज्ञान, मुझे ये जयकारा पसंद आया. यह हमारे राष्ट्र के लिए आवश्यक है। बहुत धन्यवाद. कृपया राष्ट्रव्यापी चर्चा के विचार को अधिकतम लोगों के साथ साझा करें और समर्थन करें। इसके लिए किसी अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता नहीं है. दोस्तों, रिश्तेदारों से बातचीत करते समय, ऑफिस में, यहां तक कि यात्रा में भी आप ऐसा कर सकते हैं। 🙏 अवधूत जोशी
आदरणीय AmitKumar🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
Amitji! I liked your approach of accepting logical things. However the logics given by Ram Puniyaniji are not entirely correct. Pl keep your love for logical and rational approach and support me. Avadhut Joshi
@@avadhutjoshi796 joshi ji it is great to see your knowledge of indian history ..i agree with you Ram puniyani ji not entirely correct but you will agree with me history is not as we read or hear it is slightly different . I also want to take initiative like you are doing. Respect for humble nature.
@@AmitKumar-gs2us Thanks Amit for responding. However I wish to clarify something, and expect some clarification from you. 1) I never expressed any historical knowledge in my comment. My comment is more fouced on the process of finding solutions. I just gave root cause of the disputes. 2) Though you agreed to me, you did not tell your view on nationwide discussion. So I am not getting the exact topic of your agreement with me. 3) You are expecting my agreement with your view about history. I am sorry for not in agreement with your view. There is very insufficient information for agreement. Please elaborate your view. 4) if you are taking any initiative on these subjects, Pl explain its nature. Anyhow, in my idea of nationwide discussion, I am including you also. I am waiting for government response. Till then please support me and share the idea of nationwide discussion with maximum people. 🙏. Avadhut Joshi
आदरणीय rajgrewalji🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
दोनों महानुभाव ऐसे बोल रहे हैं जैसे यह उस समय उपस्थित थे जो बातें हैं उनके मतलब कि हैं वह बातें मानेंगे जो मतलब के नहीं हैं उन्हें नहीं माने यही इनका इतिहास इतिहास है परम ज्ञानी इतिहास पुरुष धन्य है
चाणक्य द्वारा निर्देशित व प्रभूत्व प्रधान चन्द्रगुप्त शासन व्यवस्था का विवरण विस्तार से मिलता है परन्तु चाणक्य के जन्म मृत्यु का स्पष्ट उल्लेख न होना तथा उपलब्ध तात्कालिक अभिलेख प्रमाण आदि में चाणक्य का उल्लेख न होना ही आश्चर्यजनक रूप से चाणक्य के अस्तित्व पर संदेह उत्पन्न करता है।
@@anilmaurya7701 मेरे द्वारा पूछा गया सवाल सभी के लिए था और तुम्हारे लिए भी था ...तथ्यात्मक विचार करने के लिए । ...और हाँ मौर्य काल पहले आया , कोई 6-7 सौ साल बाद गुप्ता काल आया ,,,,और तब अगर तक्षशिला विश्वविद्यालय मौर्यकाल में था तो नंदवंश , शिशुनाग वंश, हर्यक वंश ने बनवाया होगा या बौधमार्गियों ने बनवाया होगा.....और अगर कहीं तुम्हारे अनुसार तक्षशिला विश्वविद्यालय का निर्माण गुप्ता वंश(जो बाद में आया) ने कराया तब तो चाणक्य काल्पनिक सिद्ध हो गया.
आदरणीयmalvindersinghji🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@@avadhutjoshi796 I have been following Mr. Ram Puniyani almost 6 years . Non professional history is referred to the analysis taken by the persons who do not have the fact of legitimacy and keep to speculate on all matters. It's easy to detect a professional historian from an amateur or a non professional person . He is master player in distorting the history and glorifying the mughals and other invaders . William Dalrymple ( historian and author ) writing about the Islamic invasions of India….” Practically everything was eradicated in the cultural holocaust that accompanied the first Turkic invasions of northern India in the thirteenth century. In these conquests an enormous corpus of Buddhist knowledge was lost through Islamic iconoclasm in an orgy of wreckage comparable to the burning of the Alexandrian Library, or the destruction of centers of learning . We ignore history at our own peril…enabling pretenders and apologists to become ‘experts’ and to deliver their opinions as fact…please spare us
मुकेश जी आपको इस रोचक प्रोग्राम के लिए धन्यवाद। मुझे लगता है कि हमारे पास कोई स्पष्ट ऐतिहासिक प्रमाण तो है नहीं इसलिए पुराने इतिहास को जानने के लिए आधुनिक वैज्ञानिक तरीको की आवश्यकता है। मेरी जिज्ञासा इस बात पर है कि हिन्दू जैन बुद्ध धर्म में क्या संबंध है इनका उदय कब और कैसे हुआ।
Mujhe nhi lagta woh koi religion h its just a way of life either u choose Buddhism or sanatan or jain from my point of view its just people who made it different religion....
Mukesh sir aapne aaj dhananand ke bare me itni batayi or prof. Punyani itani sari chije chankya ke bare me uska source/ book bataye hamara knowledge badhega 🙏 It's seems that you were eye witnesses Historians of maurya Era.
Bhayankar roop se har subject par, khali ithihas nahi kunthith soch pakachpaati vichardhara hai.bhayankar roop se ghamand ki bas mai hi sab Jaanta hun , baki dusare kuch nahi jaante. Dusaro ke vicharon soch ko le kar bhayankar durbhavana . Politics mai to pakachpaat chal Jaata hai, baki aur vidhao jaise khel kala dharam vegerha mai intolerance nahi chalti. Jaativaadi soch se jaativaad ka yeh virodh karte hai. Khule dimag khuli soch gayab hai.
Bhai aisa bola jaisa ye sir 100 percent sure ho. Seedha ek insaan ko he mangadth bata diya...brahmano se itna nafrat....brahman kb aaye ye puchte h log toh phir shri krishna pe bhi koi praman mangne lagenge 😢
आदरणीय abhinavsharmaji 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
1905 में प्राप्त ताड़पत्र पर अंकित अर्थशास्त्र मिली। क्या ताड़पत्र की कार्बन डेटिंग की गई है? यदि हां, तो पांडुलिपि कितनी पुरानी है? भाषा-विज्ञान के अनुसार उसकी लिपि और भाषा कब की सिद्ध होती है?
मान. सर्वो. न्याया.की एक बहुत बड़ी बैंच ने आप. प्र.क्र.291/1971,उ.प्र.सरकार बनाम ललयी सिंह यादव में स्थापित किया है कि रामायण एक काल्पनिक ग्रंथ है। उल्लेखनीय है कि वे तर्क और आधार रामायण को काल्पनिक ग्रंथ स्थापित करने में प्रयोग किये हैं वे ही तर्क और आधार महाभारत गीता आदि हिंदू धर्म ग्रंथों पर भी लागू होते हैं। अर्थात ये भी काल्पनिक हैं। अब कोई यह नहीं कह दे कि सर्वोच्च न्यायालय तो राष्ट्र विरोधी है?
आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
प्रो राम पुनियानी और मुकेश कुमार जी पहले ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर जिसमें पुरातात्विक प्रमाण (खुदाई,शिलालेख,गुफा लेख), विदेशी यात्रियों के यात्रावृतांत का उल्लेख हो , कि चंद्रगुप्त मौर्य के समय तक तथाकथित आर्यों का जम्बूद्वीप में आगमन हो चूका था, साबित कीजिए।
आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
ब्राह्मणों की चाणक्य के ज़रिए यह साबित करने की कोशिश की गई है की चंद्रगुप्त के समय में ब्राह्मण का अस्तित्व था। जबकि अलबरूनी के अनुसार CE के बाद से ब्राह्मण का अस्तित्व मिलता है।
आदरणीय rajmalhotraji🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@@aakashtiwariofficial7473 ईसके लीये 2015 से आदरणिय मोदीजी और ऊनकी सरकार जिम्मेदार है. 2015 से इतिहास, जाति और धर्म व्यवस्था पर राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं. ताकी ऐसे सभी विवादोंका स्थायी समाधान हो. सत्य प्रस्थापित हो. 1400 प्रार्थनापत्र दीये है सरकारको. पर सरकार मदत नहीं कर रही है. 🙏. अवधूत जोशी
आदरणीय mohansingji🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
आज का आपका वीडियो देखकर बहुत आनंद आ गया चाणक्य को अपने काल्पनिक साबित करने की कोशिश की तो गौतम बुद्ध पर भी एक ऐसा ही वीडियो बनाएं सर के काल्पनिक गौतम बुद्ध को कैसे सम्राट अशोक ने स्थापित किया था और एक काल्पनिक धर्म बुद्ध धर्म चलाया था
आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
Mukesh Kumarji is trying to create to negativity against Hinduism... Thanks to Punyani ji for honest answers... Mukesh ji don't spoil the environment it's already spoiled too much now a days...According to Mukesji Chandragupta doesn't exist... Thanks to Punyani ji... Mukesh ji the aim of Satya is not to create negativity...
