एसबी 1.1.2 धर्म: प्रोज्जितकैतवोऽत्र परमो निर्मत्सराणां सतां वेद्यं वास्तविकमत्र वस्तु शिवदं तापत्रयोन्मूलनम् । श्रीमद्भागवते महामुनिकृते किं वा परैरीश्वर: सद्यो हृद्यवरुध्यतेऽत्रकृताभि: शुश्रुषुभिस्तत्क्षणात् ॥ 2॥ धर्म: प्रोज्जहित-कैतवो अत्र परमो निर्मत्सराणां सताम वेद्यम वास्तवम अत्र वास्तु शिवदं ताप-त्रयोणमूलनम श्रीमद-भगवते महा-मुनि-कृते किम वा परैर ईश्वर: सद्यो हृद्य अ वरुध्यते अत्र कृतिभि: सुश्रुषुभिस तत-क्षणात् समानार्थी शब्द धर्मः - धार्मिकता; प्रोज्जिता- पूर्णतया त्याग दिया गया; कैतवः - सकाम भाव से आच्छादित; अत्र - यहाँ; परमः - सर्वोच्च; निर्मत्सराणाम् - सौ प्रतिशत शुद्ध हृदय वाले; सताम् - भक्त; वेद्यम् - बोधगम्य; वास्तवम् - तथ्यात्मक; अत्र - यहाँ; वास्तु - पदार्थ; शिवदम् - भलाई; ताप - त्रय - तीन प्रकार के कष्ट; उन्मूलनम् - जड़ से उखाड़ने वाला; श्रीमत - सुन्दर; भागवते - दभागवत पुराण ; महा - मुनि - महान ऋषि (व्यासदेव); कृते - संकलित करके; किम् - क्या है; वा - आवश्यकता; परैः - अन्य; ईश्वरः- परमेश्वर; सद्यः - एक साथ; हृदि- हृदय के भीतर; अवरुध्यते - सघन हो जाता है; अत्र - यहाँ; कृतिभिः - साधु पुरुषों द्वारा; शुश्रुषुभिः - संस्कृति द्वारा; तत् - क्षणात् - बिना देर किए | अनुवाद भौतिक रूप से प्रेरित सभी धार्मिक गतिविधियों को पूरी तरह से खारिज करते हुए, यह भागवत पुराण उच्चतम सत्य को प्रतिपादित करता है, जो उन भक्तों द्वारा समझा जा सकता है जो हृदय में पूरी तरह से शुद्ध हैं। उच्चतम सत्य वास्तविकता है जो सभी के कल्याण के लिए भ्रम से अलग है। ऐसा सत्य त्रिविध दुखों का नाश करता है। महान संत व्यासदेव द्वारा [अपनी परिपक्वता में] संकलित किया गया यह सुंदर भागवतम, भगवान की प्राप्ति के लिए अपने आप में पर्याप्त है। किसी अन्य शास्त्र की क्या आवश्यकता है? जैसे ही कोई ध्यानपूर्वक और विनम्रतापूर्वक भागवतम के संदेश को सुनता है, ज्ञान की इस संस्कृति द्वारा परम भगवान उसके हृदय में स्थापित हो जाते हैं।
पुस्तकालय » श्रीमद-भागवतम (भागवत पुराण) » सर्ग 1: सृष्टि » अध्याय एक एसबी 1.1.3 निगमकल्पतरोर्गलिटं फलं शुकमुखादमृतद्रवसंयुतम् । पिबत भागवतं रसमालयं मुहुरहो रसिका भुवि भावा: ॥ 3 ॥ निगम-कल्प-तरोर गलतम फलम शुक-मुखाद् अमृत-द्रव-संयुतम् पिबत भागवतम रसम आलयम मुहुर अहो रसिका भुवि भावुका: समानार्थी शब्द निगम - वैदिक साहित्य; कल्प - तारोः - इच्छा वृक्ष; गलतम्- पूर्णतः परिपक्व; फलम् - फल; शुक - श्रील शुकदेव गोस्वामी, श्रीमद-भागवतम के मूल वक्ता; मुखात्- के होठों से; अमृत - अमृत; द्रव्य - अर्धठोस और नरम और इसलिए आसानी से निगलने योग्य; संयुतम् - सभी प्रकार से पूर्ण; पीबत - उसका रसास्वादन करो; भागवतम् - भगवान के साथ शाश्वत संबंध के विज्ञान से संबंधित ग्रंथ; रसम् - रस (जो स्वाद लेने योग्य हो); आलयम- मुक्ति तक, या मुक्त अवस्था में भी; मुहः- सदैव; अहो- हे; रसिकाः - रसों के ज्ञान से पूर्ण; भुवि- पृथ्वी पर; भावुकाः - विशेषज्ञ और विचारशील | अनुवाद हे विशेषज्ञ और विचारशील पुरुष, वैदिक साहित्य के इच्छा वृक्ष के परिपक्व फल श्रीमद-भागवतम का आनंद लें। यह श्री शुकदेव गोस्वामी के होठों से निकला है। इसलिए यह फल और भी अधिक स्वादिष्ट हो गया है, हालांकि इसका अमृत रस मुक्त आत्माओं सहित सभी के लिए पहले से ही स्वादिष्ट था
एसबी 1.1.2 धर्म: प्रोज्जितकैतवोऽत्र परमो निर्मत्सराणां सतां वेद्यं वास्तविकमत्र वस्तु शिवदं तापत्रयोन्मूलनम् । श्रीमद्भागवते महामुनिकृते किं वा परैरीश्वर: सद्यो हृद्यवरुध्यतेऽत्रकृताभि: शुश्रुषुभिस्तत्क्षणात् ॥ 2॥ धर्म: प्रोज्जहित-कैतवो अत्र परमो निर्मत्सराणां सताम वेद्यम वास्तवम अत्र वास्तु शिवदं ताप-त्रयोणमूलनम श्रीमद-भगवते महा-मुनि-कृते किम वा परैर ईश्वर: सद्यो हृद्य अ वरुध्यते अत्र कृतिभि: सुश्रुषुभिस तत-क्षणात् समानार्थी शब्द धर्मः - धार्मिकता; प्रोज्जिता- पूर्णतया त्याग दिया गया; कैतवः - सकाम भाव से आच्छादित; अत्र - यहाँ; परमः - सर्वोच्च; निर्मत्सराणाम् - सौ प्रतिशत शुद्ध हृदय वाले; सताम् - भक्त; वेद्यम् - बोधगम्य; वास्तवम् - तथ्यात्मक; अत्र - यहाँ; वास्तु - पदार्थ; शिवदम् - भलाई; ताप - त्रय - तीन प्रकार के कष्ट; उन्मूलनम् - जड़ से उखाड़ने वाला; श्रीमत - सुन्दर; भागवते - दभागवत पुराण ; महा - मुनि - महान ऋषि (व्यासदेव); कृते - संकलित करके; किम् - क्या है; वा - आवश्यकता; परैः - अन्य; ईश्वरः- परमेश्वर; सद्यः - एक साथ; हृदि- हृदय के भीतर; अवरुध्यते - सघन हो जाता है; अत्र - यहाँ; कृतिभिः - साधु पुरुषों द्वारा; शुश्रुषुभिः - संस्कृति द्वारा; तत् - क्षणात् - बिना देर किए | अनुवाद भौतिक रूप से प्रेरित सभी धार्मिक गतिविधियों को पूरी तरह से खारिज करते हुए, यह भागवत पुराण उच्चतम सत्य को प्रतिपादित करता है, जो उन भक्तों द्वारा समझा जा सकता है जो हृदय में पूरी तरह से शुद्ध हैं। उच्चतम सत्य वास्तविकता है जो सभी के कल्याण के लिए भ्रम से अलग है। ऐसा सत्य त्रिविध दुखों का नाश करता है। महान संत व्यासदेव द्वारा [अपनी परिपक्वता में] संकलित किया गया यह सुंदर भागवतम, भगवान की प्राप्ति के लिए अपने आप में पर्याप्त है। किसी अन्य शास्त्र की क्या आवश्यकता है? जैसे ही कोई ध्यानपूर्वक और विनम्रतापूर्वक भागवतम के संदेश को सुनता है, ज्ञान की इस संस्कृति द्वारा परम भगवान उसके हृदय में स्थापित हो जाते हैं।
@@ammu574 yahi tumhare Farak ke Harkatose, Hindu dharm ka satya nash kiya hai tumne - Dubb maro salo ; tumhare vajah se Hinduo me unity nhi, cast system Bana rhi hai Ji Gandagi hai
It's a humble request to TRS to record a podcast with Acharya Prashant Ji on today solution to society problem,environmental issues and global warming.
this man is one of the most sensible Hindus I've come across. I've already watched him on another channel. i think at present educated Hindus want to distance themselves from the politicised version that is running amuck in our country, bcoz it is divisive and offers no spiritual advantage
Vedant nahi bhau ved hai...... Badrayan nahi bhau jamini.... Uttara mimsa nahi bhau purva mimsa Shankar nahi bhau mandan mishra.... Yahi satya hai... Aagama nahi bhau nigama sastra.
But Vedanda is part of Purana. Bhagavad gits is the cream of all upanishaths and it is present in Mahabharatha. How can someone reject purana when Vedanta is also spoken by rishis who are part of Purana?
@@shivaprakashmyname in puran the Focus is on 2 . Then how it's one . In puran there is a god and the follower of God where as advait talks only about absolute reality. How are 2 same . Advait Vedant means there is no 2 . There is only 1 even God and followers are not 2 they are one absolute reality.
@TUSHAR RANJAN SARANGI एसबी 1.1.2 धर्म: प्रोज्जितकैतवोऽत्र परमो निर्मत्सराणां सतां वेद्यं वास्तविकमत्र वस्तु शिवदं तापत्रयोन्मूलनम् । श्रीमद्भागवते महामुनिकृते किं वा परैरीश्वर: सद्यो हृद्यवरुध्यतेऽत्रकृताभि: शुश्रुषुभिस्तत्क्षणात् ॥ 2॥ धर्म: प्रोज्जहित-कैतवो अत्र परमो निर्मत्सराणां सताम वेद्यम वास्तवम अत्र वास्तु शिवदं ताप-त्रयोणमूलनम श्रीमद-भगवते महा-मुनि-कृते किम वा परैर ईश्वर: सद्यो हृद्य अ वरुध्यते अत्र कृतिभि: सुश्रुषुभिस तत-क्षणात् समानार्थी शब्द धर्मः - धार्मिकता; प्रोज्जिता- पूर्णतया त्याग दिया गया; कैतवः - सकाम भाव से आच्छादित; अत्र - यहाँ; परमः - सर्वोच्च; निर्मत्सराणाम् - सौ प्रतिशत शुद्ध हृदय वाले; सताम् - भक्त; वेद्यम् - बोधगम्य; वास्तवम् - तथ्यात्मक; अत्र - यहाँ; वास्तु - पदार्थ; शिवदम् - भलाई; ताप - त्रय - तीन प्रकार के कष्ट; उन्मूलनम् - जड़ से उखाड़ने वाला; श्रीमत - सुन्दर; भागवते - दभागवत पुराण ; महा - मुनि - महान ऋषि (व्यासदेव); कृते - संकलित करके; किम् - क्या है; वा - आवश्यकता; परैः - अन्य; ईश्वरः- परमेश्वर; सद्यः - एक साथ; हृदि- हृदय के भीतर; अवरुध्यते - सघन हो जाता है; अत्र - यहाँ; कृतिभिः - साधु पुरुषों द्वारा; शुश्रुषुभिः - संस्कृति द्वारा; तत् - क्षणात् - बिना देर किए | अनुवाद भौतिक रूप से प्रेरित सभी धार्मिक गतिविधियों को पूरी तरह से खारिज करते हुए, यह भागवत पुराण उच्चतम सत्य को प्रतिपादित करता है, जो उन भक्तों द्वारा समझा जा सकता है जो हृदय में पूरी तरह से शुद्ध हैं। उच्चतम सत्य वास्तविकता है जो सभी के कल्याण के लिए भ्रम से अलग है। ऐसा सत्य त्रिविध दुखों का नाश करता है। महान संत व्यासदेव द्वारा [अपनी परिपक्वता में] संकलित किया गया यह सुंदर भागवतम, भगवान की प्राप्ति के लिए अपने आप में पर्याप्त है। किसी अन्य शास्त्र की क्या आवश्यकता है? जैसे ही कोई ध्यानपूर्वक और विनम्रतापूर्वक भागवतम के संदेश को सुनता है, ज्ञान की इस संस्कृति द्वारा परम भगवान उसके हृदय में स्थापित हो जाते हैं।
People really don't understand , puranas are metaphor mixed with reality its the basic of hinduism which is still undeciphered today , rishis wrote highly complex stuff and cultural stuff with in the form of story ,for educating the first step of hinduism , then comes the higher study like Upanishads, vedas , which aren't metaphor , as know ur understanding has grew by reading puranas ,know u can understand tough concept direct without story , puja , murtipuja , yoga , bhakti , kundalini , other yoga method , its all are part all necessary for all different kind of people leading to same path of moksha
I say this very clearly, there's absolutely no religion that's more Sophisticated and Intellectually articulate than Vedantik Hinduism, and I don't think you need to reject purans as metaphors if you are a believer Hindu. And certainly, barbaric Abrahamic Religions are absolutely nothing compared to Vedant and Gita. Even Buddhists should require to read Gita. If you're converting to some other religion from Hinduism, the greatest Dharma of all, there's no greater fool than you. There's no better belief system than "Brahmoism" that Rabindranath Thakur (Tagore) followed. Everyone should search Google for the word "Brahmoism" and "Omnism." Acharya Prashant is a "Braahmo" himself. But as a real Atheist, I reject even that. Hinduism is the most sophisticated collection and combination, and the ultimate essence of Everything. If you reject Hinduism, there's no religion, nothing in the whole universe that can contain you. Those who think Hinduism is false and they'll find truth in some other religion, like Islam or Christianity, or even Buddhism, they are the greatest hypocrites on the planet. Know the truth. If you say you reject Dharma, only way that's possible is if you reject all religion, all ideas of God, all spiritual stupidity, all metaphysics, rejecting the idea of Super-Natural altogether. There's absolutely nothing that's outside the real of physics. If you call yourself an Atheist, there shall be solid Scientific, philosophical, epistemological, and ontological grounds to it. I reject Super-Natural altogether. If I reject even that, that by default means I reject every single religion, of course including the barbaric Semitic Abrahamic Religions like Islam and Christianity, Judaism, or even the "unorganized religions" or so-called spiritualism, I reject everything. I reject Super-Natural altogether. If you're not a Scientific Naturalist, then you're not a real Atheist, like Stephen Hawking or Richard Dawins, or Carl Sagan or Sean Carroll who coined the philosophy of "Poetic Naturalism." Everyone needs to read "Grand Design" by Stephen Hawking, "Big Picture" by Sean Carroll, "The Moral Landscape" by Sam Harris, "Cosmos" and "The Demon Hunted World : Science as the Candle in Dark" by Carl Sagan, "A Universe From Nothing" by Lawrence Krauss. And reading "Selfish Genes" by Richard Dawkins and "Sapience" by Yuval Noah Harari is really handy. And you should definitely listen to Swami Balendu and Scientist Gauhar Raza and read Meghnad Saha and Satyendranath Bose amongst the Indians.
