साधना जैन,,, गुरुजी आपने बिल्कुल सही कहा,,,❤❤,,, स्वाध्याय करने से सिर्फ agyan दूर नहीं होता,,,, हमारे अंदर जो विपरीत मान्यता भरी पड़ी है,,, और जो bhya है वह सब समाप्त हो जाते हैं,,, एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का करता धर्ता नहीं है,,, हमारे भगवान वितरागी है,,, कुछ लेते देते नहीं,,, हमें यह स्वीकार करना हीपड़ेगा,,,, और गुरुजी ने कहा❤❤ जैन दर्शन में व्यक्तिवाद की पूजा नहीं है,,, जैन धर्ममें वीतराग ता एवं सर्वज्ञ ता की पूजा है,,,, और भीगजब,, गजब कीबात बताई ❤ हमने पर की आंधी श्रद्धा अनंत बार की,,, भगवान आत्मा पर हमेशा शंका करते रहे,,, और कहा❤ पर्याय में कैसी भी दशा हो रही हो,,, फिर भी हम अपने को भगवान आत्मा ही समझे,,, हमें agarta ध्रुव की दृष्टि करने के लिए,,,, पर्याय दृष्टि chorani ही पड़ेगी❤🙏🙏🙏
लवी जैन....सही भैया जी 🙏 परिणाम का कर्ता अगर खुद को मान लिया तो क्या दिक्कत होगी - ( परिणाम का कर्ता खुद को मान लिया तो यही चलता रहेगा जो आज तक चलता आया है रंच मात्र भी फर्क नहीं आयेगा क्युकी अभी तक यही तो कर रहे है में सब कर्ता धर्ता हू और जहाँ में नहीं वहाँ भगवान को ले आते है भगवान कर्ता धर्ता है इसलिए यही सबसे बड़ी भूल होगी और चारों गतियों में भृमण चालू रहेगा) वैसे तो हर घड़ी हर रोज ही दिख रहा है कि मेरे करने से कुछ हो नहीं रहा पर दृष्टि तो अपने हिसाब से सब करने पर लगी हुई है तो अकर्तापना महसूस कैसे हो। उलझते वही है जिनके अंतरंग में बात ना लगी हो वरना अगर एक बार बात अंतरंग में बैठ गयी तो उसी पल इतना शांति का अनुभव होता है सारा बोझ हट जाता है कि में सिवाय जानने और देखने के अलावा कुछ कहाँ कर पाया,कर सकता, कर सकूँगा 🙏🙏🙏
Thank you very very much Dr. VIVEK JI . Aap ke Gyaan ki bahut bahut anumodna . 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 .
साधना जैन,,, गुरुजी आपने बिल्कुल सही कहा,,,❤❤,,, स्वाध्याय करने से सिर्फ agyan दूर नहीं होता,,,, हमारे अंदर जो विपरीत मान्यता भरी पड़ी है,,, और जो bhya है वह सब समाप्त हो जाते हैं,,, एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का करता धर्ता नहीं है,,, हमारे भगवान वितरागी है,,, कुछ लेते देते नहीं,,, हमें यह स्वीकार करना हीपड़ेगा,,,, और गुरुजी ने कहा❤❤ जैन दर्शन में व्यक्तिवाद की पूजा नहीं है,,, जैन धर्ममें वीतराग ता एवं सर्वज्ञ ता की पूजा है,,,, और भीगजब,, गजब कीबात बताई ❤ हमने पर की आंधी श्रद्धा अनंत बार की,,, भगवान आत्मा पर हमेशा शंका करते रहे,,, और कहा❤ पर्याय में कैसी भी दशा हो रही हो,,, फिर भी हम अपने को भगवान आत्मा ही समझे,,, हमें agarta ध्रुव की दृष्टि करने के लिए,,,, पर्याय दृष्टि chorani ही पड़ेगी❤🙏🙏🙏
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लवी जैन....सही भैया जी 🙏
परिणाम का कर्ता अगर खुद को मान लिया तो क्या दिक्कत होगी - ( परिणाम का कर्ता खुद को मान लिया तो यही चलता रहेगा जो आज तक चलता आया है रंच मात्र भी फर्क नहीं आयेगा क्युकी अभी तक यही तो कर रहे है में सब कर्ता धर्ता हू और जहाँ में नहीं वहाँ भगवान को ले आते है भगवान कर्ता धर्ता है इसलिए यही सबसे बड़ी भूल होगी और चारों गतियों में भृमण चालू रहेगा)
वैसे तो हर घड़ी हर रोज ही दिख रहा है कि मेरे करने से कुछ हो नहीं रहा पर दृष्टि तो अपने हिसाब से सब करने पर लगी हुई है तो अकर्तापना महसूस कैसे हो।
उलझते वही है जिनके अंतरंग में बात ना लगी हो वरना अगर एक बार बात अंतरंग में बैठ गयी तो उसी पल इतना शांति का अनुभव होता है सारा बोझ हट जाता है कि में सिवाय जानने और देखने के अलावा कुछ कहाँ कर पाया,कर सकता, कर सकूँगा 🙏🙏🙏
Jai jinendra dahod
Jay jinendra Pune
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