आप लोग पिछला जन्म याद नहीं कर पा रहे हैं उस समय मुकेश कुमार घनानंद और पुनियानी चाणक्य था लेकिन इस जन्म में आप लोग इतिहास कार और पत्रकार के रुप में जन्म पा गए
Book published in 1905 may be concoted.This book may have been planted by the British Empire in connivance of the Brahmins to prove the superiority of this caste.
Aise to mohan jhodro harrapa sindhu ghati ki sabhayata ke bare mai 100 saal pahele patta laga. Aegrejo ne hi khudi karwai. Khajraho ka bhi patta 150 pahele hi chala.Ashok ke baare mai 100 saal pahele hi patta laga. Sare dharmik garanth apne mool roop mai hai kaya availble. Jayadatar viewers including me ya to eatne well read nahi ya jo pade uasse bhul gaye hai. Yeh log easi ka fayada uttathe hai. Pada enhone bhi nahi. Bas exam. Point of view se kuch answer rat liye.
आदरणीय satindrapaulsinghji🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
ram ji ko sammn unko sunna accha lagta hai....sath hi saaf saaf jankari se is samj me maujood juth bhram ko lekar unki mehnat samman yogya h...... sath hi mukesh ji ko danhyawad aisi series jankari laane k liye..... ek aur baat ram ji or mukesh ji ap dono k bolne ka tarika shant tarika peaceful voice tone ....ne mujhe inspire kiya hai mai yhi tone ab apnane ka prayas kar rha hoon ❤❤❤
आदरणीय @jogindersagar2629🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
Surprisingly , there is a gap of around 2000 years between Regime of Chandragupta Maurya ( 300 BC ) and Metter niche( 1700 AD ) . Chandragupta ruled from India and Metter niche based in Europe . How the contents of their books were similar ( Arthashatra and The Prince ) .
आदरणीय @sajjadjaffiri8370🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
यह वार्ता हमने पूरी सुनी। बेहद दु:ख हुआ कि हमारे देश के विद्वान कितना नीची सोच के हो चुके हैं!!! और वह वैचारिक निम्नगामिता बढ़ती ही जा रही है। यह इस ऋषि राष्ट्र के लिए वास्तव में ज्यादा चिंताजनक है। इंटरव्यू लेने वाला व्यक्ति और देने वाला विद्वान किसी वर्ग विशेष के प्रति घृणा से भीतर तक भरे हुए हैं। कहां से लाते हैं आप इतनी घृणा? ऋषियों के इस देश के कोई माता पिता इस स्तर की घृणा के संस्कार बच्चे को नहीं दे सकते, यह हमारा स्पष्ट मत है। 18 मिनट की वार्ता तक पहुंचते पहुंचते हम सोच रहे थे कि चाणक्य और चंद्रगुप्त के काल की इन बातों, शंकाओं के लिए कहीं आप दोनों आरएसएस और भाजपा को दोषी न ठहरा दें। तभी अचानक इंटरव्यू देने वाले विद्वान ने वही प्रसंग शुरू भी कर दिया। हम तो ठहाका लगाकर हंस पड़े। एकतरफा छोटी सोच की पराकाष्ठा देखकर मन क्षुभित हुआ। ओफ्फो!!! हे राम! हे प्रभु! ऐसे विद्वानों की विद्वता से, महान परिवर्तनों से गुजर रहे, इस देश को बचाएं। आप दोनों को सुनकर अचरज हुआ है। इंटरव्यू लेने वाला भाई जब सवाल करता है तब इस तरीके से करता है कि उसे उसी हिसाब से ही उत्तर मिले। यानी उत्तर को भी स्वयं ही सुना देता है, कि इंटरव्यू दाता उनके कथन की ही पुष्टि कर दे। भारत के महापुरुषों की त्याग तपस्या को भी ऐसे गंदे चश्मे से देखना बहुत चिंताजनक है और निंदाजनक भी। मैं इस साक्षात्कार को अब तक सुने सारे साक्षात्कारों में सबसे घटिया स्तर का मानता हूं और इसे देश को भारी नुकसान पहुंचाने वाला घोषित करता हूं। परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना करता हूं कि एकपक्षीय सोच रखने वाले ऐसे विद्वान इस देश से उत्तरोत्तर कम हों।
ऐसा है पण्डित जी कि आपकी होशियारी अब पकड़ी जाने लगी तो आप बौवा रहे हैं। केरल में शुद्र लड़कियों के स्तन पर आप ही ने टैक्स लगाए थे ना???? बोलो झूठ है???इसका भी प्रमाण चाहिए क्या? आपकी जात ने भारत को नस्तोनाबुत कर दिया। वर्ण व्यवस्था क्या शूद्रों ने बनाई??? लोगों को गुलाम बनाकर खूब मक्कन खाया है अपने जमाने में अब धीरे धीरे भेद खुल रहा है तो मिर्ची लग रही है।
आदरणीय @aryankarki7900🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
A. If Chanakya didn't write Arthshastra then who did? Prof Puniyani conveniently discredits Chanakya. But at the same time he claims that there is no evidence for or against Chanakya writing Arthshastra, so I would only suggest that till you find conclusive evidence there is no point in discrediting Chanakya and exhibiting anti Brahmin prejudice. B. Prof. Puniyani and the comperer both conveniently forget that story of Chanakya is more about an ascetic teacher and an ordinary person whom he mentored as a student and not about a Brahmin and a lower caste person. Also in this entire discourse I didn't here the word teacher even a single time. C. If Chanakya has been really propped up by upper caste brahmins then why did he became a Jain during his last days?.....Some points to ponder!
At first you read the history of language of that period and remember Chanakya was famous for his Sanskrit language according to Brahmanavaad knowledge. But Mouryan era was with Pali language, mind it.
bhartendu harishchandra wrote the Hindi drama in 1871... that is the first reference of chanakya or kautilya there is no historicity of the character Arthashastra was first published in 1905
आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
एक और बात आती है कि विष्णुगुप्त चन्द्रगुप्त का बड़ा भाई था और उसने ही चन्द्रगुप्त को आगे बढ़ाया लेकिन चाणक्य को जबरन डाला गया जबकि चणक नाम का एक बौद्ध भिक्षु था जिसका नाम इसके लिए इस्तेमाल किया गया
आदरणीय inderjeetgiroh🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@avadhutjoshi796 I sincerely support your endeavors. As a close watcher of SOCIAL CHANGE in our Society, I see many good things happening over the last 76 years and after the adoption of the Indian Constitution. Still, DALITS and Adivasis, and OBCS are feeling that they have not been given their share in the development of the Socioeconomic part. They feel that most fruits of development have been cornered by Upper Castes people, particularly Brahmins. To achieve their goals, the Dalits, Adivasis, OBCs, and PASMINDA MUSLIMS have joined hands. I see that they are very active and vociferous. I have a suggestion: under Article 17 of our Constitution, UNTOUCHABILITY has been Abolished. Now the time has come when CASTES should be Abolished under Article 17. This will bring huge changes in the minds of our citizens.
Until proven authentic by solid scientific means, Chanakya's character should be considered fake, as there is a lot of motivation as well as the pattern of creating such a fake narrative to usurp the importance. Savarkar Mercy-Saga exposes this pattern more vividly in modern times only because we have more resources to expose such mischief.