@@ayushverma58006 are wo to views ke liye kisi bangali baba jo vashikaran karke girl firend dilwate hai unko bhi bula lega aur uspe bhi vishwash kar lega
@@HumanistLogic right! Lekin phir bhi galti se hi sahi apna to bahut bhala kar rha hai! Zindagi mein jab kabhi bura phansega, to AP ki batein hi kaam aayegi
4:20 "hinduism maane kya" Hinduism maane everything that creates "विश्वास" within "अहम" that what it is ! ab chaahe wo tantr widya ho, bhakti yog, gyan yog...... everything is a part of Hinduism. Why are you imposing "your hinduism" on overall hinduism.
Hi Ranveer, Kudos to you for inviting Acharya Prashant and for putting his answers unfiltered onto your channel! .. Hope you keep on doing such podcasts which focus on religion and spirituality BUT based in reason and logic , like this one and not pseudoscience filled discussions about Ghosts , Demons and Demi Gods. This is the first TRS clip that i feel like sharing with my contacts!
spirituality is a belief in god..sanatana dharm is filled with gods,demi gods,demons and stuff...just bcoz it desn't meet the standards of the current state of science,doesn't ean it pseudoscience or fake
Problem is that people would either follow all of a religion or none of it Following none of it might be non effecting But following all of it might definitely be lethal
@@ayushverma58006 But Vedanda is part of Purana. Bhagavad gits is the cream of all upanishaths and it is present in Mahabharatha. How can someone reject purana when Vedanta is also spoken by rishis who are part of Purana?
Asal me sanatan samskruti me jitne bhi granth likhe gaye hain un sab ka udeshya ek hi hain vo hai moksh. Or in shastro me jo sabse ucchtam shastra hain vo hain upnishad or gita! Purana or agam shastra bhi moksha prapti ke liye hi likhe gaye hain! Purano me jaha vedant ko kahaniyo ke madhyam se samjhaya gaya hai vahi agam shastra vidhiyo ka varnan karte hain! Magar acharya ji jis cheej ko kehna chah rahe hain vo ye hai ki aaj log keval kahaniyo or karm kaand ki vidhiyo me hi uljhe reh gaye hain or jo in sabke piche ka mool udeshya moksh tha use bhool gaye hain jisse kayi sare andhviswas or kuprathao ka janm ho raha hai. Isliye jaruri hai ki hum dubara se upnishado or gita ki or laute taaki hum purano ki kahaniyo or agam shastra ki vidhiyo ka matlab samajh sake! 😊
kuch comments dekh kar pata laga ki log khudke dharm ki negative cheez sunkar dusro dharmo ki galtiya nikalne lage hai Wo ye nhi soch rhe ki hum humare dharm ki negative cheezo ko sahi kre balki wo ye sochte hai ki Muslim ya Christian dharm me bhi to yee negative cheez hai 😂
@@tusharranjansarangi5201 Vah tumhaare shraddha aur vishvas par nirbhar karta hai.Yehan Islam aur Christianity ke prabhaav mein aakar hinduon ka ek bada tabkaa hai jo Ram, Krishna, Ramayana.Srimad Bhagvatam, Mahabharata etc. ko kaalpanik maante hain.Unka sanatani hindutva vahin khatm ho jata hai.Yehi log vishvas ke abhaav mein secular hain.Hare Krishna.
@@ashitmukherjee5934 toh jo log reality maante bhi hain toh wo bhi sikhne ke bajaye kuritiyon mein hi bandhe reh gaye hain. Bali pratha, casteism, vikarma, karmkand, pret badha, tona totka ye sab aaj bhi hamare samaj se ja nahi raha kyunki hm reality man toh lete hain purano aur baki granthon ko magar khud badalna nahi chahte, mene kai so called dharm guruon ko dekh raha hai ved puran ki baat karenge magar stri janeu dharan nahi kar sakti kahenge, sita maa ka apharan unki sundarta ke karan hua bolenge, mansik bimari ko pret badha ka naam denge. Jo suna rahe hain usse upar uthne ki baat koi nahi karta, shrimad bhagvatam sunayenge magar shrimad bhagvat gita padhne keliye koi nahi bolta. Koi majak chal raha hai kya
@@tusharranjansarangi5201 Ek taalaab ke talhati mein kichad hota hi hai lekin iska matlab yeh nahi hai ki upar ka svachcch paani bhi gandaa ho gayaa.Mlecchon ke lagaataar aakraman ne hamaare vedic varnaashram dharma ko vikrit kar diya hai jiske karan secularvaadi unfaithful hindu paida hue.Sanatan dharma shreshtha hai.Cchodo jaat paat kuriti aur reservation ko.Tum taalaab ke upar ka svachcch jal piyo.Sanatan ke adhyatma ka laabh leker mukta ho jaao.Hare Krishna.🌹
@@ashitmukherjee5934 pseudo secularism jada sahi word hai baaki baat rahi swacch jal ki toh uske liye hamen kisi marg ko shreshth aur kisi ko nicha dikhane ki koi jaroorat nahi hai sabhi marg uchchatam hain aur sabhi ko saath leke chalne ki awashyakta hai chahe bhakti, gyan ya karm
@@hardikgupta9105 सरजी अगर इसे आप अहंकार कहेंगे तो ये आपकी राय है. गलितियॉ इन्सानो से होती है धर्म से नही. यहॉं बात धर्म की हो रही है इन्सान की नही,और रही बात हमारी गलतियो कि तो हम हमेशा हमारी गलतियाँ मानने के लिए तैयार है
@@shivaprakashmyname You are correct but tell me one thing. All those who have studied bhagwat Geeta how many of those people live bhagwat Geeta. I mean how many Focus on Atman or try to live the life focusing on Atman ? Even Iskcon people whose base book is bhagwat Geeta even they don't advice their followers to focus on Atman . They advice their followers to worship idols of krishna? So is Iskcon itself following Geeta ?
@@swarupdas2552 In Gaudiya sampradaya Absolute Truth exists in three phases: Brahman (also called Atman), Paramatama, and Bhagavan. Paramatma is Brahman's expansion as the Supersoul within our heart and Bhagavan is Brahman's personal form which is completely distinct from us.. So when ISKCONites do japa they have to focus on the Paramatma inwardly since japa is more of a mental concentration. When they do idol worship they have to imagine Bhagavan is in front of them and honor with that bhakti. When they address everyone as Hare Krishna they see Krishna as Brahman everywhere. Idol worship is a intimate mode of worshipping God like treating a guest when he is front of you. Even in meditation this kind of worship cannot be done so it has its relevance. God does not comes in front of you as person until you get liberation in Vaikunta so by idol worship is the preliminary rehearsal for the mind to worship God in Vaikunta.
@@Manishshriyan Sadguru who calls himself self enlightened talks only about astangayoga which he calls as Inner engineering and says he is telling what he experienced .He doesn't claim to master scriptures. Infact he acknowledges that he haven't have any knowledge of scriptures. But to understand scriptures one has to seek refuge under guru. Even Lord Rama ,Lord Krishna ,Gautama Buddha all have gurus .Without guru one cannot reach absolute truth .This is not my words but words of Adi Shankaracharya himself . So now you decide how authentic is Mr Prashant .I don't call him Acharya as meaning of Acharya is one who sets example through his Acharan (behavior ) but his behavior is far from setting example .So my take is coming from sanatana Dharma where we needed Gurus like Maharishi Valmiki and Vedavyasa to understand Lord Rama n Lord Krishna we shouldn't consider any self proclaimed baba as authentic .To understand scriptures become disciple of those who himself has learned shastra under disclipic sucession.
