कुंडली के सप्तम भाव में राहु के सटीक फल ( भाग-१) - आचार्य वासुदेव

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  • เผยแพร่เมื่อ 26 ม.ค. 2025
  • वैदिक ज्योतिष में सप्तम भाव का महत्व और राहु का सप्तम भाव में फल- कुंडली का सप्तम भाव महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह भाव आपके जीवन साथी का है, इस भाव से हम आपका वैवाहिक जीवन देखतें है। इस भाव से आपके जीवन साथी का रंग रूप, उसका व्यवहार देखतें है। काल पुरुष की कुंडली के अनुसार सप्तम भाव में तुला राशि आती है जिसका स्वामी ग्रह शुक्र है और इस भाव का कारक ग्रह भी शुक्र ही है, इस भाव को हम काम भाव और मारक भाव भी कहतें है। कुंडली का द्वितीय भाव और सप्तम भाव मारक है जिसके कारण जातक बार बार गर्त में गिरता है और जीवन मृत्यु के चक्र में फंसा रहता है। यह केंद्र भाव है, इस भाव का महत्वपूर्ण कार्य है आमने सामने का रिश्ता, और एक दूसरे की सहायता करना क्योकि इस भाव का अर्थ ही है एक दूसरे के प्रति श्रद्धा भाव रखना और अपने आप को हर प्रकार से सौंप देना। इस भाव का सबसे महत्वपूर्ण कारक है साझेदारी क्योकि यह पार्टनरशिप का भी घर है। इस भाव से हम पति/पत्नी, जीवनसाथी, व्यापार में आपके साथी, बिज़नेस पार्टनरशिप, प्रत्येक दिन लोगों से मिलना जुलना, आपसे खुली शत्रुता रखने वाले और इस भाव का स्वामी बताएगा या इसमें बैठा ग्रह कि आप किस तरह के लोगों से रोज़ाना मिलतें है। इस भाव का संबंध आपकी किडनी और ब्लैडर से है। इस भाव से हम व्यापार, जज, रेफरी, पार्टनरशिप, कोलैबोरेशन देखतें है। इस भाव से हम पति पत्नी के संबंध, कामुकता,विवाह, वैवाहिक खुशियां, एक साथ काम करना, हमेशा रहने वाले रिश्ते, सभी प्रकार की साझेदारियां, पारिवारिक रिश्ते, पर्सनल रिलेशनशिप, वैध संबंध, गिव एंड टेक सप्तम भाव से देखा जाता है। इस भाव से हम विदेश में प्रवास करना और विदेश से व्यापारिक संबंध भी देखतें है। किसी के प्रति आपकी श्रद्धा और आपके भीतर का साहस सप्तम भाव है। यह लोअर कोर्ट है जबकि नवम घर हाई कोर्ट है!राहु सप्तम भाव में वैवाहिक जीवन के लिए एक एक कठिन समस्या है। देश कालपात्र के अनुसार यदि देखें तो अमेरिका जैसे पाश्चात्य देशों में राहु की सबसे बेहतर स्तिथि सप्तम भाव के अलावा कहीं और हो ही नहीं सकती है। एक से अधिक शारीरिक संबंधों को महत्वत्ता वहीं मिलती है जहां विवाह का मतलब मात्र एक इमोशनल बाँडेज और सेक्सुअल बाँडेज के अलावा कुछ नहीं है वहां कोई पारंपरिक और जबरदस्ती थोपने वाली बातें सामने नहीं आती। सती प्रथा जैसी स्तिथियों से राहु को बहुत नफ़रत है वह आपको उस स्तिथि से बाहर निकालने का काम करता है लेकिन ऐसा हो नहीं पाता क्योकि जितना राहु आगे भागता है उससे कही ज्यादा है वह पीछे भी आ जाता है इसलिए राहु की समस्या परमानेंट है । राहु का इस भाव में सीधा सा अर्थ है कि अगर कोई आपकी मानसिक और शारीरिक इच्छाओं की फिक्र नहीं करता तो उसे एक जीवनसाथी की तरह आपके साथ रहने का कोई हक नहीं है। राहु सप्तम भाव में एक प्रौढ़ जीवन साथी देता है। राहु शोषण करता भी है और कराता भी है यह संभवतः नक्षत्र और राहु की डिग्री पर निर्भर करता है।
    यदि आप सप्तम भाव से संबंधित कोई जानकारी लेना चाहतें है या ज्योतिष और हस्तरेखा सीखना चाहतें है तो दिए गए नंबरों पर सम्पर्क करें-
    आचार्य वासुदेव
    ज्योतिषाचार्य, हस्तरेखा विशेषज्ञ,
    फोन- 9560208439, 9870146909
    प्रत्येक सोमवार से शनिवार( रविवार अवकाश)

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