आदरणीय @FuzelSayed🙏! जय भारत जय संविधान जय विज्ञान, मुझे ये जयकारा पसंद है . यह हमारे राष्ट्र के लिए आवश्यक है जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
आदरणीय @karamvirlamba366🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
आदरणीय @dasharathkhatawani7644🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
यानि आपके मुताबिक चाणक्य थे ही नहीं। अगर थे तो बहुत बुरा अर्थशास्त्र लिखा। चंद्रगुप्त गरीब और पिछड़ा तो था, मगर बिना चंद्रगुप्त की मदद के ही चक्रवर्ती बन गया। धन्य है आपलोग। अपना एजेंडा चलाने के लिए कुछ भी
Chanakya ki arthshaastra sanskrit main h or ashok k samay ki lipi prakrat or paali h... Orr doosra ashok k shilalekho main chanakya ka jiqra nahi h.... Or magastneez ki indika main bhi uska ziqra nahi h
आदरणीय @Sarojkumar-ck2jm🙏! जय भारत जय संविधान जय विज्ञान, मुझे ये जयकारा पसंद है . यह हमारे राष्ट्र के लिए आवश्यक है जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
निराधार /प्रमाण रहित टिप्पणी जो जातियों में वैमनस्य नफरत और धार्मिक संघर्ष फैलाने का यह दोनो महोदय अपने हर वीडियो में प्रसारित करते है यह अपराध पूर्ण कार्य खुले आम कर रहे है
Can you please organize an session on debate for this topic. I could share lots of litrary evidences from Buddhist, Jain and Puranic sources on Chanakya and also views on Kautilya Arthashastra from Indologists. It is an one sided interpretation from PuniyaniJi
आदरणीय @indicgyantv5454🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
आदरणीयhassannaveedji🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
आदरणीय cheenasharmaji 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
आदरणीय ashokmittal🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
है मानव श्रेष्ठ करबद्ध निवेदन है कि चाणक्य को ब्राह्मणवादी दृष्टिकोण से ही देखना है तो ये तो सोचों बच्चों की उसे फिर राजा बनाने के लिए किसी ब्राह्मण को ही चुन लेना था ...पर आदरणीय उन्होंने चन्द्रगुप्त को चुना क्योंकि वो सुयोग्य थे....
ऐसाही शिवाजी महाराज के साथ किया गया। महाराज की माँ जिजाबाई ने उन्हे सब मार्गदर्शन देके उन्हे इतना काबिल बनाया. ब्राह्मणवादी खते है, की दादोजी कोंडदेव उनके गुरू थे ।
आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
आदरणीय ASHOK🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@@avadhutjoshi796 आपका प्रयास सराहनीय है। हर प्रकार का संभव सहयोग रहेगा।।अगर हम एक स्वस्थ समाज का निर्माण करते हैं तो इससे किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वैसे चाणक्य के बारे में व्यक्तव्य किसी के विरोध में नहीं है। न ही किसी विचार से प्रेरित है। यह शुद्ध रूप से शैक्षणिक है।🙏🙏
@@ASHOK251058 धन्यवाद सर. आपका चाणक्य के प्रती अगर नकारात्मक विचार है तो भी स्वागत है. मैं ऊसे विवाद के रूपमें देखुंगा. अशोक251058 के प्रती कतई नकारात्मक नहीं रहुंगा. मेरा ईसपर अनुभव बताता हूं. सच्चे आंबेडकरवादी, सच्चे हिंदू और सच्चे धर्मनिरपेक्ष सभी देशव्यापी चर्चा का समर्थन करते है. दोगले विरोध करते है....क्या जरुरत है ईसकी. देखीये सर ऐसे विरोधाभासपर हम समाधान निकालेंगे तो हम सच्चे देशभक्त. और संविधान भी ऐसी शास्त्रीय सोच की बात करता है. आप देशव्यापी चर्चा कि बात लोगोंसेभी साझा करना ऐसी आपसे प्रार्थना है. ईसीसे एक सामूहिक इच्छा बन सकती है. 🙏. अवधूत जोशी
@@avadhutjoshi796 पुनः निवेदन है श्रीमान चाणक्य या किसी के प्रति नकारात्म या सकारात्मक का प्रश्न ही नहीं है। मात्र इतिहास को निरपेक्ष भाव से समझने का प्रयास है। नए भारत के निर्माण में अंबेडकर का बहुत बड़ा योगदान है। लेकिन मैं अंबेडकर तक ही सीमित नहीं हूं।🙏
@@ASHOK251058 धन्यवाद भाईसाब. मैंने नकारात्मक और सकारात्मक कि इसलीये बात की क्यों की.... मेरी कॉमेंट आपके काॅमेंट के संदर्भमें है ऐसा आपको लगा. और इसलीये आपने ऊसका स्पष्टिकरण दिया. अगर वैसा नहीं है तो ऊसे हम भुल जाते है. एक सर्वसाधारण बात कहता हूं. मैं किसीके कॉमेंट के संदर्भमें विचार नहीं रखता. बस मैं ने जो काम हाथमें लीया है ऊसकी जानकारी देता हूं. मैने लीखा है की ईन विषयोंपर चर्चा के लीये खास प्रणाली विकसीत की है. और ऊसी के अंतर्गत मैं चर्चा चाहता हूं. और वह बात सरकार के आशीर्वाद से ही हो सकती है. तो किसी के साथ चर्चा की कोई संभावना है ही नहीं. अब बात डॉ. आंबेडकरसाब या किसी और के देशके लीये कीये कामोंकी. ऊसमें मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है. वह राजकीय पक्ष देखे. मेरा विषय है ईतिहास जाती और धर्म विषयक विवादोंका स्थायी समाधान. जो सरकार मेरी मदत करेगी वह सरकार मेरे काम की. वैसे 2015 से मैं सरकार के आशीर्वाद का हकदार हूं. पर नहीं मीली मदत. तो नाराजी है... तीव्र नाराजी है. पर फीरभी सरकार का न्यौता मिलेगा तो खुदको भाग्यवान समझूंगा. जबतक ऐसा होता नहीं तबतक आप जैसे यू ट्यूबर्स के साथ देशव्यापी चर्चा कि बात साझा करूंगा. मैं एक सामान्य नागरिक हूं. मेरे बसमें है ऊतना श्रद्धापूर्वक करता रहूंगा. 🙏. अवधूत जोशी
सम्राट अशोक के शिलालेख , बौद्ध धम्म उपदेश के स्तूपों पर धम्म लिपि में कहीं पर भी चाणक्य / कौटिल्य का कोई वर्णन नहीं मिला है । यदि ये आदमी इतना महत्वपूर्ण था तो सम्राट अशोक के समय के मिले पुरातत्व प्रमाणों में क्यों इसका उल्लेख नहीं मिलता ।
Ish hisab sadar Vallabhbhai Patel k naam pr na major port, airport, railway station congress k time m itna nhi mil lega iska mtlb nhi wo the hi nhi ya or unka major contribution tha nhi
Amit Shah hi ko dekh lo modi jeeta akela to nhi h
Jitne bhi india m pm bne akele dum pr to
Nhi bne unko kisi ka support to hoga unka naam kbhi sunte ho
Document rhe honge documents jlane k baad khna bole
Kuch deeno m ye professor dadu chle jae ge lekin inki liye likhi gyi kitabe baate to rhengi fir inko 50 saal proof Krna muskil ho jaega ye asa adami tha bhi na nhi
Ya tv pr aane views paane k liye kuch bhi bolt dete the
Nalanda vishwavidyalay ko jalaya usk documents ko bhul jaoge , ou tm khudi updesh likhe hue history nhi likhi h ush pr
Modi ne parliament bnawaya us pr Amit Shah ka naam nhi h
Phle pta kro ye angrej log to nalanda ko nhi maante Ashok ko nhi maante the
आदरणीय SPSINGH🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
gobar aur mootra bhakto ko ni smjha sakte bhai...arthashatra sanskrit me likhi gyi h, jo ki aisi lipi 7 c.e me aayi, to kaise ye purani h...