@@Manishshriyan please read relevant scriptures to get all the answers .Do swadhyay to get all answers .for that approach a Guru .As Adishankara himself without guru one cannot know the absolute truth .That's the reason even Lord Rama and Lord Krishna had guru when they came to earth .Approach a bona-fide spiritual master to get answers to all your question
उपनिषद और भगवत गीता जैसी मूल सनातन ग्रंथ ही अचार्य जी के गुरु है वे आपको मूलरूप से सनातन धर्म में जो दर्शन है और जो self knowledge / education of self है उसका अध्ययन करने को प्रेरित करते हैं
Puran aur upanishad dono hi kahani aur prashna uttar ke madhyam se likha gaya ha aur jo upanishad me ha o puran me bhi ha. Pata nahi a konse ganja fuk ke bat kar te ha? A to bhagwan Krishna hi jane aur inko bhagwan hi buddhi de. 🙏 Hare Krishna Hari bol 👍🙏😀
@@tusharranjansarangi5201 एसबी 1.1.1 ॐ नमो भगवते वासुदेवाय जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञ: स्वरात् तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरय: । तेजोवारीमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा धम्ना स्वेन सदा संबद्धकुहकं सत्यं परं धीमहि ॥ 1 ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय जन्मादि अस्य यतोन्वयाद इतरतश कार्तेशव अभिज्ञः स्वरत तेने ब्रह्म हृदा या आदि कवये मुह्यन्ति यत् सुरय: तेजो-वारी-मृदां यथा विनमयो यात्रा त्रि-सर्गो अमृषा धामना स्वेन सदा निरस्त-कुहाकम सत्यम परम धीमहि समानार्थी शब्द ॐ - हे मेरे प्रभु; नमः- प्रणाम करता हूँ; भगवते - भगवान को; वासुदेवाय - वासुदेव (वासुदेव के पुत्र), या भगवान श्री कृष्ण, आदि भगवान; जन्म - अादि - सृजन, पोषण और संहार; अस्य - व्यक्त ब्रह्मांडों के; यतः- जिससे; अन्वयात्- सीधे; इतरतः - परोक्ष रूप से; च - तथा; अर्थेषु - प्रयोजन; अभिज्ञः - पूर्णतया ज्ञानी; स्व - रात - पूर्णतः स्वतंत्र; तेने - प्रदान किया गया;ब्रह्म - वैदिक ज्ञान; हृदा- हृदय की चेतना; यः- जो; आदि - कवये - आदि सृजित प्राणी को; मुह्यन्ति- मोहग्रस्त होते हैं; यत्- जिसके बारे में; सुरयः - महान ऋषि और देवता; तेजः - अग्नि; वारी - जल; मृदाम् - पृथ्वी; यथा - जितना ; विनमयः - क्रिया तथा प्रतिक्रिया; यत्र - जहाँ; त्रि - सर्गः - सृजन के तीन तरीके, रचनात्मक संकाय; अम्ृषा - लगभग वास्तविक;धम्ना - समस्त दिव्य सामग्री सहित; स्वेण - आत्मनिर्भर; सदा- सदैव; निरस्ता - अभाव से निषेध; कुहकम - भ्रम; सत्यम् - सत्य; परम् - पूर्ण; धीमहि - मैं ध्यान करता हूँ | अनुवाद हे मेरे प्रभु, श्री कृष्ण, वासुदेव के पुत्र, हे सर्वव्यापक भगवान, मैं आपको अपना सम्मानपूर्वक प्रणाम करता हूँ। मैं भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करता हूँ क्योंकि वे परम सत्य हैं और व्यक्त ब्रह्मांडों के निर्माण, पालन और विनाश के सभी कारणों के आदि कारण हैं। वह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सभी अभिव्यक्तियों के प्रति सचेत है, और वह स्वतंत्र है क्योंकि उससे परे कोई अन्य कारण नहीं है। यह केवल वे हैं जिन्होंने सबसे पहले ब्रह्माजी, मूल जीव के हृदय को वैदिक ज्ञान प्रदान किया था। उनके द्वारा बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों और देवताओं को भी भ्रम में डाल दिया जाता है, जैसे कि कोई अग्नि में देखे गए जल या जल पर दिखाई देने वाली भूमि के मायावी रूपों से मोहित हो जाता है। केवल उन्हीं के कारण प्रकृति के तीन गुणों की प्रतिक्रियाओं से अस्थायी रूप से प्रकट भौतिक ब्रह्माण्ड वास्तविक प्रतीत होते हैं, यद्यपि वे असत्य हैं। इसलिए मैं भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करता हूं, जो दिव्य धाम में शाश्वत रूप से विद्यमान हैं, जो भौतिक दुनिया के भ्रामक प्रतिनिधित्व से हमेशा के लिए मुक्त है। मैं उनका ध्यान करता हूं, क्योंकि वे परम सत्य हैं।
@@tusharranjansarangi5201एसबी 1.1.2 धर्म: प्रोज्जितकैतवोऽत्र परमो निर्मत्सराणां सतां वेद्यं वास्तविकमत्र वस्तु शिवदं तापत्रयोन्मूलनम् । श्रीमद्भागवते महामुनिकृते किं वा परैरीश्वर: सद्यो हृद्यवरुध्यतेऽत्रकृताभि: शुश्रुषुभिस्तत्क्षणात् ॥ 2॥ धर्म: प्रोज्जहित-कैतवो अत्र परमो निर्मत्सराणां सताम वेद्यम वास्तवम अत्र वास्तु शिवदं ताप-त्रयोणमूलनम श्रीमद-भगवते महा-मुनि-कृते किम वा परैर ईश्वर: सद्यो हृद्य अ वरुध्यते अत्र कृतिभि: सुश्रुषुभिस तत-क्षणात् समानार्थी शब्द धर्मः - धार्मिकता; प्रोज्जिता- पूर्णतया त्याग दिया गया; कैतवः - सकाम भाव से आच्छादित; अत्र - यहाँ; परमः - सर्वोच्च; निर्मत्सराणाम् - सौ प्रतिशत शुद्ध हृदय वाले; सताम् - भक्त; वेद्यम् - बोधगम्य; वास्तवम् - तथ्यात्मक; अत्र - यहाँ; वास्तु - पदार्थ; शिवदम् - भलाई; ताप - त्रय - तीन प्रकार के कष्ट; उन्मूलनम् - जड़ से उखाड़ने वाला; श्रीमत - सुन्दर; भागवते - दभागवत पुराण ; महा - मुनि - महान ऋषि (व्यासदेव); कृते - संकलित करके; किम् - क्या है; वा - आवश्यकता; परैः - अन्य; ईश्वरः- परमेश्वर; सद्यः - एक साथ; हृदि- हृदय के भीतर; अवरुध्यते - सघन हो जाता है; अत्र - यहाँ; कृतिभिः - साधु पुरुषों द्वारा; शुश्रुषुभिः - संस्कृति द्वारा; तत् - क्षणात् - बिना देर किए | अनुवाद भौतिक रूप से प्रेरित सभी धार्मिक गतिविधियों को पूरी तरह से खारिज करते हुए, यह भागवत पुराण उच्चतम सत्य को प्रतिपादित करता है, जो उन भक्तों द्वारा समझा जा सकता है जो हृदय में पूरी तरह से शुद्ध हैं। उच्चतम सत्य वास्तविकता है जो सभी के कल्याण के लिए भ्रम से अलग है। ऐसा सत्य त्रिविध दुखों का नाश करता है। महान संत व्यासदेव द्वारा [अपनी परिपक्वता में] संकलित किया गया यह सुंदर भागवतम, भगवान की प्राप्ति के लिए अपने आप में पर्याप्त है। किसी अन्य शास्त्र की क्या आवश्यकता है? जैसे ही कोई ध्यानपूर्वक और विनम्रतापूर्वक भागवतम के संदेश को सुनता है, ज्ञान की इस संस्कृति द्वारा परम भगवान उसके हृदय में स्थापित हो जाते हैं।
@@tusharranjansarangi5201 पुस्तकालय » श्रीमद-भागवतम (भागवत पुराण) » सर्ग 1: सृष्टि » अध्याय एक एसबी 1.1.3 निगमकल्पतरोर्गलिटं फलं शुकमुखादमृतद्रवसंयुतम् । पिबत भागवतं रसमालयं मुहुरहो रसिका भुवि भावा: ॥ 3 ॥ निगम-कल्प-तरोर गलतम फलम शुक-मुखाद् अमृत-द्रव-संयुतम् पिबत भागवतम रसम आलयम मुहुर अहो रसिका भुवि भावुका: समानार्थी शब्द निगम - वैदिक साहित्य; कल्प - तारोः - इच्छा वृक्ष; गलतम्- पूर्णतः परिपक्व; फलम् - फल; शुक - श्रील शुकदेव गोस्वामी, श्रीमद-भागवतम के मूल वक्ता; मुखात्- के होठों से; अमृत - अमृत; द्रव्य - अर्धठोस और नरम और इसलिए आसानी से निगलने योग्य; संयुतम् - सभी प्रकार से पूर्ण; पीबत - उसका रसास्वादन करो; भागवतम् - भगवान के साथ शाश्वत संबंध के विज्ञान से संबंधित ग्रंथ; रसम् - रस (जो स्वाद लेने योग्य हो); आलयम- मुक्ति तक, या मुक्त अवस्था में भी; मुहः- सदैव; अहो- हे; रसिकाः - रसों के ज्ञान से पूर्ण; भुवि- पृथ्वी पर; भावुकाः - विशेषज्ञ और विचारशील | अनुवाद हे विशेषज्ञ और विचारशील पुरुष, वैदिक साहित्य के इच्छा वृक्ष के परिपक्व फल श्रीमद-भागवतम का आनंद लें। यह श्री शुकदेव गोस्वामी के होठों से निकला है। इसलिए यह फल और भी अधिक स्वादिष्ट हो गया है, हालांकि इसका अमृत रस मुक्त आत्माओं सहित सभी के लिए पहले से ही स्वादिष्ट था
@TUSHAR RANJAN SARANGI एसबी 1.1.1 ॐ नमो भगवते वासुदेवाय जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञ: स्वरात् तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरय: । तेजोवारीमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा धम्ना स्वेन सदा संबद्धकुहकं सत्यं परं धीमहि ॥ 1 ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय जन्मादि अस्य यतोन्वयाद इतरतश कार्तेशव अभिज्ञः स्वरत तेने ब्रह्म हृदा या आदि कवये मुह्यन्ति यत् सुरय: तेजो-वारी-मृदां यथा विनमयो यात्रा त्रि-सर्गो अमृषा धामना स्वेन सदा निरस्त-कुहाकम सत्यम परम धीमहि समानार्थी शब्द ॐ - हे मेरे प्रभु; नमः- प्रणाम करता हूँ; भगवते - भगवान को; वासुदेवाय - वासुदेव (वासुदेव के पुत्र), या भगवान श्री कृष्ण, आदि भगवान; जन्म - अादि - सृजन, पोषण और संहार; अस्य - व्यक्त ब्रह्मांडों के; यतः- जिससे; अन्वयात्- सीधे; इतरतः - परोक्ष रूप से; च - तथा; अर्थेषु - प्रयोजन; अभिज्ञः - पूर्णतया ज्ञानी; स्व - रात - पूर्णतः स्वतंत्र; तेने - प्रदान किया गया;ब्रह्म - वैदिक ज्ञान; हृदा- हृदय की चेतना; यः- जो; आदि - कवये - आदि सृजित प्राणी को; मुह्यन्ति- मोहग्रस्त होते हैं; यत्- जिसके बारे में; सुरयः - महान ऋषि और देवता; तेजः - अग्नि; वारी - जल; मृदाम् - पृथ्वी; यथा - जितना ; विनमयः - क्रिया तथा प्रतिक्रिया; यत्र - जहाँ; त्रि - सर्गः - सृजन के तीन तरीके, रचनात्मक संकाय; अम्ृषा - लगभग वास्तविक;धम्ना - समस्त दिव्य सामग्री सहित; स्वेण - आत्मनिर्भर; सदा- सदैव; निरस्ता - अभाव से निषेध; कुहकम - भ्रम; सत्यम् - सत्य; परम् - पूर्ण; धीमहि - मैं ध्यान करता हूँ | अनुवाद हे मेरे प्रभु, श्री कृष्ण, वासुदेव के पुत्र, हे सर्वव्यापक भगवान, मैं आपको अपना सम्मानपूर्वक प्रणाम करता हूँ। मैं भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करता हूँ क्योंकि वे परम सत्य हैं और व्यक्त ब्रह्मांडों के निर्माण, पालन और विनाश के सभी कारणों के आदि कारण हैं। वह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सभी अभिव्यक्तियों के प्रति सचेत है, और वह स्वतंत्र है क्योंकि उससे परे कोई अन्य कारण नहीं है। यह केवल वे हैं जिन्होंने सबसे पहले ब्रह्माजी, मूल जीव के हृदय को वैदिक ज्ञान प्रदान किया था। उनके द्वारा बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों और देवताओं को भी भ्रम में डाल दिया जाता है, जैसे कि कोई अग्नि में देखे गए जल या जल पर दिखाई देने वाली भूमि के मायावी रूपों से मोहित हो जाता है। केवल उन्हीं के कारण प्रकृति के तीन गुणों की प्रतिक्रियाओं से अस्थायी रूप से प्रकट भौतिक ब्रह्माण्ड वास्तविक प्रतीत होते हैं, यद्यपि वे असत्य हैं। इसलिए मैं भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करता हूं, जो दिव्य धाम में शाश्वत रूप से विद्यमान हैं, जो भौतिक दुनिया के भ्रामक प्रतिनिधित्व से हमेशा के लिए मुक्त है। मैं उनका ध्यान करता हूं, क्योंकि वे परम सत्य हैं।
Ranveer, I am little upset this time. Please ask the right question to right people. You are asking chemistry problem to history teacher. History teacher can convince you either God exist or does not exist. First you should define “religion”, who invented it. Just google it you must find the answer. Then ask, is it ever there in our sanatana culture. If not then how come his answer can be correct then. Please don’t confuse the young generation. Reading the books can’t help you to be swimmer, it must be experienced with right teacher or coach. Religion is created and designed so cleverly by the Brit that whole world is getting fooled and divided.
