पहाड़ी परंपरा गढ़वाली रीति रिवाज नरसिंह देवता की पूजा

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  • เผยแพร่เมื่อ 16 ก.ย. 2024
  • इस तरह ‘जागर’ के दौरान पारलौकिक शक्तियों के वसीभूत होकर झूमते हें ‘डंगरिये’
    कुमाऊं के जटिल भौगोलिक परिस्थितियों वाले दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में संगीत की मौखिक परम्पराओं के अनेक विशिष्ट रूप प्रचलित हैं। उत्तराखंड के इस अंचल की संस्कृति में बहुत गहरे तक बैठी प्रकृति यहां की लोक संस्कृति के अन्य अंगों की तरह यहां लोक गीतों में भी गहरी समाई हुई है। इन गीतों का मानव पर अद्भुत चमत्कारिक ईश्वरीय प्रभाव भी दिखाई देता है। ‘जागर’ गीत इसके प्रमाण हैं, जो मानव को इन कठिन परिस्थितियों में युग-युगों से परा और प्राकृतिक शक्तियों की कृपा के साथ आत्मिक संबल प्रदान करते आए हैं, और आज भी यह पल भर में मानव का न केवल झंकायमान कर देते हैं, वरन दुःख-तकलीफों, बीमारियांे की हर ओर से गहरी हताशा जैसी स्थितियों से बाहर भी निकाल लाते हैं। इसीलिए पुरानी पीढ़ियों के साथ ही संस्कृति के अन्य रूपों से दूर हो रही और प्रवास में रहने वाली आधुनिक विज्ञान पढ़ी-लिखी पीढ़ी के लोग भी इन्हें खारिज नहीं कर पाते हैं, और पारिवारिक अनुष्ठान के रूप में इसमें अब भी शामिल होते हैं। जागर के गीतों में लोक देवताओं का कथात्मक शैली में गुणगान करते हुए आह्वान किया जाता है, साथ ही इनमें कुमाऊं के सदियों पुराने प्राचीन इतिहास खासकर कत्यूरी शासकों का जिक्र भी आता है, इस प्रकार यह कुमाऊं के इतिहास के मौखिक परंपरा के प्रमाण भी साबित होते हैं, और इस तरह यह ऐतिहासिक धरोहर भी हैं।
    खास बात यह भी है जागर के माध्यम से न केवल व्यक्तिगत वरन भारतीय संस्कृति की मूल व अभिन्न भावना ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ का भी पालन किया जाता है तथा प्रकृति के संरक्षण की भी कामना की जाती है। जागर को सामान्यतया कोई व्यक्ति अकेले नहीं आयोजित कर सकता, वरन उसे अपने पूरे कुटुंब, और पूरे गांव को साथ लेकर यह आयोजन करना होता है। इस तरह यह आज के एकल परिवार में टूटते समाज को साथ लाने का एक माध्यम भी बनता है और इसके जरिए समाज में सामूहिकता की भावना भी बलवती होती जाती है। अलबत्ता, सभी लोगों के एक साथ एक अवधि में साथ नहीं जुट पाने की वजह, इस विधा के छूटने की एक बड़ी वजह भी है।
    ग्वेल देवता की जागर का मंचन
    जागर का शाब्दिक अर्थ जागरण या जगाना है। इस शैली में ‘जगरिया’ या ‘धौंसिया’ कहा जाने वाला और गुरू गोरखनाथ का प्रतिनिधि माने जाने वाला लोक गायक अपने ‘भग्यार’ कहे जाने वाले साथियों की मदद से देवी-देवताओं को कथात्मक शैली में उनकी गाथा गाते हुए उनकी प्रशंसा कर उन्हें जागृत तथा पवित्र अवसरों पर पधारने के लिए आमंत्रित करता है, तथा उनसे जीवन में हुई गलतियों और व्याप्त दुःख-तकलीफों का समाधान तथा आशीर्वाद प्राप्त करता है। इस दौरान जगरिया रामायण, महाभारत आदि धार्मिक ग्रंथों की कहानियों के साथ ही ग्वेल या गोलू, नरसिंह या नृसिंह, भनरिया, काल्सण यानी कालू सैम, हरू या हरज्यू, सैम, भोलानाथ, कलविष्ट सैम, भोलनाथ, गंगनाथ भैरों, ऐड़ी, आछरी, जीतू, लाटू, भगवती, चंडिका, विनसर, नागर्जा, नरसिंह, भैरों, ऐड़ी, आछरी, जीतू, लाटू, पांडवों, कत्येर आदि स्थानीय व लोक तथा कुल एवं ग्राम इष्ट देवताओं या ‘ग्राम देवताओं’ में से जिस देवता को जगाना होता है उस देवता की गाथाओं का बखान करता है। कई जागरों, जैसे रानीबाग में उत्तरायणी के पर्व की पहली रात कत्यूरी राजाओं के वंशजों द्वारा की जाने वाली जागर में कत्यूरी शासकों के काल का जिक्र आता है। इसी तरह अन्य जागरों में कुमाऊं की प्रसिद्ध प्रेम लोकगाथा-राजुला मालूशाही का भी जिक्र आता है, जो कुमाऊं के तत्कालीन इतिहास को भी बयां करती हैं, इस प्रकार यह ऐतिहासिक धरोहरें भी हैं, जिन्हें सहेजने की जरूरत महसूस की जाती है।
    जागर के दौरान ईश्वरीय व परा शक्तियों के आवाहन में कुमाऊं के परंपरागत वाद्य यंत्र हुड़का के साथ कांसे की थाली और छोटे-बड़े ढोलों व दमाऊ आदि का प्रयोग इस तरह एक विशिष्ट प्रकार से किया जाता है कि गायन और वाद्यों की ध्वनि, लय, सुर और तान से एसे दिव्य वातावरण का निर्माण हो जाता है कि ‘डंगरिया’ (उसे डगर या रास्ता बताने वाला भी माना जाता है) कहे जाने वाले कुछ विशिष्ट लोगों ईश्वरीय शक्ति या देवता का अवतरण हो जाता है, और वह उसके प्रभाव में आकर नृत्य करने लगते हैं, तथा अन्य उपस्थित लोगों की आत्मा, मस्तिष्क और अन्तर्रात्मा भी झंकायमान हो जाते हैं। डंगरिये स्त्री और पुरूष दोनों हो सकते हैं। कहते हैं कि इस स्थिति में साफ-सफाई के साथ रोज-स्नान ध्यान कर पूजा तथा अनेक नियमों का पालन करने वाले डंगरियों में ईश्वरीय भक्ति, आस्था व प्रेम की इस त्रिवेणी जैसी स्थिति में लोक देवताओं की शक्ति संचारित हो जाती है और उनमें जागर जगाने वाले ‘सौकार’ या ‘स्योंकार’ (सेवाकार) व उसकी पत्नी-‘स्योंनाई’ तथा जागर में उपस्थित लोगों के प्रश्नों का ‘दानी’ या ‘दांणी’ (चावल के दाने) देखकर उत्तर देने की परा भौतिक-ईश्वरीय शक्ति आ जाती है, और वे मानव दुःखों के निवारण और मानव मात्र के कल्याण के लिए पूछे जाने वाले प्रश्नों के जवाब सहज रूप से देने लगते हैं।
    #पहाड़ी #परंपरा #गढ़वाली #रीति #रिवाज #नरसिंह