@@SunilKushwaha-ov3yschaanakya ne chandrasen guptvans pr likha tha sanskrit me joki dhariwal jaat tha
'मुद्राराक्षस' नामक नाटक में पहली बार चाणक्य को गढ़ा गया, 1875 के आसपास लिखा गया एक बहरामण द्वारा
आदरणीय siddharth🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
मुद्रा राक्षस विशाखा दत्त ने 500AD के आस पास लिखा था ।।। इस मैं चंद्रगुप्त 2 के बारे मे लिखा है.... अपनी जानकारी थोडा अपडेट करे जातिवाद बहुत भरा है दिमाग में अपके
@@harshity4414 हर्शितजी ऊसके दिमाग में जातिवाद है या सत्य है या गलत जानकारी है यह मैं बता नहीं सकता. पर ईसका दोष निःसंशय आदरणिय मोदीजी और ऊनके सरकार को दे सकते है. 2012 से लेकर मई 2022 तक मैंने 1400 प्रार्थनापत्र दिये है सभी ऐतिहासिक, धार्मिक और जातीय विवादोंका समाधान करने के लीये... समाधान करने के उचित तरीके के साथ. पर आदरणिय मोदीजी की सरकार से कोई प्रतिसाद नहीं. आप मेरी काॅमेंट पढे ऐसी आपसे प्रार्थना है. 🙏. अवधूत जोशी
@@harshity4414 कुछ भी......कुछ भी गपोड़ना, ये तो बाभनों का काम है
@@siddharth2315 कभी गूगल का भी यूज करो ज्ञान मै थोड़ा इजाफा करो
उस किताब की कार्बन डेटिंग कराई जानी चाहिए ताकि सच दुनियाँ के सामने आ सके
Nahi hui hogi? Yeh to uas library se patta karna chahiye jahan padulipi rakhi hai.
@@rnmishra7001 wo fake h devnagari lipi me likhi h jo 9th century me aai
@@rnmishra7001
आदरणीय 🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
@@amandmxsahi bola
बहुत बढ़िया विश्लेषण हैं।
चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में मौजूद यूनानी राजदूत मैगस्थनीज ने इंडिका नामक पुस्तक लिखी। और उसमें चाणक्य का कोई जिक्र नहीं है। दूसरी तरफ चाणक्य को संस्कृत का विद्वान बताया गया है लेकिन मौर्य कालीन राज भाषा पालि प्राकृत है।
आदरणीय @mundarasatish8542🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं।
यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
🤣🤣🤣🤣
That's absolutely true, you caught it from Neck
@@avadhutjoshi796आयटी सेल के नमुने.. कहीं भी, बिन बुलाऐ आ जाते हैं
@@rajupatil8569 धन्यवाद राजू पाटीलजी. आपकी बातसे मैं सहमत हूं. मैंने भी ईसका अनुभव लीया है. क्या करे बेचारे ऊनकी ड्यूटी निष्ठासे निभाते है. पर आप यह बात मुझे बताकर बिना वेतन के वैसीही मुर्खता क्यों कर रहे है? मेरे कॉमेंट का विषय अलग है. कृपया ईसे स्पष्ट करे ऐसी आपसे प्रार्थना है. 🙏. अवधूत जोशी
युनानी को पीटा था चाणक्य ने
Chanakya is a man made character,it is not real but fantasy thank you professor Puniyani sir
आदरणीय 🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं।
यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
Read the history and his book you will know the truth.
According to you even the science math doesn't exist in this world.
This is a leftist ideology to abuse the great man of india.
dekh le dhyn se
Sorry Buddha is fictional character but Chanakya was real .
@@kumarkk532 :):D Ram, Shiva, and Krishana are fictional too....Buddha was indeed real :)
एकतरफा विश्लेषण😢😢 अच्छा होता कि दूसरे पक्ष का एक विश्लेषक और होता
आप ने सही जानकारी देते है। आपलोग इतिहास को बचाने के लिये पुस्तक छपवाने चाहिए।तभी जा के आने वाले पीढी को सही इतिहास की जानकारी हो सकेगी।
चंद्रगुप्त संस्कृत नहीं जानता था।
चाणक्य पाली प्राकृत नहीं जानता था।
चाणक्य के बारे में मात्र महावंश में मिलती है वो भी सिर्फ एक लाइन। महावन्श में बहुत सारी काल्पनिक बातें है। इसलिए विश्वास योग नहीं है।
Bhai phle to angrej Ashoka ki khaani jhuti bolte the
Bhai jha kuch milta wo kalpanik h, jha nhi mila wo chij h nhi,
Us hsisab thumare prbaba or unke pitaji kbhi hue nhi kyo ki unke koi sabut nhi
Tumhe to kisi dhrti sansadhna bhog krne k liye bheja h
@@ayushind27 kisi ko bhi apna parbaba mat banao. jaanch karo.
@@ASHOK251058 tmne bna liya kis or ko bhi
चीनी यात्री को दोनो भाषा आता था यहा रहने वालो को नही 🤣😃
ये सही विश्लेषण है। उस समय संस्कृत का चलन था ही नही।
बहुत खूब। आज मानवीय मुद्दों को तरजीह देने वाली विचार धारा की जरूरत है। चआनक्यओं न आम जन का न भला किया है। और न कभी करेंगे।।
आदरणीय safarkerang🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
आप दोनों बंधुओं की वार्ता से एक बात स्पष्ट है कि चाणक्य अगर बौद्ध या जैन है तो उसका अस्तित्व स्वीकारा जा सक्ता है और यदि वह ब्राह्मण है तो वह गढ़ा हुआ चरित्र है। देश को गुमराह करने के लिए आप दौनों महापुरुषों का धन्यवाद।
बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद भक्तों के लिए
Ye log khud ki bap ko nahin mante. To chanakya kya manenge.
bhai chandragupt bhi neech jaat ka nahi fir bhi ye log usko baap bana lete hai acha hua kese brahmin ne in neech jaat ke madad nahi ke varna ye log use bhi gali dete
Excellent views on the same subject and great thanks to you.
आदरणीय r.r.ahirwar🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
Ye log thode din baad bolenge ki brahman 500 saal pehle bhi nahi the😅
Brahmado ne mushkil se 150 saal ke andar hi hinduu word me infiltrate kita hai...... Brahmado ne apni kisi bhi kitab me hinduu shabd ka prayog nhi kiya hai kyuki wo hindu se chidte the
मुकेश जी बहुत धन्य दीप हैं आप।
बहोत लोग आये और चले गए, आप भी काल के कपाल में चले जायेंगे, हिंदू और उनकी संस्कृति ऐसे ही चलती रहेगी.... फिल्हाल आप जलते रहिये....
Ekdam sahi bole. Dhanyabad
बहुत सही भाई जी👍🙏 धन्यवाद ।
बाबासाहब डॉ अम्बेडकरजी ने १९५६ में कहा था कि सही इतिहास पता चलने पर इस देश के सभी लोग बौद्ध धर्म को अपनाएंगे, मतलब बौद्ध धर्म में घर-वापसी कर लेंगे। और ब्राह्मण सबसे आखिर में बौद्ध धर्म अपनाएंगे।
और बाबासाहब की भविष्यवाणी आज तक कभी गलत नहीं हुई है। वैसे भी तुम्हारा तथाकथित हिंदू धर्म पुरा बुद्धिज़्म के पुरातात्विक ढेर पर बसा हुआ है। हम भी देखते हैं वह और कितने बालू की भीत पर खड़ा रहता है। 😅
1001%√ सही है भाई
हिंदू धर्म की बुनियाद रेत की कच्ची ईंटों से बनी है। सोशल मीडिया की बाढ़ में बह जाएगी।
Thankyou so much sir Punia Ji for truth history 🙏🙏
आदरणीय @sureshdohare8427🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं।
यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
Well analysed information. Thank you sir.
अशोक के समय तक वर्ण व्यवस्था का कोई प्रमाण नहीं मिलता
Bhai vo khud bole matsi silalekh men ki main usi kul men paida hua jisme Budh paida hue budha Shakya the aur ashok Maurya-shakya
अति सुंदर!!👍👍👌👌मुकेश जी आपने और श्री पुनियानी जी ने बहुत सटीकता और तथ्यात्मक रूप से चाणक्य के भ्रामक और मनगढ़ंत चरित्र को उजागर किया है!!!
❤❤
Thank you Mukeshji and Prof Puniyaniji for clearing the myth surrounding the non existent Chankya with well researched logics.