Reading books can't teach u swimming but practical needs so do it practically and show us and don't combine the swimming with knowledge or religion these are different so knowing them is also different
@TUSHAR RANJAN SARANGI पुस्तकालय » श्रीमद-भागवतम (भागवत पुराण) » सर्ग 1: सृष्टि » अध्याय एक एसबी 1.1.3 निगमकल्पतरोर्गलिटं फलं शुकमुखादमृतद्रवसंयुतम् । पिबत भागवतं रसमालयं मुहुरहो रसिका भुवि भावा: ॥ 3 ॥ निगम-कल्प-तरोर गलतम फलम शुक-मुखाद् अमृत-द्रव-संयुतम् पिबत भागवतम रसम आलयम मुहुर अहो रसिका भुवि भावुका: समानार्थी शब्द निगम - वैदिक साहित्य; कल्प - तारोः - इच्छा वृक्ष; गलतम्- पूर्णतः परिपक्व; फलम् - फल; शुक - श्रील शुकदेव गोस्वामी, श्रीमद-भागवतम के मूल वक्ता; मुखात्- के होठों से; अमृत - अमृत; द्रव्य - अर्धठोस और नरम और इसलिए आसानी से निगलने योग्य; संयुतम् - सभी प्रकार से पूर्ण; पीबत - उसका रसास्वादन करो; भागवतम् - भगवान के साथ शाश्वत संबंध के विज्ञान से संबंधित ग्रंथ; रसम् - रस (जो स्वाद लेने योग्य हो); आलयम- मुक्ति तक, या मुक्त अवस्था में भी; मुहः- सदैव; अहो- हे; रसिकाः - रसों के ज्ञान से पूर्ण; भुवि- पृथ्वी पर; भावुकाः - विशेषज्ञ और विचारशील | अनुवाद हे विशेषज्ञ और विचारशील पुरुष, वैदिक साहित्य के इच्छा वृक्ष के परिपक्व फल श्रीमद-भागवतम का आनंद लें। यह श्री शुकदेव गोस्वामी के होठों से निकला है। इसलिए यह फल और भी अधिक स्वादिष्ट हो गया है, हालांकि इसका अमृत रस मुक्त आत्माओं सहित सभी के लिए पहले से ही स्वादिष्ट था
It's very sad. We don't know Hinduism.....................The philosophy of Jainism, Buddhism, Vedant, and Sikhism forms the "Soul" of Hinduism." Sanatan dharma is not Hinduism but a subset of Hinduism which deals with the "practice of God.".... i.e., "Bhraman," the final God of the Universe. Sanatan is supposed to follow Vedant (which merges with spirituality), but in an actual sense, it is the practice of God, its stories, creating stories of God to pass messages in the society, creating temples for God....creating the face of God by picking some character of the stories which suppose to pass certain message to the society. In a broad sense - Brahminical interpretation of Hinduism= Sanatan +- Vedant - Kshtriyas interpretation of Hindusm= Jainism + Buddhism + Sikhism (these all founders were Kshatriyas against injustice and exploitation propagated by Brahmins through the fear of God)
Sabse badi problem hume lagti hai ki sanatan dharm complicated bahot hai for me may be for other's it's not Jiski wajah hume atheism jayada sahi lagta.athiesm main main aapko itna sab jaane samajhne ki jaroorat hi nahi hai.bus apni life jio,khush raho ,maje karo,paise kamao aur at the end death toh honi hai .😁
bhai same bilkul......kbhi kbhi lgta h hinduism ko smjhna meraa bskii baatt ni ....atheist hi bn jata hu ....kuch to identity rahegi..hindu hokr b hinduism hi ni pta to kya hi krlenge hm
@@versatilegang1747 ☺️ Wahi na bro aap hi dekh lo itne sare guru hai acharya prashant,Jaggi Vasudev,aur bhi pata nahi kon kon Aur sabhi apni apni philosophy batate hai Iske wajah se aur confusion hota hai Religion ek simple si chiz hi toh batata hai chahe woh koi bhi religion ho ki life kaise ji jaati hai Usko bhi itna complicated kar diya in sab logo ne
@@imnavraj3921 Kuch complicated nahi hai bhai, religion word bhul jaa Abh dekh tere paas 10 philosophies hai samjne ke liye {indian} 2 of them are vedant and buddha philosophy Bss abh agar life me issues aaye yah toh acharya prashant jese kisi vedant teacher ke paas aajana, ya buddha ke paas chale jaana Simple as that bhai
@@thebandoftwocretins4406 dikha di n tum logon ne Tum religious log offend badi jaldi ho jaate ho aur dusro ko bewkoof samajhte ho Main tumhare religion, dharm jo bhi bolte ho uske against thodi bol raha hun Bus apne views rakh Raha hun
Kisi bhi dharm ka ek dharmik granth hota hai ..uske baad sare garnth aate hai .. wo dharm granth ki jagah nhi le skte.. jaise ke ved dharm granth hai aur uske baad wale sare sirf granth hai
Ma inki bat ka khandan kar ta hu. Sabhi sastro ko bed vyas ji ne hi likha ha aur bed me hi likha ha ki puran jada important ha ved se. Aur puran aur itihas ko pancham bed bhi bola gaya ha.Pata nahi a kon se nasa kar te ha. Hare Krishna Hari bol 👍🙏😀
@@Anshu.24383 bhagbat maha puran padh lo use bramha sutra ka bhasya aur bed rupi briksh ka paka hua fal bataya gaya ha. Aur ise sabhi maharshi, rishi aur acharya mante bhi ha. Hare Krishna Hari bol 👍🙏😀
@@Anshu.24383 मुख्य विषयवस्तु में जाएं वेदबेस मेन्यू सहज दृश्यपृष्ठ सूचना पुस्तकालय » श्रीमद-भागवतम (भागवत पुराण) » सर्ग 1: सृष्टि » अध्याय एक एसबी 1.1.3 निगमकल्पतरोर्गलिटं फलं शुकमुखादमृतद्रवसंयुतम् । पिबत भागवतं रसमालयं मुहुरहो रसिका भुवि भावा: ॥ 3 ॥ निगम-कल्प-तरोर गलतम फलम शुक-मुखाद् अमृत-द्रव-संयुतम् पिबत भागवतम रसम आलयम मुहुर अहो रसिका भुवि भावुका: समानार्थी शब्द निगम - वैदिक साहित्य; कल्प - तारोः - इच्छा वृक्ष; गलतम्- पूर्णतः परिपक्व; फलम् - फल; शुक - श्रील शुकदेव गोस्वामी, श्रीमद-भागवतम के मूल वक्ता; मुखात्- के होठों से; अमृत - अमृत; द्रव्य - अर्धठोस और नरम और इसलिए आसानी से निगलने योग्य; संयुतम् - सभी प्रकार से पूर्ण; पीबत - उसका रसास्वादन करो; भागवतम् - भगवान के साथ शाश्वत संबंध के विज्ञान से संबंधित ग्रंथ; रसम् - रस (जो स्वाद लेने योग्य हो); आलयम- मुक्ति तक, या मुक्त अवस्था में भी; मुहः- सदैव; अहो- हे; रसिकाः - रसों के ज्ञान से पूर्ण; भुवि- पृथ्वी पर; भावुकाः - विशेषज्ञ और विचारशील | अनुवाद हे विशेषज्ञ और विचारशील पुरुष, वैदिक साहित्य के इच्छा वृक्ष के परिपक्व फल श्रीमद-भागवतम का आनंद लें। यह श्री शुकदेव गोस्वामी के होठों से निकला है। इसलिए यह फल और भी अधिक स्वादिष्ट हो गया है, हालांकि इसका अमृत रस मुक्त आत्माओं सहित सभी के लिए पहले से ही स्वादिष्ट था।
@@murugen1981 So you think that Hanuman ji flying from here , increasing their size and eating the sun is a real incident and history???😂🤦♂️ It's clearly mythology.
i stopped following these fake self proclaimed acharya after he called the boota kola tradition as primitive superstition...from someone who has seen it multiple times,i feel it is better than listening to an illiterate who never experienced it on that issue
Think from a bigger picture perspective. If they are real then why they are not in global news? If they have powers. Why we were colonised? If they are demigods or whatever. Why is india still backwards? If they are real. Then why they are limited to only villages and not a part of metro cities and solving their problems? I have also seen similar stuff. But I am rational so I encourage you too be.
Agar ye new devta puranic h isa(jesus) k baad me aaye h ,jinka mandir bna rhe h wo bhu puranic h to prashant ji zara ye btaiye ki Mahabharata to 5000 saal purane waqt ka varnan krta h ,mata parvati k mandir ka varnan g usme to ab wo to jesus k pehle ki baat h ,ab aap kya kehna chahenge. Kuchh log bolenge ki Mahabharata kalpanic h to unka kuchh nhi ho skta.
@@dhananjayrathod8604 are bhai ye bol rha h ki devta jese shiv parvati puranic h,Vedic nhi h to is se ye puchho ki itihas me Inka varnan kese h? Or bhai rhi baat contradiction ki to shiv purana me likha hua h ki har purana alag alag kalpa k baare me btata h ,alag timelines h sabhi to alag alag incident hue honge na.
@@ShubhamSharma-ow7jn arrey fake acharya ko seriously kyu le rhe ho tum.. Real acharya Shankaracharya the.. jinhone bhagwan Vishnu and Bhagwan Shiv ke upar bhi books likhe.. aur unse bda adwait vedant ka jankar koi nhi hai
@@Rohit-ij7mb sahi keh rhe ho bhai per jab audience ese fake gurus ko appreciate krti h na tb achha nhi lgta per now I think why should we care at all?
A person who don't have any knowledge of dharma and sastras is taking about sanathan dharma and people are watching it. Welcome to kaliyuga where every importer and lie is hell bend on becoming main stream. Why don't he invited Adiya Satsangi who runs his channel called sattology and has extensive knowledge of sastras and come from sampradaya and tradition.
I'm your subscriber Adipursh ke mekars ko bullao show pe or pucho kyu aisa ghatiya film banaya, especially Manoj muntashir and om raut bulao inko,isse baccho pe or teenager pe galat impact pad raha hai sanatan dharm ko leke galt impact pad raha hai,request you ranvir bhai 💯🙌👍
Inko vedon ke bina vedanta chahiye… karma kanda ke bina dharma chahiye… murkhta hai. Vedanta PhD hai pehle Ved to padhlo theek se, sadhana karlo theek se…
Quite possible Upanishads manna Sur karde no ritual on enquiry of truth but gand fatt jayega kyunki Upanishads nagga karta hai , dukh dega Suru toh karo Upanishads. Dharm kitna kathin hai pata lagega
Aisi baate karke tum Shree Krishna ka apmaan kar rhe ho , Shree Krishna ne Geeta me kaha hai ki vedo ka wo bhaag jo bhog aur vilasita me vyast hai ( yaane ki karmkaand ) aur tumhe swargiya sukh ki prapti Kara dega Aisi cheezo me jo yakin rkhta ho Wo mera updesh kabhi samaz hi nahi payega Matlab Shree Krishna bhi yahi kehna chahte hai ki vedo me agar kuch kaam ka hai , toh wo vedant hai Vedant hi sanatan dharm hai Jai shree Ram 🙏
Guru ji pakade gaye...pahale kahate hai k vedo me nahi hai castism...bad me kahate hai ek do vedo me hai par iska vedo se koi sambhandh nahi hai.....gumrah kar rahe hai logo ko....
The copycat Ranveer is at it again. The weird Hindi-Urdu shout of "Jigyasa ke Maadhyam se Khushi"😁 - Yet another RIPOFF of other podcasters, like Joe Rogan, who similarly shouts 'train by day joe rogan podcast by night' 🙏👎
पूरा Podcast यहाँ देखें:
th-cam.com/video/C7c1_UEgbbc/w-d-xo.html
Sir Adi suyash ko bulao apni show main 🙏youtube.com/@adisuyash
एसबी 1.1.2
धर्म: प्रोज्जितकैतवोऽत्र परमो निर्मत्सराणां सतां
वेद्यं वास्तविकमत्र वस्तु शिवदं तापत्रयोन्मूलनम् ।
श्रीमद्भागवते महामुनिकृते किं वा परैरीश्वर:
सद्यो हृद्यवरुध्यतेऽत्रकृताभि: शुश्रुषुभिस्तत्क्षणात् ॥ 2॥
धर्म: प्रोज्जहित-कैतवो अत्र परमो निर्मत्सराणां सताम
वेद्यम वास्तवम अत्र वास्तु शिवदं ताप-त्रयोणमूलनम
श्रीमद-भगवते महा-मुनि-कृते किम वा परैर ईश्वर:
सद्यो हृद्य अ वरुध्यते अत्र कृतिभि: सुश्रुषुभिस तत-क्षणात्
समानार्थी शब्द
धर्मः - धार्मिकता; प्रोज्जिता- पूर्णतया त्याग दिया गया; कैतवः - सकाम भाव से आच्छादित; अत्र - यहाँ; परमः - सर्वोच्च; निर्मत्सराणाम् - सौ प्रतिशत शुद्ध हृदय वाले; सताम् - भक्त; वेद्यम् - बोधगम्य; वास्तवम् - तथ्यात्मक; अत्र - यहाँ; वास्तु - पदार्थ; शिवदम् - भलाई; ताप - त्रय - तीन प्रकार के कष्ट; उन्मूलनम् - जड़ से उखाड़ने वाला; श्रीमत - सुन्दर; भागवते - दभागवत पुराण ; महा - मुनि - महान ऋषि (व्यासदेव); कृते - संकलित करके; किम् - क्या है; वा - आवश्यकता; परैः - अन्य; ईश्वरः- परमेश्वर; सद्यः - एक साथ; हृदि- हृदय के भीतर; अवरुध्यते - सघन हो जाता है; अत्र - यहाँ; कृतिभिः - साधु पुरुषों द्वारा; शुश्रुषुभिः - संस्कृति द्वारा; तत् - क्षणात् - बिना देर किए |
अनुवाद
भौतिक रूप से प्रेरित सभी धार्मिक गतिविधियों को पूरी तरह से खारिज करते हुए, यह भागवत पुराण उच्चतम सत्य को प्रतिपादित करता है, जो उन भक्तों द्वारा समझा जा सकता है जो हृदय में पूरी तरह से शुद्ध हैं। उच्चतम सत्य वास्तविकता है जो सभी के कल्याण के लिए भ्रम से अलग है। ऐसा सत्य त्रिविध दुखों का नाश करता है। महान संत व्यासदेव द्वारा [अपनी परिपक्वता में] संकलित किया गया यह सुंदर भागवतम, भगवान की प्राप्ति के लिए अपने आप में पर्याप्त है। किसी अन्य शास्त्र की क्या आवश्यकता है? जैसे ही कोई ध्यानपूर्वक और विनम्रतापूर्वक भागवतम के संदेश को सुनता है, ज्ञान की इस संस्कृति द्वारा परम भगवान उसके हृदय में स्थापित हो जाते हैं।
पुस्तकालय » श्रीमद-भागवतम (भागवत पुराण) » सर्ग 1: सृष्टि » अध्याय एक