ความคิดเห็น • 22

  • @neerajshukla4794
    @neerajshukla4794 ปีที่แล้ว +1

    Jai हो नरसिंह बाबा

  • @RahulRauthan-b1e
    @RahulRauthan-b1e 8 หลายเดือนก่อน +1

    ja ho

  • @sumitchaudhary-nf1ft
    @sumitchaudhary-nf1ft 6 หลายเดือนก่อน +1

    ❤❤❤❤

  • @rajendrasingh-rw2re
    @rajendrasingh-rw2re 3 ปีที่แล้ว +1

    भगवान नरसिंह देवता के चरणों में मेरा कोटि कोटि नमन और प्रणाम । भगवान नरसिंह देवता सभी पर अपनी कृपा दृष्टि बनाएं रखें ।

    • @HITBHULA
      @HITBHULA  3 ปีที่แล้ว

      🙏🙏

  • @narendrabhandari9308
    @narendrabhandari9308 3 ปีที่แล้ว +2

    Who nursing deodake

  • @nitinrauthan7029
    @nitinrauthan7029 3 ปีที่แล้ว +1

    Amazing

  • @maheshwarbhandari9279
    @maheshwarbhandari9279 3 ปีที่แล้ว +1

    Jai ho

  • @doglover1860
    @doglover1860 3 ปีที่แล้ว +1

    🙏🙏🙏🙏🙏

  • @mowgli2826
    @mowgli2826 3 ปีที่แล้ว

    🙏supeb

  • @nehabhandari522
    @nehabhandari522 3 ปีที่แล้ว

    🙏🙏🙏🙏 jai ho

  • @Samirbhatia007
    @Samirbhatia007 ปีที่แล้ว +1

    Guruji ka number milega kya urgent hai plzzzz

  • @swankita8693
    @swankita8693 3 ปีที่แล้ว

    🕉🕉🕉🕉

  • @vijaythapliyal9494
    @vijaythapliyal9494 3 ปีที่แล้ว +1

    Bhia ji in pandit ka number chahiye tha please bhai

  • @Samirbhatia007
    @Samirbhatia007 ปีที่แล้ว +1

    Guru ji ka naam kya hai

    • @HITBHULA
      @HITBHULA  ปีที่แล้ว

      Naam pata nahin

  • @sukhdeeprawat7731
    @sukhdeeprawat7731 3 ปีที่แล้ว +2

    Jai Ho narsing devta