आदरणीय Jagjitsinggrewalji🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
If Bharat has to become again World Leader, we have to abolish Castes, like under Article 17 of the Indian Constitution Untouchability has been Abolished. We have to create scientific attitudes among our citizens.
@@avadhutjoshi796 pandit to hamesha ambedkar ke bare me.. negetive hi bole hai..🤣🤣
@@bpp827 ईसमें हसने जैसा क्या है? कोई कॉमेडी शो तो है नहीं. मैं धार्मिक और सामाजिक विवादोंका समाधान ढूंढने की बात कर रहा हूं. और आप फालतू बाते कर रहे है. अगर पंडीत आंबेडकरके बारेमें नकारात्मक सोचते थे तो डाॅ.बाबासाहेब आंबेडकर भी पंडीतों के बारेमें वैसा ही नकारात्मक सोचते थे. ईसी को तो विवाद कहते है.
@@avadhutjoshi796 itna kissa khani likhne ki jarurat nhi hai.....hindu dharam jaisa kuch hai nhi vo srf brahmin baniya dharam hai....puri treh unhi k ayaashi or mjje k liye banaya gya ha ....srf or srf iss desh ki political and econimical malai lutne ko
Shi Jankari Satyahindi Shi Analysis Prof.Ram Puniyaji
आप दोनो को साधुवाद एवं धनयवाद 🙏🙏🙏
आदरणीय mukeshchhawindraji🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
Chamarjeevi zindabad
@@spicybinga7469
अंधभक्त 🤬🤬
@@avadhutjoshi796
आपके विचार बहुत अच्छा है,,
जय भारत जय संविधान जय विज्ञान
आपको भी साधुवाद और धन्यवाद 🙏🙏🙏
@@mukeshchhawindra7364
जय भारत जय संविधान जय विज्ञान, मुझे ये जयकारा पसंद आया. यह हमारे राष्ट्र के लिए आवश्यक है। बहुत धन्यवाद.
कृपया राष्ट्रव्यापी चर्चा के विचार को अधिकतम लोगों के साथ साझा करें और समर्थन करें। इसके लिए किसी अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता नहीं है. दोस्तों, रिश्तेदारों से बातचीत करते समय, ऑफिस में, यहां तक कि यात्रा में भी आप ऐसा कर सकते हैं।
🙏
अवधूत जोशी
आज भी जब कोई ब्राम्हण अकबर से होशियार बीरबल बताने की बात करता है तो बहुत हँसी आती है ।
This is the truth. Even Greeks never talked about any such system.
They also come with facts and logics 👍👍👍
आदरणीय AmitKumar🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
Amitji! I liked your approach of accepting logical things. However the logics given by Ram Puniyaniji are not entirely correct. Pl keep your love for logical and rational approach and support me.
Avadhut Joshi
@@avadhutjoshi796 joshi ji it is great to see your knowledge of indian history ..i agree with you Ram puniyani ji not entirely correct but you will agree with me history is not as we read or hear it is slightly different . I also want to take initiative like you are doing. Respect for humble nature.
@@AmitKumar-gs2us Thanks Amit for responding. However I wish to clarify something, and expect some clarification from you. 1) I never expressed any historical knowledge in my comment. My comment is more fouced on the process of finding solutions. I just gave root cause of the disputes. 2) Though you agreed to me, you did not tell your view on nationwide discussion. So I am not getting the exact topic of your agreement with me. 3) You are expecting my agreement with your view about history. I am sorry for not in agreement with your view. There is very insufficient information for agreement. Please elaborate your view. 4) if you are taking any initiative on these subjects, Pl explain its nature. Anyhow, in my idea of nationwide discussion, I am including you also. I am waiting for government response. Till then please support me and share the idea of nationwide discussion with maximum people. 🙏. Avadhut Joshi
Great sir
धनानंद भी पिछड़ी जाति का और सम्राट अशोक भी पिछडी जाति का लेकिन ये ब्राह्मण राजपूत कब आऐ भारत में
आदरणीय rajgrewalji🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
दोनों महानुभाव ऐसे बोल रहे हैं जैसे यह उस समय उपस्थित थे जो बातें हैं उनके मतलब कि हैं वह बातें मानेंगे जो मतलब के नहीं हैं उन्हें नहीं माने यही इनका इतिहास इतिहास है परम ज्ञानी इतिहास पुरुष धन्य है
Ye dono propaganda karte he.
Good job
Prof, राम जी के अलावा इतिहास के और जानकारों को भी बुलाया कीजिए।
pro.vilas ji kharat ko bulaye.
दूसरे इतिहासकार उनके मन की बात नही बोलेंगे ना।
मुझे भी काल्पनिक पात्र लगता है
चाणक्य एक काल्पनिक चरित्र है जो ब्राह्मण वाद की श्रेष्ठता के लिए गढ़ा गया है।
Arthshastr kisne likha phir
Kal tum kahoge ki bhagwan krishna bhi kalpanik the tab
@@veerSingh-qg3qp he was also.
तो चंद्रगुप्त भी काल्पनिक था
@@rameshgairola5281 chandragupt morya ka khud ka likha shilalekh milta he vo bhi Pali bhasha me or chanyak ka koi jikar nhi usme.
Chanakya is an imaginary character.
Chandragupta became Emperor with his own intelligence and own strength. 😮😮😅😅
Kyu nahi ho sakta
I fully agree with Professor Puniyani
चाणक्य द्वारा निर्देशित व प्रभूत्व प्रधान चन्द्रगुप्त शासन व्यवस्था का विवरण विस्तार से मिलता है परन्तु चाणक्य के जन्म मृत्यु का स्पष्ट उल्लेख न होना तथा उपलब्ध तात्कालिक अभिलेख प्रमाण आदि में चाणक्य का उल्लेख न होना ही आश्चर्यजनक रूप से चाणक्य के अस्तित्व पर संदेह उत्पन्न करता है।
तक्षशिला विश्वविद्यालय बौद्ध संस्थान था , वहाँ सारे बौद्धाचार्य थे तो ये चाणक्य बाहरामण कैसे हो गया ?
भाई आपकी जानकारी के लिए बता दू की तक्षशिला और नालंदा विस्वविद्यालय मे बौद्ध धर्म की शिक्षा चलती थी लेकिन ये विश्विधालय गुप्त वंश के शाशको ने बनवाया था
@@anilmaurya7701 मेरे द्वारा पूछा गया सवाल सभी के लिए था और तुम्हारे लिए भी था ...तथ्यात्मक विचार करने के लिए ।
...और हाँ मौर्य काल पहले आया , कोई 6-7 सौ साल बाद गुप्ता काल आया ,,,,और तब अगर तक्षशिला विश्वविद्यालय मौर्यकाल में था तो नंदवंश , शिशुनाग वंश, हर्यक वंश ने बनवाया होगा या बौधमार्गियों ने बनवाया होगा.....और अगर कहीं तुम्हारे अनुसार तक्षशिला विश्वविद्यालय का निर्माण गुप्ता वंश(जो बाद में आया) ने कराया तब तो चाणक्य काल्पनिक सिद्ध हो गया.
@@anilmaurya7701jise Aryan videshi brahmmanwadi manuwadi duawara toda Gaya tha
What a joke !
Ram puniyani giving lecture on historical event !
और ये तुम कहा से पढ़ के आये हो?
Mukesh Kumar ji - Thank you for bringing such important and historical topics to public.
आदरणीयmalvindersinghji🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
Tujhe chutiya bna rha
He is profesor of bio medical , not history . There is no value of his openion about any historical event .
@@soulin8520 You are totally wrong. Pl tell me about a historian. What is historian?
@@avadhutjoshi796
I have been following Mr. Ram Puniyani almost 6 years .
Non professional history is referred to the analysis taken by the persons who do not have the fact of legitimacy and keep to speculate on all matters. It's easy to detect a professional historian from an amateur or a non professional person .
He is master player in distorting the history and glorifying the mughals and other invaders .
William Dalrymple ( historian and author ) writing about the Islamic invasions of India….” Practically everything was eradicated in the cultural holocaust that accompanied the first Turkic invasions of northern India in the thirteenth century. In these conquests an enormous corpus of Buddhist knowledge was lost through Islamic iconoclasm in an orgy of wreckage comparable to the burning of the Alexandrian Library, or the destruction of centers of learning .