एसबी 1.1.3
निगमकल्पतरोर्गलिटं फलं
शुकमुखादमृतद्रवसंयुतम् ।
पिबत भागवतं रसमालयं
मुहुरहो रसिका भुवि भावा: ॥ 3 ॥
निगम-कल्प-तरोर गलतम फलम
शुक-मुखाद् अमृत-द्रव-संयुतम्
पिबत भागवतम रसम आलयम
मुहुर अहो रसिका भुवि भावुका:
समानार्थी शब्द
निगम - वैदिक साहित्य; कल्प - तारोः - इच्छा वृक्ष; गलतम्- पूर्णतः परिपक्व; फलम् - फल; शुक - श्रील शुकदेव गोस्वामी, श्रीमद-भागवतम के मूल वक्ता; मुखात्- के होठों से; अमृत - अमृत; द्रव्य - अर्धठोस और नरम और इसलिए आसानी से निगलने योग्य; संयुतम् - सभी प्रकार से पूर्ण; पीबत - उसका रसास्वादन करो; भागवतम् - भगवान के साथ शाश्वत संबंध के विज्ञान से संबंधित ग्रंथ; रसम् - रस (जो स्वाद लेने योग्य हो); आलयम- मुक्ति तक, या मुक्त अवस्था में भी; मुहः- सदैव; अहो- हे; रसिकाः - रसों के ज्ञान से पूर्ण; भुवि- पृथ्वी पर; भावुकाः - विशेषज्ञ और विचारशील |
अनुवाद
हे विशेषज्ञ और विचारशील पुरुष, वैदिक साहित्य के इच्छा वृक्ष के परिपक्व फल श्रीमद-भागवतम का आनंद लें। यह श्री शुकदेव गोस्वामी के होठों से निकला है। इसलिए यह फल और भी अधिक स्वादिष्ट हो गया है, हालांकि इसका अमृत रस मुक्त आत्माओं सहित सभी के लिए पहले से ही स्वादिष्ट था
Real Hinduism is vedanta❤
एसबी 1.1.2
धर्म: प्रोज्जितकैतवोऽत्र परमो निर्मत्सराणां सतां
वेद्यं वास्तविकमत्र वस्तु शिवदं तापत्रयोन्मूलनम् ।
श्रीमद्भागवते महामुनिकृते किं वा परैरीश्वर:
सद्यो हृद्यवरुध्यतेऽत्रकृताभि: शुश्रुषुभिस्तत्क्षणात् ॥ 2॥
धर्म: प्रोज्जहित-कैतवो अत्र परमो निर्मत्सराणां सताम
वेद्यम वास्तवम अत्र वास्तु शिवदं ताप-त्रयोणमूलनम
श्रीमद-भगवते महा-मुनि-कृते किम वा परैर ईश्वर:
सद्यो हृद्य अ वरुध्यते अत्र कृतिभि: सुश्रुषुभिस तत-क्षणात्
समानार्थी शब्द
धर्मः - धार्मिकता; प्रोज्जिता- पूर्णतया त्याग दिया गया; कैतवः - सकाम भाव से आच्छादित; अत्र - यहाँ; परमः - सर्वोच्च; निर्मत्सराणाम् - सौ प्रतिशत शुद्ध हृदय वाले; सताम् - भक्त; वेद्यम् - बोधगम्य; वास्तवम् - तथ्यात्मक; अत्र - यहाँ; वास्तु - पदार्थ; शिवदम् - भलाई; ताप - त्रय - तीन प्रकार के कष्ट; उन्मूलनम् - जड़ से उखाड़ने वाला; श्रीमत - सुन्दर; भागवते - दभागवत पुराण ; महा - मुनि - महान ऋषि (व्यासदेव); कृते - संकलित करके; किम् - क्या है; वा - आवश्यकता; परैः - अन्य; ईश्वरः- परमेश्वर; सद्यः - एक साथ; हृदि- हृदय के भीतर; अवरुध्यते - सघन हो जाता है; अत्र - यहाँ; कृतिभिः - साधु पुरुषों द्वारा; शुश्रुषुभिः - संस्कृति द्वारा; तत् - क्षणात् - बिना देर किए |
अनुवाद
भौतिक रूप से प्रेरित सभी धार्मिक गतिविधियों को पूरी तरह से खारिज करते हुए, यह भागवत पुराण उच्चतम सत्य को प्रतिपादित करता है, जो उन भक्तों द्वारा समझा जा सकता है जो हृदय में पूरी तरह से शुद्ध हैं। उच्चतम सत्य वास्तविकता है जो सभी के कल्याण के लिए भ्रम से अलग है। ऐसा सत्य त्रिविध दुखों का नाश करता है। महान संत व्यासदेव द्वारा [अपनी परिपक्वता में] संकलित किया गया यह सुंदर भागवतम, भगवान की प्राप्ति के लिए अपने आप में पर्याप्त है। किसी अन्य शास्त्र की क्या आवश्यकता है? जैसे ही कोई ध्यानपूर्वक और विनम्रतापूर्वक भागवतम के संदेश को सुनता है, ज्ञान की इस संस्कृति द्वारा परम भगवान उसके हृदय में स्थापित हो जाते हैं।
Bhraman sabhi lok hai, koi sudhra, kshatriy vaisya nhi
@@SS_Nationalistpagal bhrma aur bhraman me antar hota hai 😂😂😂
@@ammu574 yahi tumhare Farak ke Harkatose, Hindu dharm ka satya nash kiya hai tumne - Dubb maro salo ; tumhare vajah se Hinduo me unity nhi, cast system Bana rhi hai Ji Gandagi hai
@@SS_Nationalisttabhi tumhe chamar bolte hai dimaag he nhii
It's a humble request to TRS to record a podcast with Acharya Prashant Ji on today solution to society problem,environmental issues and global warming.
Go on acharya Prashant channel and watch it here !!
I totally agree with achrya Prashant jii 🙏
Hinduism 🕉️ is mix culture and faith in single cultural way of life 🙂
Sir ji...
Sahi aap hee ho... Hinduooo ke samjh ko clear krne k liye thank you... I hope zda se zda centurians ye dekhen......
thank u ranveer for this podcast 😊😊
i request personal aacharya ji ko support kare bahut yuwa faltu chizo se bach jayegi 🙏🙏
Tark me Advait vedant ko harana mumkin nahi!
Madhwacharya left the chat
@@Dharma4187 if he would have been a contemporary of acharya shankar he would never be able to beat Advait!
@@Raj-pw9nd advait vedant ko refute kiya tha ramanujacharya nein . mayabad khandanam .
@@himanshudutta609Aur asafal hua. None of them would stand a chance against Adi Shankaracharya
@@Learner-cn8ck if your adi Shankaracharya even meet sripad ramanujacharya then you can imagine what is going to happened.
Man is very knowledgeable
❤❤this man is very knowledgeable.
Respect
The introduction before podcast by Ranveer is out of the world....
by watching this video it makes you realise the depth and vastness of the religion
this man is one of the most sensible Hindus I've come across. I've already watched him on another channel. i think at present educated Hindus want to distance themselves from the politicised version that is running amuck in our country, bcoz it is divisive and offers no spiritual advantage
Plzzz follow Ramkrishna monk Sarvapriyananda.
Best ❤️
Thanks achary ji 🙏🙂
Vedant nahi bhau ved hai...... Badrayan nahi bhau jamini....
Uttara mimsa nahi bhau purva mimsa
Shankar nahi bhau mandan mishra.... Yahi satya hai...
Aagama nahi bhau nigama sastra.
I totally agree 👍❤
Jai shree Ramkrishna 🙏🙏
Puran rejected Agam rejected tantra rejected. Only Vedant is real Sanatan Dharm
But Vedanda is part of Purana. Bhagavad gits is the cream of all upanishaths and it is present in Mahabharatha. How can someone reject purana when Vedanta is also spoken by rishis who are part of Purana?
@@shivaprakashmynamepurana is part of advait , through purana we can connect with advait vedant
@@shivaprakashmyname in puran the Focus is on 2 . Then how it's one . In puran there is a god and the follower of God where as advait talks only about absolute reality. How are 2 same . Advait Vedant means there is no 2 . There is only 1 even God and followers are not 2 they are one absolute reality.
Rejection is today's fashion.
Great clarity!
Can’t reject what you haven’t assessed in depth & breadth.
Knowledge is Supreme 🙏
Radhe Radhe 🙏
@TUSHAR RANJAN SARANGI एसबी 1.1.2
धर्म: प्रोज्जितकैतवोऽत्र परमो निर्मत्सराणां सतां
वेद्यं वास्तविकमत्र वस्तु शिवदं तापत्रयोन्मूलनम् ।
श्रीमद्भागवते महामुनिकृते किं वा परैरीश्वर:
सद्यो हृद्यवरुध्यतेऽत्रकृताभि: शुश्रुषुभिस्तत्क्षणात् ॥ 2॥
धर्म: प्रोज्जहित-कैतवो अत्र परमो निर्मत्सराणां सताम
वेद्यम वास्तवम अत्र वास्तु शिवदं ताप-त्रयोणमूलनम
श्रीमद-भगवते महा-मुनि-कृते किम वा परैर ईश्वर:
सद्यो हृद्य अ वरुध्यते अत्र कृतिभि: सुश्रुषुभिस तत-क्षणात्
समानार्थी शब्द
धर्मः - धार्मिकता; प्रोज्जिता- पूर्णतया त्याग दिया गया; कैतवः - सकाम भाव से आच्छादित; अत्र - यहाँ; परमः - सर्वोच्च; निर्मत्सराणाम् - सौ प्रतिशत शुद्ध हृदय वाले; सताम् - भक्त; वेद्यम् - बोधगम्य; वास्तवम् - तथ्यात्मक; अत्र - यहाँ; वास्तु - पदार्थ; शिवदम् - भलाई; ताप - त्रय - तीन प्रकार के कष्ट; उन्मूलनम् - जड़ से उखाड़ने वाला; श्रीमत - सुन्दर; भागवते - दभागवत पुराण ; महा - मुनि - महान ऋषि (व्यासदेव); कृते - संकलित करके; किम् - क्या है; वा - आवश्यकता; परैः - अन्य; ईश्वरः- परमेश्वर; सद्यः - एक साथ; हृदि- हृदय के भीतर; अवरुध्यते - सघन हो जाता है; अत्र - यहाँ; कृतिभिः - साधु पुरुषों द्वारा; शुश्रुषुभिः - संस्कृति द्वारा; तत् - क्षणात् - बिना देर किए |
अनुवाद
भौतिक रूप से प्रेरित सभी धार्मिक गतिविधियों को पूरी तरह से खारिज करते हुए, यह भागवत पुराण उच्चतम सत्य को प्रतिपादित करता है, जो उन भक्तों द्वारा समझा जा सकता है जो हृदय में पूरी तरह से शुद्ध हैं। उच्चतम सत्य वास्तविकता है जो सभी के कल्याण के लिए भ्रम से अलग है। ऐसा सत्य त्रिविध दुखों का नाश करता है। महान संत व्यासदेव द्वारा [अपनी परिपक्वता में] संकलित किया गया यह सुंदर भागवतम, भगवान की प्राप्ति के लिए अपने आप में पर्याप्त है। किसी अन्य शास्त्र की क्या आवश्यकता है? जैसे ही कोई ध्यानपूर्वक और विनम्रतापूर्वक भागवतम के संदेश को सुनता है, ज्ञान की इस संस्कृति द्वारा परम भगवान उसके हृदय में स्थापित हो जाते हैं।
What a legendary reply by Achiya Ji. Can anyone tell me is there any video of Adi Shankaracharya by AP??
Just Read ViVek chudamani by Adi sankracharya.
People really don't understand , puranas are metaphor mixed with reality its the basic of hinduism which is still undeciphered today , rishis wrote highly complex stuff and cultural stuff with in the form of story ,for educating the first step of hinduism , then comes the higher study like Upanishads, vedas , which aren't metaphor , as know ur understanding has grew by reading puranas ,know u can understand tough concept direct without story , puja , murtipuja , yoga , bhakti , kundalini , other yoga method , its all are part all necessary for all different kind of people leading to same path of moksha
I say this very clearly, there's absolutely no religion that's more Sophisticated and Intellectually articulate than Vedantik Hinduism, and I don't think you need to reject purans as metaphors if you are a believer Hindu. And certainly, barbaric Abrahamic Religions are absolutely nothing compared to Vedant and Gita. Even Buddhists should require to read Gita. If you're converting to some other religion from Hinduism, the greatest Dharma of all, there's no greater fool than you. There's no better belief system than "Brahmoism" that Rabindranath Thakur (Tagore) followed. Everyone should search Google for the word "Brahmoism" and "Omnism." Acharya Prashant is a "Braahmo" himself.
But as a real Atheist, I reject even that.
Hinduism is the most sophisticated collection and combination, and the ultimate essence of Everything. If you reject Hinduism, there's no religion, nothing in the whole universe that can contain you. Those who think Hinduism is false and they'll find truth in some other religion, like Islam or Christianity, or even Buddhism, they are the greatest hypocrites on the planet. Know the truth. If you say you reject Dharma, only way that's possible is if you reject all religion, all ideas of God, all spiritual stupidity, all metaphysics, rejecting the idea of Super-Natural altogether. There's absolutely nothing that's outside the real of physics. If you call yourself an Atheist, there shall be solid Scientific, philosophical, epistemological, and ontological grounds to it.
I reject Super-Natural altogether. If I reject even that, that by default means I reject every single religion, of course including the barbaric Semitic Abrahamic Religions like Islam and Christianity, Judaism, or even the "unorganized religions" or so-called spiritualism, I reject everything. I reject Super-Natural altogether.
If you're not a Scientific Naturalist, then you're not a real Atheist, like Stephen Hawking or Richard Dawins, or Carl Sagan or Sean Carroll who coined the philosophy of "Poetic Naturalism."
Everyone needs to read "Grand Design" by Stephen Hawking, "Big Picture" by Sean Carroll, "The Moral Landscape" by Sam Harris, "Cosmos" and "The Demon Hunted World : Science as the Candle in Dark" by Carl Sagan, "A Universe From Nothing" by Lawrence Krauss. And reading "Selfish Genes" by Richard Dawkins and "Sapience" by Yuval Noah Harari is really handy.
And you should definitely listen to Swami Balendu and Scientist Gauhar Raza and read Meghnad Saha and Satyendranath Bose amongst the Indians.
Yeah but it's hard to undecipher these stories
Hindu dharma sanatan dharma hai.Sanatan dharma mein sabkuchcch samaahit hai vyaakhyaon sahit.
Love you acharya ji
जिन्हे आप इतिहास बोल रहे हो वोह भी पौराणिक ही है!
