संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 121 से 125, ramcharitmanas। पं. राहुल पाण्डेय

แชร์
ฝัง
  • เผยแพร่เมื่อ 14 มิ.ย. 2024
  • जय श्री राम 🙏
    यदि श्रीरामचरितमानस को जन-जन तक पहुंचाने का मेरा यह प्रयास पसंद आ रहा हो तो कृपया लाइक करें और शेयर करें। सुबह नित्य पांच दोहा श्रीरामचरितमानस श्रवण करने के लिए चैनल को सब्सक्राइब करें और फेसबुक पेज को फॉलो करें। कोई सुझाव हो तो कमेंट करें। जय श्री राम 🙏
    #ramayan #shreeramcharitmanas #shriram #ram #
    Facebook : profile.php?...
    संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 121 से 125, ramcharitmanas। पं. राहुल पाण्डेय
    सुनु गिरिजा हरिचरित सुहाए। बिपुल बिसद निगमागम गाए॥
    हरि अवतार हेतु जेहि होई। इदमित्थं कहि जाइ न सोई॥
    राम अतर्क्य बुद्धि मन बानी। मत हमार अस सुनहि सयानी॥
    तदपि संत मुनि बेद पुराना। जस कछु कहहिं स्वमति अनुमाना॥
    तस मैं सुमुखि सुनावउँ तोही। समुझि परइ जस कारन मोही॥
    जब जब होइ धरम कै हानी। बाढहिं असुर अधम अभिमानी॥
    करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥
    तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहि कृपानिधि सज्जन पीरा॥
    दोहा- असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु।
    जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु॥१२१॥
    सोइ जस गाइ भगत भव तरहीं। कृपासिंधु जन हित तनु धरहीं॥
    राम जनम के हेतु अनेका। परम बिचित्र एक तें एका॥
    जनम एक दुइ कहउँ बखानी। सावधान सुनु सुमति भवानी॥
    द्वारपाल हरि के प्रिय दोऊ। जय अरु बिजय जान सब कोऊ॥
    बिप्र श्राप तें दूनउ भाई। तामस असुर देह तिन्ह पाई॥
    कनककसिपु अरु हाटक लोचन। जगत बिदित सुरपति मद मोचन॥
    बिजई समर बीर बिख्याता। धरि बराह बपु एक निपाता॥
    होइ नरहरि दूसर पुनि मारा। जन प्रहलाद सुजस बिस्तारा॥
    दोहा- भए निसाचर जाइ तेइ महाबीर बलवान।
    कुंभकरन रावण सुभट सुर बिजई जग जान॥१२२ ।
    मुकुत न भए हते भगवाना। तीनि जनम द्विज बचन प्रवाना॥
    एक बार तिन्ह के हित लागी। धरेउ सरीर भगत अनुरागी॥
    कस्यप अदिति तहाँ पितु माता। दसरथ कौसल्या बिख्याता॥
    एक कलप एहि बिधि अवतारा। चरित्र पवित्र किए संसारा॥
    एक कलप सुर देखि दुखारे। समर जलंधर सन सब हारे॥
    संभु कीन्ह संग्राम अपारा। दनुज महाबल मरइ न मारा॥
    परम सती असुराधिप नारी। तेहि बल ताहि न जितहिं पुरारी॥
    दोहा- छल करि टारेउ तासु ब्रत प्रभु सुर कारज कीन्ह॥
    जब तेहि जानेउ मरम तब श्राप कोप करि दीन्ह॥१२३॥
    तासु श्राप हरि दीन्ह प्रमाना। कौतुकनिधि कृपाल भगवाना॥
    तहाँ जलंधर रावन भयऊ। रन हति राम परम पद दयऊ॥
    एक जनम कर कारन एहा। जेहि लागि राम धरी नरदेहा॥
    प्रति अवतार कथा प्रभु केरी। सुनु मुनि बरनी कबिन्ह घनेरी॥
    नारद श्राप दीन्ह एक बारा। कलप एक तेहि लगि अवतारा॥
    गिरिजा चकित भई सुनि बानी। नारद बिष्नुभगत पुनि ग्यानि॥
    कारन कवन श्राप मुनि दीन्हा। का अपराध रमापति कीन्हा॥
    यह प्रसंग मोहि कहहु पुरारी। मुनि मन मोह आचरज भारी॥
    दोहा- बोले बिहसि महेस तब ग्यानी मूढ़ न कोइ।
    जेहि जस रघुपति करहिं जब सो तस तेहि छन होइ॥१२४(क)॥
    सोरठा- कहउँ राम गुन गाथ भरद्वाज सादर सुनहु।
    भव भंजन रघुनाथ भजु तुलसी तजि मान मद॥१२४(ख)॥
    हिमगिरि गुहा एक अति पावनि। बह समीप सुरसरी सुहावनि॥
    आश्रम परम पुनीत सुहावा। देखि देवरिषि मन अति भावा॥
    निरखि सैल सरि बिपिन बिभागा। भयउ रमापति पद अनुरागा॥
    सुमिरत हरिहि श्राप गति बाधी। सहज बिमल मन लागि समाधी॥
    मुनि गति देखि सुरेस डेराना। कामहि बोलि कीन्ह समाना॥
    सहित सहाय जाहु मम हेतू। चकेउ हरषि हियँ जलचरकेतू॥
    सुनासीर मन महुँ असि त्रासा। चहत देवरिषि मम पुर बासा॥
    जे कामी लोलुप जग माहीं। कुटिल काक इव सबहि डेराहीं॥
    दोहा- सुख हाड़ लै भाग सठ स्वान निरखि मृगराज।
    छीनि लेइ जनि जान जड़ तिमि सुरपतिहि न लाज॥१२५॥
  • เพลง

ความคิดเห็น •