We ignore history at our own peril…enabling pretenders and apologists to become ‘experts’ and to deliver their opinions as fact…please spare us
चंद्रगुप्त के समय संस्कृत भाषा नहीं था तो अर्थशास्त्र कौटिल्य कैसे लिख दिया
Arthasashtra was written much later after mauryan empire and it was not written by single person but a lot of writers across generations
Abe chutiye 4000 sal pehle rigved likha gaya jo ki Sanskrit me tha aur maurya samrajya to 2400 sal purana hi hai
ठीक वैसेही आजतारीख मे सरदार पटेल जैसे नेता हमारे विचारधारा के थे, ऐसा बताया जाता है
Tujhe kaise pta ...
@@civilofficer8636 uska khandan wahan ga^^d marane ka kaam krta tha usi ka generation se h ye log😂😂
मुकेश जी आपको इस रोचक प्रोग्राम के लिए धन्यवाद।
मुझे लगता है कि हमारे पास कोई स्पष्ट ऐतिहासिक प्रमाण तो है नहीं इसलिए पुराने इतिहास को जानने के लिए आधुनिक वैज्ञानिक तरीको की आवश्यकता है। मेरी जिज्ञासा इस बात पर है कि हिन्दू जैन बुद्ध धर्म में क्या संबंध है इनका उदय कब और कैसे हुआ।
Mujhe nhi lagta woh koi religion h its just a way of life either u choose Buddhism or sanatan or jain from my point of view its just people who made it different religion....
छोड़ो सब कुछ। चीन से पैसा बराबर मिल रहा है ना। Just chill.
Well said
Mukesh sir aapne aaj dhananand ke bare me itni batayi or prof. Punyani itani sari chije chankya ke bare me uska source/ book bataye hamara knowledge badhega 🙏
It's seems that you were eye witnesses Historians of maurya Era.
Bhayankar roop se har subject par, khali ithihas nahi kunthith soch pakachpaati vichardhara hai.bhayankar roop se ghamand ki bas mai hi sab Jaanta hun , baki dusare kuch nahi jaante. Dusaro ke vicharon soch ko le kar bhayankar durbhavana . Politics mai to pakachpaat chal Jaata hai, baki aur vidhao jaise khel kala dharam vegerha mai intolerance nahi chalti. Jaativaadi soch se jaativaad ka yeh virodh karte hai. Khule dimag khuli soch gayab hai.
Bhai aisa bola jaisa ye sir 100 percent sure ho. Seedha ek insaan ko he mangadth bata diya...brahmano se itna nafrat....brahman kb aaye ye puchte h log toh phir shri krishna pe bhi koi praman mangne lagenge 😢
आदरणीय abhinavsharmaji 🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
, very nice discussion
आदरणीय 🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
1905 में प्राप्त ताड़पत्र पर अंकित अर्थशास्त्र मिली। क्या ताड़पत्र की कार्बन डेटिंग की गई है? यदि हां, तो पांडुलिपि कितनी पुरानी है? भाषा-विज्ञान के अनुसार उसकी लिपि और भाषा कब की सिद्ध होती है?
Excellent observation and analysis.
मान. सर्वो. न्याया.की एक बहुत बड़ी बैंच ने आप. प्र.क्र.291/1971,उ.प्र.सरकार बनाम ललयी सिंह यादव में स्थापित किया है कि रामायण एक काल्पनिक ग्रंथ है।
उल्लेखनीय है कि वे तर्क और आधार रामायण को काल्पनिक ग्रंथ स्थापित करने में प्रयोग किये हैं वे ही तर्क और आधार महाभारत गीता आदि हिंदू धर्म ग्रंथों पर भी लागू होते हैं। अर्थात ये भी काल्पनिक हैं।
अब कोई यह नहीं कह दे कि सर्वोच्च न्यायालय तो राष्ट्र विरोधी है?
आदरणीय 🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
प्रो राम पुनियानी और मुकेश कुमार जी पहले ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर जिसमें पुरातात्विक प्रमाण (खुदाई,शिलालेख,गुफा लेख), विदेशी यात्रियों के यात्रावृतांत का उल्लेख हो , कि चंद्रगुप्त मौर्य के समय तक तथाकथित आर्यों का जम्बूद्वीप में आगमन हो चूका था, साबित कीजिए।
आदरणीय 🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं।
यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
ब्राह्मणों की चाणक्य के ज़रिए यह साबित करने की कोशिश की गई है की चंद्रगुप्त के समय में ब्राह्मण का अस्तित्व था।
जबकि अलबरूनी के अनुसार CE के बाद से ब्राह्मण का अस्तित्व मिलता है।
आदरणीय rajmalhotraji🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
तुम लोग विदेशियों का लिखा बहुत मानते हो ।
@@aakashtiwariofficial7473 ईसके लीये 2015 से आदरणिय मोदीजी और ऊनकी सरकार जिम्मेदार है. 2015 से इतिहास, जाति और धर्म व्यवस्था पर राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं. ताकी ऐसे सभी विवादोंका स्थायी समाधान हो. सत्य प्रस्थापित हो. 1400 प्रार्थनापत्र दीये है सरकारको. पर सरकार मदत नहीं कर रही है. 🙏. अवधूत जोशी
Thanks Mukesh ji and Puniya ji for giving the right information
Great analysis
आदरणीय mohansingji🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
आज का आपका वीडियो देखकर बहुत आनंद आ गया चाणक्य को अपने काल्पनिक साबित करने की कोशिश की तो गौतम बुद्ध पर भी एक ऐसा ही वीडियो बनाएं सर के काल्पनिक गौतम बुद्ध को कैसे सम्राट अशोक ने स्थापित किया था और एक काल्पनिक धर्म बुद्ध धर्म चलाया था
अबतक रामदास स्वामी, शिवाजी महाराज के गुरू बताये गये. परंतु स्वामी और शिवाजी महाराज समकालीन नहीं थे .
आदरणीय 🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं।
यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
Mukesh Kumarji is trying to create to negativity against Hinduism... Thanks to Punyani ji for honest answers... Mukesh ji don't spoil the environment it's already spoiled too much now a days...According to Mukesji Chandragupta doesn't exist... Thanks to Punyani ji... Mukesh ji the aim of Satya is not to create negativity...
पंडितों का फैलाया हुआ झूठ है, झूठ फैलाना इनकी पुरानी आदत है, जागो पिछड़े दलित और इनकी किसी भी बात पर भरोसा मत करो ।
आप लोग पिछला जन्म याद नहीं कर पा रहे हैं उस समय मुकेश कुमार घनानंद और पुनियानी चाणक्य था लेकिन इस जन्म में आप लोग इतिहास कार और पत्रकार के रुप में जन्म पा गए
सबूत दिखाने में फटती है क्या
Ekdam sahi.
😂😂😂
Book published in 1905 may be concoted.This book may have been planted by the British Empire in connivance of the Brahmins to prove the superiority of this caste.
Aise to mohan jhodro harrapa sindhu ghati ki sabhayata ke bare mai 100 saal pahele patta laga. Aegrejo ne hi khudi karwai. Khajraho ka bhi patta 150 pahele hi chala.Ashok ke baare mai 100 saal pahele hi patta laga. Sare dharmik garanth apne mool roop mai hai kaya availble. Jayadatar viewers including me ya to eatne well read nahi ya jo pade uasse bhul gaye hai. Yeh log easi ka fayada uttathe hai. Pada enhone bhi nahi. Bas exam. Point of view se kuch answer rat liye.
आदरणीय satindrapaulsinghji🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
ram ji ko sammn unko sunna accha lagta hai....sath hi saaf saaf jankari se is samj me maujood juth bhram ko lekar unki mehnat samman yogya h......
sath hi mukesh ji ko danhyawad aisi series jankari laane k liye.....
ek aur baat ram ji or mukesh ji ap dono k bolne ka tarika shant tarika peaceful voice tone ....ne mujhe inspire kiya hai mai yhi tone ab apnane ka prayas kar rha hoon ❤❤❤
आदरणीय @jogindersagar2629🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं।
यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
Surprisingly , there is a gap of around 2000 years between Regime of Chandragupta Maurya ( 300 BC ) and Metter niche( 1700 AD ) . Chandragupta ruled from India and Metter niche based in Europe . How the contents of their books were similar ( Arthashatra and The Prince ) .