रणवीर तो तंत्र मंत्र भूत पिसाच और सारी पौराणिक कहानियों को रियल हिस्ट्री मानता है 😂😂😂 आचार्य जी की बातों से सांप लोटते होंगे सीने पे
Agar aise hota, to Vo acharya ji ko dobara invite karte hi nahi
😂😂😂🤞
@@ayushverma58006 are wo to views ke liye kisi bangali baba jo vashikaran karke girl firend dilwate hai unko bhi bula lega aur uspe bhi vishwash kar lega
@@HumanistLogic right! Lekin phir bhi galti se hi sahi apna to bahut bhala kar rha hai!
Zindagi mein jab kabhi bura phansega, to AP ki batein hi kaam aayegi
@Techno trading ya to koi Radical Bewakoof Muslim hai ya leftist hai.
Iske baato ko entertain na kare.
Fake I'd wala
Love you bro
Both of you
Naman ACHARAYJI...🙏🙏
4:20 "hinduism maane kya"
Hinduism maane everything that creates "विश्वास" within "अहम" that what it is !
ab chaahe wo tantr widya ho, bhakti yog, gyan yog...... everything is a part of Hinduism.
Why are you imposing "your hinduism" on overall hinduism.
❤❤❤❤
real Hinduism leads to Humanism
Hi Ranveer, Kudos to you for inviting Acharya Prashant and for putting his answers unfiltered onto your channel! ..
Hope you keep on doing such podcasts which focus on religion and spirituality BUT based in reason and logic , like this one and not pseudoscience filled discussions about Ghosts , Demons and Demi Gods.
This is the first TRS clip that i feel like sharing with my contacts!
spirituality is a belief in god..sanatana dharm is filled with gods,demi gods,demons and stuff...just bcoz it desn't meet the standards of the current state of science,doesn't ean it pseudoscience or fake
Ye sahi hai 😂 Sanatan Dharma ki history ko kahani bata diya.
Jai Shree Ram 🚩👍
Jadyatar kahani hi hai
Problem is that people would either follow all of a religion or none of it
Following none of it might be non effecting
But following all of it might definitely be lethal
Pauranik stories may be manipulated but they are source of medival history, satvahna, guptas stories are mentioned
If you want to follow puranas factually, then no worries. But if you follow them religiously and spiritually, then a lot of worries!!!
What is there to follow
I read that's all
For example there is mention of pallavas who attacked cholas in durga saptsati
@@ayushverma58006 But Vedanda is part of Purana. Bhagavad gits is the cream of all upanishaths and it is present in Mahabharatha. How can someone reject purana when Vedanta is also spoken by rishis who are part of Purana?
Excellent definition 🙏🏽
I love acharya prashant
Asal me sanatan samskruti me jitne bhi granth likhe gaye hain un sab ka udeshya ek hi hain vo hai moksh. Or in shastro me jo sabse ucchtam shastra hain vo hain upnishad or gita! Purana or agam shastra bhi moksha prapti ke liye hi likhe gaye hain! Purano me jaha vedant ko kahaniyo ke madhyam se samjhaya gaya hai vahi agam shastra vidhiyo ka varnan karte hain! Magar acharya ji jis cheej ko kehna chah rahe hain vo ye hai ki aaj log keval kahaniyo or karm kaand ki vidhiyo me hi uljhe reh gaye hain or jo in sabke piche ka mool udeshya moksh tha use bhool gaye hain jisse kayi sare andhviswas or kuprathao ka janm ho raha hai. Isliye jaruri hai ki hum dubara se upnishado or gita ki or laute taaki hum purano ki kahaniyo or agam shastra ki vidhiyo ka matlab samajh sake! 😊
🙏🙏🚩
Hinduism includes Vedic religion
kuch comments dekh kar pata laga ki log khudke dharm ki negative cheez sunkar dusro dharmo ki galtiya nikalne lage hai
Wo ye nhi soch rhe ki hum humare dharm ki negative cheezo ko sahi kre balki wo ye sochte hai ki Muslim ya Christian dharm me bhi to yee negative cheez hai 😂
Only acharya Prashant ❤❤❤❤
Hinduism is actually Advaita Vedanta as written in Vedas, Upanishads & Geeta
Acharyaji starts at a very low volume and increases it with every passing minute 😂😂😂
Haa Bhai Inke lectures ese hi hote btw I love him
❤
AP G is the ultimate superman
Acharya ji for your information Purana vedon par bhaasya hain enlightened vidvaanon ke dvara chaahe ve jab bhi likhi gayi hon.
Lekin unko metaphorical samajh ke unse seekh lene ki jaroorat hai naki unko literal manna
@@tusharranjansarangi5201 Vah tumhaare shraddha aur vishvas par nirbhar karta hai.Yehan Islam aur Christianity ke prabhaav mein aakar hinduon ka ek bada tabkaa hai jo Ram, Krishna, Ramayana.Srimad Bhagvatam, Mahabharata etc. ko kaalpanik maante hain.Unka sanatani hindutva vahin khatm ho jata hai.Yehi log vishvas ke abhaav mein secular hain.Hare Krishna.
@@ashitmukherjee5934 toh jo log reality maante bhi hain toh wo bhi sikhne ke bajaye kuritiyon mein hi bandhe reh gaye hain. Bali pratha, casteism, vikarma, karmkand, pret badha, tona totka ye sab aaj bhi hamare samaj se ja nahi raha kyunki hm reality man toh lete hain purano aur baki granthon ko magar khud badalna nahi chahte, mene kai so called dharm guruon ko dekh raha hai ved puran ki baat karenge magar stri janeu dharan nahi kar sakti kahenge, sita maa ka apharan unki sundarta ke karan hua bolenge, mansik bimari ko pret badha ka naam denge. Jo suna rahe hain usse upar uthne ki baat koi nahi karta, shrimad bhagvatam sunayenge magar shrimad bhagvat gita padhne keliye koi nahi bolta. Koi majak chal raha hai kya
@@tusharranjansarangi5201 Ek taalaab ke talhati mein kichad hota hi hai lekin iska matlab yeh nahi hai ki upar ka svachcch paani bhi gandaa ho gayaa.Mlecchon ke lagaataar aakraman ne hamaare vedic varnaashram dharma ko vikrit kar diya hai jiske karan secularvaadi unfaithful hindu paida hue.Sanatan dharma shreshtha hai.Cchodo jaat paat kuriti aur reservation ko.Tum taalaab ke upar ka svachcch jal piyo.Sanatan ke adhyatma ka laabh leker mukta ho jaao.Hare Krishna.🌹
@@ashitmukherjee5934 pseudo secularism jada sahi word hai baaki baat rahi swacch jal ki toh uske liye hamen kisi marg ko shreshth aur kisi ko nicha dikhane ki koi jaroorat nahi hai sabhi marg uchchatam hain aur sabhi ko saath leke chalne ki awashyakta hai chahe bhakti, gyan ya karm
सर आपने कहा हर धर्म के पॉजिटिव्ह निगिटिव्ह होता है. यहा आपको मे सही करना चाहूँगा. सनातन धर्म का कोई निगिटिव्ह साईड नही है.
ये comment आपके व्यक्तिगत अहंकार को दर्शाता है, always be ready to accept our faults.
Wah
@@hardikgupta9105 सरजी अगर इसे आप अहंकार कहेंगे तो ये आपकी राय है. गलितियॉ इन्सानो से होती है धर्म से नही. यहॉं बात धर्म की हो रही है इन्सान की नही,और रही बात हमारी गलतियो कि तो हम हमेशा हमारी गलतियाँ मानने के लिए तैयार है
Koee garanth padhe bhi h ki kewal sanatan sanatan karte mar jana h ki jankari bhi lena h 💪💯
@@RanjeetKumar-wt9te सर जी पढे है ग्रंथ यु ही comment नही कर रहा
I love Buddha
Pepole want to know those line that they like to hear❤
AP❤❤
Ranveer ने कभी किसी नास्तिक को बुलाया है क्या अपने पॉडकास्ट पर ??? किसी को पता हो तो जरूर बताएं 🙏
Bro tum directly jaakar athiesm par videos check out kar sakta hai
I don't think Ranveer has invited athiests to his podcasts till now
Fat Jati Hai Nastik Se Is Liye Nahi Bulaya😂😂
Big question if Dhammapad can give knowledge why bhagwat Geeta is required?
Dhammapad gives you KNOWLEDGE only about buddhism beliefs.
Bhagwat Geeta is eternal truth crystal clear and most relevant to modern world.
Bhagavad gita tells about nature of our real self which is called as athma. Does dhamapada talks about it?
@@shivaprakashmyname You are correct but tell me one thing. All those who have studied bhagwat Geeta how many of those people live bhagwat Geeta. I mean how many Focus on Atman or try to live the life focusing on Atman ? Even Iskcon people whose base book is bhagwat Geeta even they don't advice their followers to focus on Atman . They advice their followers to worship idols of krishna? So is Iskcon itself following Geeta ?
@@swarupdas2552 In Gaudiya sampradaya Absolute Truth exists in three phases: Brahman (also called Atman), Paramatama, and Bhagavan. Paramatma is Brahman's expansion as the Supersoul within our heart and Bhagavan is Brahman's personal form which is completely distinct from us.. So when ISKCONites do japa they have to focus on the
Paramatma inwardly since japa is more of a mental concentration. When they do idol worship they have to imagine Bhagavan is in front of them and honor with that bhakti. When they address everyone as Hare Krishna they see Krishna as Brahman everywhere. Idol worship is a intimate mode of worshipping God like treating a guest when he is front of you. Even in meditation this kind of worship cannot be done so it has its relevance. God does not comes in front of you as person until you get liberation in Vaikunta so by idol worship is the preliminary rehearsal for the mind to worship God in Vaikunta.
I found dhammapada is worst book
By the way who is guru of Acharya Prashant ?
@@Manishshriyan Sadguru who calls himself self enlightened talks only about astangayoga which he calls as Inner engineering and says he is telling what he experienced .He doesn't claim to master scriptures. Infact he acknowledges that he haven't have any knowledge of scriptures. But to understand scriptures one has to seek refuge under guru. Even Lord Rama ,Lord Krishna ,Gautama Buddha all have gurus .Without guru one cannot reach absolute truth .This is not my words but words of Adi Shankaracharya himself . So now you decide how authentic is Mr Prashant .I don't call him Acharya as meaning of Acharya is one who sets example through his Acharan (behavior ) but his behavior is far from setting example .So my take is coming from sanatana Dharma where we needed Gurus like Maharishi Valmiki and Vedavyasa to understand Lord Rama n Lord Krishna we shouldn't consider any self proclaimed baba as authentic .To understand scriptures become disciple of those who himself has learned shastra under disclipic sucession.
@@Manishshriyan please read relevant scriptures to get all the answers .Do swadhyay to get all answers .for that approach a Guru .As Adishankara himself without guru one cannot know the absolute truth .That's the reason even Lord Rama and Lord Krishna had guru when they came to earth .Approach a bona-fide spiritual master to get answers to all your question
उपनिषद और भगवत गीता जैसी मूल सनातन ग्रंथ ही अचार्य जी के गुरु है
वे आपको मूलरूप से सनातन धर्म में जो दर्शन है और जो self knowledge / education of self है उसका अध्ययन करने को प्रेरित करते हैं
@akshayrajsingh4857 To understand Bhagavat Geeta and upanishad correctly who needs to learn from Guru
@@messengeroflove365😂😂😂
Ranveer anna, can please make one clip for the importance of Beej mantra reem, bhat, that was explained by rajarshi nandi
Ranveer sir yeh saari baate NCERT ki hai..😂
Konsi class ki
❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤AP ji
Ranbir to Aacharya Prashant- acharya ji kya aapane yeti dekha hai
Puran aur upanishad dono hi kahani aur prashna uttar ke madhyam se likha gaya ha aur jo upanishad me ha o puran me bhi ha. Pata nahi a konse ganja fuk ke bat kar te ha? A to bhagwan Krishna hi jane aur inko bhagwan hi buddhi de. 🙏 Hare Krishna Hari bol 👍🙏😀
Bhai dikkat toh wahi hai na hum upanishad ki baton ko kahaniyan maante hain magar purano ko sach maan baithe hain
@@tusharranjansarangi5201 एसबी 1.1.1
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञ: स्वरात्
तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरय: ।
तेजोवारीमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा
धम्ना स्वेन सदा संबद्धकुहकं सत्यं परं धीमहि ॥ 1 ॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जन्मादि अस्य यतोन्वयाद इतरतश कार्तेशव अभिज्ञः स्वरत
तेने ब्रह्म हृदा या आदि कवये मुह्यन्ति यत् सुरय: तेजो-वारी-मृदां यथा
विनमयो यात्रा त्रि-सर्गो अमृषा
धामना स्वेन सदा निरस्त-कुहाकम सत्यम परम धीमहि
समानार्थी शब्द
ॐ - हे मेरे प्रभु; नमः- प्रणाम करता हूँ; भगवते - भगवान को; वासुदेवाय - वासुदेव (वासुदेव के पुत्र), या भगवान श्री कृष्ण, आदि भगवान; जन्म - अादि - सृजन, पोषण और संहार; अस्य - व्यक्त ब्रह्मांडों के; यतः- जिससे; अन्वयात्- सीधे; इतरतः - परोक्ष रूप से; च - तथा; अर्थेषु - प्रयोजन; अभिज्ञः - पूर्णतया ज्ञानी; स्व - रात - पूर्णतः स्वतंत्र; तेने - प्रदान किया गया;ब्रह्म - वैदिक ज्ञान; हृदा- हृदय की चेतना; यः- जो; आदि - कवये - आदि सृजित प्राणी को; मुह्यन्ति- मोहग्रस्त होते हैं; यत्- जिसके बारे में; सुरयः - महान ऋषि और देवता; तेजः - अग्नि; वारी - जल; मृदाम् - पृथ्वी; यथा - जितना ; विनमयः - क्रिया तथा प्रतिक्रिया; यत्र - जहाँ; त्रि - सर्गः - सृजन के तीन तरीके, रचनात्मक संकाय; अम्ृषा - लगभग वास्तविक;धम्ना - समस्त दिव्य सामग्री सहित; स्वेण - आत्मनिर्भर; सदा- सदैव; निरस्ता - अभाव से निषेध; कुहकम - भ्रम; सत्यम् - सत्य; परम् - पूर्ण; धीमहि - मैं ध्यान करता हूँ |
अनुवाद
हे मेरे प्रभु, श्री कृष्ण, वासुदेव के पुत्र, हे सर्वव्यापक भगवान, मैं आपको अपना सम्मानपूर्वक प्रणाम करता हूँ। मैं भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करता हूँ क्योंकि वे परम सत्य हैं और व्यक्त ब्रह्मांडों के निर्माण, पालन और विनाश के सभी कारणों के आदि कारण हैं। वह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सभी अभिव्यक्तियों के प्रति सचेत है, और वह स्वतंत्र है क्योंकि उससे परे कोई अन्य कारण नहीं है। यह केवल वे हैं जिन्होंने सबसे पहले ब्रह्माजी, मूल जीव के हृदय को वैदिक ज्ञान प्रदान किया था। उनके द्वारा बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों और देवताओं को भी भ्रम में डाल दिया जाता है, जैसे कि कोई अग्नि में देखे गए जल या जल पर दिखाई देने वाली भूमि के मायावी रूपों से मोहित हो जाता है। केवल उन्हीं के कारण प्रकृति के तीन गुणों की प्रतिक्रियाओं से अस्थायी रूप से प्रकट भौतिक ब्रह्माण्ड वास्तविक प्रतीत होते हैं, यद्यपि वे असत्य हैं। इसलिए मैं भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करता हूं, जो दिव्य धाम में शाश्वत रूप से विद्यमान हैं, जो भौतिक दुनिया के भ्रामक प्रतिनिधित्व से हमेशा के लिए मुक्त है। मैं उनका ध्यान करता हूं, क्योंकि वे परम सत्य हैं।
@@tusharranjansarangi5201एसबी 1.1.2
धर्म: प्रोज्जितकैतवोऽत्र परमो निर्मत्सराणां सतां
वेद्यं वास्तविकमत्र वस्तु शिवदं तापत्रयोन्मूलनम् ।
श्रीमद्भागवते महामुनिकृते किं वा परैरीश्वर:
सद्यो हृद्यवरुध्यतेऽत्रकृताभि: शुश्रुषुभिस्तत्क्षणात् ॥ 2॥
धर्म: प्रोज्जहित-कैतवो अत्र परमो निर्मत्सराणां सताम
वेद्यम वास्तवम अत्र वास्तु शिवदं ताप-त्रयोणमूलनम
श्रीमद-भगवते महा-मुनि-कृते किम वा परैर ईश्वर:
सद्यो हृद्य अ वरुध्यते अत्र कृतिभि: सुश्रुषुभिस तत-क्षणात्
समानार्थी शब्द
धर्मः - धार्मिकता; प्रोज्जिता- पूर्णतया त्याग दिया गया; कैतवः - सकाम भाव से आच्छादित; अत्र - यहाँ; परमः - सर्वोच्च; निर्मत्सराणाम् - सौ प्रतिशत शुद्ध हृदय वाले; सताम् - भक्त; वेद्यम् - बोधगम्य; वास्तवम् - तथ्यात्मक; अत्र - यहाँ; वास्तु - पदार्थ; शिवदम् - भलाई; ताप - त्रय - तीन प्रकार के कष्ट; उन्मूलनम् - जड़ से उखाड़ने वाला; श्रीमत - सुन्दर; भागवते - दभागवत पुराण ; महा - मुनि - महान ऋषि (व्यासदेव); कृते - संकलित करके; किम् - क्या है; वा - आवश्यकता; परैः - अन्य; ईश्वरः- परमेश्वर; सद्यः - एक साथ; हृदि- हृदय के भीतर; अवरुध्यते - सघन हो जाता है; अत्र - यहाँ; कृतिभिः - साधु पुरुषों द्वारा; शुश्रुषुभिः - संस्कृति द्वारा; तत् - क्षणात् - बिना देर किए |
अनुवाद
भौतिक रूप से प्रेरित सभी धार्मिक गतिविधियों को पूरी तरह से खारिज करते हुए, यह भागवत पुराण उच्चतम सत्य को प्रतिपादित करता है, जो उन भक्तों द्वारा समझा जा सकता है जो हृदय में पूरी तरह से शुद्ध हैं। उच्चतम सत्य वास्तविकता है जो सभी के कल्याण के लिए भ्रम से अलग है। ऐसा सत्य त्रिविध दुखों का नाश करता है। महान संत व्यासदेव द्वारा [अपनी परिपक्वता में] संकलित किया गया यह सुंदर भागवतम, भगवान की प्राप्ति के लिए अपने आप में पर्याप्त है। किसी अन्य शास्त्र की क्या आवश्यकता है? जैसे ही कोई ध्यानपूर्वक और विनम्रतापूर्वक भागवतम के संदेश को सुनता है, ज्ञान की इस संस्कृति द्वारा परम भगवान उसके हृदय में स्थापित हो जाते हैं।
@@tusharranjansarangi5201 पुस्तकालय » श्रीमद-भागवतम (भागवत पुराण) » सर्ग 1: सृष्टि » अध्याय एक
एसबी 1.1.3
निगमकल्पतरोर्गलिटं फलं
शुकमुखादमृतद्रवसंयुतम् ।
पिबत भागवतं रसमालयं
मुहुरहो रसिका भुवि भावा: ॥ 3 ॥
निगम-कल्प-तरोर गलतम फलम
शुक-मुखाद् अमृत-द्रव-संयुतम्
पिबत भागवतम रसम आलयम
मुहुर अहो रसिका भुवि भावुका:
समानार्थी शब्द
निगम - वैदिक साहित्य; कल्प - तारोः - इच्छा वृक्ष; गलतम्- पूर्णतः परिपक्व; फलम् - फल; शुक - श्रील शुकदेव गोस्वामी, श्रीमद-भागवतम के मूल वक्ता; मुखात्- के होठों से; अमृत - अमृत; द्रव्य - अर्धठोस और नरम और इसलिए आसानी से निगलने योग्य; संयुतम् - सभी प्रकार से पूर्ण; पीबत - उसका रसास्वादन करो; भागवतम् - भगवान के साथ शाश्वत संबंध के विज्ञान से संबंधित ग्रंथ; रसम् - रस (जो स्वाद लेने योग्य हो); आलयम- मुक्ति तक, या मुक्त अवस्था में भी; मुहः- सदैव; अहो- हे; रसिकाः - रसों के ज्ञान से पूर्ण; भुवि- पृथ्वी पर; भावुकाः - विशेषज्ञ और विचारशील |
अनुवाद
हे विशेषज्ञ और विचारशील पुरुष, वैदिक साहित्य के इच्छा वृक्ष के परिपक्व फल श्रीमद-भागवतम का आनंद लें। यह श्री शुकदेव गोस्वामी के होठों से निकला है। इसलिए यह फल और भी अधिक स्वादिष्ट हो गया है, हालांकि इसका अमृत रस मुक्त आत्माओं सहित सभी के लिए पहले से ही स्वादिष्ट था
Needs futhér discussion certainly
@TUSHAR RANJAN SARANGI एसबी 1.1.1
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञ: स्वरात्
तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरय: ।
तेजोवारीमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा
धम्ना स्वेन सदा संबद्धकुहकं सत्यं परं धीमहि ॥ 1 ॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जन्मादि अस्य यतोन्वयाद इतरतश कार्तेशव अभिज्ञः स्वरत
तेने ब्रह्म हृदा या आदि कवये मुह्यन्ति यत् सुरय: तेजो-वारी-मृदां यथा
विनमयो यात्रा त्रि-सर्गो अमृषा
धामना स्वेन सदा निरस्त-कुहाकम सत्यम परम धीमहि
समानार्थी शब्द
ॐ - हे मेरे प्रभु; नमः- प्रणाम करता हूँ; भगवते - भगवान को; वासुदेवाय - वासुदेव (वासुदेव के पुत्र), या भगवान श्री कृष्ण, आदि भगवान; जन्म - अादि - सृजन, पोषण और संहार; अस्य - व्यक्त ब्रह्मांडों के; यतः- जिससे; अन्वयात्- सीधे; इतरतः - परोक्ष रूप से; च - तथा; अर्थेषु - प्रयोजन; अभिज्ञः - पूर्णतया ज्ञानी; स्व - रात - पूर्णतः स्वतंत्र; तेने - प्रदान किया गया;ब्रह्म - वैदिक ज्ञान; हृदा- हृदय की चेतना; यः- जो; आदि - कवये - आदि सृजित प्राणी को; मुह्यन्ति- मोहग्रस्त होते हैं; यत्- जिसके बारे में; सुरयः - महान ऋषि और देवता; तेजः - अग्नि; वारी - जल; मृदाम् - पृथ्वी; यथा - जितना ; विनमयः - क्रिया तथा प्रतिक्रिया; यत्र - जहाँ; त्रि - सर्गः - सृजन के तीन तरीके, रचनात्मक संकाय; अम्ृषा - लगभग वास्तविक;धम्ना - समस्त दिव्य सामग्री सहित; स्वेण - आत्मनिर्भर; सदा- सदैव; निरस्ता - अभाव से निषेध; कुहकम - भ्रम; सत्यम् - सत्य; परम् - पूर्ण; धीमहि - मैं ध्यान करता हूँ |
अनुवाद
हे मेरे प्रभु, श्री कृष्ण, वासुदेव के पुत्र, हे सर्वव्यापक भगवान, मैं आपको अपना सम्मानपूर्वक प्रणाम करता हूँ। मैं भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करता हूँ क्योंकि वे परम सत्य हैं और व्यक्त ब्रह्मांडों के निर्माण, पालन और विनाश के सभी कारणों के आदि कारण हैं। वह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सभी अभिव्यक्तियों के प्रति सचेत है, और वह स्वतंत्र है क्योंकि उससे परे कोई अन्य कारण नहीं है। यह केवल वे हैं जिन्होंने सबसे पहले ब्रह्माजी, मूल जीव के हृदय को वैदिक ज्ञान प्रदान किया था। उनके द्वारा बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों और देवताओं को भी भ्रम में डाल दिया जाता है, जैसे कि कोई अग्नि में देखे गए जल या जल पर दिखाई देने वाली भूमि के मायावी रूपों से मोहित हो जाता है। केवल उन्हीं के कारण प्रकृति के तीन गुणों की प्रतिक्रियाओं से अस्थायी रूप से प्रकट भौतिक ब्रह्माण्ड वास्तविक प्रतीत होते हैं, यद्यपि वे असत्य हैं। इसलिए मैं भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करता हूं, जो दिव्य धाम में शाश्वत रूप से विद्यमान हैं, जो भौतिक दुनिया के भ्रामक प्रतिनिधित्व से हमेशा के लिए मुक्त है। मैं उनका ध्यान करता हूं, क्योंकि वे परम सत्य हैं।
Ranveer, I am little upset this time. Please ask the right question to right people. You are asking chemistry problem to history teacher. History teacher can convince you either God exist or does not exist. First you should define “religion”, who invented it. Just google it you must find the answer. Then ask, is it ever there in our sanatana culture. If not then how come his answer can be correct then. Please don’t confuse the young generation. Reading the books can’t help you to be swimmer, it must be experienced with right teacher or coach. Religion is created and designed so cleverly by the Brit that whole world is getting fooled and divided.
Then u should be the teacher right 👍🏼
Reading books can't teach u swimming but practical needs so do it practically and show us and don't combine the swimming with knowledge or religion these are different so knowing them is also different
@TUSHAR RANJAN SARANGI पुस्तकालय » श्रीमद-भागवतम (भागवत पुराण) » सर्ग 1: सृष्टि » अध्याय एक
एसबी 1.1.3
निगमकल्पतरोर्गलिटं फलं
शुकमुखादमृतद्रवसंयुतम् ।
पिबत भागवतं रसमालयं
मुहुरहो रसिका भुवि भावा: ॥ 3 ॥
निगम-कल्प-तरोर गलतम फलम
शुक-मुखाद् अमृत-द्रव-संयुतम्
पिबत भागवतम रसम आलयम
मुहुर अहो रसिका भुवि भावुका:
समानार्थी शब्द
निगम - वैदिक साहित्य; कल्प - तारोः - इच्छा वृक्ष; गलतम्- पूर्णतः परिपक्व; फलम् - फल; शुक - श्रील शुकदेव गोस्वामी, श्रीमद-भागवतम के मूल वक्ता; मुखात्- के होठों से; अमृत - अमृत; द्रव्य - अर्धठोस और नरम और इसलिए आसानी से निगलने योग्य; संयुतम् - सभी प्रकार से पूर्ण; पीबत - उसका रसास्वादन करो; भागवतम् - भगवान के साथ शाश्वत संबंध के विज्ञान से संबंधित ग्रंथ; रसम् - रस (जो स्वाद लेने योग्य हो); आलयम- मुक्ति तक, या मुक्त अवस्था में भी; मुहः- सदैव; अहो- हे; रसिकाः - रसों के ज्ञान से पूर्ण; भुवि- पृथ्वी पर; भावुकाः - विशेषज्ञ और विचारशील |
अनुवाद
हे विशेषज्ञ और विचारशील पुरुष, वैदिक साहित्य के इच्छा वृक्ष के परिपक्व फल श्रीमद-भागवतम का आनंद लें। यह श्री शुकदेव गोस्वामी के होठों से निकला है। इसलिए यह फल और भी अधिक स्वादिष्ट हो गया है, हालांकि इसका अमृत रस मुक्त आत्माओं सहित सभी के लिए पहले से ही स्वादिष्ट था
Freedom of life with nature
Sir aapse me ye puchna chahta hu ki kon se Hinduism ko man kar log choti caste pe galat karte h 😂
Non Vedic scriptures.. manusmriti,bharisharsmirti,durshastri
It's very sad. We don't know Hinduism.....................The philosophy of Jainism, Buddhism, Vedant, and Sikhism forms the "Soul" of Hinduism." Sanatan dharma is not Hinduism but a subset of Hinduism which deals with the "practice of God.".... i.e., "Bhraman," the final God of the Universe. Sanatan is supposed to follow Vedant (which merges with spirituality), but in an actual sense, it is the practice of God, its stories, creating stories of God to pass messages in the society, creating temples for God....creating the face of God by picking some character of the stories which suppose to pass certain message to the society.