People in similar positions think alike. The only difference is in lifestyle and culture
श्री राम पुनियाणी जी श्रेष्ठ हैं ।
अर्थशास्त्र की मूल भाषा काैैनसी है ।
अशोक ने तो ब्रहमी और आरमाइ्रक भाषाा थी ।
अर्थशात्र कोरी कल्पना है , कोई साक्ष्य नही है ।
आदरणीय @sajjadjaffiri8370🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं।
यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
बहुत ही उम्दा जानकारी
यह वार्ता हमने पूरी सुनी। बेहद दु:ख हुआ कि हमारे देश के विद्वान कितना नीची सोच के हो चुके हैं!!! और वह वैचारिक निम्नगामिता बढ़ती ही जा रही है। यह इस ऋषि राष्ट्र के लिए वास्तव में ज्यादा चिंताजनक है। इंटरव्यू लेने वाला व्यक्ति और देने वाला विद्वान किसी वर्ग विशेष के प्रति घृणा से भीतर तक भरे हुए हैं। कहां से लाते हैं आप इतनी घृणा? ऋषियों के इस देश के कोई माता पिता इस स्तर की घृणा के संस्कार बच्चे को नहीं दे सकते, यह हमारा स्पष्ट मत है।
18 मिनट की वार्ता तक पहुंचते पहुंचते हम सोच रहे थे कि चाणक्य और चंद्रगुप्त के काल की इन बातों, शंकाओं के लिए कहीं आप दोनों आरएसएस और भाजपा को दोषी न ठहरा दें। तभी अचानक इंटरव्यू देने वाले विद्वान ने वही प्रसंग शुरू भी कर दिया। हम तो ठहाका लगाकर हंस पड़े। एकतरफा छोटी सोच की पराकाष्ठा देखकर मन क्षुभित हुआ।
ओफ्फो!!! हे राम! हे प्रभु! ऐसे विद्वानों की विद्वता से, महान परिवर्तनों से गुजर रहे, इस देश को बचाएं। आप दोनों को सुनकर अचरज हुआ है। इंटरव्यू लेने वाला भाई जब सवाल करता है तब इस तरीके से करता है कि उसे उसी हिसाब से ही उत्तर मिले। यानी उत्तर को भी स्वयं ही सुना देता है, कि इंटरव्यू दाता उनके कथन की ही पुष्टि कर दे।
भारत के महापुरुषों की त्याग तपस्या को भी ऐसे गंदे चश्मे से देखना बहुत चिंताजनक है और निंदाजनक भी। मैं इस साक्षात्कार को अब तक सुने सारे साक्षात्कारों में सबसे घटिया स्तर का मानता हूं और इसे देश को भारी नुकसान पहुंचाने वाला घोषित करता हूं। परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना करता हूं कि एकपक्षीय सोच रखने वाले ऐसे विद्वान इस देश से उत्तरोत्तर कम हों।
ऐसा है पण्डित जी कि आपकी होशियारी अब पकड़ी जाने लगी तो आप बौवा रहे हैं। केरल में शुद्र लड़कियों के स्तन पर आप ही ने टैक्स लगाए थे ना???? बोलो झूठ है???इसका भी प्रमाण चाहिए क्या? आपकी जात ने भारत को नस्तोनाबुत कर दिया। वर्ण व्यवस्था क्या शूद्रों ने बनाई??? लोगों को गुलाम बनाकर खूब मक्कन खाया है अपने जमाने में अब धीरे धीरे भेद खुल रहा है तो मिर्ची लग रही है।
Theek hai *BRAHMAN DEVTA*
Great information Thank you 🙏 very much.
आदरणीय @aryankarki7900🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं।
यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
A. If Chanakya didn't write Arthshastra then who did? Prof Puniyani conveniently discredits Chanakya. But at the same time he claims that there is no evidence for or against Chanakya writing Arthshastra, so I would only suggest that till you find conclusive evidence there is no point in discrediting Chanakya and exhibiting anti Brahmin prejudice.
B. Prof. Puniyani and the comperer both conveniently forget that story of Chanakya is more about an ascetic teacher and an ordinary person whom he mentored as a student and not about a Brahmin and a lower caste person. Also in this entire discourse I didn't here the word teacher even a single time.
C. If Chanakya has been really propped up by upper caste brahmins then why did he became a Jain during his last days?.....Some points to ponder!
At first you read the history of language of that period and remember Chanakya was famous for his Sanskrit language according to Brahmanavaad knowledge. But Mouryan era was with Pali language, mind it.
AAP dono ke andar ek dhanya aatma hai bhagwaan kare us aatma ko jaldi mukti mile
bhartendu harishchandra wrote the Hindi drama in 1871... that is the first reference of chanakya or kautilya there is no historicity of the character Arthashastra was first published in 1905
आदरणीय 🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं।
यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
thoda dhyan se sun le isko
एक और बात आती है कि विष्णुगुप्त चन्द्रगुप्त का बड़ा भाई था और उसने ही चन्द्रगुप्त को आगे बढ़ाया लेकिन चाणक्य को जबरन डाला गया जबकि चणक नाम का एक बौद्ध भिक्षु था जिसका नाम इसके लिए इस्तेमाल किया गया
There is no proof that there was any Chanakaya. There is no archival proof in inscriptions of Asoka. Chanakaya is the creation of Manuwadis.
आदरणीय inderjeetgiroh🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
Allah ka koi proof h??
@@dipeshbhai9056 yes there is no such thing.
@@inderjeetgiroh1814 to ap mante ho Allah bs kalpanik hai
@avadhutjoshi796 I sincerely support your endeavors. As a close watcher of SOCIAL CHANGE in our Society, I see many good things happening over the last 76 years and after the adoption of the Indian Constitution. Still, DALITS and Adivasis, and OBCS are feeling that they have not been given their share in the development of the Socioeconomic part. They feel that most fruits of development have been cornered by Upper Castes people, particularly Brahmins. To achieve their goals, the Dalits, Adivasis, OBCs, and PASMINDA MUSLIMS have joined hands. I see that they are very active and vociferous.
I have a suggestion: under Article 17 of our Constitution, UNTOUCHABILITY has been Abolished. Now the time has come when CASTES should be Abolished under Article 17. This will bring huge changes in the minds of our citizens.
Until proven authentic by solid scientific means, Chanakya's character should be considered fake, as there is a lot of motivation as well as the pattern of creating such a fake narrative to usurp the importance. Savarkar Mercy-Saga exposes this pattern more vividly in modern times only because we have more resources to expose such mischief.
👍
in which script it was written?
Dhanyawad professor saab
आदरणीय @FuzelSayed🙏!
जय भारत जय संविधान जय विज्ञान, मुझे ये जयकारा पसंद है . यह हमारे राष्ट्र के लिए आवश्यक है
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं।
यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
सम्राट अशोक के बारे में भी सुना है कि 1915 में मील शिलालेख के बाद ही पता चला था
Great efforts
कल का बुद्ध आज का केजरीवाल।
एक लोगों को दुःख दूर करने का झांसा दिया।
दूसरे ने मुफ्त में बिजली पानी टॅक्स मुफ्तखोरी का झांसा दिया।
Tune dukh door kar diya???