In a broad sense - Brahminical interpretation of Hinduism= Sanatan +- Vedant
- Kshtriyas interpretation of Hindusm= Jainism + Buddhism + Sikhism (these all founders were Kshatriyas against injustice and exploitation propagated by Brahmins through the fear of God)
sirf casteism waale hinduism kaa reject kr rhe ha
Hinduism ❌
Brahmanism ✅
Yes by that logic 80% of Indians are brahmins?
Budh dhamm ki vajrayan or tantrayan shakha hi hindu dharm hai
Sabse badi problem hume lagti hai ki sanatan dharm complicated bahot hai for me may be for other's it's not
Jiski wajah hume atheism jayada sahi lagta.athiesm main main aapko itna sab jaane samajhne ki jaroorat hi nahi hai.bus apni life jio,khush raho ,maje karo,paise kamao aur at the end death toh honi hai .😁
bhai same bilkul......kbhi kbhi lgta h hinduism ko smjhna meraa bskii baatt ni ....atheist hi bn jata hu ....kuch to identity rahegi..hindu hokr b hinduism hi ni pta to kya hi krlenge hm
@@versatilegang1747 ☺️
Wahi na bro aap hi dekh lo itne sare guru hai acharya prashant,Jaggi Vasudev,aur bhi pata nahi kon kon
Aur sabhi apni apni philosophy batate hai
Iske wajah se aur confusion hota hai
Religion ek simple si chiz hi toh batata hai chahe woh koi bhi religion ho ki life kaise ji jaati hai
Usko bhi itna complicated kar diya in sab logo ne
@@imnavraj3921 Kuch complicated nahi hai bhai, religion word bhul jaa
Abh dekh tere paas 10 philosophies hai samjne ke liye {indian}
2 of them are vedant and buddha philosophy
Bss abh agar life me issues aaye yah toh acharya prashant jese kisi vedant teacher ke paas aajana, ya buddha ke paas chale jaana
Simple as that bhai
@@imnavraj3921 complicated chizen samajhne ke liye bhi buddhi ka upyog ana chahiye khair kaha se ayega aap jaison ko
@@thebandoftwocretins4406 dikha di n tum logon ne
Tum religious log offend badi jaldi ho jaate ho aur dusro ko bewkoof samajhte ho
Main tumhare religion, dharm jo bhi bolte ho uske against thodi bol raha hun
Bus apne views rakh Raha hun
Kisi bhi dharm ka ek dharmik granth hota hai ..uske baad sare garnth aate hai .. wo dharm granth ki jagah nhi le skte.. jaise ke ved dharm granth hai aur uske baad wale sare sirf granth hai
Ma inki bat ka khandan kar ta hu. Sabhi sastro ko bed vyas ji ne hi likha ha aur bed me hi likha ha ki puran jada important ha ved se. Aur puran aur itihas ko pancham bed bhi bola gaya ha.Pata nahi a kon se nasa kar te ha. Hare Krishna Hari bol 👍🙏😀
Bhai thira sa bata doge konse puran ne mentioned hai ye sab cheeje?
@@Anshu.24383 bhagbat maha puran padh lo use bramha sutra ka bhasya aur bed rupi briksh ka paka hua fal bataya gaya ha. Aur ise sabhi maharshi, rishi aur acharya mante bhi ha. Hare Krishna Hari bol 👍🙏😀
@@harekrishna2291 bhai maine pucha ki kaha likha hai konse puran ke konse adhyay me batao to sahi?
@@Anshu.24383 kaha to maine bhagbat maha puran padh lo uske pratham adhay me hi likha ha. Hare Krishna Hari bol 👍🙏😀
@@Anshu.24383
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पुस्तकालय » श्रीमद-भागवतम (भागवत पुराण) » सर्ग 1: सृष्टि » अध्याय एक
एसबी 1.1.3
निगमकल्पतरोर्गलिटं फलं
शुकमुखादमृतद्रवसंयुतम् ।
पिबत भागवतं रसमालयं
मुहुरहो रसिका भुवि भावा: ॥ 3 ॥
निगम-कल्प-तरोर गलतम फलम
शुक-मुखाद् अमृत-द्रव-संयुतम्
पिबत भागवतम रसम आलयम
मुहुर अहो रसिका भुवि भावुका:
समानार्थी शब्द
निगम - वैदिक साहित्य; कल्प - तारोः - इच्छा वृक्ष; गलतम्- पूर्णतः परिपक्व; फलम् - फल; शुक - श्रील शुकदेव गोस्वामी, श्रीमद-भागवतम के मूल वक्ता; मुखात्- के होठों से; अमृत - अमृत; द्रव्य - अर्धठोस और नरम और इसलिए आसानी से निगलने योग्य; संयुतम् - सभी प्रकार से पूर्ण; पीबत - उसका रसास्वादन करो; भागवतम् - भगवान के साथ शाश्वत संबंध के विज्ञान से संबंधित ग्रंथ; रसम् - रस (जो स्वाद लेने योग्य हो); आलयम- मुक्ति तक, या मुक्त अवस्था में भी; मुहः- सदैव; अहो- हे; रसिकाः - रसों के ज्ञान से पूर्ण; भुवि- पृथ्वी पर; भावुकाः - विशेषज्ञ और विचारशील |
अनुवाद
हे विशेषज्ञ और विचारशील पुरुष, वैदिक साहित्य के इच्छा वृक्ष के परिपक्व फल श्रीमद-भागवतम का आनंद लें। यह श्री शुकदेव गोस्वामी के होठों से निकला है। इसलिए यह फल और भी अधिक स्वादिष्ट हो गया है, हालांकि इसका अमृत रस मुक्त आत्माओं सहित सभी के लिए पहले से ही स्वादिष्ट था।
I unsubscribe this channel because of this person...
Dhram Religion Mazhub are different things.
Religion mazhub ak ha
You believe in mythology😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂
@@piyushsonigara5550 Increase your patience to find evidence of so called mithology. It's great 💯 Akhand Bharat History... World wide Hinduism.
I also unsubscribed Because of these dirty people interviews
@@murugen1981 So you think that Hanuman ji flying from here , increasing their size and eating the sun is a real incident and history???😂🤦♂️
It's clearly mythology.
i stopped following these fake self proclaimed acharya after he called the boota kola tradition as primitive superstition...from someone who has seen it multiple times,i feel it is better than listening to an illiterate who never experienced it on that issue
Think from a bigger picture perspective.
If they are real then why they are not in global news?
If they have powers.
Why we were colonised?
If they are demigods or whatever.
Why is india still backwards?
If they are real.
Then why they are limited to only villages and not a part of metro cities and solving their problems?
I have also seen similar stuff. But I am rational so I encourage you too be.
Please change your intro, it's downright irritating and degrading your own content that's so fabulous
Agar ye new devta puranic h isa(jesus) k baad me aaye h ,jinka mandir bna rhe h wo bhu puranic h to prashant ji zara ye btaiye ki Mahabharata to 5000 saal purane waqt ka varnan krta h ,mata parvati k mandir ka varnan g usme to ab wo to jesus k pehle ki baat h ,ab aap kya kehna chahenge.
Kuchh log bolenge ki Mahabharata kalpanic h to unka kuchh nhi ho skta.
bhai Prashant ji puran ke baare me bol rahe hai naki itihasa(mahabharata,ramayana) ke baare me .Aur har puran apne app ko contradict karta hain .
@@dhananjayrathod8604 are bhai ye bol rha h ki devta jese shiv parvati puranic h,Vedic nhi h to is se ye puchho ki itihas me Inka varnan kese h?
Or bhai rhi baat contradiction ki to shiv purana me likha hua h ki har purana alag alag kalpa k baare me btata h ,alag timelines h sabhi to alag alag incident hue honge na.
@@ShubhamSharma-ow7jn arrey fake acharya ko seriously kyu le rhe ho tum.. Real acharya Shankaracharya the.. jinhone bhagwan Vishnu and Bhagwan Shiv ke upar bhi books likhe.. aur unse bda adwait vedant ka jankar koi nhi hai
@@Rohit-ij7mb sahi keh rhe ho bhai per jab audience ese fake gurus ko appreciate krti h na tb achha nhi lgta per now I think why should we care at all?
@@ShubhamSharma-ow7jn Log appreciate karte h isko qki logo ko scriptures ka knowledge nhi hai.. aisi hi hai ek Iskon.. jo logo ko brainwash krte hai
agar ved m aate h iska mtlb ye sab exist karte thay
A person who don't have any knowledge of dharma and sastras is taking about sanathan dharma and people are watching it.
Welcome to kaliyuga where every importer and lie is hell bend on becoming main stream.
Why don't he invited Adiya Satsangi who runs his channel called sattology and has extensive knowledge of sastras and come from sampradaya and tradition.
Today's Hindusim is Shiv and Vishnu are Muslim's ✠
तू देखने गया ठा कब पुराण लिखे गये है
I'm your subscriber Adipursh ke mekars ko bullao show pe or pucho kyu aisa ghatiya film banaya, especially Manoj muntashir and om raut bulao inko,isse baccho pe or teenager pe galat impact pad raha hai sanatan dharm ko leke galt impact pad raha hai,request you ranvir bhai 💯🙌👍
Bro targeting Dhruv rathi
3 comment bro❤
Bhai saab....
Aaa thooooo....
Hinduism???
Ye word kaha se aaya h??
Ravish kumaar ki yaad aa gyi isse dekh kr 🤣🤣🤣🤣
Ved, puran, Mahabharata ramayan sabhi muslim kalame likhe gaye!! Purane honeka koi proof nahi hai!! Ghuma firake sirf purana purana batao!!
Mtlb ramayana aur Mahabharata jhoot hai??
Ranvir is dum, Acharya gave comprehensive answer.
Bhai ayse jhoote aadmi ko bulakar Sanatana dharma ko insult karna bandh karo. Ye aadmi Sanatana Dharma ke bade mein kuchh nhi jaanta.
Bodh dharm ko nashat krnke baad ved puran likhe gye
Kya proof hai iska? Puri duniya bolti hai Ved bahut purane hai
…
Inko vedon ke bina vedanta chahiye… karma kanda ke bina dharma chahiye… murkhta hai. Vedanta PhD hai pehle Ved to padhlo theek se, sadhana karlo theek se…
Karma Kanda ka kaliyug main koi mahatva nahin hai. Karma Kanda moksha pradan nahi kar sakta. Yeh baat khud Adi Shankaracharya ne prove ki hai.
Quite possible Upanishads manna Sur karde no ritual on enquiry of truth but gand fatt jayega kyunki Upanishads nagga karta hai , dukh dega Suru toh karo Upanishads.
Dharm kitna kathin hai pata lagega
Aisi baate karke tum Shree Krishna ka apmaan kar rhe ho ,
Shree Krishna ne Geeta me kaha hai ki vedo ka wo bhaag jo bhog aur vilasita me vyast hai ( yaane ki karmkaand ) aur tumhe swargiya sukh ki prapti Kara dega
Aisi cheezo me jo yakin rkhta ho
Wo mera updesh kabhi samaz hi nahi payega
Matlab Shree Krishna bhi yahi kehna chahte hai ki vedo me agar kuch kaam ka hai , toh wo vedant hai
Vedant hi sanatan dharm hai
Jai shree Ram 🙏
Guru ji pakade gaye...pahale kahate hai k vedo me nahi hai castism...bad me kahate hai ek do vedo me hai par iska vedo se koi sambhandh nahi hai.....gumrah kar rahe hai logo ko....
Ye sab hi Garnth Hindu ki hai
The copycat Ranveer is at it again.
The weird Hindi-Urdu shout of "Jigyasa ke Maadhyam se Khushi"😁 - Yet another RIPOFF of other podcasters, like Joe Rogan, who similarly shouts 'train by day joe rogan podcast by night' 🙏👎
Time batao bedant ki kab liki gyi
4000 saal phele 2500BCE me
Allah hu Akbar ❤️❤️
Bhaag bhaiskipuchi
तो 😂😂😂