Thanks for shared
आदरणीय 🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
U r right sir
आदरणीय @karamvirlamba366🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं।
यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
Very nice explanation
Brahman
BJP
VHP
Bajrang dal
🙏🙏🙏🙏🙏
आदरणीय 🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
Salute aap dono ko
राम पुनियानीजी ,कृपया सिंध के ब्रामण राजा दाहिरसेन के इतिहास के बारे बताये..इंतजार रहेगा।
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Chachnama padho kyase Sindhi Raj ki Rani Ko pata ke khud Raja ban gya
आदरणीय @dasharathkhatawani7644🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं।
यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
Ram puniyani is planted by anti Bharat
Uske time Brahman bhi nhi tha jati hi nhi tha
जीन वामपंथियों को यह लगता है कि भारत का जन्म ही 1947 में हुआ और भारत को इन्होंने अंग्रेज इतिहासकारों से जाना उन्हें चाणक्य की उपस्थित जूठी ही लगेगी
its a real dude ,hitsory pado
Saari duniya me Buddh hi satya hai Baki sub kalpanik hai Namo Buddhay Jay bhim jai samvidhan jai vigyan Jai Bharat jai Mulnivasi 🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹
यानि आपके मुताबिक चाणक्य थे ही नहीं। अगर थे तो बहुत बुरा अर्थशास्त्र लिखा। चंद्रगुप्त गरीब और पिछड़ा तो था, मगर बिना चंद्रगुप्त की मदद के ही चक्रवर्ती बन गया। धन्य है आपलोग। अपना एजेंडा चलाने के लिए कुछ भी
Chanakya ki arthshaastra sanskrit main h or ashok k samay ki lipi prakrat or paali h... Orr doosra ashok k shilalekho main chanakya ka jiqra nahi h....
Or magastneez ki indika main bhi uska ziqra nahi h
Jay Bheem Jay Bharat
आदरणीय @Sarojkumar-ck2jm🙏!
जय भारत जय संविधान जय विज्ञान, मुझे ये जयकारा पसंद है . यह हमारे राष्ट्र के लिए आवश्यक है
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं।
यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
चंद्रगुप्त था लेकिन चाणक्य नहीं था वा गुरु 😂😂😂
निराधार /प्रमाण रहित टिप्पणी जो जातियों में वैमनस्य नफरत और धार्मिक संघर्ष फैलाने का यह दोनो महोदय अपने हर वीडियो में प्रसारित करते है यह अपराध पूर्ण कार्य खुले आम कर रहे है
Can you please organize an session on debate for this topic. I could share lots of litrary evidences from Buddhist, Jain and Puranic sources on Chanakya and also views on Kautilya Arthashastra from Indologists. It is an one sided interpretation from PuniyaniJi
आदरणीय @indicgyantv5454🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं।
यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
These people are trying to wipe out our history. All these things are part of subversion. Do read about how subversion works. You'll know about it.
ब्राह्मण द्वेषाची कावीळ कि सत्य हे समजन मुश्किल
Chanakya is imaginary fairy tale established by some Brahmin 😅
1905 में ही aayan attacks की थ्योरी आई थी, उसको आँख बंध करके सच मानते हैं puniyani जैसे लोग
Munna saboot mane jate hai 😂😂 gappe nhi
@@thegoldberg8470 .... Bhai... Sahab
. Sabooot kisi ke paas kuch nahi hai.... Aur tere paas to kuch nahi....
Chanakya chadragupt ke pass kam karta tha bas yehi sachai hai. Yeh sab brahmins ka failaya hua hai
@@Sauravkumar-kt1tdtum kyu mante ho brahman ki baat aur nahi mante ho toh tumhe kyu dikkat ho raha hai...
आदरणीयhassannaveedji🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
Right analysis by puniyani ji
आदरणीय cheenasharmaji 🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
Thank you Dr. For always bringing the truth amongst the people.
Aap sahi ho bahut gyaani ho
Sir,THANKS FOR THIS SHOW,ALEAST WE ARE WATCHING SOMETHING ELSE OTHER THAN MODI,RAHUL,24 ELECTION,SAME EXPERTS EVERYWHERE ,PLEASE CARRY ON.
आदरणीय ashokmittal🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
है मानव श्रेष्ठ करबद्ध निवेदन है कि चाणक्य को ब्राह्मणवादी दृष्टिकोण से ही देखना है तो ये तो सोचों बच्चों की उसे फिर राजा बनाने के लिए किसी ब्राह्मण को ही चुन लेना था ...पर आदरणीय उन्होंने चन्द्रगुप्त को चुना क्योंकि वो सुयोग्य थे....
ऐसाही शिवाजी महाराज के साथ किया गया।
महाराज की माँ जिजाबाई ने उन्हे सब मार्गदर्शन देके उन्हे इतना काबिल बनाया.
ब्राह्मणवादी खते है, की दादोजी कोंडदेव उनके गुरू थे ।
आदरणीय 🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं।
यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
आप दोनों ही शाश्वत सत्य हैं, बाकी सब मिथ्या है।
चंद्रगुप्त के समय संस्कृत भाषा थी ही नहीं। 😁😁😁😁
आदरणीय ASHOK🙏!
जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे।
इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।
समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद ।
इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें।
यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं।
मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है।
चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है ।
1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित
और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है।
यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा।
आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें।
अवधूत जोशी
@@avadhutjoshi796 आपका प्रयास सराहनीय है। हर प्रकार का संभव सहयोग रहेगा।।अगर हम एक स्वस्थ समाज का निर्माण करते हैं तो इससे किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
वैसे चाणक्य के बारे में व्यक्तव्य किसी के विरोध में नहीं है। न ही किसी विचार से प्रेरित है। यह शुद्ध रूप से शैक्षणिक है।🙏🙏
@@ASHOK251058 धन्यवाद सर. आपका चाणक्य के प्रती अगर नकारात्मक विचार है तो भी स्वागत है. मैं ऊसे विवाद के रूपमें देखुंगा. अशोक251058 के प्रती कतई नकारात्मक नहीं रहुंगा. मेरा ईसपर अनुभव बताता हूं. सच्चे आंबेडकरवादी, सच्चे हिंदू और सच्चे धर्मनिरपेक्ष सभी देशव्यापी चर्चा का समर्थन करते है. दोगले विरोध करते है....क्या जरुरत है ईसकी. देखीये सर ऐसे विरोधाभासपर हम समाधान निकालेंगे तो हम सच्चे देशभक्त. और संविधान भी ऐसी शास्त्रीय सोच की बात करता है. आप देशव्यापी चर्चा कि बात लोगोंसेभी साझा करना ऐसी आपसे प्रार्थना है. ईसीसे एक सामूहिक इच्छा बन सकती है. 🙏. अवधूत जोशी
@@avadhutjoshi796 पुनः निवेदन है श्रीमान चाणक्य या किसी के प्रति नकारात्म या सकारात्मक का प्रश्न ही नहीं है। मात्र इतिहास को निरपेक्ष भाव से समझने का प्रयास है। नए भारत के निर्माण में अंबेडकर का बहुत बड़ा योगदान है। लेकिन मैं अंबेडकर तक ही सीमित नहीं हूं।🙏
@@ASHOK251058 धन्यवाद भाईसाब. मैंने नकारात्मक और सकारात्मक कि इसलीये बात की क्यों की.... मेरी कॉमेंट आपके काॅमेंट के संदर्भमें है ऐसा आपको लगा. और इसलीये आपने ऊसका स्पष्टिकरण दिया. अगर वैसा नहीं है तो ऊसे हम भुल जाते है. एक सर्वसाधारण बात कहता हूं. मैं किसीके कॉमेंट के संदर्भमें विचार नहीं रखता. बस मैं ने जो काम हाथमें लीया है ऊसकी जानकारी देता हूं. मैने लीखा है की ईन विषयोंपर चर्चा के लीये खास प्रणाली विकसीत की है. और ऊसी के अंतर्गत मैं चर्चा चाहता हूं. और वह बात सरकार के आशीर्वाद से ही हो सकती है. तो किसी के साथ चर्चा की कोई संभावना है ही नहीं. अब बात डॉ. आंबेडकरसाब या किसी और के देशके लीये कीये कामोंकी. ऊसमें मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है. वह राजकीय पक्ष देखे. मेरा विषय है ईतिहास जाती और धर्म विषयक विवादोंका स्थायी समाधान. जो सरकार मेरी मदत करेगी वह सरकार मेरे काम की. वैसे 2015 से मैं सरकार के आशीर्वाद का हकदार हूं. पर नहीं मीली मदत. तो नाराजी है... तीव्र नाराजी है. पर फीरभी सरकार का न्यौता मिलेगा तो खुदको भाग्यवान समझूंगा. जबतक ऐसा होता नहीं तबतक आप जैसे यू ट्यूबर्स के साथ देशव्यापी चर्चा कि बात साझा करूंगा. मैं एक सामान्य नागरिक हूं. मेरे बसमें है ऊतना श्रद्धापूर्वक करता रहूंगा. 🙏. अवधूत जोशी